लेख

हमारे प्रेरणास्रोत - हसरत मोहानी

हैलो बच्चो,

आज हम बात करेंगे एक ऐसी शख़्सियत की जो न केवल एक अच्छे पत्रकार बल्कि एक अच्छे साहित्यकार और आज़ादी की लड़ाई के सिपाही भी थे. हम बात कर रहे हैं सैय्यद फ़ज़ल -उल-हसन 'हसरत' जी की. जिनका पेन नेम हसरत मोहानी है अर्थात् वे हसरत मोहानी के नाम से गजलें लिखा करते थे. हसरत मोहानी का जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला उन्नाव में सन1874 में हुआ था. आपके वालिद (पिता) का नाम सैय्यद अज़हर हुसैन था. हसरत मोहानी ने अपनी आरंभिक तालीम घर पर ही हासिल की और 1903 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बी.ए.किया. 1904 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बाल गंगाधर तिलक द्वारा चलाए गए स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा लिया. 1921 में हसरत ने सर्वप्रथम 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' का नारा अपनी कलम से लिखा. इस नारे को बाद में भगत सिंह ने मशहूर कर दिया.

1903 में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी से बी.ए.करने के तुरंत बाद हसरत जी ने उर्दू पत्र 'रिसाला' शुरू किया. इसमें शुरुआत से ही राजनैतिक लेखों की प्रमुखता रही. 1904 में हसरत ने रिसाला के माध्यम से स्वदेशी का ज़ोरदार समर्थन किया. हसरत मोहानी जी ने स्वदेशी के समर्थन में सिर्फ लिखा ही नहीं, बल्कि इसे अपने जीवन में भी सख्ती से अपनाया. इस बारे में एक घटना है कि एक बार हसरत मोहानी कड़कड़ाती सर्दी में अपने एक दोस्त के घर पर रुके. दोस्त ने उन्हें जो कम्बल ओढ़ने को दिया वह इंग्लैंड का बना हुआ था. हसरत जी ने रात भर सर्दी में रहना मंज़ूर किया मगर वह कम्बल नहीं ओढ़ा. बाद में अलीगढ़ में उन्होंने मोहानी स्वदेशी स्टोर शुरू किया, जहाँ कम दामों पर हिन्दुस्तान में बने कपड़े और कम्बल वगैरह मिलते थे. हसरत मोहानी जब अलीगढ़ से कानपुर गए तो वहाँ भी उन्होंने खिलाफत स्वदेशी स्टोर लिमिटेड स्थापित किया.

1930 में हसरत जी ने ही महात्मा गाँधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन का रास्ता दिखाया. 1908 में अंग्रेजों के खिलाफ एक लेख लिखने के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने हसरत मोहानी को गिरफ्तार कर लिया. हसरत को 2 साल कैद और 500 रूपए जुर्माने की सजा दी गई. जेल में उन्हें रोज एक मन अनाज चक्की से पीसना पड़ता था. मगर ये मशक्कत भी हसरत जी का हौसला न तोड़ सकी. 1909 में सजा पूरी करने के बाद जब हसरत रिहा हुए तो उनके तेवर पहले से भी ज्यादा उग्र थे. उर्दू में लिखना उन्होंने फिर से शुरू किया और एक लेख में पूर्ण स्वराज की हिमायत कर दी. 1921 में उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन में बाकायदा पूर्ण स्वराज के लिए प्रस्ताव रखा और इसके समर्थन में बहस की. आखिरकार 1929 में कांग्रेस ने भी पूर्ण स्वराज की विचारधारा को अपनाया.

हसरत मोहानी हिंदू -मुस्लिम एकता के पक्षधर थे. उन्होंने कृष्ण की भक्ति पर खूब शायरी की. 1947 में भारत विभाजन का उन्होंने बहुत विरोध किया और विभाजन के बाद हिंदुस्तान में ही रहना पसंद किया. 2014 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया.

