बालगीत

प्रार्थना

रचनाकार- विजय लक्ष्मी राव

नन्हें-नन्हें हाथ जोड़कर,
हम सब माँगे यह वरदान.
हमको देना ऐसा ज्ञान,
सबको माने एक समान.
पढ़-लिखकर हम बने महान,
मन में न हो कभी अभिमान.

प्रार्थना

रचनाकार- शशि पाठक

हे प्रभु मुझे शक्ति देना,
कर्म ऐसा कर सकूँ.
जनकल्याण का ले संकल्प
सन्मार्ग पर मैं चल सकूँ.

चहुँओर विश्व में शांति हो,
मन में न कोई भ्रांति हो.
नई सोच औऱ उमंग का,
हर एक पल नव क्रांति हो.

कोई रोग का न वास हो,
सब कष्ट मिटें न संताप हो.
धरा मुक्त हो दुर्व्यसनों से,
सुख-समृद्धि का निवास हो.

दुर्बलों का सबल बनूँ मैं,
निःस्वार्थ सेवा कर सकूँ.
रहकर मार्ग पर अविचल,
कुछ राष्ट्रहित मैं कर सकूँ.

प्यारी माँ

रचनाकार- रीना मौर्या 'मुस्कान'

बड़े प्यार से गोदी में ले,
हमको माँ जगाती है.
मीठी-मीठी बातें करके,
माँ हमको बहलाती है.

बड़े सवेरे हमें उठाती,
उगता सूर्य दिखाती है.
फिर थोड़ा व्यायाम कराती,
रोटी हमें खिलाती है.

जब जाते हम विद्यालय,
हमें छोड़ने आती है.
निपटाकर घर के काम सभी
हमको खूब पढ़ाती है.

अच्छा सा पकवान बनाकर,
हमको रोज खिलाती है.
संस्कारों के पाठ पढ़ाती,
हमको इंसान बनाती है.

तिरंगे की शान

रचनाकार- यशवंत कुमार चौधरी

भारत की पहचान तिरंगा,
हम सब की है जान तिरंगा.
तीन रंगों से है सुसज्जित,
वीरों की है आन तिरंगा..

बलिदानों की गौरव गाथा,
और उनका अभिमान तिरंगा.
हिन्दुस्तान के हर कोने पर,
समृद्धि की पहचान तिरंगा..

झुका कभी न झुकने देंगे,
लहराता मधुमय गान तिरंगा.
जय-जय हिंद के नारों से,
लगता गुंजायमान तिरंगा.

छत्तीसगढ़

रचनाकार -तेजेश साहू

आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़.
यह तो है,
आदिवासियों का घर.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

छत्तीसगढ़ की छटा निराली,
सुंदर - सुहावनी इसकी हरियाली.
छत्तीसगढ़ में अनेकों जंगल,
इसलिए यहां है मंगल.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

यहाँ बहती बहुत सी नदियाँ,
जो हैं इस राज्य की गंगा यमुना.
यहाँ की राज्य पक्षी भी बढ़िया,
जिसका नाम है पहाड़ी मैना.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

यहाँ वाल्मीकि की है कुटिया न्यारी,
और सबरी का आश्रम प्यारा.
यहाँ महानदी की है बहती धारा,
जिसको पूजे छत्तीसगढ़ सारा.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

आओ बच्चों जाने हम,
राजकीय पशु का नाम.
नाम है उसका वन भैंसा,
हट्टा-कट्टा हाथी जैसा.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

आओ बच्चों जाने हम,
राजकीय वृक्ष का नाम.
नाम है उसका वृक्ष साल,
जो है बहुत बड़ा विकराल.
आओ घूमें हम,
आज हमारा छत्तीसगढ़..

माँ तुम्हारे बिना......

रचनाकार- कृष्ण कुमार ध्रुव

अब रहा नहीं जाता तुम्हारे बिना.
मुझे कभी कोई शिकवा नहीं तुम्हारी बातों से.
मालुम नहीं था, मुझे इतनी जल्दी छोड़ चली जाओगी.
सूख गई हैं, तुम्हारी ये मांसपेशियाँ.
शायद आराम करने की तुम्हें फुर्सत नहीं.
तुम्हारे चेहरे की वो मुस्कान और चमक.
लगता है कहीं खो सी गई है.
बिना कहे तुम सब दर्द समझ जाती हो.
हिम्मत कमजोर हो गई है, अब तुम्हारे बिना.
यकीन नहीं था, इतनी जल्दी दूर हो जाते हैं एक दिन.
तुम्हारी वो ममता भरे आँचल की छांव.
जो अब सपने में भी नसीब नहीं.
अपनी हथेलियाँ, हमारे सिर पे जब फेरती थी.
जहाँ के सारे गम भूल जाते थे.
करुणा और अनुराग की खान हो तुम.
कितना साधारण और सच्चा इंसान हो तुम.
नहीं जाना था, तुम्हारा जाना इतना बुरा होता है.
शायद दुनिया में इससे बुरा कुछ भी नहीं होता.
तुमसे इस दुनिया ने सीखा, बहुत ज्ञान.
सब रास्ते तुमने दिखलाए, तुम हो इतनी महान.
कभी सोचा नहीं था, इतना सुंदर घर बसाकर.
एक दिन दूसरी दुनिया की देहरी पर चली जाओगी.
माँ तुम्हारे बिना......

गणित का खेल

रचनाकार - शुभम पांडेय

दो - दो मिलकर चार हुए,
चार - चार हुए आठ.
जब जोड़ा आठ - आठ को
हो गए सोलह साथ.

जोड़ हमें मिलना सिखलाता,
मिलकर बड़ा हो जाना.
और घटाना सिखलाता है,
कमियों को हटाना.

नित -नित तुम बढ़ते जाना,
गुणा गुणों का करके.
और बांटना अपनी खुशियां,
भाग दुखों का ले के.

गणित नहीं है जाना केवल,
संख्याओं का खेल.
मीठे पानी का झरना है,
सौ खुशियों का मेल.

चलो पूछते हैं

रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत, दरभंगा

चलो पूछते हैं बागों से,
क्यों उदास है वन का माली.

चलो पूछते हैं पेड़ों से,
क्यों उदास है उसकी डाली.

चलो पूछते हैं जंगल से,
क्यों उदास है यह हरियाली.

चलो पूछते हैं फूलों से,
क्यों उदास है उसकी लाली.

चलो पूछते हैं कोयल से,
क्यों उदास है तू री काली.

वृक्षारोपण

रचनाकार - चन्द्रहास सेन

सुख का जीवन जीना है तो, गलत काम से डरना सीखो.
बरस पड़ेंगे काले बादल, वृक्षारोपण करना सीखो.

वृक्ष ही जल है और, जल ही सबका जीवन.
जीवन अमूल्य है साथी, करो न वायु प्रदूषण.

सूरज चाँद नहीं बदले, और बदला नहीं गगन.
बदला केवल मानव मन, उजड़ रहा है चमन.

देख कर्म इंसानों के, वृक्ष भी कैसे जल रहे.
उनके कृत्य पर रोते - रोते, पत्ते भी रंग बदल रहे.

न रुका प्रदूषण तो, धरा विषैली हो जाएगी.
और बेचारी मानवता, बन अपंग रह जाएगी.

चलो सभी बढ़ाए कदम, हरियाली की ओर.
बाहें फैला कर देख रही, धरती चारों ओर.

एक वृक्ष काटने से पहले, हम दस वृक्ष लगा दें.
फूलों की मीठी खुशबू से,सबका घर महका दें.

