कहानी

अंधविश्वास का जन्म

रचनाकार- रोहित शर्मा, मौलाना आजाद रा. प्रौ. सं., भोपाल

एक समय की बात है. एक लड़के की शादी हो रही थी. शादी के कार्यक्रम में एक बिल्ली बार बार आकर सभी को परेशान कर रही थी. लोगो ने बिल्ली को पकड़कर मंडप के खम्भे से बाँध दिया.

कई साल बीत गए, अब उसी लड़के के बेटे की शादी हो रही थी तो उसने मंडप के खम्भे से एक बिल्ली बँधवाने के लिए कहा. जब लोगों ने उससे मंडप के खम्भे से बिल्ली को बँधवाने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मेरी शादी में भी ऐसा ही हुआ था,जरूर इसका कोई मतलब होता होगा. यह सुनकर लोगों ने उस लड़के की बात मनकर एक बिल्ली को पकड़कर मंडप के खम्भे से बँधवा दिया.

उस लड़के ने बिल्ली को खम्भे से बाँधने का असली कारण जाने बिना यह मान लिया की ऐसा करना जरुरी परंपरा है. उसने एक सामान्य घटना को परंपरा का रूप दे दिया. इस तरह एक मामूली सी बात एक परंपरा बन गयी.

इसलिए हमें परंपराओं के वास्तविक तर्कपूर्ण कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए और निरर्थक परंपराओं को छोड़ देना चाहिए.

दाँत का दर्द

रचनाकार- डॉ. मंजरी शुक्ला, पानीपत, हरियाणा

'मेरे दाँत में बहुत दर्द है' भोलू गधे ने चिन्नी बकरी से कहा.
'तो तुम उसको निकलवा क्यों नहीं देते.' चिन्नी ने भोलू से कहा.
'नहीं, नहीं ऐसा मत कहो, मुझे बहुत डर लगता है.', भोलू ने चिन्नी से कहा.
तभी वहाँ पर रामू धोबी कपड़ों का गट्ठर लेकर आ गया और बोला-'चलो भोलू, हमें नदी पर कपड़े धोने चलना है.'
भोलू दाँत दिखाते हुए बोला- 'मेरे दाँत में बहुत दर्द है.'
रामू को तो सिर्फ़ 'ही हिया' ही सुनाई पड़ा.
रामू ने भोलू के आगे घास डाल दी और बोला-'तुम अच्छे से खा लो फिर चलते हैं.
भोलू घास के पास से हट गया.
चिन्नी हँसते हुए बोली-'रामू को कैसे समझाएँ कि तुम्हारे दाँत में दर्द है.'
बेचारा भोलू चुपचाप खड़ा रहा.
थोड़ी देर बाद रामू वापस आया और उसने देखा कि भोलू ने कुछ भी नहीं खाया.
रामू बहुत दयालु था. उसने प्यार से भोलू के ऊपर हाथ फेरते हुए कहा- 'लगता है तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है ' हम दोपहर में चलेंगे.'
भोलू फिर बोला- 'मेरे दाँत में दर्द है.' पर रामू को 'ही हिया' ही सुनाई पड़ा.
जब दोपहर को रामू आया, तो भोलू एक कोने में खड़ा था.
रामू को चिंता हुई पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि भोलू को हुआ क्या है.
वह दुखी होते हुए घर पहुँचा तो उसका पाँच साल का बेटा मुन्नू बोला-'मैं खाना नहीं खाऊँगा, मेरे दाँत में दर्द हैI'
ओह्ह्ह! कहते हुए रामू तुरंत भोलू के पास दौड़ा और बोला- 'क्या तुम्हारे दाँत में दर्द है?'
और भोलू ने तुरंत दाँत दिखते हुए कहा- 'हाँ. मेरे दाँत में बहुत दर्द है. ' इस बार भी रामू को 'ही हिया' ही सुनाई पड़ा, पर इस बार रामू समझ गया था. उसने घर से लाकर तुरंत एक दवाई भोलू के दाँत पर लगा दी'
थोड़ी ही देर बाद भोलू चिन्नी के साथ हँसते हुए घास खा रहा था.
रामू ने बेटे को गोदी में उठाते हुए प्यार से कहा-'अब चलो, तुम्हें भी दाँतों के डॉक्टर के पास ले चलता हूँ.'
बच्चा बोला-'नहीं, मुझे भी भोलू वाली दवा लगा दो, मुझे डॉक्टर से डर लगता है.'
यह सुनकर रामू जोर से हँस पड़ा.

