चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

सुभाष राजवाड़े,शा. उ. मा. विद्यालय कनकी द्वारा भेजी गई कहानी

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के छोटे से गाँव कनकी का निवासी राजू और उसकी पत्नी उर्मिला अपने तीन बच्चों के साथ दिल्ली में रहते थे. यहाँ राजू एक नई बन रही काॅलोनी में राज मिस्त्री का काम करता और उर्मिला भी वहीं मजदूरी करती थी.

एक दिन यह समाचार मिला कि विश्व के अनेक देश कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहे हैं. कोरोना वायरस एक बड़ी महामारी का रूप ले चुका है. इसे काबू में करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. यह वायरस चीन के वुहान शहर से फैलना शुरू हुआ और अब अमेरिका, ईटली, फ्रांस चीन आदि देशों में वायरस से लाखों लोग संक्रमित हो गये हैं रोज हजारों लोगों की मौत हो रही है.

भारत में भी कोरोना वायरस के संक्रमित मरीज मिलने लगे तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश भर में लॉकडाउन घोषित कर दिया. लाॅकडाउन में किसी को भी अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी. सारे निर्माण कार्य बंद कर दिए गये. रेल,बस, हवाई सेवाएँ बंद कर दी गईं. होटल, मॉल,मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारा आदि सार्वजनिक जगहें भी बंद कर दी गईं.

राजू जैसे लाखों मजदूर कमाने के लिएअपना गाँव छोड़कर शहरों महानगरों में रहते हैं और बरसात के पहले अपने गाँव लौट आते हैं. लेकिन इस बार लॉकडाउन ने ऐसे मजदूरों की हालत खराब कर दी. मार्च महीने में ही काम बंद हो गया. घर लौटना भी संभव नहीं था क्योंकि बसें,ट्रेन सभी बंद थे. राजू ने कुछ पैसे बचत के रूप मे जमा किये थे पर अब वह पैसे भी खत्म होने लगे. ढ़ाई महीने किसी तरह बीत गये.

फिर एक दिन राजू को टी वी समाचार से पता चला कि राज्य सरकार बाहर के राज्यों से मजदूरों को वापस घर लाने के लिए ट्रेन चलाने वाली है. राजू ने परिवार के लिए ट्रेन का टिकट बुक करवा लिया. एक सप्ताह बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेन दिल्ली से रवाना हुई. अगले दिन रात को वे चाम्पा रेलवे स्टेशन पहुँचे. शासन के नियमानुसार राजू को परिवार सहित क्वारंटाइन सेंटर कोथारी में रहने कहा गया. वहां उन सभी का कोरोना टेस्ट भी हुआ. 14 दिनों की क्वारंटाइन अवधि के राजू सपरिवार अपने घर पहुँचा. तब उन सभी के चेहरों पर एक अलग ही खुशी झलक रही थी.

पल्लवी साहू द्वारा भेजी गई कहानी

लॉक डाउन में मज़दूरों की समस्या

जनवरी 2019 में मनोज अपने परिवार सहित छत्तीसगढ़ से जम्मू-कश्मीर मजदूरी करने गया था. वह बहुत गरीब था इसलिए मजदूरी कर के अपने परिवार का गुजारा करता था.

दिसंबर में इस प्रकार की खबरें आने लगीं कि चीन में कोरोना नामक एक वायरस की वजह से हड़कंप मचा हुआ हैं और चीन के वुहान शहर को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. इस वायरस के अन्य देशों में भी फैलने का खतरा था परंतु अभी भारत में सभी कार्य सामान्य रूप से चल रहे थे.. इसी तरह वर्ष 2019 बीत गया.

अब कोरोना वायरस का कहर बढ़ता जा रहा था. मनोज अभी भी जम्मू कश्मीर में ही मजदूरी कर रहा था. जनवरी माह में कोरोना वायरस इटली, अमेरिका, ईरान और दुनिया के अन्य देशों में खतरनाक तरीके से फैल गया. वायरस के कारण रोज़ हजारो लोगों की मृत्यु होने की खबरें आने लगीं. मनोज के कई मजदूर साथी छत्तीसगढ़ वापस लौटने लगे पर मनोज वापस नहीं लौटा और वहीं काम करता रहा.