गाँव गली हर शहर में अब, पेड़ों की कतार हो.
धरती के हर मानव को, वृक्षारोपण से प्यार हो.

बहने लगे बयार बसंती, नदियों में जल की धार हो.
बिछ जाए हरियाली जग में,धरती का उद्धार हो.

वे गरीब मजदूर

रचनाकार -कुमारी स्वाति आदित्य, कक्षा दसवीं

होकर मजबूर.
घर से अपने दूर..
आजीविका की आस में.
बच्चे भी लेकर साथ में..
गोद में नन्ही- सी जान.
न रहने को कोई मकान..

थी मन में भी कोई सोच.
और सर पे लिए बोझ..
अनजान-सा एक शहर.
और कोरोना का कहर..

जब हुआ लॉकडाऊन.
था बंद सारा टाऊन..
नहीं मिला कोई काम.
न गठरी में था दाम..

बढ़े जब राशन के रेट.
तब कैसे भरते वे पेट..
वह भरी दोपहर.
थे भटकते दर-बदर..
नसीब में न था छाँव.
और जलते थे पाँव..

न थी मोटर न गाड़ी.
ऊपर से अनपढ़- अनाड़ी..
पर लेकर मन में सम्बल.
यूँ ही चल पड़े पैदल..
थककर हो गए चूर.
वे गरीब मजदूर..
वे गरीब मजदूर..

मेरे पापा हीरो हैं

रचनाकार- डॉ, प्रदीप कुमार निणे॔जक

मेरे पापा हैं हवलदार,
वो बहुत हैं वफादार.
कर्तव्य पथ पर डटें हुए हैं,
घर परिवार से कटे हुए हैं.
घर कब आएँगे पता नहीं,
उनकी कोई ख़ता नहीं.
घर का खाना खा पाते नहीं,
क्योंकि वे घर आ पाते नहीं.
जिनकी रक्षा को जाते हैं,
पत्थर ही उनसे खाते हैं.
चौक- चैराहों पर खड़े मिलेंगे,
ड्यूटी में ही वे अड़े मिलेंगे.

जागो, प्यारे बच्चो

रचनाकार- शशि पाठक

जागो प्यारे बच्चो देखो,
नया सवेरा आया है.
सूरज का नया प्रकाश,
संदेशा कितने लाया है.

सुबह-सवेरे जल्दी उठकर,
माता- पिता को करो प्रणाम.
करके फिर स्नान और भोजन,
तुम विद्यालय करो प्रस्थान.

पढ़-लिखकर तुम बनो महान,
राष्ट्रहित का सदा रखो ध्यान.
परोपकार हो धर्म तुम्हारा,
ऐसे बनो तुम संस्कारवान.

कितना भी हो घना अँधेरा,
उजालों से डर जाता है.
अथक परिश्रम करने वाला,
मंजिल तक जा पाता है.

नौनिहाल हो भारतवर्ष के,
अपनी क्षमता पहचान लो.
सभ्य समाज है तुम्हें बनाना,
यह बात गाँठ तुम बाँध लो.

मर्यादा का ध्यान रखो तुम,
कभी न करो गलत काम.
मंजिल जब तक न मिल जाए,
तुम नहीं करना कहीं विश्राम.

गाल फुला कर बैठी है

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', भिण्ड, म०प्र०

बहन हमारी गुड़िया है,
वह जादू की पुड़िया है.

हमसे तो वह छोटी है,
लेकिन दिखती खोटी है.

खुशियों की वह पिटारी है,
प्यारी बहन हमारी है.

हमसे ऐसी रूठी है,
गाल फुलाकर बैठी है.

भालू वाला

रचनाकार- डॉ.त्रिलोकी सिंह, प्रयागराज

भालू वाला भालू लेकर,
आया नाच दिखाने.
बीच गाँव में आकर अपना,
डमरू लगा बजाने..
डम-डम-डम आवाज सुनी तो,
बच्चे दौड़े आए.
भीड़ लगी तो उस भालू ने,
करतब खूब दिखाए..
इसी बीच में पता नहीं क्यों,
वह भालू गुस्साया.
भालू वाला था नौसिखिया,
कुछ भी समझ न पाया..
गुस्से में भालू ने उसके,
सिर पर डंडा मारा.
मूर्च्छित होकर धरती पर वह,
लुढ़क गया बेचारा..
हालत पतली हुई सभी की,
उस भालू से डर कर.
सारे बच्चे घर को भागे,
अपनी जान बचाकर..

बिल्ली को झुकाम

रचनाकार- विजय लक्ष्मी राव

बिल्ली बोली म्याऊं_म्याऊं,

मुझको हुआ जुकाम.
अब मैं हो गई बेकाम..

चूहे दादा गोली दे दो,
जल्दी हो जाए आराम.

चूहा बोला बतलाता हूँ,
दवा एक बेजोड़.

अब आगे से चूहे को,
खाना दो तुम छोड़..

मोटर आती

रचनाकार -मनोज कुमार आदित्य

पों-पों करती मोटर आती,
धूल उड़ाती मोटर आती.
तेज दौड़ती खूब सड़क पर,
जरा न थकती चलती दिनभर.
ले सामान वह दौड़ लगाती,
दूर गाँव भी झट पहुँचाती.

पों-पों करती मोटर आती,
धूल उड़ाती मोटर आती.
वर्षा हो या धूप हो चाहे,
आगे-आगे कदम बढ़ाएँ
जाने कितना काम है करती,
थककर भी आराम न करती.
पों-पों करती मोटर आती,
धूल उड़ाती मोटर आती.

हम चाँद पर चढ़ेंगे

रचनाकार - देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

पढ़ेंगे लिखेंगे चाँद पर चढ़ेंगे,
सच राह पर हम आगे बढ़ेंगे.
बड़ों, शिक्षक की सीख मान,
भारत का नाम रोशन करेंगे..

जेब खर्च के पैसे बचा कर,
हम इक चंद्र यान बनाएँगे.
मम्मी पापा दीदी संग बैठ,
हम चाँद पर घूमने जाएँगे..

बिस्किट, टॉफी व चॉकलेट,
चंद्रयान में साथ ले जाएँगे.
भूख लगेगी जब भी मुझको,
ख़ूब मौज मस्ती कर खाएँगे..

चंद्रयान पर घूम कर हम सब,
वापस अपने घर जब आएँगे.
अगले दिन हम स्कूल में जाके,
दोस्तों को सब बात बताएँगे..

मैं स्कूल से जब घर आई,
अपने मन की यह बात बताई.
बोले, पढ़ने से सब संभव बेटा,
पढ़ने लिखने में बहुत भलाई.

मेरी डॉल

रचनाकार - देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

मेरे पास इक सुंदर डॉल,
प्रतिदिन उसे सजाती हूँ.
सुबह मैं ब्रश जब करती,
डॉल को ब्रश कराती हूँ..

मैं जाकर के रोज नहाती,
डॉल को मैं नहलाती हूँ.
सुंदर सा मैं कपड़े पहनूँ,
डॉल को फ्रॉक पहनाती हूँ..

सुबह शाम मैं पढ़ने बैठूँ,
डॉल को भी पढ़ाती हूँ.
पढ़ने से अच्छा बन जाएँ
ये बात उसे सिखाती हूँ..

पापा कहते पढ़ लिख के,
नेक कार्य कर सकती हूँ.
अच्छी आदत अपना कर,
जीवन में बढ़ सकती हूँ..