लखनऊ में रकाबगंज से मेडिकल कॉलेज वाले रास्ते पर मौलवी अनवार का बाग़ पड़ता है. 1951 में यहीं पर हसरत मोहानी सुपुर्द- ए -ख़ाक हुए थे. मरीजों और खैरख्वाहों की लम्बी क़तार इस मजार पर बराबर बनी रहती है, मगर बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि यह मज़ार मौलाना हसरत मोहानी का है. हसरत मोहानी वही शायर हैं जिनकी गजल ‘चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है’ लगभग सभी ने सुनी है हसरत मोहानी हमारे दिल और दिमाग़ में ताऊम्र ज़िंदा रहेंगे.

जब नेताजी सुभाष बने प्रधानमंत्री

रचनाकार- नीलेश वर्मा

हमारे देश को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने की याद में हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाते हैं. पर कम ही लोग यह जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 के लगभग चार साल पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय सरकार की स्थापना कर दी थी. आप यह तो जानते हैं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फौज का नाम आजाद हिन्द फौज था. आइए हम आपको नेताजी की आजाद हिन्द फौज और उनके द्वारा स्थापित सरकार के बारे में कुछ तथ्य बताते हैं.

1942 मे जब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था,उन्ही दिनों कुछ भारतीय राष्ट्रवादियों ने दक्षिण पूर्व एशिया में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के लिए सशस्त्र सेना का गठन करने का निश्चय किया. उस समय जापान में रह रहे भारतीय क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष मे जापान का समर्थन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 28 मार्च 1942 को रासबिहारी बोस ने टोक्यो में एक सम्मेलन में इण्डियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की. साथ ही भारत की स्वतंत्रता के लिए सेना बनाने का प्रस्ताव भी पेश किया गया.

उसी दौरान मलेशिया और म्यांमार में ब्रिटिश भारत और उसके मित्र देशों का जापानियों से युद्ध हुआ था इस युद्ध में जापान ने लगभग 40000 भारतीय सैनिकों को युद्धबंदी बनाया था. जापान के सहयोग से इन युद्धबंदियो को इण्डियन इंडिपेंडेंस लीग में शामिल होने और इसकी सैन्य शाखा आजाद हिन्द फौज का सैनिक बनने के लिए प्रेरित किया गया.

उधर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1941 मे जर्मनी के बर्लिन में इण्डियन लीग की स्थापना की थी. बाद में उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया और पनडुब्बी द्वारा उस समय जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुँचे.जून 1943 में टोक्यो रेडियो से प्रसारित अपने संदेश में नेताजी ने कहा कि अंग्रेजों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड देंगे. हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा. इस संदेश से प्रभावित होकर रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व नेताजी सुभाषचंद्र बोस को सौंप दिया.

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउनहाॅल के सामने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च कमाण्डर के रूप में सेना को संबोधित करते हुए नेताजी ने प्रसिद्ध दिल्ली चलो का नारा दिया.

21 अक्तूबर 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर के कैथी सिनेमा हाॅल में आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की सरकार की स्थापना की घोषणा कर दी. नेताजी इस सरकार में प्रधानमंत्री, विदेशी मामलों के मंत्री और सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने गए थे. वित्त विभाग एस सी चटर्जी, प्रचार मंत्री एस ए अय्यर तथा महिला संगठन का प्रभार लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया था. इस सरकार को जापान जर्मनी फिलीपीन्स थाईलैंड कोरिया इटली और आयरलैंड आदि 9 देशों ने मान्यता दी थी.

आजाद हिन्द सरकार का अपना बैंक भी स्थापित किया गया जिसका नाम आजाद हिन्द बैंक था. आजाद हिन्द बैंक ने एक रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक के नोट और सिक्के जारी किए थे. एक लाख रुपये के नोट पर सुभाषचंद्र बोस की तस्वीर छापी गई थी. आजाद हिन्द सरकार का अपना डाक टिकट और झण्डा भी था. नेताजी ने जापान और जर्मनी के सहयोग से आजाद हिन्द सरकार की ओर से नोट और डाक टिकटों की छपाई की भी व्यवस्था की थी. जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में जीते हुए अंडमान और निकोबार द्वीप नेताजी की सरकार को सौंप दिए.