मार्च 2020 में भारत में भी कोरोना वायरस के मरीज मिलने लगे. संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लाॅकडाउन लगा दिया गया. अब मनोज और उसका परिवार वही फँस गया. सभी मजदूरों को उनके घर पहुँचाने के लिये सरकार ने व्यवस्थाएँ कीं परंतु सरकार भी एक साथ कितने मज़दूरों को घर पहुँचाती. मनोज के साथ वहाँ रह गए अन्य मजदूर अपने परिवार के साथ घर के लिए पैदल निकल पड़े. कई दिनों की पैदल यात्रा के बाद वह अपने गाँव पहुँच पाया. गाँव पहुँचने पर मनोज को परिवार सहित गाँव के ही स्कूल में क्वारंटाइन में रहने को कहा गया. अभी क्वारंटाइन का समय पूरा नहीं हुआ है इसलिए मनोज सपरिवार स्कूल में ही है. अभी भी क्वारंटाइन सेंटर में दूसरे राज्यों में गए मजदूर आ रहे हैं

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

लाॅक डाउन में फँसा मजदूर

किशन अपने परिवार के साथ जीवन यापन करने दूसरे राज्य गया था. वहाँ वह अपने परिवार सहित किराये के मकान में रहता था. वह रोजगार की तलाश में अपना गाँव छोड़कर आया था. यहाँ किशन और उसकी पत्नी को मकान निर्माण कार्य में मजदूरी का काम मिल गया था. इससे किशन के परिवार का गुजारा चल जाता था. बच्चों की पढ़ाई भी चल रही थी और कुछ बचत भी हो जाती थी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था.

तभी एक दिन देश में कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉक डाउन लगा दिया गया. लॉक डाउन में निर्माण कार्य बंद हो जाने के कारण किशन के परिवार की आजीविका भी बंद हो गई. कुछ दिनों तक बचत के पैसों से घर का गुजारा चल गया लेकिन ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता था. लाॅक डाउन की अवधि बढाने की घोषणा होने के बाद किशन और उसकी पत्नी बहुत चिंतित हो गये. विपत्ति के समय में अपने गाँव और घर की याद सताने लगी. दोनों ने मिलकर अपने गाँव लौट जाने का निश्चय कर लिया. बसें और ट्रेनें सभी बंद थीं अतः घर लौटने का एकमात्र तरीका था कि वे पैदल ही अपने गाँव के लिए चल पड़ें.

घर जाने की प्रबल इच्छा से प्रेरित होकर किशन सपरिवार पैदल ही सारा सामान लेकर निकल पड़ा. दो दिनों तक पैदल चलने के कारण किशन, उसकी पत्नी और बच्चे थककर चूर हो गये. तभी सौभाग्य से उन्हें एक ट्रक का ड्राइवर मिल गया जो उनके गाँव के पास के शहर तक सामान पहुँचाने अपना ट्रक लेकर जा रहा था. किशन के निवेदन पर वह ड्राइवर उन्हें ट्रक में अपने साथ ले जाने को तैयार हो गया..

ट्रक से अपने गाँव के नजदीक के शहर तक पहुँचने के बाद किशन ने सपरिवार एक दिन का पैदल सफर किया और आखिरकार वह अपने गाँव तक पहुँच ही गया. गाँव पहुँचकर किशन और उसकी पत्नी ने बहुत राहत महसूस की और शहर में झेली कठिनाइयों के बारे में गाँव वालों को बताया. गाँव के लोगों ने किशन को सांत्वना देते हुए 14 दिन के लिए क्वारंटाईन सेंटर शाला भवन में रहने की सलाह दी. क्वारंटीन की अवधि पूर्ण करने के पश्चात वे अपने घर आ गए. अब किशन और उसकी पत्नी ने तय कर लिया कि वे मजदूरी करने शहर नहीं जाएँगे बल्कि गाँव में ही रहकर अपनी रोजी-रोटी चलाएँगे.

अब आप दिए गये चित्र को देखकर कल्पना कीजिए और कहानी लिख कर हमें यूनिकोड फॉण्ट में टंकित कर ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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