मैं भी सिपाही

लेखक -नीरज त्यागी, ग़ाज़ियाबाद

दादाजी इस कोरोना काल में हमने तो देश के सिपाही की तरह का कोई भी काम नहीं किया जबकि हमारी सेना सीमा पर दिन रात हमारे लिए काम करती है? 14 साल के राहुल ने बड़ी मासूमियत से यह सवाल अपने दादाजी से पूछा.दादाजी ने बडी ही शांति से राहुल को समझाते हुए कहा कि बेटा भले ही हम सभी घर पर ही रहे हैं लेकिन कोरोना काल में हम सभी ने एक सिपाही की तरह ही काम किया है.

राहुल ने आश्चर्य से पूछा दादा जी हम तो घर में थे; फिर हमने ऐसा कब किया? बेटा तुम्हारा बड़ा भाई जो कि एक व्यापारी है उसने इस समय में अपना काम बंद कर घर में रहना उचित समझा. नकली सैनिटाइजर बेचकर वह ज्यादा पैसा कमा भी लेता लेकिन समाज के लिए वैसा करना बड़ा ही निंदनीय होता. इसलिए तुम्हारा भाई भी एक सिपाही है जिसने घर मे रहकर बिना किसी को कोई नुकसान पहुँचाये अपना समय व्यतीत किया. वहीं तुम्हारी बडी बहन जो फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है. उसने इस समय में घर पर रहकर 700-800 मास्क बनाकर जरूरतमंद लोगों में बाँटे. इस तरीके से उसने भी देश के लोगों के लिए एक सिपाही का ही काम किया है. तुम्हारी माँ ने समय-समय पर आसपास के गरीबों को खाना खिला कर उन्हें भूख से बचाया है. इसलिए उन्होंने भी एक सिपाही की तरह ही काम किया है.

अरे दादाजी तब तो आप और मैं ही रह गए जिन्होंने कोई भी काम देश के लिए नही किया. दादाजी ने राहुल को समझाया ऐसा नहीं है बेटा. मैं अपनी इस उम्र में बाहर न घूम कर घर में ही रहा और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखता रहा ; तुमने भी इस समय में अपने खेलकूद का त्याग कर दिया. इसलिए तुमने भी एक सिपाही का ही काम किया है क्योंकि तुम्हे ऐसा करते देख तुम्हारे सभी दोस्त भी घर मे ही रह रहे हैं.अब राहुल अपने दादाजी की बातों से संतुष्ट हो गया था.

फल पृथ्वी पर क्यों गिरा?

लेखक -टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला '

बरसात का मौसम था.ठण्डी हवा चल रही थी. आकाश में काले बादल छाए हुए थे. शिखा और शिखर पत्थर मार-मार कर जामुन गिरा रहे थे. दोनों भाई-बहन कक्षा पाँचवीं के छात्र थे. विज्ञान के प्रति विशेष रूचि रखने वाला शिखर हरेक प्रश्न का जवाब किसी न किसी तरह ढूँढ़ ही लेता था. टहनी से टूटकर नीचे गिरते फल को देखकर उसके दिमाग में एक प्रश्न उठा कि आखिर यह फल पृथ्वी पर ही क्यों गिरा? इस प्रश्न का उत्तर पूछने वह तुरंत अपनी विज्ञान-शिक्षिका के घर चला गया.

