बालगीत

मेरा भारत महान

रचनाकार-तेजेश साहू

इसकी नदियाँ शान बढ़ातीं,
हँसतीं-खेलतीं और बलखातीं.
आओ, हम सब करें नमन,
त्याग दें अपना तन-मन,
यह हमने लिया ठान है,
मेरा भारत महान है.

यहाँ का अजूबा ताजमहल,
यहाँ का पवित्र गंगाजल,
और यहाँ के हरे-भरे,
खेत और खलिहान हैं,
तिरंगा इसकी शान है.
मेरा भारत महान है.

इस देश में नहीं होता,
जात-पात का भेदभाव,
इसीलिए तो वीर जवान,
इसकी रक्षा में देते,
अपना बलिदान है.
मेरा भारत महान है.

यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग,
करते योग रहते हैं निरोग,
यहाँ के वीर जवान सीमा पे,
रहते अपना सीना तान हैं.
इन पर हमें अभिमान है
मेरा भारत महान है.

नन्हा सिपाही

रचनाकार -नीरज त्यागी

बनकर नन्हा सिपाही,
मैं देश के काम आऊँगा.
दादा जी,मेरे प्यारे दादा जी
मैं सीमा पर लड़ने जाऊँगा..

दुश्मन मचा रहा आतंक,
मैं भी उनसे लड़ जाऊँगा.
पापा लड़ते है सीमा पर,
मैं उनका साथ निभाऊँगा..

हैं पास मेरे छोटी बंदूक मेरी,
मैं दुश्मन पर उसे चलाऊँगा.
साथ है मेरे छोटे-छोटे साथी,
मैं सबको वहाँ ले जाऊँगा..

हम सब बेशक है छोटे बच्चे,
लेकिन देश के काम आएँगे.
अपनी बाल सेना बनाकर,
दुश्मन को वहाँ से भगाएँगे..

अपना वतन

रचनाकार -दिनेश कुमार चन्द्राकर

मन में महके मिट्टी की खुशबू,
तन में चहके इस धरती का रंग.
इस मातृभूमि की सेवा के लिए,
हर दिल में रहे नया जोश- उमंग.

रहे सुरक्षित अपना वतन,
मिल-जुलकर हम करें जतन.
आँख उठाए जो देश के दुश्मन,
कर दें हम उन सबको खतम.

जिएँ सदा इस अभिमान से,
बेटे हैं हम हिंदुस्तान के.
बेटे का फर्ज हम निभाएँगे,
इस मिट्टी का कर्ज चुकाएँगे.

सौ बार जनम लू माँ,
तेरा ही लाल कहाऊँ.
हर जनम सैनिक ही बन,
शत्रु को हर बार हराऊँ.

सागर की लहरों-सा लहराए,
ऊँचे आसमान में फहराए.
अपनी भारत माँ का झंडा,
शान से फहराए तिरंगा.

कभी न चाहा हमने,
लड़ाई, दंगा और अशांति.
रहे सलामत देश-दुनिया में,
सत्य, अहिंसा और शांति.

तन- मन क्या यह जान है अर्पित,
वतन पर हर शान समर्पित.

कोशिश कर

रचनाकार-संतोष कुमार तारक

कोशिश कर, हल निकलेगा,
आज नहीं तो, कल निकलेगा.

अर्जुन-सा साध धनुष-बाण,
मरूस्थल से जल निकलेगा.

मेहनत कर, रोप पौध तू,
एक न एक दिन फल निकलेगा.

हिम्मत कर के आगे बढ़ जा,
समस्याओं का हल निकलेगा.

उम्मीदों को जिन्दा रख तू,
पर्वत से गंगाजल निकलेगा.

यदि झूठा प्रपंच किया तो,
सच है 'तारक' मुसल निकलेगा

चींटी

रचनाकार -जतिन वर्मा, वाघोली, पुणे, महाराष्ट्र

देखो- देखो जाती चींटी,
अनुशासन समझाती चींटी.

बिना थके बढ़ती ही जाती,
हिम्मत खूब जुटाती चींटी.

इक कतार में चलती जाती,
सबको राह दिखाती चींटी.

अन्न इकट्ठा करने जाती,
अपना फर्ज निभाती चींटी.

बरखा आने से पहले ही,
अपना रसद जुटाती चींटी.

छोटी, नन्ही प्यारी -प्यारी,
सबके मन को भाती चींटी.

पर्व आजा़द भारत का

रचनाकार-प्रतिभा त्रिपाठी

पर्व ये आजा़द भारत का.
विश्व में मशहूर है..

पूरे भारतवासी दिल से,
झंडे को देते सलामी.
प्रण करते हैं मर मिटने का,
याद करके दिन गुलामी..

इतिहास के पन्नों में ये दिन.
एक गज़ब का नूर है..

देश सजा है दूल्हे सा,
बाजे - गाजे बज रहे.
चहुँ ओर हैं ढेरों खुशियाँ,
बच्चे - बूढ़े नाच रहे..

नया गीत है - नये रंग हैं
और निराले सुर हैं..

मित्रता

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', लहार, भिण्ड, म०प्र०

जीवन में है मित्र का, महत्वपूर्ण स्थान.
वफादार यदि मित्र, है सभी काम आसान.
है सभी काम आसान, कभी यदि संकट आए.
सच्चे मन से मित्र ही, मित्र का साथ निभाए.
कह 'कोमल' कविराय, बात यह रख लो मन में.
मित्र भले हो एक ही, किंतु सच्चा जीवन में.

भगवान अगर बच्चे होते

रचनाकार-शुभम पांडेय 'गगन', अयोध्या, उ.प्र.

रोज़ सबेरे उठना पड़ता,
रोज़ जाना पड़ता स्कूल.
रोज़ तुम भी करते होमवर्क,
सारी मस्ती जाते भूल.

मैडम भी डाँट लगाती तुमको,
कभी -कभी मम्मी की मार.
ढेर सारा करना पड़ता याद,
कविता, पहेली और चित्रहार.

रोज़ पढ़नी पड़ती किताबें,
टीवी देखने से होते दूर.
गर्मी की छुट्टी में मिलता,
हिल स्टेशन या विदेशी टूर.

