चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर संतोष कौशिक जी ने कहानी लिखकर भेजी है जो हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं –

कर्म का फल

लेखक – संतोष कौशिक

तालाब के किनारे में टोपीवाला एक मेंढक रहता था।जो तालाब में स्नान करने वालों का राह देखते रहता था. जो भी तालाब में स्नान करने के लिए आता, वह मेंढक स्नान करने वालों का कपड़ा साफ करता, किसी को नहलाता, जो भी तालाब से संबंधित कार्य रहता, वह सब कार्य करता था. सब मेंढक के कार्य से खुश होकर उसे धन्यवाद देते थे.

एक दिन सुबह से मेंढक स्नान करने वालों की राह देख रहा था. उसी समय एक असहाय महिला, फटे हुई कपड़े पहने हुए, तालाब की ओर आ रही थी. उसे देखकर मेंढक दौड़कर उस महिला को सहारा देते हुए तालाब के पास लाकर, उसके गंदे कपड़े साफ किये. महिला को ध्यान पूर्वक अपनी मां की तरह स्नान करवाकर तैयार किया. महिला उस मेंढक को देखकर मन ही मन सोचने लगी कि इतना सेवा तो मेरे पुत्र भी होते तो नहीं करते. जितनी सेवा यह मेंढक कर रहा है. उस महिला ने खुश होकर आशीर्वाद देते हुए कहा कि- जाओ बेटा सदा सुखी रहो, तुम्हारे व्दारा पूर्व में किए हुए पाप नष्ट हो जाएं. तुम्हारी जिंदगी में सदा खुशहाली बनी रहे. कहते हुए महिला मेढ़क के सिर पर हाथ रखती है. जैसे ही सिर पर हाथ रखती है वैसे ही वहां तेज सूर्य की किरणें चमकने लगती हैं और वह मेंढक एक राजकुमार के रूप में दिखाई देता है. उसे देख कर महिला कहती है बेटा तुम कौन हो अभी तो तुम मेढ़क थे यह सब कैसे हुआ.

तब वह राजकुमार अपनी पिछली जिंदगी के बारे में महिला को बताता है, कि - मैं पूर्व में इस राज्य का राजकुमार था. एक दिन मैं शिकार करने जंगल गया था. जंगल में एक भूखी प्यासी, फटे हुई कपड़े वाली बुढ़िया से मुलाकात हुई. उसने मुझसे कहा - बेटा मैं बहुत दिनों से भूखी प्यासी हूं. मुझे पानी पिला दो. पानी के लिए मुझसे बार-बार याचना की. लेकिन मैं ठहरा राजकुमार. मेरे अंदर घमंड की भावना थी. मैने उससे कहा कि मुझसे बात करने की तुम्हारी औकात ही क्या है. मैं तुम्हारा नौकर हूं क्या? तुम्हारे शरीर से बदबू भी आ रही है. ऊपर से मेंढक की तरह टर्र-टर्र चिल्ला रही हो. उस बुढ़िया ने क्रोधित होकर मुझे श्राप दिया कि तू मुझे मेंढक बोल रहा है. तू अभी तुरंत मेंढक बन जा और कीचड़ में रहकर टर्र-टर्र चिल्लाना. तब पता चलेगा कि गंदगी क्या होती है. उसी समय से मैं राजकुमार से मेंढक बन गया. फिर उस बुढ़िया से, पाप मुक्त होने के लिए मैंने बहुत क्षमा मांगी लेकिन बुढ़िया ने क्षमा नहीं किया. कुछ देर बाद बुढ़िया शांत होकर बोली - बेटा मेरे व्दारा दिया गया श्राप तो वापस तो नहीं होगा, लेकिन तुम दीन दुखियों की सेवा करोगे तो अगर कोई तुम्हारी सेवा से खुश होकर, पाप मुक्त होने का आशीर्वाद देगा तो उसी दिन से तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे और पुन: राजकुमार बन जाओगे. आज आपने मुझे आशीर्वाद देकर पाप से मुक्त कर दिया मैं आपका आभारी हूं. अब मैं दीन दुखियों की हमेशा सेवा करूंगा. किसी की आत्मा को कष्‍ट नहीं दूंगा.

उस महिला का कोई परिवार नहीं था. राजकुमार ने उस असहाय महिला को अपने घर ले जाकर दादी मां की तरह सेवा की. राजकुमार व असहाय महिला दोनों खुशी-खुशी रहने लगे.

शिक्षा - हमें दीन दुखियों की सेवा करनी चाहिए. किसी भी पद पर हो हमें तो भी घमंड नहीं करना चाहिए.

अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें वाट्सएप व्दारा 7000727568 पर अथवा ई-मेल से dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्‍छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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