'गुड आफ्टर नून मैम्' मोल्डेड चेयर पर बैठी रूबीना से शिखर हँसते हुए बोला. 'गुड आफ्टर नून शिखर' आओ बैठो, अरे क्या बात है? इतना क्यों हाँफ रहे हो तुम?' रूबीना मुस्कराते हुए बोली. शिखर स्टूल पर बैठकर थोड़ा सुस्ताने लगा. रूबीना ने एक गिलास पानी लाकर शिखर को दिया और बोली -'अच्छा शिखर, अब बताओ क्या बात है?'

शिखर ने अपने मन की पूरी बात रूबीना को बता दी. विज्ञान के प्रति शिखर की विशेष अभिरुचि देख रूबीना बहुत खुश हुई. मुस्कराते हुए बोली शिखर, फल पेड़ से पृथ्वी पर इसलिए गिरा क्योंकि पृथ्वी हमेशा गुरुत्वाकर्षण बल से हर वस्तु को अपनी ओर खींचती है जामुन के फल पर भी पृथ्वी ने अपने गुरुत्वाकर्षण बल का प्रयोग किया और फल नीचे गिर गया.'

शिखर,रूबीना की बात ध्यान से सुन रहा था. फल के पृथ्वी पर गिरने का कारण उसकी समझ में आ गया. बोला -' मैं समझ गया मैम. अब मैं जाता हूँ, थैंक यू मैम!

आईना

लेखक -सीमा गर्ग मंजरी

'माँ ! थोड़ा- सा दलिया दादी माँ को भी दो, दादी माँ कमरे में अकेले पड़ी रोती रहती हैं. मैं उनके साथ ही बैठ कर खाऊँगा.' नन्हें गोलू ने दलिये की कटोरी माँ के हाथ से पकड़ते हुए कहा.

'तू जाकर चुपचाप अपना दलिया खा. वरना अभी दो चार चपाट कान के नीचे बजा दूँगी. दादी माँ के गीत गाना भूल जायेगा.' माँ ने क्रोध से चिल्लाकर कहा.

किंतु गोलू टस से मस नहीं हुआ. चुपचाप वहीं खड़ा रहा. बालमन की हट से मौन माँ ने मिट्टी के बर्तन में दलिया लेकर अपनी बीमार सासूजी को पकड़ा दिया. दादी माँ के दलिया खा चुकने पर नन्हा गोलू रसोईघर में मिट्टी से बने बर्तन धो रहा था.

'अरे गोलू तू यह क्या कर रहा है ? इनको तो मैं बाहर कचरे में फेकूँगी, तू इन्हें हाथ मत लगा' माँ फिर से गोलू पर चिल्लाई.

मासूम गोलू ने भोलेपन से उत्तर देते हुए कहा कि - ' माँ! अब से दादी माँ के सभी बर्तन मैं सम्भाल कर रखूँगा, क्योंकि जब आप दादी माँ जैसी हो जायेगी, तब मैं भी आपको इन्हीं बर्तनों में खाना दिया करूँगा.'

माँ भौचक्की-सी होकर विस्फारित नेत्रों से गोलू को देखने लगी.

नन्हें गोलू ने भविष्य का आइना दिखा दिया था. वह जैसे सोते से जाग उठी थी.

शिक्षा--जो बोओगे,वही काटोगे

चोरी करना बुरी बात है

लेखक -हेमंत कुमार यादव, कक्षा -सातवीं, नवोदय विद्यालय कुरुद, धमतरी

मोनू नाम का एक लड़का था. वह बहुत लालची था. स्कूल में मोनू छात्रों के टिफिन से भोजन चुराकर खा जाता था. छात्रों को यह पता नहीं चल पा रहा था कि टिफिन से खाना कौन चोरी करता है. छात्रों ने हेडमास्टर से भी शिकायत की लेकिन चोर का पता नहीं चल पाया. स्कूल के सभी छात्र छात्राएँ बहुत परेशान हो गए थे.