नन्हे-मुन्ने बच्चे हैं हम

रचनाकार - तेजेश साहू

नन्हे-मुन्ने बच्चे हैं हम
पर थोड़े कच्चे हैं हम
गलती थोड़ी हो जाती
पर मन से सच्चे हैं हम,
नन्हे-मुन्ने बच्चे हैं हम.

कभी झगड़ते लड़ते हैं हम
लेकिन प्रीत करते हैं हम
कभी-कभी इठलाते है हम
मम्मी को सताते हैं हम
नन्हे-मुन्ने बच्चे हैं हम.

कभी रूठ जाते हैं हम
कभी प्यार जताते हैं हम
गड़बड़ गीत सुनाते हैं हम
और कभी छुप जाते हैं हम
नन्हे मुन्ने बच्चे हैं हम.

कोरोना योद्धाओं को सलाम

रचनाकार- लुकेश्वर सिंह

हर घर दीप जलाना है,
रख हौसला बढ़ते जाना है.
डटें रहें हम, अड़े रहें हम,
मिलकर कोरोना को हराना है.

लॉक-डाउन का पालन कर,
घर में ही समय बिताना है.
सब बंद है,क्यों बाहर जाना,
दूर से ही रिश्ता हमें निभाना है.

घर पर कुछ दिन ठहर जा मानव,
यह समय न फिर आना है.
धीर बनें हम वीर बनें हम,
भारत से कोरोना को भगाना है.

करें दृढ़ संकल्प यह मन में,
भारत माँ का कर्ज चुकाना है.
जान बचाने जान दिए जो उनको,
सम्मान दिलाना है..

उन कर्म वीरों के इस कर्ज को,
हमको नहीं भुलाना है.
सच्चे नायक का सही अर्थ सुनकर,
वीरों ने बतलाया है..

खुद की परवाह करना छोड़,
इंसानियत का फर्ज निभाया है.
इस ऋण से कैसे उऋण हो पाएंगे,
हम सबका दिल ही भर आया है..

आई रे गर्मी आई

रचनाकार- कृष्ण कुमार ध्रुव

आई रे गर्मी आई,
मन भर के छुट्टी लाई.
आओ छोटू,आओ मोटू खेलें,
गर्मी छुट्टी का खूब मजा ले लें.

अब पानी हमको ज्यादा पीना,
चाहे जितना आये पसीना.
खेलेंगे और मजा करेंगे,
लड़ेंगे पर एक साथ रहेंगे.

रोयेंगे, हसेंगे, कभी चुप रहेंगे,
साथ बीता पल सदा याद करेंगे.
मिट्टी गूथेंगे, खूब खिलौने बनाएंगे,
इससे फिर अपना घरौंदा सजायेंगे.

हमें नहीं चाहिए महंगी मोटर गाड़ी,
खिलौनों में मिलती हमें खुशियां सारी.
छुट्टी में हम नानी घर जाएंगे,
बर्फी, खोवा, पेड़ा, मिठाई खाएंगे.

नाना- नानी प्यार करेंगे,
कांधे में बाजार घुमाएंगे.
गर्मी छुट्टी बीत जाएगा,
बीता हुआ पल बहुत याद आएगा!

सपना करे साकार, पढ़ई तुँहर दुआर

रचनाकार- मंजूषा साहू

कोरोना महामारी के संकट में,
फँसा है सारा संसार.

शिक्षा का दीप जलाता,
पढ़ई तुँहर दुआर.

लॉकडाउन के ऐसे समय में,
घर-घर शिक्षा उपलब्ध कराएँगे.

मोबाइल फोन में ही अब हम,
बच्चों को पढ़ना सिखाएँगे.

सपना करे साकार,
पढ़ई तुँहर दुआर,

सीजी स्कूल डॉट इन में,
पंजीयन कराएँगे.

अपना शिक्षक हम,
अपने ही घर में पाएँगे.

पढ़ाई-लिखाई, असाइनमेंट होमवर्क,
घर पर ही आ जाएँगे.

पोर्टल में अपलोड कर,
इसकी जाँच कराएँगे.

कोरोना महामारी के संकट में,
फँसा है सारा संसार.

शिक्षा का दीप जलाता,
पढ़ई तुँहर दुआर, पढ़ई तुंहर दुआर.

छत्तीसगढ़ सरकार की है,
अनोखी यह योजना.

राज्य में शिक्षा को है,
सँवारना और सहेजना.

अनुभवी शिक्षाविदों से,
होगी रोज मुलाकात.

पाठ्यक्रम और परीक्षा पद्धति पर,
करेंगे उनसे बात.

सपना करे साकार,
पढ़ई तुँहर दुआर, पढ़ई तुँहर दुआर.

ऑडियो, वीडियो, पीडीएफ, इमेज,
ऑनलाइन क्लास है इन सबमें विशेष.

गाँव-गाँव,नगर -नगर में है,
आज इसकी चर्चा.

त्रासदी में भी बढ़ाया संबल,
और लहराया है परचम.

सपना करे साकार,
पढ़ई तुँहर दुआर, पढ़ई तुँहर दुआर.

लॉकडाउन में व्यर्थ न,
अपना समय गवाँएगे.

वर्चुअल स्कूल और क्लास से,
ज्ञान का प्रकाश फैलाएँगे.

पहली कक्षा से महाविद्यालय,
तक की होगी पढ़ाई.

इस नई उपलब्धि पर,
छत्तीसगढ़ के शिक्षाविदों को.
बहुत-बहुत बहुत बहुत बधाई.

हक़ है

रचनाकार- यशवंत कुमार चौधरी

जीने दो उसे कि,
जीना उसका भी हक़ है.
यूँ न कुचलो उसे कि,
बोलना उसका भी हक़ है.
सदियाँ गुजर गईं उसे,
तपती रेत पर चलते हुए,
खुशियों की जमीं पर,
रहना उसका भी हक़ है.
काँधे पर बोझ ढोता रहा,
घर हमारा बनाने को.
सिर छुपा सके, ऐसी छत पर,
अब उसका भी हक़ है.
आँसुओं से बोझिल होती,
रही आँखें उसकी,
मुस्कराने दो कि,
मुस्कराने का उसका भी हक़ है.
दो रोटियों के ख़ातिर
जागता रहा वह उम्र भर,
सपनों वाली नींद पर,
अब उसका भी हक़ है.....

आओ बरखा रानी आओ

रचनाकार- निमिषा कुर्रे

आओ बरखा रानी आओ,
वसुधा की तुम प्यास बुझाओ.

नाद छेड़कर बादलों में दंगल करो,
इठलाकर प्राणियों का मंगल करो.

बूँदो की रिमझिम झड़ी लगा दो,
मधुमय सावन की लड़ी लगा दो.

सतरंगी मुझे इंद्रधनुष दिखा दो,
मेंढक,झिंगुर की आवाज सुना दो.

आगमन से कूकेंगी कोयल बागों में,
जुगनू पकड़ के रखूँगा चिरागों में.

आँख मिचोली खेलूँगा मैं पानी में,
वर्णन तुम्हारा करूँगा कहानी में.

आओ बरखा रानी आओ,
वसुधा की तुम प्यास बुझाओ.