रसगुल्लों के लिए होती लड़ाई,
आइसक्रीम के लिए करते चोरी.
जब जाते पकड़े मम्मी से तुम,
सुननी पड़ती कड़वी लोरी.

काश! तुम भी सब कर पाते,
भगवान अगर तुम बच्चे होते.
मन को समझ पाते हमारे,
अगर हमारे जितने कच्चे होते.

सैनिक

रचनाकार- पुष्पा कुमारी, मेदिनीनगर, झारखंड

बिहारी, बंगाली,पंजाबी और मराठी जब बनते हैं जवान.
प्रांतों का मिलन होकर बन जाता है हिंदुस्तान.
हैं सभी भारतीय और एक ही है उनकी पहचान.
एकसूत्र में हैं बँधे होते जैसे जिस्म और जान.

त्याग, बलिदान, साहस,धैर्य का परिचय है सैनिक.
मर्दानी आवाज़ की गर्जन से, शत्रु काँपे ऐसा है निगहबान.
दूर से ही रौब उसका झलकता, खाकी वर्दी में देखो सैनिक की शान.
जेबों में ही इनका परिवार है रहता.
हँसी-ठिठोली और त्यौहार,
यादों में लिपटा होता है रिश्तों का संसार.
जल्द आऊँगा तुम्हारे पास, होता हर -बार का यही इकरार.

नापाक इरादों से बालिस्त भर जमीं के लिए, जब दुश्मन उठाए कदम और लगाये घात.
भारत माता का वीर सपूत दुश्मन को रौंद हो जाते जब वीरगति को प्राप्त.

तिरंगे में लिपटा हुआ आता लहू-लुहान, तिरंगा भारत है और भारत में लिपटा है जवान.
पिता का गर्व से ऊँचा हुआ मस्तक, माँ-बहन, पत्नी आँसुओ से देतीं सम्मान.
तोपों की सलामी से गूँजता जमीं और आसमान.
सैनिकों की वीरगाथा में दीप प्रज्वलित सदैव रहे,
सदियों तक अमर रहे,गूँजती रहे उनकी शान.

मानसून

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

मानसून है आया, छाई घटा घनघोर,
बिजली कड़के जोर से, वन में नाचे मोर.
पानी गिरता रोज़-रोज़, हर्षित होते किसान,
उपजाते हैं खेत में, लहराते हुए धान.
चलें हवाएँ जोर से, पक्षी करते शोर,
जाएँ किसान खेत को, होते ही वे भोर.
झूमें-नाचें लोग सब, आते ही बरसात,
फसल उगाने को सब, करें काम दिन-रात.
मानसून की आहट, मन को खुश कर जाय,
हरियाली चहुँओर है, फसलें भी लहलहाय.

भाईचारा

रचनाकार- प्रेमचन्द साव 'प्रेम'

भाईचारे पर हमें, अतुलित होता गर्व,
इसके ही बल पर बने, मानवता के पर्व.

भाईचारे का रहे, जग में अनुपम चित्र,
इससे ही परिजन बने, इससे ही मित्र.

भाईचारे से बने, सुंदर शुभकर देश,
मानवता के लिए है, यह उत्तम संदेश.

भाईचारे के बिना, नहीं किसी की खैर,
भाई से भाई लड़े, घर-घर फैले बैर.

भाईचारे से जगत में, होता सारा खेल,
‘प्रेम’ प्रेम सिर्फ़ प्रेम से, जग में होता मेल.

हमारा गाँव

रचनाकार- कु. अनिता साव, कक्षा छटवीं, शासकीय पूर्व माध्य.शाला बड़ेटेमरी, महासमुंद

गाँव हमारा कितना सुंदर,
एक सड़क है उसके अंदर.

मेरा स्कूल तालाब किनारे,
चारों ओर पेड़ कितने सारे.

सभी लोग रहते मिल-जुल के,
क्रोध,बैर भाव सब भूल के.

नन्हें-मुन्हें बच्चे हम

रचनाकार- नंदिनी राजपूत

नन्हें-मुन्हें बच्चे हम,
रोज स्कूल जाते हैं.
अज्ञानता का अँधेरा मिटाने,
ज्ञान का दीपक जलाते हैं..

जब हम अ से अ: पढ़ते हैं,
स्वर को स्वर से गढ़ते हैं.
क से ज्ञ पढ़कर ही,
पुस्तक का पठन करते हैं..

हमारे नन्हे कंधों पर,
देश का भार हैं.
हमसे ही पूरी दुनिया,
हमसे ही पूरा संसार हैं..

हमसे ही स्कूल की आन हैं,
हमसे ही स्कूल की शान हैं.
हमसे ही शिक्षा हैं,
हमसे ही शिक्षक की पहचान हैं.

चीन की गुस्ताखी- गलवान घाटी

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

अरे चीनी अरे पाकी,
हमें तुम क्यों उकसाते हो.
सिंह सोये हुए है जो,
उन्हें क्यों कर जगाते हो.
स्वान की मौत मरते हो,
हिन्द की सीमा में आकर.
समझ आता नहीं तुमको,
सदा ही हार जाते हो.

जितना ज़ोर तेरी बंदुक में,
उतना अपनी भी लाठी में.
बनाता शेर अपने बेटों को,
ऊर्वर हिन्द पवित्र माटी में.
अगर चाहें तुझे रे चाइना,
दिखा देंगे तुझे आईना.
चटाई धूल वीर जवानों ने,
गलवान घाटी फिर न आना.

बच्चों पर मैं लिखता कविता

रचनाकार- देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

बच्चों पर मैं जब लिखता कविता,
जब बच्चों की पढ़ता कविता.
मन प्रफुल्लित हो जाता मेरा,
जैसे कल- कल बहती सरिता..

बचपन की जब याद आए,
तन-मन खुशबू से भर जाए.
मचल उठे कितना मन अपना,
बचपन के किस्से भूल न पाएँ..

बचपन के होते खेल निराले,
दिन - रात लगे कैसे मतवाले.
कुछ चिंता न हमें थी रहती,
सचमुच में हम भोले-भाले..

