नवाचार – कहानी के व्दारा बच्‍चों में सृजनात्‍मक्‍ता का विकास

नवाचारी शिक्षक – संतोष कौशिक

कक्षा आठवीं में बच्चों को 10 शब्द द‍िये गये - गांव, स्कूल, मंदिर, नदी, जंगल, पौधा, बच्चे, घर, बगीचा और शिक्षक. इन शब्दों का प्रयोग करते हुए कहानी ल‍िखने को कहा गया. बच्चों ने बहुत सुंदर कहानि‍यां लिखी हैं. सबसे अच्‍छी पांच कहान‍ियां नीचे प्रकाशित की जा रही हैं –

बच्चे होते अच्छे

लेख‍िका - कुमारी संतोषी

एक गांव था. उस गांव के स्कूल में सोनू और मोनू पढ़ते थे. सोनू पढ़ाई में अधिक रुचि रखता इसलिए शिक्षक सोनू की ओर ज्यादा ध्यान देते और मोनू खेलकूद में अधिक रुचि रखता इसलिए शिक्षक मोनू की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे. कुछ दिनों बाद परीक्षा होती है जिसमें सोनू पास हो जाता है और मोनू फेल हो जाता है. जब मोनू दूसरे दिन स्कूल जाता है तो शिक्षक उसे बहुत डांटते हैं व अपने माता-पिता को बुलाने के लिए कहते हैं.

मोनू के माता-पिता आकर शिक्षक से मिलते हैं. शिक्षक मोनू के फेल होने की बात बताते हैं तो उसके माता-पिता भी मोनू को डांटने लग जाते हैं. यह बात मोनू के कानों में गूंजते रही. जब रात हुई तो मोनू घर से निकल कर जंगल की ओर चला जाता है. जंगल में मोनू को उदास देखकर पेड़ पौधे नदी तालाब सभी उदास हो जाते हैं. पास में मंदिर तथा बगीचा था. उसी मंदिर में वृध्‍द महिला रहती थी. उसने मोनू को उदास देख कर पूछा - बेटा तुम क्यों उदास हो. मोनू अपनी बीती हुई सभी घटनाओं को विस्तार से बताता है. वृध्‍द महिला समझाती है - तुम पढ़ाई करो. मेहनत करोगे तो एक ना एक दिन ज़रूर तुम आगे बढ़ोगे. मोनू वृध्‍द महिला को धन्यवाद देने के लिए पलटा तो वहां पर वह वृध्‍द महिला नहीं थी. मोनू फिर अपने घर चला गया. वह नहीं जानता कि वह मां सरस्वती थीं. दूसरे दिन स्कूल आकर वृध्‍द महिला शिक्षक से बोलतीं हैं कि - सर जी जितना आप सोनू की ओर ध्यान देते हो उतना ही ध्यान मोनू की ओर दिया करें. मोनू कमजोर है इस कारण आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते. आप उसकी ओर भी ध्यान दोगे तो वह बालक कैसे पास नहीं होगा. वह पढ़ाई में बहुत अच्‍छा नहीं है तो क्या हुआ खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं अन्य कार्यों में तो अच्‍छा है. यदि सोनू की तरह ध्यान दोगे तो वह बालक निश्चित ही पढ़ाई में आगे बढ़ेगा. यह कह कर वृध्‍द महिला स्कूल से चली जाती हैं.

तब शिक्षक को पश्चाताप होता है कि सच में सभी बच्चों में एक ना एक गुण रहता है. कोई पढ़ने में अच्‍छा है, तो कोई बालक चित्रकारी में. इस तरह शिक्षक मोनू को मन लगाकर पढ़ाते हैं. मोनू परीक्षा में प्रथम स्थान में पास हो जाता है. शिक्षक उसके माता-पिता को बुलाकर समझाते हैं कि आप दोनों बच्चों के ऊपर ध्यान दिया करें. मोनू परीक्षा में प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की है मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपके दोनों बच्चों को हमेशा सफलता मिले.

शिक्षा - सभी बच्चों में कुछ ना कुछ गुण होता है. शिक्षक को पहचान कर उसके गुणों को आगे बढ़ाना चाहिए.

कर्मों का फल

लेखक - कैलाश कुमार

बहुत पुरानी बात है. एक गांव था. उस गांव में रामलाल अपने परिवार के साथ रहते थे. रामलाल की पत्नी की मृत्यु होने के कारण उसने दूसरी शादी की. उसकी पत्नी का नाम लता देवी था. उनके एक लड़का और एक लड़की थी. लड़की का नाम सरला था. सरला बड़ी हो गई थी. सरला लता देवी की सौतेली बेटी थी इसलिए लता देवी सरला से नफरत करती थी. लड़के का नाम नरेश था. नरेश उसका लाड़ला बेटा था. नरेश छोटा था. वह स्कूल जाता था. शिक्षक से अच्छी-अच्छी बातें सीखता था. मगर घर में कुछ काम नहीं करता था. घर का सब काम सरला करती थी.