बेटी जब दुनिया में आई

रचनाकार - जितेंद्र सिन्हा

बेटी जब दुनिया में आई,
मैं थोड़ा शरमाया सकुचाया था
कुछ कहानी कुछ किस्सो ने,
मुझे रुलाया था.
बेटी ने जब हाथ थामा,
कोमल पैरों से जब आंगन महकाया
माँ से ज्यादा मुझ पर
जब उसने हक जताया था.
तब एक बात समझ आया,
बेटी बरकत का नाम है
बेटी चहकती चिड़िया का नाम है
बेटी महकती कली का नाम है.
बेटी जन्नत का पैगाम है और
मेरी परछाई का ही नाम है
बेटी कुछ हल्के रंगों से सजी
उस नायाब चित्रकारी का नाम है.
फिर मैंने ठाना
क्यों न अधूरी रंगों को भर दूं
क्यों न उसके भी सपनो को पूरा कर दूं
क्यों न मकसद जीने का उसे दूं.
क्यों न उनके जीवन को
खुशियो से भर दूं
आज मैं सीना तानकर कहता हूं
कि बेटी हमारी शिखर तक जायेगी.
कुछ टूटे मेरे ख़्वाब को सजायेगी
दायरा न होगा चारदीवारी का
दुनिया में अपनी पहचान बनायेगी
मेरे बेटी कुछ कपूतों के सिर झुकायेगी.

सुनहरा बचपन

रचनाकार- रुपेश कुमार श्रीवास्तव 'रजत', देवरिया

कितने अच्छे थे वो दिन,
गलियों में घूमते थे सारा दिन.
पकड़म-पकड़ाई, लुका-छिपी,
कटते थे न एक भी दिन, इनके बिन.
जाने कहाँ गए वो दिन.

बिन चप्पल के घूमा करते
जब पूरा-पूरा दिन.
एक बीती हुई बनकर यादें
रह गए वो प्यारे दिन.
जाने कहाँ गए वो दिन.

अब तो बारिश में भी,
कागज की नाव उदास है.
बीते पूरा दिन घर पर
मानो उदासी में अवकाश है.
जाने कहाँ गए वो दिन.

उन सुनहरी यादों के रूप में,
कटता अब हर एक दिन.
कितना भी भुलाना चाहें,
ना भूल पाएँ वो बीते दिन.
जाने कहाँ गए वो दिन.

'रजत' चाहे, हो कोई चमत्कार,
और वापस आ जाए वो दिन.
अफसोस! समय के पहिये को,
थामना है नामुमकिन.
जाने कहाँ गए वो दिन.

चिड़िया

रचनाकार- प्रिया चतुर्वेदी

आकाश की लालिमा को देख,
उठ जाती जो चूँ-चूँ करके
वह है मेरी चिड़िया रानी.

छोटे छोटे तिनके बटोरकर,
जो बनाती है अपना घोंसला,
वह है मेरी चिड़िया रानी.

पेड़ों की शाखाओं पर जो,
करती है अपना गुजारा,
वह है मेरी चिड़िया रानी.

एक-एक दाना चुनकर जो,
ले जाती है अपने बच्चों तक,
वह है मेरी चिड़िया रानी.

जघन्य कृत

रचनाकार- अविनाश तिवारी

वह भी एक माँ थी
भूख से व्याकुल,
अन्तस्थ शिशु की चिंता
से थी वो आतुर.

मानवता हुई शर्मसार,
विस्फोटक मुँह में डाल दिया.
निरीह मूक प्राणी को क्यों,
जान से ही मार दिया.

कलंक लगा इंसनियित पर,
नव पीढ़ी बच पाएँगी.
प्रकृति के न्याय से,
कुकृत्य हैवानियत टकराएँगीं.

अंत हुआ इस कु कृत्य से भरोसे का,
जो निरीह प्राणी ने हम पर किया.
हे विधाता न्याय करना,
कृत्य जघन्य जो ये हुआ.

प्यारे बच्चे

रचनाकार- सुजीत कुमार मौर्य

प्यारे बच्चे, न्यारे बच्चे,
हम सबके दुलारे बच्चे.
खेलो-कूदो, पढ़ो-लिखो तुम,
आदत सीखो अच्छे-अच्छे..

माता-पिता का कहना मानो,
उनको ही तुम ईश्वर जानो.
लक्ष्य हमेशा ऊँचा रखना,
बातें बताते तुमको सच्चे..

उनकी सेवा हरदम करना,
जीवन में तुम आगे बढ़ना.
जब उनका आशीष मिलेगा,
काम बनेंगे हँसते-हँसते..

वर्षा की रात

रचनाकार- निमिषा कुर्रे

रात का आँचल सरक रहा था,
दिल का अंबर महक रहा था.
बादलों से इठलाकर वर्षा आई,
संग प्रीत का अमर संदेशा लाई.

बूँदो कि सरगोशी से होती,
दिल में राहत कि बौछारें.
ढह गयी खंडहर प्यार की,
और जज़्बातों कि मीनारें.
मन के प्रांगण में बजती शहनाई

हो प्रसन्न मोर नाचे वन में,
कोयल कूक-कूक मुस्काई.
उमड़-घुमड़ घनघोर घटा,
मिलने भू से संग जब आयी.
बहती हैं चारों ओर मौसम कि पुरवाई

भरकर तिजोरी बूँदो से,
मिलने समंदर से बेचैन हैं नदियाँ.
खिली तबस्सुम बागों में,
और खिल उठी हैं कलियाँ.
प्रेमियों कि हो गयी अब दूर तन्हा

तितली रानी

रचनाकार- प्रिया चतुर्वेदी

ओ प्यारी-सुंदर तितली रानी,
तुम लगती कितनी प्यारी हो.

जी बहलाना, मन मचलाना,
तितली रानी तुम करती हो.

ओ प्यारी- सुंदर तितली रानी,
तुम लगती कितनी प्यारी हो.

पास क्यों नहीं आती हो तुम,
दूर हमसे क्यों तुम रहती हो.

ओ प्यारी -सुंदर तितली रानी,
तुम लगती कितनी प्यारी हो.

चूसकर फूलों के रस को तुम,
रँग लेती हो अपने पंखों को.

ओ प्यारी- सुंदर तितली रानी,
तुम लगती कितनी प्यारी हो.

कोरोना से करुणा

रचनाकार - गोवर्धन सिंह

हर बच्चा-बूढा आज देश में आज कोरोना विषय का पंडित है,
विविधता वाला देश कोरोना के बाद भी अखंडित है..
अजनबी भी दूसरों की मदद कर रहे हैं,
संक्रमण के संकट में गैर भी अपने हो रहे है..
कल युग के बच्चे, सत युग के रामायण-महाभारत देख रहे हैं,
कोरोना से करुणा का भाव बढ़ा रहे है..
गंगा मईया भी अपने पुराने स्वरूप में लौट आई.
विलुप्त पशु- पक्षी को देख रौनक लौट आई..
भूल गए जीभ का स्वाद, तला-भूना होटल वाला कचरा,
आहार में आँवला, एलोवेरा गिलोय, मक्का और बाजरा..
हमें स्वयं कोरोना वायरस से लड़ना पड़ेगा.
हमें सैकड़ों साल पुरानी जीवन शैली अपनाना पड़ेगा..

सीखें हम जीवन का सार

रचनाकार- प्रतिभा सिंह, साल्टलेक

प्यारे बच्चो! प्रकृति जगत से,
सीखें हम जीवन का सार.
वृक्षों से मिलते मीठे फल,
तरुवर हमको छाया देते.
अपनी शीतल मंद वायु से,
तन का रोग-शोक हर लेते.
हम भी तरुवर-सदृश सभी का,
करते ही जाएं उपकार.
पंछी, नदियां, पर्वत सारे,
मिलकर रहना ही सिखलाते.
जाति-धर्म का भेद मिटाकर,
सबसे प्रेम-भाव दिखलाते.
निर्मल स्वच्छ प्रकृति-सा मन हो,
सबको हो जन-जन से प्यार.
सूरज-चांद-सितारे देखो,
अंधकार जग का हरते हैं.
प्रतिदिन ही प्रकाश फैलाकर,
जग को आलोकित करते हैं.
प्रिय बच्चो! परहित में जीना,
कभी न जाता है बेकार.