एक दिन सभी छात्र छात्राओं ने चोर को पकड़ने के लिए एक तरकीब सोची.सभी छात्र छात्राओं ने चूहे पकड़ने का फंदा अपने-अपने स्कूलबैग में रख दिया. मोनू ने मौका पाकर आज फिर से चोरी करने की कोशिश की पर स्कूलबैग के अंदर हाथ डालते ही फंदा उसके हाथ में चिपक गया. अब मोनू जोर -जोर से बचाओ -बचाओ चिल्लाने लगा. मोनू की आवाज सुनकर सभी छात्र -छात्राएँ दौड़कर आए और उसके हाथ से फंदे को निकाला. इस तरह मोनू चोरी करते हुए पकड़ा गया और उसे सभी के सामने शर्मिंदा होना पड़ा.मोनू ने सभी छात्र छात्राओं से माफ़ी माँगी एवं भविष्य में कभी चोरी नहीं करने का संकल्प लिया.

शिक्षा - कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए. चोरी करना बुरी बात है.

गुल्लक

रचनाकार- मीनाक्षी सुकुमारन, नोएडा

बचपन से ही माता पिता ने कुछ ऐसा किया कि रिया और उसके छोटे भाई को दो गुल्लक दिए. फिर हर महीने बैंक का एक व्यक्ति आता और इकट्ठे हुए पैसे दोनों के खाते में जमा कर देता. दोनों भाई-बहनों का इतना उत्साह होता कि एक - दूसरे से अधिक पैसे जोड़ने में दोनों में होड़ लगी रहती.

जब दोनों बड़े हो गए और वे बैंक के पासबुक में जमा राशि देखकर सोच में डूब गए. इतने पैसे तो इकट्ठे नहीं होते थे गुल्लक में. तभी माँ ने बताया कि ये सिर्फ़ एक तरीका था तुम दोनों को बचत करना सिखाने के लिए. आपके पापा भी साथ में कुछ राशि डाल देते थे, आप दोनों की जमा राशि के साथ ताकि बड़े होने पर आपके काम आए. माँ की बात सुनकर दोनों ही अपने बचपन के गुल्लक को निहारने लगे और मन ही मन अपने माता पिता को धन्यवाद दिया, जिन्होंने गुल्लक के बहाने उन्हें पैसे बचाना और जोड़ना सिखाया. उन्होंने यह प्रण किया कि यही आदत वह अपने बच्चों में भी विकसित करेंगे ताकि वे भी इसकी महत्ता को जान सकें.

सच ही है छोटी- छोटी बातें जीवन में कितने बड़े सबक दे जाती हैं.
जैसे- यह छोटा – सा गुल्लक.

लगन

लेखक -नीलम राकेश, लखनऊ, उत्तर-प्रदेश

एक गाँव में मोहन नाम का एक लड़का रहता था.पढ़ाई के लिये उसे पास के कस्बे के एक स्कूल जाना पड़ता था. एक दिन खेल शिक्षक ने बच्चों से कहा 'जो बच्चे तैराकी सीखना चाहते हैं,वे अपना नाम लिखवा दें.'

मोहन ने भी अन्य बच्चों के साथ अपना नाम लिखवा दिया. अगले दिन से सभी बच्चे तैराकी सीखने लगे. मोहन अपने पैर सही तरीके से नहीं चला पा रहा था. अतः वह बार-बार पानी के अन्दर चला जाता. टीचर उसे निकाल कर लाते.अन्य बच्चे उस पर हँस रहे थे. उसे टीचर की डाँट भी सुननी पड़ी. धीरे-धीरे,लगातार प्रयास से उसे तैरना आ गया. परन्तु स्कूल की तैराकी टीम में उसका चयन नहीं हो सका.

दुखी होकर घर जाते हुए मोहन की नजर अपने गाँव के तालाब पर पडी और उसने निश्चय कर लिया कि हँसने वालों के सामने वह अपनी योग्यता साबित करके दिखाएगा.

प्रतियोगिता वाले दिन मोहन को तैराकी में भाग लेता देखकर उसके संगी साथी मुस्कुराये किन्तु मोहन शांत बना रहा. प्रतियोगिता के आरम्भ होते ही सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये. मोहन अन्य प्रतियोगियों से बहुत आगे चल रहा था. उसकी योग्यता और क्षमता देख कर सब दंग थे. इस प्रतियोगिता में तो मोहन प्रथम आया ही, उसका चयन प्रदेश की तैराकी टीम के लिये भी हो गया.