30 दिसंबर 1943 को अंडमान निकोबार में पहली बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में तिरंगा फहराया था.यह तिरंगा आजाद हिन्द सरकार का था. नेताजी ने इन द्वीपों का नया नामकरण किया उन्होंने अंडमान का नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा. इसके बाद नेताजी ने सिंगापुर और रंगून में आजाद हिन्द फौज का मुख्यालय बनाया. 4 फरवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया और कोहिमा सहित कुछ भारतीय प्नदेशो को अंग्रेजी नियंत्रण से मुक्त करा लिया. 21 मार्च 1944 को दिल्ली चलो के नारे के साथ आजाद हिन्द फौज का भारतीय भूमि पर प्रवेश हुआ.जापानी सेना के साथ मिलकर आजाद हिन्द फौज कोहिमा और इम्फाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों तक पहुँच गई.

6 जुलाई 1944 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गाँधी के नाम एक प्रसारण जारी किया और अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए इस निर्णायक लड़ाई में जीत के लिए उनकी शुभकामनाएँ माँगी.उन्होंने कहा कि मै जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वतंत्रता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी यदि हमें आजादी चाहिए तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिए. मैंने जो कुछ किया है देश और देश की प्रतिष्ठा के लिए किया है. भारत की स्वतंत्रता के लिए आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है आजाद हिन्द फौज के सैनिक भारतीय भूमि पर सफलता पूर्वक लड़ रहे हैं. हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं.

फरवरी से जून 1944 तक आजाद हिन्द फौज ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा पर अंग्रेजो के विरुद्ध जोरदार सशस्त्र संघर्ष किया. 22 सितम्बर 1944 को शहीद दिवस मनाते हुए सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से कहा हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की तलाश में है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा यह स्वतंत्रता की देवी की माँग है.

दुर्भाग्यवश बाद में परिस्थितियाँ बदल गई और विश्वयुद्ध में पासा पलट गया. ब्रिटेन और उसके मित्र देशों की जीत हुई. जर्मनी और जापान को हार माननी पडी. ऐसी परिस्थितियो में नेताजी ने टोक्यो के लिए प्रस्थान किया और फिर एक संदिग्ध विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु होने की खबर आई परंतु इस घटनाक्रम की सच्चाई आज तक स्पष्ट नहीं हुई है.

इस तरह आजाद हिन्द फौज का सैनिक अभियान असफल हो गया.परंतु असफलता के बावजूद आजाद हिन्द फौज का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और गौरवशाली अध्याय है.

'गुरु तुझे सलाम' कार्यक्रम में विद्यार्थियों के विचार

लेखक - हेमंत खुटे

शिक्षक अपने ज्ञान और अनुभव से जो सिखाते हैं, वह अनमोल धरोहर है.

छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रारंभ किए गए ऑनलाइन कार्यक्रम' गुरु तुझे सलाम' के अंतर्गत पिथौरा विकासखंड स्तरीय कार्यक्रम में स्कूली विद्यार्थियों ने अपने विचारों को 'अहा! मोमेंट' में साझा किया.

शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल पिरदा की कक्षा 11वीं में अध्ययनरत छात्रा सुषमा भोई ने ऑनलाइन कार्यक्रम के तहत दी जा रही शैक्षणिक व्यवस्था की सराहना की. उन्होंने इसे विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी बताया. साथ ही कहा कि ऑनलाइन कार्यक्रम केवल लॉक डाउन अवधि तक सीमित न रखा जाए,बल्कि इसका विस्तार करते हुए निरंतर जारी रखा जाए, जिससे शिक्षकों का संबंध विद्यार्थियों से अनवरत् बना रहे. शिक्षक अपने ज्ञान और अनुभव से जो सिखाते हैं वह अनमोल धरोहर है.

शासकीय हाई स्कूल बरनाईदादर के विद्यार्थी दिलीप नायक ने कहा कि-' शिक्षा प्रसार की दृष्टि से वर्चुअल क्लास बहुत उपयोगी है'. विषय शिक्षकों द्वारा नई-नई तकनीकों का प्रयोग कर कार्यशालाएँ आयोजित की जा रही है जिनमें बच्चे रुचिपूर्वक भाग ले रहे हैं और अपनी जिज्ञासा प्रकट कर रहे हैं.

