सभी के लिए प्रेरणा अरुणा देशमुख

लेख‍िका एवं च‍ित्र – नंदा देशमुख

शिक्षा के लिए समर्पित एक नई प्रेरणा बनकर सामने आई हैं दिव्यांग अरुणा देशमुख जो नक्सल प्रभावित ग्राम डोकला जिला राजनांदगांव में शिक्षिका हैं. वे न केवल बच्चों को शिक्षा दे रही हैं बल्कि अतिरिक्त समय में अभिभावकों के तर्ज पर भी पढ़ा रही हैं.

वे 08 - 07 - 1999 से स्‍कूल में पदस्थ हैं. अब तक उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली है. शिक्षा की अलख जगाने में अरुणा का एक अलग ही प्रकार का जुनून है. स्‍कूल की प्रधान पाठिका लता पटवा कहती हैं कि अरुणा देशमुख ने कभी भी अपने दिव्यांग होने का उनको एहसास नहीं दिलाया. वह अपना सभी काम मन लगाकर करती हैं. अरुणा देशमुख ने स्वयं के खर्चे से 10 बच्चों की पूरी शिक्षा की व्‍यवस्‍था भी की है. वे पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को साफ सफाई एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी प्रदान कर रही हैं.

जीता ग्रामीणों का विश्वास - ग्राम डोकला के निवासी शिक्षिका की समर्पण भावना को देखते हुए मजदूरी पर जाने से पहले अपने छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल में शिक्षिका अरुणा देशमुख के पास छोड़कर जाते हैं. वह परिवार के बच्चों की तरह ही उनकी देखभाल करती हैं. स्‍कूल का भवन जर्जर होने के कारण 2 वर्ष तक उन्‍होने अपने घर पर ही बच्चों की पढ़ाई लिखाई करवायी. शासन व्दारा नव भवन निर्मित होने पर वहां जाकर स्कूल लगाया.

दिव्यांग शिक्षिका अरुणा देशमुख कहती हैं कि यह सिर्फ उन बच्चों का ही प्यार है जो उन्हें कभी दिव्यांग होने का एहसास नहीं होने देता.

कलेक्टर बनना चाहता है भुक़्क़ी दान करने वाला कमल यादव

प्रस्‍तुतकर्ता एवं चित्र - रामचरित सिंह सोलंकी

कक्षा चार में पढ़ने वाले छात्र कमल यादव ने ऐसा किया कि शिविर में उपस्थित अतिथि गण, शिक्षक और पालक सभी अश्रुपूरित और द्रवित हो गए.

दरअसल वनांचल में स्थित शासकीय प्राथमिक शाला खैरड़ोंगरी, संकुल - दुल्लापुर, पंडरिया, जिला - कबीरधाम में तीन दिवसीय योग शिविर का आयोजन किया गया था, जिसके समापन समारोह में जिला पंचायत सदस्य, सरपंच, पंच, शाला के प्राचार्य, शिक्षक गण तथा सभी पालक उपस्थित थे. यहां योग शिक्षक श्री रामचरित सिंह सोलंकी के व्दारा नवाचार अपनाते हुए शाला विकास के लिए पालकों से सहयोग के लिए अनुरोध किया गया. तब सबसे पहले कमल यादव (उम्र 9वर्ष) ने अपनी भुक़्क़ी (ठेकली) को दान किया, जिसमें पूरे ₹337 थे. जब उसे पूछा गया कि इतना पैसा कहां से आया, तो उसने जवाब दिया कि मैने बिहि और लेदी (ईख) बेचकर सभी सिक्के इकट्ठा किये थे, जिन्‍हें मैं अपनी इच्छा से शाला के विकास के लिए देना चाहता हूं. इससे वहां उपस्थित अतिथि गण, शिक्षक, पालक और सभी बच्चे भावुक हो उठे और प्रभावित होकर कमल की सहृदय की सराहना करते हुए सभी ने आर्थिक सहयोग देने की बात कही.

कमल यादव अपने भाई-बहनों में सबसे छोटा है तथा इसके पिता श्री अरुण कुमार यादव जी मध्यमवर्गीय किसान हैं जो बच्चों की पढ़ाई के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. कमल बड़ा होकर कलेक्टर बनना चाहता है, जिसके लिए वह अपने बड़े भाई से हमेशा यह प्रश्न करता रहता है कि कलेक्टर बनने के लिए मुझे क्या-क्या पढ़ना होगा. इस सत्र में कमल कक्षा चौथी में पढ़ रहा है, लेकिन अपने शिक्षकों की सहायता से कक्षा 4थी की पाठ्यक्रम को पूरा करके अभी से कक्षा 5 वीं के पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहा है. कमल पुस्तक पढ़ने का बहुत शौकीन है. हमेशा कुछ नया करने की सोचता रहता है. ज़ू माईनर पढ़ते समय ज़ेब्रा, जिराफ, कंगारू के बारे में प्रश्न पूछता हुआ, चिड़िया घर में इनकी उपलब्धता के बारे में पूछने लगा तो इसके शिक्षक व्दारा वन मंत्री व मुख्य मंत्री को जू में इन जीवों को लाने के लिये बच्चों से पत्र लिखवाया गया.

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