मोहन के साथियों ने खुशी से उसे कन्धों पर उठा लिया. जो अब तक उस पर हँसते थे, मोहन आज उन्हीं का हीरो बन गया था. तालियों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी. खेल शिक्षक ने आ कर मोहन को गले लगा लिया और बोले, 'मोहन तुम्हारी लगन और मेहनत का फल आज सबके सामने है.'

मोहन आज बहुत खुश था उसकी सच्ची लगन ने उसका सपना सच कर दिया था.

साहसी बच्चे

लेखक -तेजेश साहू

एक समय की बात है. गोलूपुर नामक गाँव में हीरा नाम का एक ईमानदार व्यापारी रहता था. उसके दो बच्चे थे. दोनों पढ़ाई में बहुत होशियार थे. बड़े का नाम राम और छोटे का नाम श्याम था.दोनों भाई कभी भी आपस मे लड़ते-झगड़ते नहीं थे.दोनों एक साथ स्कूल जाते. एक साथ घर आते और एक साथ अपना गृहकार्य भी पूरा करते थे. यह देखकर हीरा बहुत खुश था. हीरा की पत्नी घर पर रहकर घर और बच्चों की देखभाल करती थी.

एक दिन गाँव मे एक नया व्यापारी आया. वह बहुत अमीर था. वह व्यापारी गाँव की धर्मशाला में रुका हुआ था.एक रात को चोरो का एक गिरोह उस व्यापारी को लूटने की योजना बना रहा था. चोरों की बातचीत राम और श्याम ने सुन ली. दोनों ने यह बात अपने पिता को बताई तो उनके पिता जी घबरा गए और दोनों से चुपचाप रहने को कहा परंतु राम और श्याम के मन में वही बात चल रही थी. उन्होंने अपने पिता जी को समझाया कि वे भी तो एक व्यापारी हैं यदि किसी दिन उनको भी ऐसे ही किसी दूसरे गाँव में रुकना पड़ा और उनके पास कोई कीमती सामान हुआ और कोई उनकी मदद न करें तो अच्छा नहीं होगा. यह बात हीरा की समझ में आ गई. उसे अपने दोनों बेटों पर गर्व होने लगा.

उन तीनों ने पुलिस थाने जाकर पुलिस को सारी बात बता दी. पुलिस ने उन तीनों को शाबाशी दी. पुलिस ने बताया कि उन्हें भी इस गिरोह की तलाश है इस गिरोह पर 5 लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया है.

उसी रात पुलिस का दल धर्मशाला में उस गिरोह को पकड़ने गया पुलिस के साथ वे तीनों भी गए. जैसे ही चोरों का गिरोह वहाँ पहुँचा, पुलिस ने उन्हें धर-दबोचा. लेकिन उनमें से एक चोर ने राम को अपने कब्जे में ले लिया. परंतु राम और श्याम भी कुछ कम होशियार नहीं थे. श्याम ने घर से अपने साथ मिर्ची पाउडर रख लिया था. उस चोर ने राम के बदले अपने साथियों को छोड़ने की माँग की परंतु पुलिस ने उन्हें नहीं छोड़ा.श्याम ने मौका पाते ही उस चोर की आँखों में मिर्ची पाउडर डाल दिया. जिससे हड़बड़ाकर चोर ने राम को छोड़ दिया. फिर श्याम ने धर्म शाला में पड़ी एक रस्सी से चोर को बाँध दिया.शोर सुनकर धर्म शाला में रुके हुए अन्य लोग भी उठ गए और चोरों को पीटने लगे.पुलिस ने उन चोरों को हवालात में डाल दिया और 15 अगस्त को राम और श्याम को सम्मानित करने की बात कही और 5 लाख रुपये इनाम के भी दिए. इस तरह राम और श्याम ने साहसिक कार्य करके अपने माता-पिता का नाम रोशन किया. यह घटना समाचार पत्रों में भी छपी और दोनों की प्रशंसा होने लगी.