मात-पिता ने दिए संस्कार,
गुरु ने दिया ज्ञान का भंडार.
दादा-दादी और चाचा-चाची,
सबने सिखाया सेवा- सत्कार..

बारिश

रचनाकार- तेजेश साहू

बारिश आई, बारिश आई,
खुशहाली को संग है लाई.
बच्चे-बूढ़े मौज मनाते,
हँसते, खेलते और बलखाते.

बारिश ऐसा मौसम सुहाना,
अच्छा लगता पकवान खाना.
तितलियाँ उड़तीं लगतीं न्यारी
फसलें दिखतीं प्यारी-प्यारी.

यह लाती खेत में हरियाली,
किसान की मुस्कराहट निराली.
साँप-बिच्छू से रहना सावधान,
कभी-कभी ये पहुँचाते नुकसान.

बारिश की है छटा निराली,
किसानों की यही दीवाली.
खुशहाली, हरियाली लाती,
सबके मनको यह बहलाती.

योग

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

योग कर अपने को निरोग करें,
अपने जीवन का सदुपयोग करें.

योग से बने सुंदर काया,
इससे बने हैं सुदृढ़ छाया.

योग कर मन स्वच्छ बनाएं,
करें योग तन स्वस्थ बनाएं.

योग करने पर ना होता कोई धन खर्च,
लगाओ आसन,करो इन पर समय खर्च.

योग धर्म नहीं यह तो विज्ञान है,
निरोगी काया इसकी पहचान है.

सदा सुखमय जीवन वह है बिताता,
जीवन में योग को है जो अपनाता.

वरदान समझ जो है योग करता,
आलस भी उससे है दूर भागता.

जो प्रतिदिन करते हैं योग,
ना पड़ते बीमार रहते निरोग.

चुस्ती फुर्ती में रहते आगे,
आलस सदा है उससे भागे.

मन लगाकर करते जो कोई ध्यान,
सुखी बने जीवन पाते सच्चा ज्ञान.

निरोगी काया की खातिर योग करें,
सब मिल लोगों को जागरूक करें.

जानवरों के नाम

रचनाकार- मनोज कश्यप

रैट मीन्स चूहा, कैट मीन्स बिल्ली,
चलते रहो बच्चों, है दूर अभी दिल्ली.
डंकी मीन्स गधा, मंकी मीन्स बंदर,
पढ़- लिख पार करो, ज्ञान का समंदर.

काउ मीन्स गाय, गोट मीन्स बकरी,
पढ़ -लिख के खोलो, परहित की छतरी.
ऑक्स मीन्स बैल,एलिफेंट मीन्स हाथी,
ढूँढ़ा करो बच्चों, हमेशा अच्छे साथी.

डॉग मीन्स कुत्ता, बफैलो मीन्स भैंस,
काम जो आए तुम्हारे, उसे बोलो थैंक्स..

पिता

रचनाकार- नीरज त्यागी ग़ाज़ियाबाद

शाम ढले वो कुछ अलकसाया सा था.
दिन भर की थकन से मुरझाया सा था..

अजीब सी बेचैनी चेहरे पर तैर रही थी उसके.
जिम्मेदारियों से वो कभी भी ना घबराया था..

आज एक तरफ ही उसका ध्यान था.
बच्चे परेशां क्यों थे उसके वो हैरान था..

कभी अपने दर्द पर एक बार भी जो ना रोया था.
बच्चों के अन्जान दर्द पर वो आज बहुत रोया था. .

अंकुरित करता रहा जीवन भर उनके लिए फसल.
भरी धूप में काम करने से वो कभी ना घबराया था..

अचानक उसकी रूह ने उसका साथ छोड़ दिया.
ऐसा क्या सुना जो दर्द से विकल हो बच्चों को छोड़ गया..

पास रखना ना चाहते थे बच्चें बीमार पिता को.
इसलिए उनकी खुशी के लिए उन्हें छोड़ गया था. .

चिड़िया रानी

रचनाकार- विजय लक्ष्मी राव

चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,
आओ बैठो, सुनो कहानी.
आँगन में मेरे तुम आ जाओ,
बिखरे दाने चुन- चुन खाओ.
फुदक-फुदककर नाचो- गाओ,
प्यास लगे तो पानी पियो.
स्वतंत्रता के गीत सुनाओ,
मुझको भी उड़ना सिखलाओ.

गुड़िया

रचनाकार- डॉ. अखिलेश शर्मा

नन्ही गुड़िया,
जादू की पुड़िया.
हँसती रहती,
हरदम बढ़िया..

गोल आँख मटकाती है,
हाथ-पैर पटकाती है.
चेहरे पर जो हाथ लगाओ,
गुस्सा खूब दिखाती है..

जंकफूड

रचनाकार- सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ

पिज्जा, बर्गर, गर्म समोसा,
भूख लगी तो पेट में ठूँसा.
स्वाद बढ़ाए जी ललचाये,
खाये बिन भी रहा न जाये. .

टिंकू जी का मन ललचाया,
मैगी, चाउमीन, मोमो लाया.
ठूँस-ठूँस कर खूब खाया,
टिंकू जी का मन घबराया..

बर्गर, पिज्जा अधपके बासी,
खाके टिंकू को आई उबासी.
पेट पकड़ कर बाहर भागा,
जंक फूड ने हाजमा बिगाड़ा..

बार, बार संडास वो भागे,
नाक पकड़कर उल्टी लागे.
दस्त वमन से खुल गयी पोल,
टिंकू की हालत गोल मटोल..

छूटा पसीना चक्कर खाया,
मन ही मन टिंकू पछताया.
डॉक्टर को पापा ने दिखाया,
टिंकू को अस्पताल पहुँचाया..

सुबह शाम टीका लगवाया,
कड़वी दवा ने मुँह कड़वाया.
सुंई की चुभन से टिंकू रोया,
छुट्टी पाकर घर को आया..

घर वाले भी हुये परेशान,
नाहक इलाज पैसें बरबाद.
अस्पताल के चक्कर काटे,
रोते- रोते टिंकू घर लौटे..

