छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल - काम सिरजथे मिहनत मा

लेखक - बलदाऊ राम साहू

नियम नवा बनाये परही।
सबले आगू जाये परही।

कब तक सोचत रहिहू तुम मन,
भाग अपन अजमाये परही।

काम सिरजथे मिहनत मा जी
बात सबो ल बताये परही।

एक ले भले जी दू कहाथे,
मिल के काम सधाये परही।

हिजगा मा तो काम बिगड़थे,
बात समझे, समझाये परही।

काम सिरजथे = कार्य पूर्ण होता है, काम सधाथे = कार्य सिध्‍द होता है, हिजगा = काम एक दूसरे पर डालना

कुंडलियाँ - बाबा गुरु घासीदास

लेखक - डिजेंद्र कुर्रे कोहिनूर

सन्देशा गुरुदेव का
मानव सभी समान
सत्य ज्ञान जो पा सकें
वह ही है इंसान
वह ही है इंसान
ज्ञान को जिसने जाना
मानव सेवा धर्म
ज्ञान को सबकुछ माना
कह डिजेंद्र करजोरि
नही हो अब अन्देशा
सदा बढ़ाये मान
अमर है गुरु सन्देशा

गिनती

लेखक - लेखक-लुकेश्वर सिंह ध्रुव

एक गाँव मा दो झन चोर चोरी करिस
तीन आदमी देख डारिन
चार गोड हाथ ला बाँध दिन
पांच पंच पंचायत बैठिन
छःरुपिया जुर्माना होईस
सात दिन के जेल होईस
आठ सिपाही धरके लीन
नौ नम्बर के कमरा में
दस दंडा देके बंद कर दिस

गोंदली के भाव

(रोला छंद)
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

बाढे हावय भाव, गोंदली के गा भारी
कहाँ मिठावय साग, देय भौजी ला गारी
बैपारी के राज, सोन कस वोला तौले
आँसू आवत आज, गोंदली ला बिन पौले

हलाकान सब होय, सबो के कीमत बाढ़े
धनिया लहसुन प्याज, सरत हे माढ़े माढ़े
सोंचय 'माटी' आज, चलावय कइसे खरचा
गाँव गली अउ हाट, एकरे होवत चरचा

छत्तीसगढ़ के महिमा

लेखक - तुलस राम चंद्राकर

छत्तीसगढ़ महतारी के
हवय जबर के छाती
महर महर ममहावय रे
मोर छत्तीसगढ़ के माटी

उड़त बुडत ले मेहनत करथे
इहाँ के नर अउ नारी
सब तीरथ ले बड़े तीरथ
इहाँ के खेती बारी

मोहन भोग सही कस लागे
खेत म चटनी बासी
महर महर ममहावय रे
मोर छत्तीसगढ़ के माटी

माथ ले चूहे पसीना पीके
हासे डोली धनहा
सूघ्घर बाली खेत म देख
हरीयर सबके मन हा

इहाँ के माटी चंदन जईसे
महिमा हे बड़ थाती
महर महर ममहावय रे
मोर छत्तीसगढ़ के माटी

सुआ, ददरिया, भोजली करमा
गीत आनी बानी
आजादी बर लहू बोहाइन
इंहा के अमर सेनानी

फागुन के पिचकारी
दीवारी के दिया बाती
महर महर ममहावय रे
मोर छत्तीसगढ़ के माटी

शिवरीनारायण, सिरपुर, राजीम
भोरमदेव सिहावा
हमर चिनहारी हसदेव बान्गो
अउ गंगरेल दुधावा

बाटे अंजोरी कोरबा के
भिलाई लोहा लोहाटी
महर महर ममहावय रे
मोर छत्तीसगढ़ के माटी

छत्तीसगढ़ी भाखा

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

मीत मयारु गीत के भाखा
बरखा गरमी सीत के भाखा
करमा गेंड़ी गौर ककसार
सुआ पंथी निरित के भाखा
पंडवानी भरथरी घोटूलपाटा
चंदैनी ददरिया पिरित के भाखा

पोटा लमसेना पायसोतुर
सुघर भड़ौनी गीत के भाखा
हरेली छेरछेरा नवाखाई
चेतरई गोंचा रीत के भाखा
सुआ पँड़की कोयली परेवा
कोलिहा हाथी मीत के भाखा

अईरसा चौसेला ठेठरी खुरमी
गुलगुला देहरौरी मीठ के भाखा
देवर - भउजी सारी -भाटो
समधी समधन मित के भाखा
मस्तुरिया तीजन बैसनव मीर -अली
धुरवाराम दुखिया के गीत के भाखा