शासकीय प्राथमिक शाला रेमड़ा के छात्र पंचराम परमार ने कहा कि- 'ऑनलाइन कार्यक्रम से ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों को बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा है. पाठ्यक्रम के अलावा अन्य ज्ञानवर्धक बातें इस कार्यक्रम के माध्यम से ज्ञात हो रही हैं.

शासकीय मिडिल स्कूल मेमरा के छात्र अभय यादव ने कहा कि-' यह ऑनलाइन कार्यक्रम शिक्षकों के अनुभव से लाभ उठाने का एक बेहतर अवसर है. शिक्षक अपने अनुभव से जो सिखाते हैं वह हमेशा ही अनुकरणीय होता है. शिक्षक ही हमारे भाग्य विधाता हैं.

शासकीय मिडिल स्कूल कसहीबाहरा की छात्रा जया पटेल ने कहा कि-' वर्चुअल क्लास से विविध विषयों में अच्छी-अच्छी जानकारियाँ मिल रही हैं. जब मैंने पहली बार ऑनलाइन कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षक हेमन्त खुटे एवं सराईपाली ब्लॉक के शिक्षक यशवंत चौधरी से चर्चा की तो मुझे बहुत खुशी हुई. ऐसी ही नवीन एवं रुचिकर पद्धतियों से शिक्षा दिए जाने की जरूरत है.

इनके अलावा भूपेश नंद,धनीराम ठाकुर,प्रभुलाल नायक,जतिन यादव,पंचराम परमार,भारती बरिहा, रूपधर परमार,महेन्द्र किशोर पटेल ने भी अपने विचार रखे.

बी आर सी एफ ए.नंद के मार्गदर्शन में आयोजित इस ऑनलाइन कार्यक्रम के सूत्रधार संकुल समन्वयक खगेश्वर डड़सेना थे.

कविता, गीत, संगीत के माध्यम से शिक्षा में नवाचार

रचनाकार- हेमंत खूंटे

पिथौरा, छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रारंभ की गई अभिनव पहल पढ़ई तुंहर दुआर के अंतर्गत स्कूली विद्यार्थियों को वर्चुअल क्लास के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत विषय विशेषज्ञों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है. राज्य स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक सतत् मॉनिटरिंग एवं विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. इसी क्रम में शिक्षा गुणवत्ता और विभिन्न विषयों पर अभिरुचि जागृत करने के उद्देश्य से वर्चुअल क्लास के ब्लॉक मीडिया प्रभारी हेमन्त खुटे ने पाठ्य पुस्तक में शामिल चुनिंदा कविताओं को संकलित कर वर्चुअल क्लास के लिए विशेष रूप से तैयार किया है जिसमें देश भक्ति गीत डॉ हरिवंशराय बच्चन की कविता भारत माता के बेटे हम चलते सीना तान के,पर्यावरण गीत गंगा प्रसाद द्वारा लिखित दूँगी फूल कनेर के, देशभक्ति गीत सत्यनारायण लाल की उठो, नई किरण लिए जगा रही है नई उषा और मातृभूमि के प्रति समर्पित रामावतार त्यागी द्वारा रचित मन समर्पित,तन समर्पित और यह जीवन समर्पित. चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और दूँ का समावेश किया गया है. इन समस्त गीत, कविताओं को छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक अनुराग शर्मा ने आवाज दी है तथा फ़िल्म निर्देशक व संगीतकार अमित प्रधान ने संगीतबद्ध किया है. उक्त कविताओं का संयोजन एवं संपादन हेमन्त खुटे ने किया है. हेमन्त ने बताया कि लॉकडाउन की अवधि में संचालित होने वाली वर्चुअल क्लास के महत्व सा बच्चों को अवगत कराने और विभिन्न विषयों में उन्हें दक्ष करने के लिए नवाचारों पहल के रूप में इसकी शुरुआत की गई है जिसके प्रेरणा स्रोत हिमांशु भारतीय सहायक संचालक महासमुंद है. इसी तरह अन्य गतिविधियों पर भी फोकस करने का निर्णय लिया गया है.