कान पकड़कर टिंकू बोला,
जंक फूड से कर ली तौबा.
सब्जी, दाल रोटी खाऊँगा,
स्वस्थ और सेहतमंद रहूँगा..

अपने साथियों से भी कहूँगा,
जंकफूड अब खाने न दूँगा.
हमें ताजी दाल-रोटी खाना है,
पढना, लिखना, सेहतमंद रहना है..

कृष्ण लीला

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

माखन मुख लिपटा हुआ, मैया पकड़े कान.
बालरूप में कृष्ण,पाते सभी का सम्मान..
बैठे कदंब के पेड़ पर, करे राधिका तंग.
सुनाते मुरली मधुर, बैठ गोपियों के संग..
कृष्ण प्रेम की बाँसुरी, है राधा के नाम.
पावन सच्चा प्रेम है, जैसे चारों धाम..
गीत प्रेम के गा रहे, सारे मिलकर आज.
दौड़ आई राधा, छोड़कर अपने काज..
धड़कन में है राधिका, नस-नस में है प्रीत.
वृंदावन गूँजता, कृष्ण का ही संगीत..
भोली-भाली राधिका, पनिया भरने जाय.
छेड़े मोहन राह में, गोपियाँ भी शरमाय. .
राधा बैठी राह में, लिए कृष्ण की आस.
छलिया मन को छल गया, कैसे करूँ विश्वास..

शिक्षक

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

देकर शिक्षा करते राष्ट्र निर्माण,
पढ़ा-लिखाकर ज्ञानवान बनाते हैं.
भाग्य विधाता बनकर,
जीवन सँवार देते हैं..

अशिक्षा रूपी अंधकार भगा,
जीवन ज्योत जलाते हैं.
देकर सत्कर्म शिक्षा से,
जीवन मूल्य बढ़ाते हैं..

काँटों मध्य फूल सा हमको,
हँसना भी सिखाते हैं.
अच्छे विचारों को भरकर,
जीवन जीने की पाठ पढ़ाते हैं..

निरक्षर से साक्षर करने की,
प्रतिपल राह दिखाते हैं.
उन्नति पथ पर चलाकर,
जीवन गढ़ते जाते हैं..

कर्तव्यनिष्ठ होते शिक्षक,
बच्चे को सर्वोत्तम देते हैं.
वेद- पुराण की बात बताकर,
जीवन धन्य कर जाते हैं..

आम

रचनाकार- अतुल पाठक, हाथरस, उ.प्र.

फलों का राजा होता आम,
चूसो बढ़िया लगता आम.

सबके मन को भाता आम,
पीला बड़ा रसीला आम.

लकड़ी और फल आता काम,
पूजा में भी चढ़ता आम.

छायादार वृक्ष है आम,
नीचे बैठकर मिलता आराम.

इसके रस के कई है नाम,
कितना चोखा मीठा आम.

तितली

रचनाकार- नंदिनी राजपूत

रंग- बिरंगी प्यारी तितली,
सबके मन को भाती है.
छूने की अगर कोशिश करो तो,
दूर गगन में उड़ जाती है..

फूलों का रस चूस- चूसकर,
भोजन अपना बनाती हैं.
परिश्रम का फल मीठा होता है,
यह पाठ हमें सिखलाती हैं..

अपनी अनेक अठखेलियों से,
बच्चों को खूब लुभाती हैं.
झुंड में उड़ती तितलियाँ,
एकता का पाठ पढ़ाती हैं..

बच्चें हो या बड़े,
सबके मन को भाती है.
जब खुले गगन से उड़ते हुए,
हमारे पास आती है..

जीवन आयु कम होने पर भी,
बेफिक्र जीवन जीती है.
क्षणभंगुर यह मोह- माया है,
अमर नही कोई प्रीति है.

जब तक जियो सुकर्म करो,
छल- कपट से दूर रहो,
ये सब ज्ञान बताती है,
प्यारी तितली सबके मन को भाती है.

काश मैं भी तितली होती,
खुले नभ में जी भर जीती.
जीवन कितना प्यारा होता,
सबसे जुदा और न्यारा होता.

मोह -माया ही पास न होती,
इच्छाओं की आस न होती.
चाहतें कोई अधूरी न होती,
काश मैं भी तितली होती..

माँ

रचनाकार- अविनाश तिवारी

माँ मंदिर की आरती,
मस्जिद की अजान है.
माँ वेदों की मूल ऋचाएँ,
बाइबिल और कुरान है.

माँ है मरियम मेरी जैसी,
माँ में दिखे खुदाई है.
माँ में नूर ईश्वर का,
रब ही माँ में समाई है.

माँ आंगन की तुलसी जैसी,
सुन्दर ईक पुरवाई है.
माँ त्याग की मूरत जैसी,
माँ ही पन्ना धाई है..

माँ ही आदि शक्ति भवानी,
सृष्टि का श्रोत है,
माँ ग्रन्थों की मूल आत्मा,
गीता का श्लोक है.

माँ नदी की निर्मल जलधार
पर्वत की ऊंचाई है,
माँ में बसे हैं काशी, गंगा,
मन की ये गहराई है.

माँ ही मेरा धर्म है समझो,
माँ ही चारों धाम है.
माँ चन्दा की शीतल चाँदनी
ईश्वर का वरदान है.

मेरा स्कूल

रचनाकार- लुकेश ध्रुव

बहुत याद आता है मुझे मेरा स्कूल और उसकी की यादें
ओ प्रार्थना स्थल पर राष्ट्रगान
माँ भारती की महिमा बखान.
माँ सरस्वती की स्तुति वंदना
ज्ञान प्राप्ति के लिए पूजा अर्चना.
बहुत याद आता है मुझे मेरा स्कूल और स्कूल की यादें
वो समूह के बीच सुविचार कहना
भक्ति,नीति पर अनमोल वचन कहना.
अनुशासन और ज्ञान की बातें सीखना
गुरुओं की आज्ञा का पालन करना.
बहुत याद आता है मुझे मेरा स्कूल और स्कूल की यादें.