जाड़ ह जनावत हे

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे, भारी चहचहावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे
हसिया धर के सुधा दीदी, खेत डहर जावत हे
धान लुवत-लुवत दुलारी, सुघ्घर गाना गावत हे
लू-लू के धान के, करपा ल मढ़ावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

पैरा डोरी बरत सरवन, सब झन ल जोहारत हे
गाड़ा-बइला में जोर के सोनू, भारा ल डोहारत हे
धान ल मिंजे खातिर सुनील, मितान ल बलावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

पानी ल छुबे त, हाथ ह झिनझिनावत हे
मुँहू में डारबे त, दांत ह किनकिनावत हे
अदरक वाला चाहा ह, बने अब सुहावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

खेरेर-खेरेर लइका खाँसत, नाक ह बोहावत हे
डाक्टर कर लेग-लेग के, सूजी ल देवावत हे
आनी-बानी के गोली-पानी, टानिक ल पियावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

पऊर साल के सेटर ल, पेटी ले निकालत हे
बांही ह छोटे होगे, लइका ह रिसावत हे
जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके, नावा सेटर लेवावत ह
े सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

रांधत - रांधत बहू ह, आगी ल अब तापत हे
लइका ल नउहा हे त, कुड़कुड़-कुड़कुड़ कांपत हे
स्कूल जाय बर जल्दी से, तइयार ओला करवावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

घर में बइठे-बइठे बबा, बिड़ी ल सुलगावत हे
घाम तापत-तापत बने, नाती ल खेलावत हे
जांघ में लइका सूसू करदिस, बबा ह खिसियावत हे
सुरूर-सुरूर हवा चलत, जाड़ ह अब जनावत हे

पेड़ लगावव (कुकुभ छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

पेड़ लगावव मिलजुल संगी, तभे तुमन फल पाहू जी ।
बड़का होही बिरवा तब तो, सबझन छँइहा पाहू जी ।।1।।

मिलही छ़ँइहा घर अँगना मा, पंछी के होही डेरा ।
चिरई चिरगुन चहकत रइही, रोज लगाही जी फेरा ।।2।।

सुघ्घर खुशबू आही घर मा, छाया मा सुरताहू जी ।
पेड़ लगावव मिलजुल संगी, तभे तुमन फल पाहू जी ।।3।।

जंगल झाड़ी रहिथे तब तो, होथे जी बरसा पानी ।
धान पान सब बढ़िया होथे, चलथे सुघ्घर जिनगानी ।।4।।

आज लगालव सबझन बिरवा, नइते सब पछताहू जी ।
पेड़ लगावव मिलजुल संगी, तभे तुमन फल पाहू जी ।।5।।

बासी

लेखक एवं चित्र - संतोष कुमार साहू प्रकृति


मय छत्तीसगढ़ के बासी अंव, मय छत्तीसगढ़ के बासी।
तीनेच दिन के तियासी बासी, मही म मजा बताथंव।।
नून मिरचा मोर संगवारी, नगरिहा बर मय कांशी अंव।।


गोंदली लसुन के चटनी म, अंगरी चांट के खाथव।
खेत खार कमैया संग म, अथान म मजा बताथंव।।
मोर पसिहा ह किसनहा मन के, जनम के पियास बुझाथंव।।


अंगाकर मोरे नान्हें भाई, परसा पान म चुर जाथे।
घी अउ तेल लगाके गा, सिलपट्टा चटनी संग म खाथव।
चुर्रुस चुर्रुस बाजथे ओहा, पेट भरहा सब झन खाथव।।


खपुर्री बेचारी जनम के टेटकी, उलट पुलट चुर जाथे।
झोझो संग म चांट चांट के, माई पिला ह खाथे।
चाहे सुख्खा चाहे तेलहा, मोर नान्हे बहिनी कहिथे।।


बड दलगिरहा मुठिया रोटी, कराही म नाच देखाथय।
जादा खाबे पेट पिराथे, बिमरहा बन जाथव।।
ममहावत हे तिल के फोरन, कराही ल चांट के खाथव।।


जनम भसर्रा चंउर के चीला, भोभला घलो ह चबाथय।
कतको खाबे पता नई चलय, पेट घलो गुडगुडाथय।।
बेरा कुबेरा दंउडत रहिबे, तरिया घाट म जाके।।


फरा ह मोर मयारू मोसी, देवारी तिहार म आथे।
घर घर म सुरहुती पुजा, लक्ष्मी म ल भोग लगाथे।।
जरहा दीया ल काये कहिबे, सोंद सोंद ममहाथे।।