मेरा घोड़ा

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

मेरा घोड़ा, सरपट दौड़ा
सरपट-सरपट, सरपट दौड़ा.

भागा - भागा सबसे आगे
सबसे आगे, सबसे आगे.

उससे आगे कोई न आया
उसने सबको धूल चटाया.

करतब उसने गजब दिखाया
उसने मेरा मान बढ़ाया.

वह कौन?

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार

जितनी मुहब्बत करता हूँ, मैं उनसे,
उससे भी अधिक प्यार करती है, वह मुझसे.
मेरे हँसने से उसे सुकून मिलता है.
मेरा आँसू देख ले तो, वह तड़प उठती है.
मेरे लिए वह सब कुछ करती है,
कुछ ना कर सके तो दिन भर दुआ करती है.
मेरी खुशियाँ ही, उनका सपना होती हैं,
जिसके पूरे होने पर,वह बहुत खुश होती है.
जब मेरा जीवन दुश्वार होता है,
सब कुछ वार, जीवन संवार देती है.
जिसने मुझे दिए, जीवन के सारे संस्कार,
चुका ना पाऊंगा, मैं उनके यह उपकार.
उसके रहते, मेरा घर है जन्नत,
वह खुश रहे, यही रब से मांगू मन्नत.
वह मेरी भूल पर, कर देती है क्षमा.
उसके रहने से, मेरे घर में है शमा.
उसके पहले, जग से होऊं रुखसत,
बस यही है मेरी, दिली हसरत.
दम निकले उन्हीं के कदमों तले.
जब भी जन्म लूँ, उन्हीं का दामन मिले.
नहीं उनसे, मुझे कोई शिकवा गिला.
वह हमेशा, मेरा हौसला बढ़ाते मिली.
वह कौन है बतलाता हूँ.
पहेली से पर्दा उठाता हूँ..
उससे ही घर की, आन -बान और शान है.
वह मेरा अभिमान है, वह ही मेरी जान है..
उससे ही मेरी पहचान है.
आप उससे नहीं अन्जान हैं..
वह कोई और नहीं...
वह मेरी माँ है, माँ है, माँ है..

गेंडा

रचनाकार- डॉ.अखिलेश शर्मा,इन्दौर

बहुत बड़ा एक गेंडा था,
दिमाग से थोड़ा बेंडा था..

एक दिन वह निकला घर से,
उलझ गया एक बंदर से..

बंदर ने उसका सिर फोड़ा,
जोर से मारा एक हथौड़ा..

गेंडा बैठा सिर पकड़ कर,
सींग उग गया उसके सर पर..

वह बचपन के बदलते रंग

रचनाकार- नरेन्द्र सिंह नीहार, नई दिल्ली

अपने युग में हर बालक ने,
जो भाया सो खाया.
किसी को माखन किसी को मिश्री,
किसी को मोदक भाया.
कच्चे - पक्के बेर न छोड़े,
लग्गी बाँधी आम गिराये.
अंगूरों के तोड़े गुच्छे,
मीठी जामुन मन ललचाये.
वक्त ने बदली अपनी करवट,
क्या - क्या रंग दिखलाये.
फास्ट फूड जंक फूड संग,
चिप्स कुरकुरे नूडल आये.
शीतल पेय गटागट पीते,
दूध दही न भाये.
सत्तू छाछ रबड़ी भूले,
बर्गर पिज्जा मन ललचाये.
वक्त से पहले यौवन गया,
थुलथुल तोंद हिलाये भैया.
सीढ़ी चढ़ते साँस फूलती,
दौड़ न पाते बड़े खवैया.
जीभ चटोरी बड़ी निगोड़ी,
मुँह में पानी भर लाये भैया.
ज़रा सोचकर खाना बाबू,
क्या खायें क्या ना खायें भैया!!

आई बदरिया

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला '

आई बदरिया, छाई बदरिया
मदमस्त हो चली हवा,
धूसर रंग की उड़ी चुनरिया.
आई बदरिया.....

आसमां में बजा डम-डम,
चम-चम चमकी बिजुरिया.
आई बदरिया.....

नाचती हुई वर्षा रानी के,
देखो हाथ से छूटी गगरिया.
आई बदरिया.....

रक्तदान

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

जो करता स्वेच्छिक रक्तदान,
उसका रहता उदार मन.
दूजे को देता जो जीवनदान,
करते सब उसे है नमन..

मरणासन्न मरीजों को
रक्त देकर देते जीवनदान.
प्राण बचाने को मानो,
आ पहुंचे साक्षात भगवान..

रक्तदान कर जो करते महादान,
उनका जीवन बनता है महान.
शरीर में रक्तता की शुद्धता होती,
मिलता लंबी आयु का है वरदान..

विश्व रक्तदान दिवस पर है अलख जगाना,
जनसमुदाय सम्मुख करना है बखान.
स्वैच्छिक रक्तदान को अपनाकर,
दे दो जरूरतमंद को अभयदान..

देकर रक्त जो नव जीवन दीप जलाते,
होता जग में उनका सम्मान.
रक्तदान सब दानों में है श्रेष्ठ,
रक्तदाता जग में बने महान..
जग में बने महान...

गौरैया

रचनाकार- अविनाश तिवारी

फुदक रही खिड़की पर,
फुर-फुर करती गौरैया.
चहक रही वह पर्दे पर,
क्या-क्या बोली गौरैया?

दाना-पानी माँग रही वह,
नीड़ में बच्चे चहक रहे.
तप्त वसुधा पिघल रही,
अधरों से प्यास झलक रही.

क्यों चुप बैठे घरों में तुम?
सड़कें क्यों वीरान है?
पूछ रही गौरैया हमसे,
मानव क्यों परेशान है?

जब-जब प्रकृति को छेड़ा,
हमने दुःख ही पाया है.
जतन करो अब आगे का,
नियति ने जो सीखाया है.

लौट चलों संस्कृति में अपनी,
अब जीवन सरल बनाओ.
भौतिकता के न पीछे भागो,
धरती को पुनः स्वर्ग बनाओ.

चिड़िया रानी

रचनाकार - अजय कुमार यादव

मेरे अँगना में आई देखो चिड़िया रानी,
फुदक-फुदक के चुगती है दाना पानी..
काले- लाल -सफेद रंगों के पंखों वाली,
हरदम करती रहती है अपनी मनमानी..
मेरे अँगना में आई देखो चिड़िया रानी,
फुदक- फुदक के चुगती है दाना पानी..

ची ची करती चिड़िया रानी है ललचाती,
पास जाओ तो यह पकड़ में ना आती..
तिनकों से अपना घोंसला है बनाती,
चूज़ों के लिए लाती है दाना पानी.
मेरे अंगना आई देखो चिड़िया रानी,
फुदक- फुदक के चुगती है दाना पानी..

आवाज़ से अपने हमारे मन को बहलाती,
रोज सुबह आकर हमको नींद से जगाती.
आँगन में बिखरे दाना- पानी को है खाती,
मेहनत करना हम सबको है सीखलाती..
मेरे अँगना में आई, देखो चिड़िया रानी,
फुदक फुदक के चुगती है दाना पानी..