भारत माता

रचनाकार- अजय कुमार यादव

आज भारत माता वीरों तुमको पुकार रही है,
दुश्मन की गोली तुमको ललकार रही है..
इस मिट्टी की खुशबू अब तुमको पुकार रही है,
हे, सिंहों सुनो भारत माता तुमको चीत्कार रही है..
उठाओ अपने हथियार तुम दुश्मन का संहार करो,
रणभेदी की गूँज दुश्मन देश की सीमा के पार करों.

वसुंधरा आज फिर से तुमको पुकार रही है,
तुम फिर अपने पौरुष का जौहर दिखलाओं,
किस्साअपनी वीरता का तुम सच कर दिखलाओं..
वीर हो तुम इस भूमि के अपना पौरुष दिखला दो,
दुश्मन को आज उसी के ज़मीन में दफना दो.
आज वीरों भारत माता तुमको पुकार रही है,
दुश्मन की गोली तुमको ललकार रही है..

अपने देश की शान हरगिज़ ना जाने पाए,
चाहे भले ही अपनी जान चली जाए.
हमने हमेशा अपनी छाती पर गोलियाँ खाई है,
लड़ते -लड़ते ही हमने वीरगति पाई है.
वीरों ने यह धरती अपने बलिदानों से सींची है,
दुश्मन पर सबने अपनी भृकुटी खींची है..

हमने साथ उसके दोस्ती का हाथ बढ़ाया था,
उसने हमारी पीठ पर धोखे से खंजर उतार दिया था.
छोड़ दी हमने गुलामी अब इन मक्कारों की,
हमने भी तैयारी कर ली है अब हथियारों की.
है दिली तमन्ना अब हम तुमको सबक सिखाएंगे.
भारत को अब हम आत्मनिर्भर बनाएंगे..

हम बच्चे

रचनाकार- विजय लक्ष्मी राव

हम बच्चे स्वतंत्र देश के,
हर बाधाओं से टकराएँगे.
भारत माँ के आँगन में,
प्यार के फूल खिलाएँगे.
हम बात बड़ों का मानेंगे,
पढ़-लिखकर जग को जानेंगे.
मानव सेवा का प्रण लेकर,
विश्वास के दीप जलाएँगे.
भूखों को मिल जाए रोटी,
ऐसा कुछ कर दिखाएँगे.
मानव-मानव में भेद मिटाकर,
निज देश का नाम बढ़ाएँगे.

घड़ी

रचनाकार- टेकराम ध्रुव 'दिनेश'

बड़े काम की चीज घड़ी,
समय हमें बताती है.
रोज सुबह घंटी बजा कर,
हम सबको जगाती है..

सुबह नहाने- खाने का,
ध्यान हमें दिलाती है.
सुबह- सुबह स्कूल जाने का,
समय हमें बताती है..

बिगड़ जाती है ये जिस दिन,
समय जान नहीं पाते हैं.
उस दिन स्कूल समय पर,
हम पहुँच नहीं पाते हैं..

मास्टरजी की खट्टी- मीठी,
डांट भी खानी पड़ती है.
समय की अहमहियत समझो,
कितनों की किस्मत यह गढ़ती है..

तिरंगे की शान

रचनाकार- प्रतिभा त्रिपाठी

तिरंगा लहरा रे. ....
भारत माँ की शान तिरंगा, हम सब की है जान तिरंगा.
मान तिरंगा,शान तिरंगा, घर-घर में फहराना है.
अपनी है पहचान तिरंगा, सबको ये समझाना है.
तिरंगा लहरा रे. ....
ना झुका है, ना झुकेगा, ये तिरंगा मस्ती में उड़ेगा.
भारत माँ का लाल तिरंगा, अंबर में फहराएगा.
सीने में भरकर देशभक्ति, राष्ट्रगीत हम गाएँगे.
तिरंगा लहरा रे. ....
तिरंगे के तीन रंग को, अपने जीवन में भरना है.
केसरिया रंग साहस का, श्वेत रंग सच्चाई का,
हरा रंग समृद्धि लाता, घर-घर में हरियाली लाता.
तिरंगे की शान में अपनी, जान हमें गँवानी है.
तिरंगा लहरा रे. ....
तिरंगा लहरा रे. ....

गुरु

रचनाकार- अविनाश तिवारी

गुरु से गौरव गुरु से गुरुत्व,
गुरु ही ज्ञान गुरु से मान है.
गुरु घटाघोप अंधकार में,
प्रज्जवलित दिव्य प्रकाश हैं.
गुरु वर्षा तपित भूमि पर,
मेघ और उल्लास हैं.
गुरु सचेतक मार्गदर्शक,
ह्रदय में बसा विश्वाश है.
गुरु वेद का हर शब्द गीता,
की प्रवाहित गूंज है.
गुरु अपरिमेय व्याख्यानों सा,
दिव्य किरण पुंज है.
सामर्थ्य गुरु में सागर सा,
गरल को भी अमिय करता है.
तम को स्वयं स्वीकार वह,
भविष्य हमारा गढ़ता है.
गुरु माता- पिता है जीवन है,
गुरु ही अक्ष विधाता है.
गुरु स्वरूप ईश्वर का,
गुरु युग का निर्माता है.

स्कूल

रचनाकार- तेजेश साहू

स्कूल तो है ज्ञान का मंदिर,
शिक्षा का वरदान है.
सभी बच्चे हैं स्कूल जाते,
मिलता अच्छा ज्ञान हैं..

सोनू, मोनू, चिन्नी, मिन्नी,
रामू,श्यामू और है बिन्नी.
सभी बच्चे हैं स्कूल जाते,
शिक्षा का वरदान पाते..

सबसे पहले प्रार्थना करते,
कक्षा की ओर प्रस्थान करते.
फिर शिक्षक कक्षा में जाते,
इंसान रूपी भगवान ये होते..

पहले वे बच्चों को पढ़ाते,
साथ में शिष्टाचार सिखाते.
गृहकार्य भी बच्चों को देते,
उनका हर पल मनोबल बढ़ाते..

कम्प्यूटर

रचनाकार- तेजेश साहू

एक दिन मोनू ने पूछा,
कम्प्यूटर से एक सवाल
ये सब कठिन-कठिन काम करके,
कैसे मचा देते हो बवाल?