मुहुं फुलोथे पातर रोटी, चुल्हा भितर चुर जाथय।
आलु चना के संगेच म, अडबड मजा उडाथय।।
चाहे लैईका चाहे सिअनहा, चखल चखल के खाथय।।


नींबु के चटनी सबो के संग म, मित मितानी बनाथय।
बैरी भावे ल नई तो राखय, सब संग म मिल जाथय ।।
प्रकृति ह सब ल काहत हावय, बासी सही मिठातेव।।

माटी

लेखक - बलराम नेताम

फुतका खेलन, झून्ना झूलन
अव खेलन, भंवरा बाटी
बड़ सुघ्घर हे छत्तीसगढ़ के माटी
इही माटी मा, करम ला क
इही माटी मा, जनम धरेहन
इही माटी मा, करम ला करबो
ऐही माटी मा,एक दिन मर जाबो
माटी के हड़िया, अव हे थारी
माटी म बने हे महल अटारी
माटी के महिमा हे, संगी भारी
जिंहा कबीर के सुंदर बानी हे
जिंहा गंगा बरोबर महानदी पैरी के पानी हे
जिंहा के माटी म हे, रुखराई घाटी
बड़ सुघ्घर हे छत्तीसगढ़ के माटी

मिट्ठू भजय

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला

मिट्ठू भजय राम राम
हर घड़ी सुबह-शाम

खावय मिर्ची लाल लाल
जय गोपाल जय गोपाल

पिंजरा ले वो निकल के
थोरिक एती-वोती चल के

कान टेंढ़ के कुकुर सुनय
टुकुर-टुकुर बिलई देखय

घर-दुआर भर घूमय
रिसी-मुनी मिट्ठू लगय

घर भर होवय जयकारा
सुनय सब आरा-पारा

लईकुशहा बेरा

लेखक - योगेश ध्रुव भीम

लईकुशहा बेरा
गिल्ली डण्डा
भौरा बाँटी
खेलेन सँगवारी
ये मोर मितानी

आमा आमली
लाटा कूटेंन
जाम ल खाएन
ददा के डर म
कोण्टा म लुकाएन
ये मोर मितानी

तरिया के कुधरी
नरवा के नहवई
मंझनिया के बेरा
लुकउल के खेलई
बबा के चिल्लई
ये मोर मितानी

एन्टीना ल हलादे
टीवी ल चलादे
डण्डा पचरंगा
बिल्लस खेलादे
पीपर मेन्ट खवाद
े ये मोर मितानी

ददा के डर म
बबा कर लुकाएन
डोकरी दाई के किस्सा
अउ दाई के मनाउनी
वह मोर लईकुशहा बेरा
मोला तेहर भाये
ये मोर मितानी

हमर जीवन के परान

लेखक - पेशवर राम यादव

जम्मो रुख राइ होथे गा
हमर जीवन के परान
फर फूल पतवा अउ बीजा
में मिलथे जीवनदान
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान
जडी बूटी अव छाला ले
होथे दवई के पहिचान
एकर दवाई बनाथे गा
वैध अउ विव्दान
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान
सिरावत हे बादर ले पानी
करनी में तोर इंसान
रद्दा देखत कब पानी
गिरही जम्मो गा किसान
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान
हरियर हरियर प्रकृती ल
झन बिगाड़ रे नादान
प्रदूषण ले होही जम्मो
गांव- सहर ह हलाकान
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान
झाड़ी जंगल रुख राइ ल
करलव गा सब सम्मान
एकर ले सिखथन अड़बड़
प्रयोग अउ विग्ज्ञान
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान.
एकरे सेती कहिथों संगी
पेड़ लगाओ ये हरे जीवन के आधार
ये देथे हरियाली अउ खुशहाली
ये हरे हमर मितान ..
जिनगी के आधार ल
झन काटो गा सियान ..

हरियर भुइंया अब भाटा होगे

भानुप्रताप कुंजाम'अंशु'

हरियर भुइंया अब भाटा होगे
जिन्हा उगे धान अब लाटा होगे
ननपन ले खेलिन कुदिन जे कोरा मं
थेमा के बेरा अब बांटा होगे
जिनगी भर करिन अपन मन मन के
सिधांत के गोठ अब चांटा होंगे
सुनावत नईं अब अरा तता
किसान के धंधा अब घांटा होगे
संग खेलिन कुदिन पढ़िन लिखिन दुनो भई
एक दुसर बर अब कांटा होंगे

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