मुसीबत में सब मिलकर एक हो जाओ,
अपने दुश्मन को मिलकर मार भगाओ.
चिड़िया रानी तो मन की बहुत उदार है,
चिड़िया रानी का छोटा-सा घर संसार है..
मेरे अँगना में आई देखो चिड़िया रानी,
फुदक- फुदक के चुगती है दाना पानी..

मन की बात

रचनाकार- रजनी शर्मा बस्तरिया

सबसे कहते आज फिरूंगी,
आज उठी मैं सबसे पहले.
कैसे डालियों पर पंक्षी चहके,
सूरज से छप्पर आंगन चमके.
बछड़ों की अम्मां कैसे रंभाती,
मंदिर की घंटी है मुझे सुहाती.
हवा बांचें चिठ्ठी मौसम पत्ते पत्ते,
गाल गुलाल फूलों के हंसते हंसते.
कैसे लिहाफ़ फेंक कर बादल का,
खोला गगन ने संदूक पूरब का.
ख़ज़ाना सुनहरा खुला सूरज का,
क्षण था वो मेरे जल्दी उठने का.

तमन्ना

रचनाकार- चन्द्रहास सेन

उड़ते हुए बादल को छू लेने की तमन्ना है.
बादल सा उड़-उड़ कर बरस जाने की तमन्ना है.

बरसों की चाहत है मेरी, सारे जहान को देखूँ.
गाँव-गली,घर-घर जाकर हाल सभी का पूछूँ.
जन-जन के दिलों में समा जाने की तमन्ना है.
उड़ते हुए बादल को छू लेने की तमन्ना है.

बहती हुई नदियों को इठलाते हुए मैं देखूँ.
सागर में जाकर उसे समा जाते हुए मैं देखूँ.
पंछियों जैसी उड़-उड़ कर गीत गाने की तमन्ना है.
उड़ते हुए बादल को छू लेने की तमन्ना है.

जाति-पाति की तोड़ दीवारें मानवता का पाठ पढ़ा दें.
उजड़े हुए चमन को आओ फिर से मिलकर सजा दें.
पत्थर जैसे दिलों को पिघलाने की तमन्ना है.
उड़ते हुए बादल को छू लेने की तमन्ना है.

तम्बाखू

रचनाकार - सीमांचल त्रिपाठी

इकतीस मई के दिन,
विश्व तम्बाखू निषेध दिवस है मेरे भाई.
तम्बाखू सेवन के दुष्परिणाम को,
जन-जन को बताना है मेरे भाई..

तम्बाखू के खेत मे,
पैदा हो यदि अन्न.
पेट हज़ारों के भरे,
मन भी रहे प्रसन्न..

तम्बाखू सेवन से,
हो जाती है कई बीमारियां.
घर की जमा पूंजी,
से क्रय करते हैं दवाइयां..

तम्बाखू सेवन से,
जिसने नही किया तौबा.
उसके घर प्रतिपल,
मचे हाय तौबा..

दिनों दिन खर्च बढ़े,
ना बचे पैसा.
खाने को अन्न नही,
शौक पूर्ति खातिर चाही पैसा..

तम्बाखू सेवन के शौक से,
हाथ फैलाने को हुए मजबूर.
मिली तो बाग-बाग,
नहीं तो फब्तियां कसते दो चार..

तम्बाखू सेवन के शौक ने,
किसी का भला नही किया.
घर मे मचे हल्ला,
जीवन को अशांत है किया..

देशभक्ति

रचनाकार - दिनेश कुमार चन्द्राकर

मन में महके इस मिट्टी की खुशबू,
तन में चहके इस धरती का रंग.
मातृ भूमि सेवा समर्पण के लिए,
हर दिल में रहें नयी उमंग.

आँच न आवे अपने वतन पर,
मिलजुल कर जो करें जतन.
आँख उठाये जो देश के दुश्मन,
कर दे हम उन, सबको ख़त्म.

जिये तो सदा इस अभिमान से,
बेटे हैं हम हिंदुस्तान के.
बेटे का फर्ज हम निभाएंगे,
इस मिट्टी का कर्ज चुकाएंगे.

तन- मन क्या ये जान है अर्पित.
वतन के लिए हम पूर्ण समर्पित.
सौ बार जन्म लूँ तेरा ही लाल रहूँ माँ.
हर जन्म में सैनिक बन दुश्मन का काल रहूँ माँ. .

सागर की लहरों में लहराये,
ऊंचे आसमान में फहराये.
अपनी भारत माता का झन्डा
शान से फहराये प्यारा तिरंगा.

बापू ने दिया यही नारा,
मातृभूमि हो जान से प्यारा.
कभी नहीं चाहे हम,
लड़ाई, दंगा और क्रांति.
रहे सलामत देश दुनिया,
सत्य, अहिंसा और शान्ति..

सूरज

रचनाकार -मनोज कुमार आदित्य

रोज सबेरे सूरज आता,
अंधियारा को दूर भगाता.
बड़े सबेरे आसमान में
दूर क्षितिज पर पूरब में
मंद-मंद मुस्काता सूरज.
रोज सबेरे आता सूरज.

लगातार यह सुबह-शाम.
चलता हरदम यह अविराम.
ऐसे ही यह कर्मठता का,
पाठ हमें पढ़ाता सूरज.
रोज सबेरे आता सूरज.

सभी ग्रहों का स्वामी है यह
ऊर्जा का यह स्रोत प्रमुख
सच में सकल जगत का,
जीवन दाता है सूरज.
रोज सबेरे आता सूरज.

भारत के सपूत

रचनाकार -मनोज कुमार आदित्य

भारत के हम नन्हें सिपाही, आपस में हैं भाई-भाई.
छोड़ कर आपस का झगड़ा, आओ करे हम देश भलाई..
एक देश के वासी हैं, एक सबका मान है.
भारत माँ जननी हम सबकी, ग़ज़ब इसकी शान है..
काँटों की राह पे चलकर भी, फूलों की सेज सजाएं हम.
एक चमन के फूल हैं सब, मिल जुलकर मुसकाएँ हम..
ठोकर खाकर गिरे न कोई, मिलकर कदम बढ़ाएँ हम.
काम ऐसा आओ कर डालें, भारत के सपूत कहलाये हम..

वन

रचनाकार -मनोज कुमार आदित्य

हरा-भरा यह सुन्दर वन.
हम सबको देता जीवन.
औषधि,लकड़ी,फूलऔर फल,
इनसे मिलता हमको जल.
पशु-पक्षियों की करें सुरक्षा.
हम सबका ये मित्र है सच्चा.
दूषित हवा को दूर कर,
देता हम सबको आक्सीजन.

हरा-भरा कितना सुन्दर वन,
हम सबको देता है जीवन.
इनकी लकड़ी से बनते फर्नीचर.
लोग जंगल काट,बनाते घर.
जड़ी-बूटियों से बनती औषधि.
नाना किस्म की हरते जो ब्याधि.
अंत में इन्हीं लकड़ियों से लाशों का भी होता दहन.

हरा-भरा कितना सुन्दर वन,
हम सबको देता है जीवन.
पर्वत-झरने,झील और घाटी,
प्रकृति की है सुन्दर परिपाटी.
चातक-कोयल,मोर-चकोर,.
नाचे छम-छम भाव विभोर.
देखो कितने लगते प्यारे
रंग-बिरंगे सुमन ये सारे.
हरा-भरा कितना सुन्दर वन
हम सबको देता है जीवन.

बगिया

रचनाकार -अजय कुमार यादव

आओ बच्चों हम खेलें कूदे,
आनंद मनाए, छोटी बगिया में.
यहां पर रंग -बिरंगे फूल खिले,
कितने भंवरे तितली यहां मिले..