फिर कम्प्यूटर ने मोनू से बोला,
है मुझे ऐसा वरदान,
सभी काम मैं झट से कर देता,
इसलिए है कंप्यूटर मेरा नाम.

मुझमें ऐसे सॉफ्टवेयर हैं,
जो मुझको देते काम करने की एनर्जी,
कुछ भी तुम कर सकते हो मुझमें,
जो चाहे हो तुम्हारी मर्ज़ी.

कुछ साथी भी हैं मेरे,
मेरी सहायता करना है उनका काम.
जो करते हर समस्या का समाधान,
कीबोर्ड, माउस,सीपीयू हैं जिनके नाम.

मुझमें चलती इंटरनेट भी
बहुत सारी GB का स्टोरेज भी है.
मुझमें ऐसी जान हैं,
इसलिए कम्प्यूटर मेरा नाम है.

सीपीयू को कहते मेरा दिमाग है,
क्योंकि इसमें पूरा मेरा संसार है.
मुझे ऐसा वरदान है,
इसलिए कम्प्यूटर मेरा नाम है.

मेरा भारत देश महान है

रचनाकार- खेमराज साहू 'राजन'

मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
वो मेरा प्यारा हिंदुस्तान है.
मेरा देश जहाँ राम की महिमा,
कृष्ण की बंसी की तान है.
गौतम, गाँधी की सत्य अहिंसा,
यही हमारी भूमी की शान है.
मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
मेरा भारत देश महान है.

गाथा बलिदानों और अमर शहीदों की,
फिर भी मेरे धरती की गोद निहाल है.
मेरे देश की धूल,मिट्टी भी,
वीर सपूतों के फूल और गुलाल हैं.
मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर में बँटा,
अलग-अलग धर्मों के भगवान हैं.
मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
मेरा भारत देश महान है.

हिन्दू प्यारा है,मुस्लिम प्यारा है,
संत श्री गुरु ग्रन्थ साहिब न्यारा है.
बौद्ध, जैन और ईसाई देश की जान है,
यही अखंड भारत के अखंड एकता की पहचान है.
मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
मेरा भारत देश महान है.

ईद प्यारा है, क्रिसमस प्यारा है,
बैसाखी का भंगड़ा न्यारा है.
प्यारा दिवाली का दीपदान है.
मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
मेरा भारत देश महान है.

फिर भी अनेकता में एकता,
सभ्यता और संस्कृति की पहचान है.
क्योंकि मेरा प्यारा हिंदुस्तान है.
हरी-भरी साड़ी में लिपटा,
छतरी जैसा ऊपर नील वितान है.
सभी में प्यार, धीरज, सहानुभूति,
ऐसा स्वर्ग जहान हिंदुस्तान है.
मेरा प्यारा-प्यारा जहान है,
मेरा भारत देश महान है.

बीते पल ना भूले मन

रचनाकार- नीरज त्यागी, ग़ाज़ियाबाद

कहाँ कोई किसी को हमेशा याद रखता है.
साथ है जब तक,बस तभी तक हाथ मिलता है..

ये कुछ लम्हें, जिनका साथ आज तुझको मिलता है.
तपती धूप में कुछ पल, बारिश में भीगने सा लगता है..

चलते - चलते कभी भी किसी के पैर नहीं थकते है.
छूट जाता है जब किसी का साथ,ये तभी दुखते है..

ना जाने बीते हुए पलों में कितने रिश्ते छूटते गए.
परेशान वही है,जिसके मन के पटल पर वो रुकते गए..

हर अगले पल कोई पुराना दोस्त छूटता चला गया.
तेरा ही मन भावुक था, जो टूटता चला गया..

प्रकृति का प्यार

रचनाकार- अजय कुमार यादव

देखो बारिश का मौसम आया है,
हर तरफ कोहरा ही छाया है.
कुदरत ने करिश्मा दिखाया है,
इसकी छटा बहुत ही निराली है.
मेरे तन और मन को भिगाया है,
देखो सावन का महीना आया है..

खेतों में नई फसल उग आयी है,
किसान की मेहनत रंग लाई है.
पक्षी की कलरव सुनाई दे रही है,
फूलों पर कलियाँ खिल आई है.
देखो बारिश का मौसम आया है,
हर तरफ कोहरा ही छाया है..

देती है सभी को अनमोल उपहार,
ममतामयी रूप है इसमें साकार.
जीवन को आनंदमयी बनाती है,
हमारा जीवन सरल बनाती है.
देखो बारिश का मौसम आया है,
हर तरफ कोहरा ही छाया है..

राजा बेटा कहलाऊँगा

रचनाकार- प्रतिभा सिंह, केंद्रीय विद्यालय, कोलकाता

कॉपी, कलम,किताबें लेकर,
पापा मैं पढ़ने जाऊँगा.
बोलूँगा ना झूठ किसी से,
बनकर सच्चा दिखलाऊँगा.

नए-नए मित्रों संग मिलकर,
बड़े प्रेम से बतियाऊँगा.
टीचर जी की सब बातों को,
मैं जीवन में अपनाऊँगा.

छोटे भाई- बहनों को भी,
अच्छी बातें सिखलाऊँगा.
पढ़-लिख नाम करूँगा रोशन,
राजा बेटा कहलाऊँगा.

बरखा आई

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

छम-छम करती बरखा आई,
देखो आसमान में बदली छाई.

प्यासी धरती करे पुकार,
बरसो बादल करो श्रृंगार.

गरजता मेघ आसमान पर छाया,
मानो प्यास बुझाने धरती की आया.

बादल करता बरसात भारी,
धरती दिखती सुंदर और प्यारी.

देखो धरा लगे बड़ी न्यारी,
मानो ओढ़नी हो हरियारी.

चहुँओर धरा में छाई हरियाली,
जमकर हुई बारिश मतवाली.

पके आम टपके चहुँओर,
कोयल उड़ चली कहीं ओर.

रवि की किरणों को ठंडक पहुँचाई,
तपती धरती की प्यास बुझाई.

