छत्तीसगढ़ी बालगीत

भारत भुइँया महान

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

धरम करम के पाठ पढ़ाथे
गीता अउर कुरान
ये भारत भुइँया हर भैया
दुनिया मा हे महान.

धरती दाई के सेवा मा
असल पछीना गारत हे
चाहे कतको भी दुख पाये
पीरा ला भुलियारत हे
धरती दाई के माटी ला
माथा मा चंदन लगाओ
जिंदगी मा सुभिमान रहू
भुइँया के वंदना गाओ.
परहित मा जांगर पेरथे,
धरती के भगवान.

जेकर वीरता देख के दुश्मन,
हपटत ह-कूदत भागत हे.
रक्षा खातिर बंदूक धरके,
सरहद मा जउन जागत हे.
जेकर आघू चीनी पाकी,
कभू टिक नई पावे जी.
अइसन बीर मन के गाथा
जग हर सुग्घर गावे जी.
देश के खातिर जान लुटाय,
अइसन हमर जवान.

अबड़ मया के प्रेमभाव हे,
देश के सब नर-नारी मा.
किसम-किसम के फूल खिले हे
भारत के फुलवारी मा
भेदभाव ल छोड़ के इहाँ
मिलजुल के सब रहिथें जी.
देश के बिपदा दूर करे बर,
दुख-सुख ल सब सहिथें जी.
बइरी कोनो कइसे होही,
सब झिन इहाँ मितान
भारत भुइँया ये जम्मो,
दुनिया ले संगी महान.

उलान बाटी

रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'

छत्तीसगढ़िया खाथे बासी
मनभावन हे इहाँ के माटी.

बचपन म खेलेन उलान बाटी
अउ खेलन हम भौंरा बाटी.

दाई बाबू मन खोजत राहय
धर के गजब जमगरहा लाठी.

खेलत - खेलत सुध भुलाये
चाबे हमला बड़का चाँटी.

पेड़ लगाव

रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'

सबझन पेड़ लगाव जी, मीठा फल ला पाव जी.
जतन करव तुम रोज के, पानी डारव खोज के..

मिलही सब ला छाँव जी, सुंदर दिखही गाँव जी.
जरय नहीं तब पाँव जी, होही तुँहरे नाँव जी..

कउवाँ करही काँव जी, चिरई चिरगुन चाँव जी.
पहुना आही गाँव जी, सूरताही वो छाँव जी..

शुद्ध हवा ला पाव जी, जादा पेड़ लगाव जी.
ताजा फल ला खाव जी, पहिली पेड़ लगाव जी..

पढ़ किसान

रचनाकार- वीरेंद्र कुमार साहू

लिख किसाऩ पढ़ किसान
नवा तकनीक गढ़ किसान.
हरीयर कर दाई के कोरा
जम्मो के कोठी भर किसान.

पढ़- लिख के हमू मन ह
सैनिक बन जाबोन
सीमा मा दुश्मन के आगू
छाती अपन अड़ाबोन.

लिख किसान पढ़ किसान
नवा रद्दा गढ़ किसान.

पढ़ लिख के आगू बढ़ के
अलख हम जगाबोन
अक्षर ला हथियार बना के
दुनिया में नाम कमाबोन.

तँहू हर लिख-पढ़ किसान
दुख दुनिया के हर किसान.

सावन आगे

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

सावन आगे, सावन आगे
घपटत करिया बादर आगे.
झमाझम बरसत हे पानी
चुहत हावै खपरा छानी
चौरा म अब बइठे - बइठे
बबा करत हावै सियानी
खोर - गली म पूरा आगे
तरिया, नदिया लबलबागे.
सावन आगे, सावन आगे.

घर-दुवार सब किचिर-काचर
लइका खेलै छिपिर -छापर
छुप- छुप के पानी म नाचै
बबा घलो रमायन बाचै
बुढ़ुवा मन के मुँह चिकनागे
खेत-खार जम्मो हरियागे
सावन आगे, सावन आगे.

मिलजुल करमा-सुआ गावै
ददरिया मा राग लमावै
कमरा-खुरमी ला ओढ़ के
चरवाहा ह बाँस बजावै
खेतहारिन कुलकत हावै
दुख - पीरा जम्मो बिसरागे
सावन आगे, सावन आगे.