बेरोजगारी का डर

रचनाकार- नीरज त्यागी

शर्मा जी ने लगभग 35 साल नौकरी की और अपने मालिकों की सारी बातें सर झुका कर मानीं. वह जहाँ भी नौकरी करते उन्हें अपनी नोकरी जाने का डर बना रहता क्योंकि वे 12वीं कक्षा तक ही पढ़े लिखे थे. इसी कारण उन्हें कभी भी अच्छी नौकरी नहीं मिली और वे हमेशा अपने मालिकों की डाँट फटकार सुनते रहे.

उनका 25 वर्षीय बेटा राहुल एक साल से एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा था. उसका वेतन भी अच्छा खासा था.शर्मा जी ने उसका विवाह भी करवा दिया था. शर्मा जी अब नौकरी करते करते थक चुके थे. कई बार उनके दिल में विचार आया कि नौकरी छोड़ दें लेकिन एक दिन जब मालिक ने शर्माजी को किसी बात पर डाँटना शुरू कर दिया तो शर्माजी सब्र न कर सके और नौकरी छोड़कर अपने घर आ गए.

घर आकर उन्होंने अपने बेटे से कहा बेटा अब मैं थक गया हूं अब मुझसे नौकरी नहीं होती. लगभग एक माह बाद राहुल ने शर्माजी से कहाँ कि पापा मुझे अब अपनी नौकरी के लिए बेंगलुरु जाना होगा. मैं आपके खर्च के लिए वहाँ से पैसे भेजता रहूँगा और वहाँ की व्यवस्था होने के बाद आपको भी वहीं बुला लूँगा.शर्मा जी को कोई आपत्ति नहीं हुई और उनके बेटा बहू बँगलौर चले गए.

दो माह तक बेटा उनके पास खर्च के लिए पैसे भेजता रहा. लेकिन उसके बाद उसने पैसे भेजना बंद कर दिया.

और फिर फोन पर आखिर बेटे ने पैसे भेजने से मना कर दिया. कहा कि पापा मैं अपना ही खर्च नहीं चला पाता तो आपको कहाँ से दूँ. शर्मा जी को एक बार फिर से नौकरी करनी पड़ी. ऐसा लगता है कि उनका 35 साल पुराना बेरोजगार होने का डर,कभी खत्म नहीं होगा

पञ्चतन्त्र की कथा- व्यापारी का पतन और उदय

वर्धमान शहर में दंतिल नामक एक बहुत कुशल व्यापारी रहता था. उसकी क्षमता और योग्यता से प्रभावित होकर राजा ने उसे राज्य का प्रशासक नियुक्त कर दिया. व्यापारी दंतिल के प्रशासक के रूप में कार्य से राजा और नागरिक संतुष्ट एवं प्रसन्न थे.

कुछ समय बाद व्यापारी दंतिल ने अपनी पुत्री के विवाह के उपलक्ष्य में एक भव्य भोज का आयोजन किया. भोज में उसने राज परिवार एवं प्रजाजनों सभी को आमंत्रित किया.भोज में शामिल राजपरिवार का एक सेवक, (जो महल में झाड़ू लगाता था) भूलवश एक ऐसे आसन पर बैठ गया जो केवल राज परिवार के सदस्यों के लिए रखा गया था. सेवक को उस आसन पर बैठा देखकर व्यापारी दंतिल अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने सेवक को अपमानित कर वहाँ से निकाल दिया. अपमानित सेवक ने प्रण किया कि वह व्यापारी दंतिल से अपने अपमान का प्रतिशोध अवश्य लेगा.