सफलता की कहानी :-श्रीराम यालम की ललक

लेखक - गौतम कुमार शर्मा

छात्र का नाम- श्रीराम यालम
शाला का नाम- शासकीय प्राथमिक शाला भोपालपट्टनम

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले का विकासखण्ड भोपालपट्टनम नक्सलगढ़ और एक पिछड़ा पहुँचविहिन क्षेत्र के रूप प्रख्यात है. इस क्षेत्र में नक्सलियों ने कई बार बहुत सारे स्कूलों को ध्वस्त कर दिया है, इसके बावजूद भी यहाँ शिक्षा की अलख जगी हुई हैं.

हम आपको इस क्षेत्र के एक ऐसे बच्चे की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसमें पढ़ाई के प्रति गजब का ललक और उत्साह है. उसके अंदर की इसी ललक और उत्साह ने उसे हमारे छत्तीसगढ़ का नन्हा नायक बना दिया है. वह बच्चा है शासकीय प्राथमिक शाला भोपालपट्टनम का कक्षा पाँचवी का छात्र श्रीराम यालम.

श्रीराम यालम एक गरीब परिवार के सदस्य है. इनके पिताजी स्वर्गीय श्री बोरैया यालम विगत वर्ष इस दुनियाँ से चल बसे, परिवार के एकमात्र कमाऊं सदस्य के गुजर जाने के कारण पूरे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, ऐसे में अधिकांश लोग टूट जाते है, लेकिन श्रीराम यालम की माताजी श्रीमती सुजाता यालम मुसीबतों से हार नहीं मानी और वो सभी मुसीबतों का डटकर सामना करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करती है, पर वह अपने बच्चों के सामने चेहरे पर शिकन भी नहीं आने देती. दिनभर की मेहनत मजदूरी के बाद सुजाता रात में श्रीराम को साहस, बहादुरी व परिश्रम से जुड़ी प्रेरक कहानियाँ सुनाती हैं, ये कहानियाँ सुजाता ने कहीं सुने नहीं बल्कि वो खुद ही इन कहानियों को गढ़ती है, ताकि श्रीराम के अंदर अच्छे संस्कार का अभ्युदय कर सकें.

श्रीराम यालम में भी पढ़ाई को लेकर गजब का उत्साह हैं. कोरोना वायरस के कारण जब विद्यालय की छुट्टी हो गई, तो वे बहुत मायूस हो गये. फिर जब एक दिन उनके शिक्षक ने उन्हें लॉकडाउन में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शुरू किये गये ऑनलाइन पढ़ाई हेतु स्कूल शिक्षा विभाग की वेबसाईट http://cgschool.in 'पढ़ई तुंहर दुआर' के बारें में बताया, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. 'पढ़ई तुंहर दुआर' के ऑनलाइन क्लास के बारे में जानकर उनकी उत्सुकता और बढ़ गई और श्रीराम ने तुरंत अपने घर के की-पेड मोबाईल से वेबसाईट पर अपने शिक्षक के सहयोग से अपना पंजीयन कराया, फिर उसने अपने की-पेड मोबाइल पर वेबसाईट पर उपलब्ध पाठ्य सामग्री से पढ़ाई करना शुरू किया, लेकिन की-पेड मोबाइल से वेबसाईट पर उपलब्ध सामग्री से पढ़ने में थोड़ी परेशानी हो रही थी, परन्तु श्रीराम यालम के अंदर की पढ़ाई के ललक के कारण वे वर्चुअल क्लास एवं वेबसाइट में उपलब्ध सामग्री को देखने के लिए गाँव में ही रहने वाले स्कूल के शिक्षकों के पास प्रतिदिन जाकर उनके मोबाइल से पढ़ने लगे.

श्रीराम यालम के पढ़ाई के प्रति ऐसी ललक और उत्साह के बारें में जब बीजापुर जिले के कलेक्टर श्री रितेश कुमार अग्रवाल को लगी, तो उन्होंने दिनाँक 12/06/2020 को श्रीराम की पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रखने के लिए तत्काल एक स्मार्टफोन प्रदाय किया, जिसे पाकर वो खुशी से झूम उठे.

मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में महत्व

लेखक - रीता गिरी

स्वस्थ शरीर मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी होती है. स्वस्थ होने का अर्थ केवल रोगमुक्त जीवन ही नही बल्कि पूरी तरह से फिट होना भी है और इस लक्ष्य को हम संतुलित आहार, व्यायाम, आराम, तनाव मुक्ति और मनोरंजन से प्राप्त कर सकते हैं. सुविधासंपन्न होने के बाद भी यदि मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो समझिए कि उसके पास कुछ भी नहीं है.

सभी जीवों का स्वास्थ्य उनके आस-पास के वातावरण पर निर्भर करता है. हमारा सामाजिक वातावरण हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण अंग है.स्वस्थ रहने के लिए खुश रहना आवश्यक है. व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामाजिक समानता और सद्भाव महत्त्वपूर्ण है.

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ भावनात्मक, मानसिक तथा सामाजिक संपन्नता है. किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य वह किस प्रकार सोचता है, महसूस करता है या व्यवहार करता है, को प्रभावित करता है तथा उसके जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रभाव डालता है.

आज के युग ने मनुष्य को निराशावादी बना दिया है. गंभीरता, एकाग्रता तथा सहृदयता आदि गुण कोसों दूर हो गये है और उनका स्थान भावुकता, छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजना और उदर पूर्ति की चिंता ने ले लिया है.

वर्तमान युग चुनौतियों और प्रतिस्पर्धाओ का युग है. जीवन की आपाधापी और तेज रफ्तार ने मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित किया है.चिंताग्रस्त होकर लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त हो रहे हैं. आधुनिकता की चकाचौंध ने लोगों के सोचने-समझने की क्षमता क्षीण कर दी है जिससे लोग जीवन में सही निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है और नकारात्मकता के शिकार हो रहे हैं.अवसादग्रस्त होने के कारण बहुत से लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं.

पुरानी कहावत है - ' मन के हारे हार है,मन के जीते जीत '. अर्थात् मन ( मानसिक स्वास्थ्य) की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है, अगर व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा तो वह शरीर से कितना भी स्वस्थ हो, उसे अच्छा महसूस नहीं होगा.उसे अपने जीवन में घर, व्यवसाय व परिवार जैसी बहुत सी जिम्मेदारियाँ निभाने तथा उनके बीच संतुलन बनाए रखने में मुश्किल होगी. जैसे हमने कई बार सुना है कि धन से संपन्न या अच्छी नौकरी वाला व्यक्ति भी आत्महत्या जैसे गलत कदम उठा लेता है, परिवार तक टूट जाते हैं.

जीवन में खुशी, प्रेरणा, संतुष्टि व मनोबल का होना बहुत जरूरी है और इन सबका संबंध हमारे मानसिक स्वास्थ्य से ही है. अतः हमें में सदैव अच्छे विचार और सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. खुद को अपने बच्चों के साथ रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें.योग व मेडिटेशन करें. अच्छी दिनचर्या का पालन करें. परिवार के साथ खुशनुमा समय व्यतीत करें. सकारात्मकता और हौसला बनाए रखें, तनाव मुक्त रहें, एक-दूसरे का सहयोग करें. आवश्यकता पड़ने पर काउंसलर अथवा मनोरोग चिकित्सक की सहायता लें.

मानसिक स्वास्थ्य का एकमात्र साधन है- मन पर अधिकार प्राप्त करना एवं उसे शक्तिशाली बनाना. मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में अत्यधिक महत्व है. कार्यकुशलता, सफलता, पारिवारिक सामंजस्य, सामाजिक स्वास्थ्य, व्यक्तित्व विघटन से बचाव, समस्या समाधान की क्षमता, सृजनात्मकता, व्यवहार कुशलता, नैतिकता, आत्मबोध, व्यक्तित्व विकास, देश की उन्नति में भूमिका इन सभी के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सांवेगिक एवं भावनात्मक रूप से परिपक्व होते हैं.वे अपने संवेगो एवं दूसरों के हृदय के भावों को भली-भांति समझते हैं एवं इसके कारण उनमें आपराधिक प्रवृत्ति नही होती है.

मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने पर व्यक्ति मन, मस्तिष्क और इंद्रियों के बीच तालमेल बैठा पाता है जिससे वह अपना कार्य कुशलतापूर्वक करता है. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए योगदान दे सकता है. अगर हम अपने जीवन को संतुलित, खुशनुमा व सफल बनाये रखना चाहते हैं तो मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा.

हरियाली और पेड़

रचनाकार- श्वेता तिवारी

प्रकृति ने हमारे उपयोग के लिए फलता फूलता वनस्पति जगत बनाया है. वनस्पति जगत का कोई भी पेड़ पौधा ऐसा नहीं है जो हमारे काम का न हो. कई पेड़ पौधे हमें फल देते हैं तो कई फूल देते हैं. कुछ पेड़ पौधे हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले पेड़ पौधों में तुलसी और नीम बहुत उपयोगी हैं. तुलसी का पौधा लगभग हर घर में पाया जाता है. जब हमें सर्दी जुकाम हो जाता है तो काली मिर्च के साथ तुलसी की पत्तियां घोंटकर पीने से सर्दी जुकाम दूर हो जाता है. तुलसी की पत्तियों में रोग के कीटाणुओं को दूर करने की शक्ति होती है इसलिए भगवान के प्रसाद में भी तुलसी दल डाले जाते हैं. घरों में महिलाएँ स्नान करने के बाद तुलसी के पौधों में नियम से जल चढ़ाती हैं और इसे तुलसी माता कह कर पुकारते हैं. इस गुणकारी पौधे को हरा भरा रखना अपना धर्म मानती हैं और इसकी पूजा करती हैं. अभी करोना काल में बहुत सारी औषधियाँ हमें पेड़ पौधों से ही प्राप्त हो रही हैं जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही हैं. तुलसी में इतने औषधीय गुण हैं कि इसके उपयोग द्वारा हम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को काफी हद तक बढ़ाकर कोरोना वायरस विषाणु का सामना करने में सक्षम हो सकते हैं. विभिन्न प्रकार की भाजियाँ भी हमें पौधों से प्राप्त होती है जो लौहतत्व से भरपूर होती हैं. नीम बहुत लाभदायक पेड़ है नीम का प्रत्येक भाग मनुष्य के काम का है. नीम की पत्तियों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो आसपास की वायु शुद्ध हो जाती है. इसकी नवीन कोपलों को चबाने या घोंटकर पीने से खून साफ होता है.नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से स्नान करने से चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं. नीम के पानी से घाव धोने पर घाव के कीटाणु समाप्त हो जाते हैं. पत्तियों को उबालने आदि की परेशानी को कम करने के लिए नीम का साबुन भी बनाया जाने लगा है. नीम की पत्तियों को जलाकर विषैले कीटाणुओं और मच्छरों को दूर भगाया जाता है. नीम की पत्तियों को कपड़ों या अनाज के साथ रखने पर उन में कीड़े नहीं लगते. नीम की पतली टहनी दातुन के रूप में काम आती है टहनी का कड़वापन मसूड़ों के लिए लाभदायक होता है और कीटाणुओं को नष्ट करता है. नीम की जड़ें जमीन के अंदर से पानी खींच कर मिट्टी की ऊपरी परत को नाम रखती है तथा जल और वायु द्वारा मिट्टी के कटाव को रोकती हैं.

एलोवेरा( घृतकुमारी) त्वचा संबंधी रोगों के इलाज में उपयोगी होता है. बाल टूटने की समस्या में भी इसका उपयोग होता है इस कोरोना वायरस के समय में सबसे अधिक गिलोय का उपयोग किया जा रहा है. कोरोना वायरस के कारण गिलोय की महत्ता सामने आ रही है. गिलोय को इम्यूनिटी बूस्टर माना जाता है यह बुखार की बहुत अच्छी दवा है. पारस पीपल का उपयोग डिप्रेशन दूर करने के लिए होता है चंदन की तरह ही इसकी लकड़ी को घिसकर माथे पर लगाया जाता है.

अतः हम सबको यह प्रण करना चाहिए कि प्रत्येक वर्ष हम कम से कम एक पौधा जरूर लगाएँ और उसकी तब तक देखभाल करें जब तक कि वह पेड़ न बन जाए. कहा गया है वृक्ष है तो हम सब हैं.