तब मिली आजादी

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

आबाद होने को जब हुई बर्बादी, देश को तब मिली आजादी..
दो सौ वर्षों तक, देश रहा गुलाम.
छिनी शांति लोगों की, जीना हुआ हराम.
सन् सत्तावन ने जब आग लगा दी, देश को तब मिली आजादी..

माथे से पसीना टपका, खून गिरा सीने से.
मौत तो बेहतर है, घुट-घुट के जीने से..
यह बात जब सबने फैला दी, देश को.तब मिली आजादी..

कश्मीर से कन्याकुमारी, बंगाल से राजस्थान.
जंग छिड़ा देश भर, संकट में पड़ा सम्मान..
बहनों ने जब अपनी मांग मिटा दी, देश को तब मिली आजादी..

सोने की चिड़ियॉ को बचाने, गांधी-तिलक मिट गये.
विजयपथ के माला खातिर, कई जीवन धागे टूट गये..
इंकलाब का स्वर हुआ उन्मादी, देश को तब मिली आजादी..

अभिनंदन करोना योद्धा

रचनाकार- अविनाश तिवारी

निकल पड़ा योद्धा सामने अदृश्य शैतान है.
करोना से लड़ रहा वो इंसान नही भगवान है.

जिसने कर जीवन समर्पित इंसानियत को बचाया है.
धन्य -धन्य धन्वन्तरि आपने विश्व को बचाया है.

कर्तव्य चिकित्सक सेवापथ का विश्राम को नही स्वीकारा है.
संकट की इस कठिन घड़ी में हिम्मत कभी न हारा हैं.

अभिनन्दन सफाई कर्मियों का जो स्वच्छ भारत कर रहे हैं.
लड़ रहे जो अभावों में भी स्वस्थ जन को कर रहे हैं.

तेरा समर्पण दधीचि सा है कर्तव्य तेरा रूहानी है.
प्राण अर्पण देश हित में ये देवदूत आसमानी हैं.

हो सुरक्षा में खड़े निरन्तर आपदा में हाथ बढ़ाया है.
आभार में सारे हिंदुस्तानी ने सजदे में सर को झुकाया है.

अभिनन्दन है योद्धाओं तुमको विविध तुम्हारे स्वरूप हैं.
पोलिस, चिकित्सक या हो सफाई कर्मी सभी मित्र रूप हैं.

अम्बर से आग बरसती

रचनाकार- प्रमोद दीक्षित 'मलय'

तप्त तवे- सी धरती तपती.
अम्बर से है आग बरसती..
गली-गली चल रही शहर की.
कली-कली सूखी उपवन की..
साँय-साँय लू लपट लगाए.
तरु-छाया भी सिमट सुखाये..
पशु-पक्षी सब फिरें तड़पते.
इधर-उधर छाया को तकते..
सूखे पोखर-ताल-तलैया..
दिखती नहीं नदी में नैया..
वट-पीपल की छाँव सुहाती.
नीम-छाँव हर मन को भाती..

अच्छे इंसान बनो

रचनाकार- कन्याकुमारी पटेल

मेहनत से कुछ काम करो,
फल की आशा तुम ना करो.
हरदम तुम तैयार रहो,
हर दिन नई शुरुआत करो.
असफलता से कभी ना डरो,
नई ऊर्जा से शुरुआत करो.
अपने बड़ों का सम्मान करो,
छोटों को हमेशा प्यार करो.
परनिंदा को इनकार करो,
हर क्षण उपकार करो.
खुदको भाए वह व्यवहार करो,
हर रोज नए संस्कार भरो.
अभिमानी नहीं, स्वाभिमानी बनो,
स्वार्थी नहीं, स्वावलंबी बनो.
हर रोज प्रभु का नमस्कार करो,
कभी ना किसी का तिरस्कार करो.
सत्य कर्म का बीज बोकर,
मन से अच्छे इंसान बनो.
भले ना तुम धनवान बनो,
भले ना तुम पहलवान बनो.
लेकिन अच्छे इंसान बनो,
और सच्चे इंसान बनो.

स्वदेशी अपनाओ

रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'

अपनी धरती अपनी माटी, इसको स्वर्ग बनाओ.
छोड़ विदेशी सामानों को अब, स्वदेशी अपनाओ..

चाइना सामान लेना छोड़ो, देता है वह धोखा.
चले नहीं वह दो दिन भी, हो जाता है खोखा..

ऐसे धोखेबाजों को तो, सबक सभी सीखाओ.
छोड़ विदेशी सामानों को अब, स्वदेशी अपनाओ..

नहीं किसी से डरते, हम हैं भारतवासी.
आँख दिखाये जो हमको, होगा सत्यानाशी..

नहीं चलेगा राग विदेशी, वंदे मातरम गाओ.
छोड़ विदेशी सामानों को अब, स्वदेशी अपनाओ..

एप्प चाइना का सब छोड़ो, भारत का अपनाओ.
नये नये तकनीक यहाँ भी, पैसा यहीं बचाओ..

करो घमंडी का सिर नीचा, उसको अभी झुकाओ.
छोड़ विदेशी सामानों को अब, स्वदेशी अपनाओ..

महामारी की पीड़ा

रचनाकार- कल्पना सिंह

अपने सिर,कांधे,पीठ पर
उठाए गृहस्थी की गट्ठर,
न जाने कितने सारे लोग,
चलते चले जा रहे हैं,
तपते पथरीले पथ पर..

लिए अपने कांधे पर,
छोटे-छोटे प्यारे बच्चे,
न जाने कितने सारे लोग,
कदम-कदम बढ़ रहें,
झुलसाती राहों पर.

लिए लाल अपने गर्भ में,
थकी, भूखी, प्यासी माँयें
चलते-चलते अनवरत,
अनमनी जच्चा जन रहीं,
सुनसान कहीं सड़क पर.

किसी के बुढ़ापे की लाठी,
किसी की माँग का सिंदूर,
चाचा, ताऊ,पिता और बेटा,
मजबूर बेखबर बेबस लेटा,
लौहपथगामिनी के राह पर..