आम,अमरूद, जामुन के पेड़ खड़े,
जैसे एक- दूसरे से हो गले मिले.
फूलों के खुशबू से आई है बहार,
ऐसा मानो जैसे कोई हो त्योहार..

यहां पक्षियों की बोलियां सुनो,
कानों में मधुर संगीत है घोलती.
मन भी गीत -गुनगुनाने लगता,
यहां आ के हर कोई है बोलता..

बगिया में दिल बहलाते हम,
दोस्तों को भी यहां बुलाते हम
हर शाम सवेरे घूमने आते हम,
बगिया की हवाओं में है दम..

भागदौड़ भरी इस जिंदगी में
सुकून पाते हम इस बगिया में,
खाली समय बिताते बगिया में
आओ आनंद मनाएं बगिया में.

रेल का खेल

रचनाकार - रीता मंडल

लंबी टेढ़ी - मेढ़ी रेल,
आओ हम मिलकर खेलें खेल..

जुड़कर हम सब डिब्बा बन जाएँ,
आज रेल का खेल खिलाएँ..

मुँह से छुक- छुक की आवाज,
मजे करेंगे मिलकर आज..

एक-दूजे का कंधा पकड़े,
रेल के डिब्बे जैसे जकड़े..

ऐसे मिलकर बन जाएँ रेल,
आओ मिलकर खेलें खेल..

चलते रहने का संदेश,
रेल दे रही है उपदेश..

इक-दूजे से जुड़े रहेंगे,
आगे बढ़ेंगे मज़े करेंगे..

प्यारी चींटी

रचनाकार - कु. प्रिया चतुर्वेदी

ओ ! प्यारी सी नन्हीं चींटी,
मेहनत इतनी तुम करती हो.
नन्हीं-सी तुम गिर-गिर कर भी
कभी आस नहीं खोती हो..

ओ ! प्यारी सी नन्हीं चींटी,
मेहनत इतनी तुम करती हो.
लक्ष्य एक चुनकर तुम हमेशा,
उसके पीछे चल देती हो..

ओ ! प्यारी सी नन्हीं चींटी,
मेहनत इतनी तुम करती हो.
हिम्मत कभी न हारने की,
सीख हम सबको देती हो..

ओ ! प्यारी सी नन्हीं चींटी,
मेहनत इतनी तुम करती हो.
परिश्रम करने का पाठ हमें,
सिखाकर तुम चली जाती हो..

ओ ! प्यारी सी नन्हीं चींटी,
मेहनत इतनी तुम करती हो.

नमामि गंगे

रचनाकार - अविनाश तिवारी

हे गंगा मां कलुषहरणी,
विष्णुपदी पापविमोक्षणि,
विनती अब स्वीकार करो.
हम भटके मानव तेरी शरण में,
मां जनगण का उद्धार करो

जब अवतरित हुई गंगा,
भगीरथ ने मां कहके पुकारा था.
धरा को निर्मल करने
माता ने अमृत बहाया था.

मां तुमने हमें तृप्त किया
आँचल जो तेरा पाया.
निज स्वार्थों में पड़कर मानव ने
तुझ पर कलंक लगाया.

हलाहल घोलते कारखाने,
तेरे अन्तस् में समाए जाता है
पापियों का पाप धुला,
तेरा रूप बिखर-सा जाता है

तेरे पावन चरणों में मां
शीश हम नवाते हैं
शुद्ध करेंगे तेरा आंगन
शपथ यही उठाते हैं
हम शपथ यही उठाते हैं.

गाँधी

रचनाकार - योगेश कुमार ध्रुव 'भीम'

ये गाँधी की धरती है,
राम रहमान भी बसते है,
साफ नियत भी बनते है,
ये गाँधी के चश्मे से,
हाथ थामे जो डंडे को,
नेक पथ पर चलते है,
ओढ़े जो खादी को,
सत्य अहिंसा बोल बोलते है,
कमर में लटके घड़ी जो,
समय की पाबंद बनते है,
हाथ मे रखे गीता वो
समरसता का पाठ पढ़ाते है,
तेरे तीन ये बंदर जो,
न कह सुन न देख बुराई को,
ये इसको अपनाता है,
गाँधी के पथ पर वो चलता है,
ये फकीरी तेरे जीवन तो,
स्वच्छता की राह बताते है,
आज गाँधी की जरूरत है,
फैले भ्रष्टाचार मिटाने को,
ये गाँधी की धरती है
जहाँ राम रहमान बसते है.

नन्हें-मुन्हें बच्चे

रचनाकार -नंदिनी राजपूत

नन्हें-मुन्हेंबच्चे हम,
रोज स्कूल जाते हैं.
अज्ञानता का अँधेरा मिटाने,
ज्ञान का दीपक जलाते हैं..

जब हम अ से अ: पढ़ते हैं,
स्वर को स्वर से गढ़ते हैं.
क से ज्ञ पढ़कर ही,
पुस्तक का पठन करते हैं..

हमारे नन्हे कंधों पर,
देश का भार हैं.
हमसे ही पूरी दुनिया,
हमसे ही पूरा संसार हैं..

हमसे ही स्कूल की आन हैं,
हमसे ही स्कूल की शान हैं.
हमसे ही शिक्षा हैं,
हमसे ही शिक्षक की पहचान हैं.

नई इबारत लिख जाना

रचनाकार -रजनी शर्मा बस्तरिया

कल थामा था जहाँ हमारा हाथ,
माउस, की - बोर्ड के संग हो लेना
मानीटर में चमकते अक्षरों के साथ,
आँखों की स्लेट में सपने लिख लेना.

बदलते वक़्त की मानकर बात,
नवप्रयास की अगुआई कर लेना.

जब कभी शिखर पर पहुँचो
नींव के पत्थरों को भी याद कर लेना.
मन आकुल होकर जब जाये थक,
दे आवाज़ हमें पुकार लेना.

साहस के बस्ते में ज्ञान के साथ,
भविष्य की नई इबारत लिख जाना.

शहीद वीर नारायण सिंह

रचनाकार - योगेश कुमार ध्रुव'भीम'

छत्तीसगढ़ के चन्दन मिटटी,
वीर सपूत को यह जन्म दिए,
सोना स वह चम -चम चमके,
वीर नारायण वीर के गुंजन से
सोनाखान की धुली को वन्दन है..

घटाघोप वह अकाल भयंकर,
कालग्रास में मानो ग्रस रहा,
त्राहि -त्राहि प्रजा की रुदन,
अश्रु सा नित तेज धार चले,
न सह सका वीर के सीना जो,
वीरो स वीर नारायण सिंह जागे..

प्रजा हित हितैषी बनकर,
वीनिती कर अन्न झोली में,
निष्ठुरता ये तो माँग न मानी,
अन्न कोठी व्यापारी के लूट,
भर -भर झोली बाँटे प्रजा में,
वीरो स वीर नारायण सिंह जागे..

दुष्टों की दुष्टता ये फिरंगी चाल,
न पकड़ सका वह घेरा डाले,
सेना देखो वीर नारायण की,
तीर कमान वज्र समान हाथों में,
खूब लड़े गोली बारूद सेना से,
वीरो स वीर नारायण सिंह जागे..

खूब छकाते वह दौड़ भगाता,
फिरंगी के न पकड़ में आता,
दाँतो तले मानो वह चना चबाते,
छद्मवेषी गोरिल्ला वीर सेना जो,
वीरो स वीर नारायण सिंह जागे..

