अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

फटी कमीज़

उस दिन खेलकूद के कालखंड में दसवीं और ग्यारहवीं कक्षा के बच्चों के बीच कबड्डी का मैच चल रहा था. दसवीं की टीम कुछ कमजोर पड़ रही थी. ऐसे में इस टीम के दीपक के पैर में अचानक मोच आ गई. दीपक बहुत अच्छा खेल रहा था.

अब सवाल था उसकी जगह किसे लिया जाए.

दसवीं के सारे बच्चे चिल्लाने लगे, 'आनंद... आनंद...'

आनंद डरकर पीछे हो गया. पर उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे खींचने लगे. आनंद प्रतिरोध करता रहा. इस खींचतान में अचानक चर्रऽऽऽऽऽऽ की आवाज़ के साथ आनंद की कमीज़ बांह से फट गई.

एकाएक सभी सहम गए. उनके हाथ ढीले पड़ गए. आनंद ने गर्दन घुमाकर अपनी कमीज़ देखी. उसकी आंखें डबडबा गईं. उसे हमेशा इसी बात का डर रहता था कि खेलते हुए कहीं कपड़े न फट जाएं. और आज वही हो गया. उसने किसी से कुछ न कहा,अपना बस्ता उठा सर झुकाए मैदान से बाहर निकल गया.

घर लौटते हुए उसे लग रहा था कि ये रास्ता कभी खत्म न हो.

पिताजी के गुज़र जाने के बाद एक बरस में ही घर की दशा बहुत खराब हो चुकी थी. आय का कोई साधन न था. जरूरतों ने एक - एक कर मां के गहने बिकवा दिए थे. कुछ खरीदने की कल्पना करना भी मुश्किल था. ऐसे में आज उसकी ये कमीज़ फट गई.

उसकी आंखों में मां का उदास चेहरा घूम रहा था. उसने तय कर लिया कि मां को इसका पता न चलने देगा.

घर पहुंचते ही उसने अपनी कमीज़ उतारी और तह लगाकर बस्ते में ही रख लिया.

कन्हैया साहू 'कान्हा' व्दारा पूरी की गई कहानी

आनंद ने उस दिन अपनी माँ को कमीज के फटने के बारे मे कुछ भी पता नही चलने दिया और अपनी कमीज को सुई धागे से स्वयं ही सिल लिया. अगली सुबह जब वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था तब उसे लगा कि सुई धागे से सिली हुई कमीज देख कर अन्य बच्चे उसका मजाक उड़ाएँगे. इसी उधेड़बुन में वह स्कूल पहुँचा. वह सीधे सभा कक्ष में गया जहाँ प्रतिदिन प्रार्थना सभा होती है. प्रार्थना के बाद आनंद को मंच पर बुलाया गया वह सकुचाते हुए मंच पर पहुँचा. सभी दोस्त आनन्द की खराब आर्थिक स्थिति के बारे में जानते थे,इसलिए उन सभी ने मिलकर आनंद के लिए नई कमीज के साथ साथ पूरी गणवेश भेंट करने का इंतजाम कर लिया था. पहले तो आनंद ने यह सब लेने से इनकार कर दिया परन्तु सभी दोस्तों के आग्रह पर उसने सभी सामान ले लिया और सबको धन्यवाद दिया. छुट्टी के बाद घर जाकर आनंद ने माँ को सारी बात बताई तो माँ ने भी आनंद के दोस्तों की बहुत प्रशंसा की. उस दिन के बाद आनंद की अपने दोस्तों के साथ दोस्ती और भी गहरी हो गई.

टेकराम ध्रुव 'दिनेश' व्दारा पूरी की गई कहानी

दूसरे दिन माँ ने आनंद से पूछा- बेटा, तुम्हारी कमीज़ कहाँ है,कब से ढूँढ़ रही हूँ साफ करने के लिए! मिल ही नहीं रही है? आनंद ने कहा- ' रहने दो न माँ आज साफ करने की जरूरत नहीं है.' माँ ने कहा - ' दो दिन हो गए हैं कमीज गंदी हो गई होगी; ला दे.' आनंद ने हिचकिचाते हुए कहा - ' माँ कल स्कूल में खेल के समय खींचतान में कमीज़ की बाँह फट गई है,आप गुस्सा करोगी यह सोचकर मैं हिचक रहा था.' अरे खेलकूद में कपड़ों का गंदा होना और फटना स्वाभाविक है बेटा, तू चिंता क्यों करता है. सब ठीक हो जाएगा. माँ ने कहा.

तभी आनंद के दोस्तों ने आकर कहा- कल जो हुआ उसके लिए हमें माफ कर दो मित्र, आइंदा हम सभी इस बात का ध्यान रखेंगे.आज तुम्हे स्कूल नहीं जाना है क्या?आज के मैच में तुम्हारी बहुत जरूरत है.कल दीपक को चोट लगने के कारण आज वह नहीं खेल पाएगा, उसकी जगह तुम ही ले सकते हो.आज का मैच निर्णायक है मित्र, हमें तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम हमारी टीम को हारने नहीं दोगे.

आनंद ने कहा- मगर आज मेरा मन नहीं है जानें का.