सुग्घर हावौं मैं गाँव रे

रचनाकार- तुलस चंद्राकर

मया-पिरित के धार बोहावत
घेरी- बेरी गोहरांव रे
गुरतुर बोली-भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गांव रे.

मोर चिन्हारी धुर्रा-माटी
चिखला, छानही-परवा हे
डोली-धनहा, मुही-पार अउ
तरिया, डबरा, नरवा हे
अंतस ल जुड़वाथे जिहाँ
रुख-राई के छाँव रे
गुरतुर बोली - भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गाँव रे

मोर अंगना म अटकन - बटकन
रेंहचुल, भंवरा- बाँटी हे
गिल्ली- डंडा अउ फुगड़ी
खेल जम्मो खाँटी हे
बरसत पानी, छिपिर-छाप,
लइका चलाथे नाव रे
गुरतुर बोली - भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गांव रे.

होत बिहनिया चले नगरिहा
जाँगर टोर कमावत हे
खेत मा चटनी -बासी के संग
ज़िनगी ल अपन पहावत हे
धरती दाई के जतन करइया
जेखर पखारन पाँव रे
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गांव रे.

मोर अंगना म किसम-किसम के
तीज-तिहार मनावत हें
ठेठरी- खुरमी, बरा - सोंहारी
खावत अउ खवावत हें
कोरा हे मोर सरग बरोबर
जग हर लेथे नाँव रे.
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गाँव रे

दुब्बर - पातर मनखे के संग
हावय मोर मितानी
चैतू, मंगलू अउ बैसाखू
करथे इहाँ सियानी
दया - मया संग रहिथन मिलजुल
करन नहीं काँव-काँव रे
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
सुग्घर हावौं मैं गाँव रे

घण्टी बाजे

रचनाकार- अविनाश तिवारी

ठीन-ठीन,ठीन घण्टी बाजे
हो गे स्कूल के बेरा
चल रामू बस्ता धर के
तँहू चल ना मनटोरा.

ज्ञान के उजयारी बगराबो
अंधियारी ल मिटाबो
नोनी बाबू पढ़ लिख के
नवा बिहनिया लाबो.

गांव-गाँव मा नोनी बाबू
गजब लिखत-पढ़त हे
नवा जुग मा नवा-नवा
रद्दा घलो गढ़त हे.

शिक्षा के अधिकार हर भैया
नवा सुराज लावत हे
भारत के भुइँया मा देख ले
सरग नवा बनात हे.

तुलसी

रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'

घर अँगना अउ चउक मा, तुलसी पेड़ लगाव.
पूजा करके प्रेम से, पानी रोज चढ़ाव..

तुलसी हावय जेन घर, वो घर स्वर्ग समान.
रोग दोष सब दूर कर, घर मा लावय जान..

तुलसी पत्ता पीस के, काढा बने बनाव.
सरदी खाँसी रोग मा, खाली पेट पियाव..

तुलसी पत्ता टोर क, रोज बिहनिया खाव.
स्वस्थ रहय जी देंह ह, ताकत बहुते पाव..

तुलसी माला घेंच मा, पहिरय जे दिन रात.
मिटथे कतको रोग हा, कभू न होवय वात..

तुलसी पत्ता खाय जे, बाढ़य ओकर ज्ञान.
मन पवित्र हो जात हे, लगय पढ़य मा ध्यान..

तुलसी माला जाप कर, माता खुश हो जाय.
बाढ़य घर मा प्रेम जी, संकट कभू न आय..

छत्तीसगढिया के बासी

रचनाकार- कु. साक्षी, कक्षा आठवीं, शा.पू.मा.शाला, पंधी, बिलासपुर

गजब मिठाथे रे संगी,
मोर छत्तीसगढ़ के बासी.
ही हमर बर तिरिथ-बरत हे,
हमर बर मथुरा कासी.

बड़े बिहनिया करथन मुखारी,
अउ झड़कथन बासी.
दिन भर करथन काम बुता,
करथन बत्तर- बियासी.

रुक्खा-सुक्खा जउन मिल जाथे,
भाजी कोदई तरकारी.
नून मिर्ची संग रगर के खाथन,
मिल के सब संगवारी.

कहाँ पाबोन हम खीर सोंहारी,
कहाँ जलेबी पोहा.
कहाँ ले पाबोन रसगुल्ला,
कहाँ ले पाबो खोवा.

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