कर्मभूमि वह मर्मभूमि है मेरी,
मिटटी को हंस तिलक लगता हूँ,
आन बान की रक्षा हित मैं,
फंदे चूम हँसते गले लगता हूँ,
साक्षी बनी जयस्तंभ मेरी,
आज वही नया गीत दोहराता हूँ,
वीरो स वीर नारायण सिंह जागे..

प्रकृति की लीला

रचनाकार - महेन्द्र देवांगन माटी

देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है.
एक थपेड़े से जीवन यह, तहस- नहस हो जाता है..

करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है.
करो प्रकृति का संरक्षण, कहर अभी भी जारी है..

मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे.
पाशा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे..

करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है.
सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाती है..

संभल जाओ दुनिया वालो, आई विपदा भारी है.
कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है..

आओ हम वृक्ष लगाएं

रचनाकार - शशि पाठक

रो रो करुण पुकार है, करती,जल, जंगल व जमीन.
इनके बिना जीवन है जैसे,बिन पानी के मीन.
आओ हम वृक्ष लगाएं, पर्यावरण को बचाएं..

बहुत किया दोहन हमने,अब सोच समझ कर बढ़ना होगा.
व्यर्थ बहाओ न जल को, अब संरक्षण करना होगा.
सुख रहे बहते धारे सब, अब रोको न इनकी धार.
तरसोगे एक -एक बूंद को, जब सूखे की पड़ेगी मार.
आओ हम वृक्ष लगाएं, पर्यावरण को बचाएं..

बोया कम काटा ज्यादा, भावी चिंता है किसको.
श्वसन की वायु देते वही, हम काट रहे हैं जिसको.
फल, फूल, औषधि और संतुलन, का है ये आधार.
जंगल -जंगल आग लगी है, न बचेगा जग संसार.
आओ हम वृक्ष लगाएं, पर्यावरण को बचाएं..

चिर के अपना सीना देखो, धरा अन्न उगाती है.
सहती रहती है सबकुछ, हम सबका भार उठाती है.
नासमझी क्यों करते, धरती का कचरे से ये नाश.
पल भर में ये कर सकती है, जन जीवन का विनाश.
आओ हम वृक्ष लगाएं, पर्यावरण को बचाएं..

हरा भरा जीवन सुहावना, धरती की गोद हरी हो.
नदियाँ, पोखर, कूएँ तलैया, सब पानी से भरी हो
नवल पौधों को रोप करें, हर कोई ये काम महान.
तभी सुनहरा हो पाएगा, जनजीवन आसान.
आओ हम वृक्ष लगाएं, पर्यावरण को बचाएं..

नन्हे तारे

रचनाकार - विजय लक्ष्मी राव

आसमान पर निकले तारे,
देखो-देखो कितने सारे.
नन्हे- नन्हे कितने प्यारे,
मंद-मंद है सदा मुस्काते.
चमक-चमक कर हमें बुलाते,
नभ में जैसे मोती जड़े.
चाँद के स्वागत में खड़े,
रोज रात को आ जाते.
सारे नभ पर छा जाते,
प्रभात होते ही छिप जाते.

पर्यावरण बचाओ

रचनाकार - महेन्द्र देवांगन माटी

पेड़ लगाओ मिलके सभी, देते हैं जी छाँव.
शुद्ध हवा सबको मिले, पर्यावरण बचाव..

पर्यावरण विनाश से, मरते हैं सब लोग.
कहीं बाढ़, सूखा कहीं, जीव रहे हैं भोग..

जब-जब काटे वृक्ष को, मिलती उसकी आह.
भुगत रहे प्राणी सभी, ढूँढ रहे हैं राह..

सड़क बनाते लोग सभी, वृक्ष रहे हैं काट.
पर्यावरण विनाश कर, देख रहे हैं बाट..

पेड़ों से मिलती हवा, श्वासों का आधार.
कट जाये यदि पेड़ तो, टूटे जीवन तार..

माटी में मिलते सभी, सोना चाँदी हीर.
पर्यावरण बचाय के, समझो माटी पीर..

दो दिन की है जिंदगी, समझो इसका मोल.
माटी बोले प्रेम से, सबसे मीठे बोल..

जहाज आया जहाज आया

रचनाकार - कृष्ण कुमार ध्रुव

जहाज आया जहाज आया,
सब बच्चों के मन को भाया.
वो दूर नीले आसमान में,
चुन्नू-मुन्नू के गाँव में,
देखने में दिखता सफेद,
चाहे इसके रंग हो अनेक.
इसके दो पंख होते भारी,
सैर कराते दुनिया सारी.
हवा में ये तैरता,
सबको खुशियों से भर देता.
इसमें दो लगे है इंजन,
संकट में बचाता सबका जीवन.
पास हो या लंबी दूरी,
घंटों में कर देता है पूरी.
इसके चाल का कोई न पाए पार,
सबकी हो जाती है पीछे रफ्तार.
जमीन से कोसों दूर है चलता,
नहीं अपनी मंजिल से भटकता.
जहाज आया जहाज आया,
बच्चों के मन में ख़ुशियाँ लाया.

प्यारा हाथी

रचनाकार -अरविन्द कुमार गुप्ता

बचपन में देखा था, एक बड़ा सा जानवर
बड़ा सा शरीर, और बड़ा ताकतवर
लेकिन सबसे प्यारा और निराला था, ओ साथी
पापा ने बताया उसे बोलते हैं हाथी
हाथी मेरे साथी जैसे पिक्चर सबको भाती
पर कैसे जानवर की जान, यू ही चली जाती
खाना ढूँढती, उस भूखी माँ ने फल को चबाया
इंसानियत के पटाखे ने, उस जबड़े को उड़ाया
मरते दम तक उसने इंसान को, नुकसान नही पहुंचाया
उस बेजुबान ने,मानवता का पाठ पढ़ाया
तीन दिन तक टूटे जबड़े से, खड़ी रही पानी में
क्या बताऊँ तुम्हे, उस माँ की कहानी मै
हथनी और बच्चा दोनो गए स्वर्ग सिधार
बहुत बड़ा कर्जा, फिर हो गया हम पर उधार
इंसानियत तो मर गईं, अब इंसान कहा बच पायेगा
कोरोना, साइक्लोन,भूकंप और बाढ़ ही तो आएगा
अभी संभल जाओ,पृथ्वी का न तुम अपमान करो
पेड़, पंछी, जानवरों सबका तुम सम्मान करो
समय बीत जाएगा, तो फिर लौट के न आएगा
और ऐसा ही चलता रहा तो, 2020 हर साल आएगा

गुमनाम

रचनाकार - अविनाश तिवारी

कौन हूँ मैं ?
क्या हूँ ?
थोथा एक ज्ञान
अहं का अभिमान
अन्तस् के प्रश्न से
सकुंचित हैरान हूँ.

क्या मैं
एक नाम हूँ?
हाथों में काम
रोटी- कपड़ा-मकान
लक्ष्य मेरा क्या ?
लब्ध क्या यही ?
भौतिक सामान हूँ.

साँसों के तार,
तन का प्रवाह,
जीभ का स्वाद,
समेटने का भाव,
जीवन का निर्वाह हूँ.

प्रेम समर्पण त्याग
विछोह या अनुराग
विप्लव का गान,
बंशी की तान,
कदम की डाली,
अनुरक्त इंसान हूँ.

कौन हूँ मैं?
क्या हूँ ?
अनुत्तरित प्रश्न
भ्रमित पहचान हूँ,
गुम हूँ या गुमनाम हूँ,
स्व से अनजान हूँ.
कौन हूँ मैं?
क्या हूँ?

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