विज्ञान – - इंद्रधनुष

लेखक - दिलकेश मधुकर

परावर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन व्दारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है. बरसात के मौसम में जब पानी की बूँदे सूर्य पर पड़ती हैं तब सूर्य की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है. आकाश में संध्या के समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी रंगों का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है. यही इंद्रधनुष कहलाता है.

इन्द्रधनुष दो प्रकार के होते हैं - प्राथमिक एवं व्दितीयक.

प्राथमिक इंद्रधनुष - जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो प्राथमिक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है. प्राथमिक इन्द्रधनुष में लाल रंग बाहर की ओर तथा बैंगनी रंग अन्दर की ओर होता है. अन्दर वाली बैंगनी किरण आँख पर 40°8' तथा बाहर वाली लाल किरण आँख पर 42°8' का कोण बनाती है.

व्दितीयक इन्द्रधनुष - जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व दो बार परावर्तन होता है, तो व्दितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है. इसमें बाहर की ओर बैंगनी रंग एवं अन्दर की ओर लाल रंग होता है. बाहर वाली किरण आँख पर 54°52' का कोण तथा अन्दर वाली किरण 50°8' का कोण बनाती है. व्दितीयक इन्द्रधनुष प्राथमिक इन्द्रधनुष की अपेक्षा कुछ धुँधला दिखलाई पड़ता है.

वर्ण-विक्षेपण के रंग - नीचे से ऊपर के क्रम में – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल. इसे हम “बैंनी आह पीनाला” के रूप में याद कर सकते हैं.

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