भोज के अगले दिन वही सेवक राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था.राजा उस समय अर्धनिद्रा की अवस्था में था. अपनी योजना के अनुसार सेवक धीमे स्वर में बड़बड़ाने लगा 'इस व्यापारी दंतिल का इतना साहस कि वह रानी के साथ दुर्व्यवहार करे. ' यह सुन कर राजा चौंक गया और उसने सेवक से पूछा 'क्या तुम सच कह रहे हो? क्या तुमने स्वयं दंतिल को रानी से दुर्व्यवहार करते देखा है?' भयभीतर होकर सेवक ने राजा के चरण पकड़ लिए और कहा, 'मुझे क्षमा करें महाराज, मैं कल रात ठीक से सोया नहीं.पता नहीं आधी नींद में मैं क्या बड़बड़ा रहा था.' यह सुनकर राजा ने सेवक से कुछ नहीं कहा लेकिन उसके मन में शंका उत्पन्न हो गई.

उसी दिन राजा ने दंतिल के महल में निरंकुश घूमने पर प्रतिबंध लगा दिया और उसके अधिकार भी कम कर दिए.

अगले दिन जब व्यापारी दंतिल महल में आया तो राजा के आदेशानुसार प्रहरियों ने द्वार पर ही उसे रोक लिया. प्रहरियों के ऐसे व्यवहार से दंतिल बहुत आश्चर्यचकित हुआ. वहीँ पर खड़े सेवक ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, 'अरे प्रहरियों,क्या तुम इन्हें जानते नहीं ? ये बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं यदि इन्हें क्रोध आ गया तो ये तुम्हें महल से बाहर फिंकवा सकते हैं. जैसे इन्होने मुझे अपने भोज से बाहर फिंकवा दिया था.'

यह सुनकर व्यापारी दंतिल समझ गया कि अपने अपमान के प्रतिशोध के लिए उसी सेवक ने कोई षड्यंत्र रचा है. उस समय दंतिल महल से चला गया. अगले दिन दंतिल ने सेवक को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया. व्यापारी दंतिल ने सेवक की खूब आव-भगत की फिर बड़ी विनम्रता से भोज के दिन किये गए अपमान के लिए क्षमा माँगी. सेवक बहुत प्रसन्न हुआ और व्यापारी दंतिल से बोला, 'आप चिंता ना करें, मैं आपका खोया हुआ सम्मान आपको अवश्य वापस दिलाऊँगा.'

अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुए सेवक फिर बड़बड़ाने लगा, 'हे भगवान, हमारा राजा भी कैसा मूर्ख है कि स्नानगृह में ककड़ियाँ खाता है.' सेवक की बात सुनकर राजा क्रोधित होकर बोला, ' अरे मूर्ख, तू यह क्या कह रहा है ? तू अगर मेरे कक्ष का सेवक ना होता,तो मैं तुझे कठोर दण्ड देता.' सेवक घबराकर राजा के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा माँगने लगा.

अब राजा ने विचार किया कि जब यह सेवक मेरे बारे में ऐसी अनर्गल बातें कह रहा है तो इसने दंतिल के बारे में भी असत्य कहा होगा. मैने अकारण ही व्यापारी दंतिल को दंडित किया. ऐसा विचार कर राजा ने व्यापारी दंतिल को महल में उसकी प्रतिष्ठा वापस दिला दी.

इसलिए कहा गया है कि कोई व्यक्ति बड़ा हो अथवा छोटा, हमें हर किसी के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए.

हमारे पौराणिक पात्र- महर्षि चरक

भारत का इतिहास अत्यंत प्राचीन है.ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य आदि विभिन्न विधाओं में भारत सदा समृद्ध रहा है.हमारे ज्ञानी ऋषियों ने ज्ञान व नियमों की सृष्टि की. प्राचीन भारतीय ग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान की बहुत सी बातें समाहित हैं.

किलोल के माध्यम से हम भारत के कुछ महान ऋषियों और उनके आविष्कारों के विषय में आपको संक्षिप्त जानकारी देंगे. जिससे आप सब भारतवर्ष के गौरवपूर्ण इतिहास से न सिर्फ़ परिचित होंगे बल्कि अपने पूर्वजों पर गौरवान्वित महसूस करेंगे.

इस श्रृंखला की शुरुआत हम आयुर्वेद के जनक महर्षि चरक से कर रहे हैं.