प्लास्टिक

रचनाकार- विजय लक्ष्मी राव

'प्लास्टिक' शब्द ग्रीक भाषा के ' प्लास्टी कोस' से बना है जिसका अर्थ होता है_जो किसी आकार में ढल जाए या ढाला जा सके. जान डब्ल्यू हैमाट नामक एक प्रिंटर ने सन् 1870 में प्लास्टिक की खोज की थी.सन् 1940 में प्लास्टिक भारत आया और इसका प्रयोग सन् 1970 से औद्योगिक और घरेलू काम-काज हेतु किया जाने लगा.भारत में लगभग 40 प्रतिशत प्लास्टिक पुनर्प्रयोग में लाया जाता है. पुनः उपयोग में लाते समय इसमें ब्लीचिंग तथा रंगीन रसायन डाल दिया जाता है,जिससे ये सुंदर दिखे.

यह रासायनिक पदार्थ पानी में आसानी से घुल जाता है और पानी के साथ हमारे शरीर में जमा होकर गुर्दा तथा फेफड़ों को खराब कर देता है.

प्लास्टिक के रंगीन थैले जो सब्जी, मसाले या अन्य सामानों के साथ मिलते हैं, वे पुनर्प्रयोग वाले प्लास्टिक ही होते हैं. पुनर्प्रयोग वाला प्लास्टिक बहुत कम पूँजी में घरों या कारखानों में बनने वाला पदार्थ है.परन्तु यह बहुत हानिकारक है क्योंकि इससे साँस की कई खतरनाक बीमारियां उत्पन्न होती हैं.

अतः प्लास्टिक के रंगीन थैले का उपयोग न करें.

हरेली

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

हरेली तिहार अच्छी फसल की कामना के साथ प्रकृति की पूजा का पर्व है. छत्तीसगढ़ के किसानों का सबसे बड़ा पर्व हरेली सावन के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है. इस पर्व की धूम शहरों और गाँवों में नज़र आती है.

छत्तीसगढ़ में किसानों के पर्व प्रथम पर्व हरेली से प्रारंभ होते हैं. किसान हरेली पर्व बड़ी धुमाधाम से मनाते हैं. किसान इस पर्व के दिन खेती में में काम आने वाले अपने औजारों की पूजा करते है, वहीं घरों में छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं. इस दिन किसान अपने-अपने कुल देवताओं की पूजा आराधना करते हैं. हरेली पर गाय, बैल और भैंस को गूड और चीला खिलाया जाता है. गाँव के बच्चे गेड़ी पर चढ़ते है. गेड़ी दौड़ व नृत्य का भी जगह- जगह आयोजन होता है. हरेली पर्व के दिन गाँवों में युवाओं की टोली नारियल फेंक कर नारियल जीत का खेल खेलते है. जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं तो वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं. इस दिन सुबह से ही घरों में गेड़ी बनाने का काम शुरू हो जाता है. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो इस दिन 20 से 25 फीट ऊँची गेड़ी बनाते हैं और उसपर चढ़ते हैं.

किसान अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. किसान नाँगर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखते है और इसकी पूजा-अर्चना करते है. इस अवसर पर सभी घरों में गुड़ का चीला बनाया जाता है. हरेली के दिन लोग अपने-अपने कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा भी करते है. ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह से शाम तक उत्सव की धूम रहती है. कुल मिलाकर अच्छी फसल की कामना के साथ प्रकृति की पूजा ही इस पर्व की विशेषता है. पूरे छत्तीसगढ़ में हरेली धूमधाम से मनाई जाती है. इस पर्व के दिन कहीं कहीं मुर्गे और बकरे की बलि देने की भी परम्परा है. हरेली के दिन यादव समाज के लोग बगरंडा की पत्तियाँ इकट्ठी कर गाय, भैस व बैलों को नमक और बगरंडा की पत्ती बीमारी से बचाव के लिए खिलाते है. कहीं कहीं पर स्वयं किसान अपने मवेशियों को खिलाते हैं.

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