तभी माँ ने आकर कहा- चलो तुम्हारा मन बना देते हैं जाने का. तुम लोग चिंता मत करो बच्चो, आनंद जरूर जाएगा और अपनी टीम की जीत के लिए जरूर खेलेगा.मगर माँ. .... आनंद ने कुछ कहना चाहा, पर बीच में ही माँ ने कहा- ' जहाँ चाह वहाँ राह, ये रहे नए कपड़े, मैंने तेरे लिए लेकर रखे थे, चल तैयार हो जा.

आनंद बहुत खुश हुआ. मां को प्रणाम कर जीत का हौसला लेकर अपने दोस्तों के साथ स्कूल के लिए निकल पड़ा.

संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी

आनंद घर पहुँचकर भी बहुत उदास था. आनंद को हंसता-खेलता न देखकर उसकी माँ ने पूछा 'बेटा तुम जब से स्कूल से आए हो तब से उदास दिख रहे हो, क्या बात है मुझे बताओ? स्कूल में कुछ हुआ क्या?किसी से लड़ाई तो नहीं हुई.' ऐसी कोई बात नहीं है माँ,मैं ठीक हूँ कहते हुए आनंद अपना होमवर्क करने लगा. अगले दिन माँ से बहाना बनाकर आनंद स्कूल नही गया. इसके बाद तो आनंद रोज कोई नया बहाना बनाकर चार पाँच दिनों तक स्कूल नहीं गया. अब उसकी माँ समझ गई कि जरूर स्कूल में कुछ हुआ होगा इसलिए आनंद स्कूल नहीं जा रहा है, शिक्षक से मिलकर मुझे बात करनी होगी.

इधर आनंद के स्कूल ना आने से उसके कक्षा शिक्षक भी परेशान हो गए. उन्होंने बच्चों से पूछा कि आनंद कभी अनुपस्थित नहीं रहता,लेकिन उसे क्या हुआ जो चार-पांच दिनों से स्कूल नहीं आ रहा है ? बच्चों ने आनंद की कमीज फटने व उसके घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की बात शिक्षक को बताई. कक्षा शिक्षक ने यही बात अपने हेड मास्टर के साथ पूरे स्टाॅफ को बताई. विद्यालय के सभी शिक्षकों ने मिलकर आनंद की पढ़ाई की जिम्मेदारी लेने का निर्णय लिया.

अगले दिन कक्षा शिक्षक कुछ बच्चों के साथ आनंद के घर जाकर उसकी माँ से मिले.आनंद की माँ ने आनंद के उदास होने की बात कक्षा शिक्षक को बताई. शिक्षक ने आनंद की मां को आश्वस्त किया कि अब वे आनंद की पढाई के लिए चिंता न करें सभी शिक्षकों ने आनंद को पढ़ाने के लिए मिलकर जिम्मेदारी ली है. आनंद व उसकी माँ ने शाला के सभी शिक्षकों को धन्यवाद दिया. आनंद के लिए पुस्तक कॉपी एवं यूनिफॉर्म की व्यवस्था कर दी गई. अब आनंद मन लगाकर पढ़ने के साथ खेल कूद में भी हिस्सा लेने लगा. स्कूल के सभी शिक्षकों ने आनंद को शुभकामनाएं देते हुए आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

चित्रा का हारमोनियम

चित्रा आज बहुत खुश थी. आज उसका जन्मदिन था. वैसे तो चित्रा अपना हर जन्मदिन अपने माता-पिता और दोस्तों के साथ मनाया करती थी पर इस बार अपने जन्मदिन का चित्रा को बहुत बेसब्री से इंतज़ार था.

चित्रा कक्षा आठवीं में पढ़ती है. उसके घर में माता-पिता और छोटे भाई सहित चार लोग हैं.पढ़ाई के साथ चित्रा की रुचि चित्रकारी, बागवानी और संगीत में भी है. इसी साल चित्रा ने संगीत सीखना शुरू किया है.संगीत की कक्षा में सभी अपने साथ अपनेअपने वाद्ययंत्र लेकर आते हैं पर चित्रा के पास अपना कोई वाद्ययंत्र नहीं है वह कक्षा में संगीत शिक्षक के हारमोनियम को ही बजाकर अपनी इच्छा पूरी कर लेती है.

संगीत सीखने में चित्रा की लगन देखकर संगीत शिक्षक ने चित्रा के पिताजी को सलाह दी कि वे चित्रा के लिए उसकी पसंद का कोई वाद्ययंत्र खरीद लें.

चित्रा की माँ ने उसे बता दिया था कि आज जन्मदिन पर पिताजी उपहार में हारमोनियम देने वाले हैं. जब से चित्रा को यह बात पता चली तब से ही वह अपने जन्मदिन की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगी और आज उसका जन्मदिन आ ही गया.

जन्मदिन का आयोजन खत्म हुआ और दोस्तों के दिए उपहारों के साथ चित्रा को हारमोनियम भी मिल गया. पर अगले ही दिन से चित्रा का व्यवहार बदल गया. अब वह हर वक्त सिर्फ हारमोनियम में ही रमी रहती. चित्रकारी और बागवानी तो वह भूल ही गई.पढाई भी केवल होमवर्क तक सीमित हो गई.

अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें अगले माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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