महर्षि चरक आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं. वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे,इस बात का उल्लेख त्रिपिटक के चीनी अनुवाद में मिलता है. महर्षि चरक के द्वारा रचित चरक संहिता आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रन्थ है. चरक संहिता में रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं की भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है. आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज हम चरक संहिता के नाम से जानते है.

चरक संहिता आयुर्वेद में प्रसिद्ध है. इस ग्रंथ के उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं.

दो हजार वर्ष पूर्व भारत में महान चिकित्सक (Doctor) चरक हुए है,जिन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में शरीर विज्ञान, निदान शास्त्र और भ्रूण विज्ञान पर 'चरक संहिता' नामक पुस्तक लिखी.इस पुस्तक को आज भी चिकित्सा जगत में बहुत सम्मान दिया जाता है.

महर्षि चरक कहते थे-' जो चिकित्सक अपने ज्ञान और समझ का दीपक लेकर बीमार के शरीर को नहीं समझता, वह बीमारी कैसे ठीक कर सकता है.इसलिए सबसे पहले उन सब कारणों का अध्ययन करना चाहिए जो रोगी को प्रभावित करते है, फिर उनका उपचार करना चाहिए.ज्यादा महत्वपूर्ण बीमारी से बचाना है न कि उपचार करना.'

चरक ऐसे पहले चिकित्सक थे जिन्होंने पाचन, चयापचय (भोजन–पाचन से सम्बंधित प्रक्रिया) और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दी थी.उनके अनुसार शरीर में पित्त, कफ और वायु के कारण दोष उत्पन्न हो जाते है.यह दोष तब उत्पन्न होते है जब रक्त,मांस और मज्जा खाए गए भोजन पर प्रतिक्रिया करते हैं. चरक ने यह भी स्पष्ट किया कि समान मात्रा में खाया गया भोजन अलग–अलग व्यक्ति के शरीर में भिन्न दोष पैदा करता है अर्थात एक व्यक्ति का शरीर दूसरे व्यक्ति के शरीर से भिन्न होता है.उनका कहना था कि बीमारी तब उत्पन्न होती है जब शरीर के तीनों दोष असंतुलित हो जाते हैं.इनके संतुलन के लिए इन्होंने कई औषधियाँ बनाईं.

चरक संहिता का महत्व:-चरक सहिंता (Charaka Samhita)आयुर्वेद का प्राचीनतम ग्रन्थ है.चरक संहिता संस्कृत में लिखी गई है. इस ग्रंथ को 8 स्थानों और 120 अध्यायों में बाँटा गया है जिसमे 12 हजार श्लोक और 2000 औषधियाँ हैं. चरक संहिता के सूत्र स्थान में आहार-विहार, पथ्य-अपथ्य,शारीरिक और मानसिक रोगों की चिकित्सा का वर्णन है.

*निदान स्थान में 8 प्रमुख रोगों के कारणों की जानकारी है.

विमान स्थान में स्वादिष्ट, रुचिकर पौष्टिक भोजन का उल्ल्लेख है.

शरीर स्थान में मानव शरीर की रचना,गर्भ में बालक के विकास की प्रक्रिया तथा उसकी अवस्थाओं का महत्व बताया गया है.

*इन्द्रिय स्थान में रोगों की चिकित्सा पद्दति का वर्णन है.

चिकित्सा स्थान में कुछ विशेष रोगों के उपचार का उल्लेख है.

*कल्प स्थान में साधारण उपचार की जानकारी दी गई है.

सिद्धि स्थान में सामान्य रोगों की जानकारी दी गई है.

आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाने वाली 'चरक संहिता ' में भारत के अलावा यवन, शक, चीनी आदि जातियों के खानपान और जीवनशैली का भी उल्लेख मिलता है. इस पुस्तक का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है.

अरब के प्रसिद्ध इतिहासकार और विद्वान अल-बरूनी ने कहा था 'हिन्दु ओं की एक पुस्तक चरक के नाम से प्रसिद्ध है, जो कि औषधि की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जा सकती है.'

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