माँ के हाथ की रोटी साग

रचनाकार- देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

बचपन में माँ की बनाई रोटी साग,
घी संग रोटी खानी आती है याद.
महँगे होटल के लंच और डिनर में,
खाने में अब वो न मिलता स्वाद..

चौके में अपने ही पास बिठाकर,
माँ हाथों से प्रायः मुझे खिलाती.
गर्म दूध का ख़ूब बड़ा सा गिलास,
माँ झटपट ला कर मुझे पिलाती..

रूखी सूखी कुछ भी माँ देती,
खाकर संतुष्टि मुझे मिल जाती.
पनीर मटर चाइनीज व्यंजन से,
खाने में न वह अब तृप्ति होती..

पढ़ कर ज्यों मैं स्कूल से आता,
माँ पूछे, खाने के लिए क्या लाऊँ.
मैं दोस्तों संग खेल के चक्कर में,
बिन खाए अक्सर भग जाऊँ..

माँ के हाथों से बनी वो चटनी,
आम का हो मुरब्बा व अचार.
कढ़ी चावल व मटर की तहरी,
खाने में रहता माँ का प्यार..

वो बचपन की यादें हैं आती,
खाने में कितना मैं लापरवाह.
भूख लगे माँ बनाती झट से,
माँ करे मेरी कितनी परवाह..

पिकनिक बच्चों को प्यारी

रचनाकार- आसिया फारूकी

पापा मानो बात हमारी,
पिकनिक की कर लो तैयारी.
बोर हो गए पढ़ते-पढ़ते,
ढोते बस्ता भारी-भारी..

ऑफिस का मत करो बहाना,
कल संडे छुट्टी सरकारी.
मम्मी तुम भी अभी बना लो,
खाने-पीने की चीज़ें सारी.

लेटेंगे हम नरम घास पर,
छुपम-छुपाई भी खेलेंगे.
तितली-फूलों को मीत बना,
खुशियाँ सारी मन भर लेंगे..

पार्क में झूला हम झूलेंगे,
नहीं करेंगे मारामारी.
शाम ढले वापस आएँगे,
ले पिकनिक की यादें सारी..

पिता 'गृह कि छत'

रचनाकार- निमिशा कुर्रे

गृह कि नींव हैं माँ, तो पिता गृह कि छत.
सुख़ चाहे संतान कि, इसी कामना में रत..

साहस और बल है,वात्सल्य भी है अपार.
पिता ईश्वरतुल्य हैं, कहे सकल संसार..

धूप भी शीतल लगे, जब हो पिता कि छाँव.
आह न करे कभी, हंसकर चले खार में पाँव..

परिश्रम और शौर्य का, कैसा अदभुत मेल.
पिता बिन सब नीरस है,जीवन लगता जेल..

शीश पितृ चरण में हो, सेवा है हमारा फर्ज़.
अमर है ये ऋण सदा, जिसका न उतरे कर्ज..

बैंगन..बच्चों की दुश्मन

रचनाकार- अनुरमा शुक्ला

पापा जब भी बाजार जाते,
हट्टे-कट्टे बैंगन जरुर हैं लाते.

बैंगनी कपड़ों में यह इठलाता,
हम बच्चों को खूब चिढ़ाता.

हर सब्जी के संग बन जाए,
बेस्वाद बैंगन हमें ना भाए.

मम्मी जब भी बैंगन बनाती,
देख हमारी भूख मिट जाती.

थाली में नाचता बेगुण बैंगन,
बच्चों का सबसे बड़ा ये दुश्मन

पर्यावरण

रचनाकार- वीरेंद्र कुमार साहू

परियों की कथा सी सुंदर,
जीवन की रसधार लिए
मानव जीव के खातिर अमृत
प्रकृति अपना उपहार दिए.

स्वच्छ निर्मल गुणकारी,
जीवों में प्राण दिए.
इसी से मिले बल-बुद्धि,
प्रयत्न हेतु साहस दिए.

पर है मानो तूने उसकी,
सिद्धता पर प्रहार किया.
खाली अपने सुख के खातिर,
नित्य प्रकृति का संहार किया.

किया विध्वंस तूने उसी का,
जिसने तुझको पाला-पोसा.
रूप बिगाड़ा तूने उसका,
कुरूप उसे दिन-रात किया.

अब भी समय है संभल जा,
प्रकृति का कर संरक्षण.
वरना होगा जग का विनाश,
इस सत्यता का तू कर ले वरण.

बाल पत्रिका ‘किलोल'

रचनाकार- डॉ.त्रिलोकी सिंह, प्रयागराज

बाल पत्रिका वही श्रेष्ठ है,
जो बच्चों के हित हो हितकर.
जो निज रचनाओं से उनको,
प्रगति-राह पर करे अग्रसर.

जो बच्चों को सद्शिक्षा दे,
जो बच्चों का ज्ञान बढ़ाए.
जो बच्चों में गुरुजन के प्रति,
प्रेम-भाव का भाव जगाए.

जो बच्चों को संस्कार दे,
उनका पथ प्रशस्त जो कर दे.
जो उनका अज्ञान मिटाकर,
ज्ञान-ज्योति मानस में भर दे.

बाल पत्रिका इस ‘किलोल' को,
बड़े ध्यान से पढ़ना बच्चो.
सभी क्षेत्र में ज्ञान बढ़ाकर,
हरदम आगे बढ़ना बच्चो.

परोपकार

रचनाकार- पुष्पा कुमारी, मेदिनीनगर, झारखंड

'बहुजनहिताय' 'बहुजन सुखाय',
संस्कृति हमारी ये पवित्र उदेश्य अपनायें.
कर्म फलीभूत मानव का तभी होय,
हृदय में रख सहानुभूति, परोपकार कर जायें.

बहे बयार प्राण-वायु करे संचार,
धरा -आकाश मिल चलाये संसार.
मन करूणामय हो,असहाय पे करें उपकार,
धनहीन भले हों पर हो मृदुल व्यवहार.

मानवता भूला मानव ने तब आई संकट,
महामारी ने विपदा ढायी और
परिस्थिति आई बड़ी विकट.

फिर से...जागी परोपकार की भावना,
भेद-भाव भूलकर सब आये हृदय निकट..

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