एक दिन खाना पकाने के लिए सूखी लकड़ी न होने के कारण लता देवी ने सरला को जंगल में जाने को कहा. वह अकेले जंगल चली गई. जंगल में उसे एक मंदिर के पास हिरण दिखा. हिरण शिकारी के जाल में फंसा था. सरला ने पास जाकर जाल काट दिया. हिरण ने कहा शुक्रिया, भगवान तुम्हारा भला करे. सरला आगे बढ़ी. आगे उसे एक बगीचा मिला. वह बगीचे के अंदर गई. उसमें छोटे बड़े पेड़ पौधे थे. उसमें से उसे एक सूखा पेड़ दिखा. पेड़ ने कहा बेटी क्या तुम मुझे पानी दे सकती हो? सरला बोली- ज़रूर. फिर वह नदी में जाकर पानी लेकर उस पेड़ में डाली. पेड़ हरा-भरा हो गया. पेड़ ने कहा - शुक्रिया, भगवान तुम्हारा भला करें. सरला आगे बढ़ी. फिर उसे एक झोपड़ी दिखी. उस झोपड़ी के अंदर गयी. वहां उसने देखा क‍ि एक बूढ़े बाबा रहते हैं. सरला बोली – बाबा आप इस जंगल में अकेले रहते हो. बाबा कहते हैं - मेरे बच्चे मुझे संभाल नहीं सकते. सब अपने परिवार में व्यस्त हैं. सरला बोली मैं आपकी सेवा करूंगी .फिर सरला उनकी सेवा करने लग गई. कुछ दिनों में उसे अपने परिवार वालों की याद आई. वह बाबा से बोली क‍ि अब मैं अपने घर जाना चाहती हूं. बाबा ने कहा - ठीक है बेटी. फिर दोनों एक नदी के पास गए. बाबा ने नदी से पानी निकाला और एक बर्तन में डाला. पानी सोने का हो गया. सरला सोना को लेकर घर चली गई.

घर में सरला को देखकर उसका भाई कहता है - मां देखो सरला आ गई है. उसके हाथ में सोना है. सोने को देखकर उसकी मां कहती है - यह तो असली सोना है. कहां से लाई हो? सरला ने कहा - जंगल में एक बाबा ने मुझे दिया है. लता देवी कहती है - मैं भी जाती हूं उस बाबा के पास. मुझे रास्ता बताओ. सरला ने उसे जाने का रास्ता बताया.

लता देवी जंगल की ओर चली गई. रास्ते में उसे एक हिरण जाल में फंसा मिला. हिरण ने लता देवी को अपने पास बुलाकर कहा यह क‍ि यह जाल काट दो. लता देवी बोलती है - मैं क्यों तेरी मदद करूं. मैं तो सोना लेने आई हूं. वह आगे बढ़ी तो सूखा पेड़ मिला. लता देवी से कहता मुझे थोड़ा पानी दे दो मैं हरा भरा हो जाऊंगा. लता देवी उसे भी इंकार कर देती है. फिर उसे एक झोपड़ी मिली. झोपड़ी के अंदर गई और बाबा से बोली - बाबा मुझे सोना दो. बाबा ने कहा - पहले तुम्हें मेरी सेवा करनी होगी. लता देवी बोलती है - मैं क्यों तेरी सेवा करूं. तुम मेरे कोई रिश्तेदार लगते हो क्या? ऐसा कह कर लता देवी नदी के पास चली जाती है. नदी में से पानी निकाली तो पत्थर निकला. लता देवी परेशान हो जाती है. बाबा उसके पास आकर कहता है - जिसका मन पत्थर जैसा हो उसे सिर्फ पत्थर ही मिलता है.

शिक्षा - हमें निस्वार्थ लोगों की सेवा करनी चाहिए. जो भी कार्य हम करते हैं उसका फल एक ना एक दिन अवश्य मिलता है.

बुढ़िया की मदद

लेख‍िका - कुमारी संगीता

एक गांव था. उस गांव में बहुत सारे बच्चे थे. सभी बच्चे स्कूल जाते थे. अपने शिक्षक से अच्छा-अच्छा ज्ञान लेकर आते थे. एक दिन सभी बच्चे घूमते हुए जंगल में पहुंच गए. वहां देखते हैं कि एक बुढ़िया रहती है और बेचारी बुढ़िया के पास कुछ खाने-पीने का नहीं था. तो सभी बच्चे बोलते हैं - आपके पास तो खाने-पीने की कुछ चीज नहीं है. आप यहां मत रहो. चलो हमारे साथ में हमारे घर चलो. फिर बुढ़िया बोलती है कि - नहीं बेटा मैं तुम्हारे घर नहीं जा सकती हूं क्योंकि मुझे तुम्हारे माता-पिता देखेंगे तो डायन, चुड़ैल बोलेंगे. फिर एक बच्चा बोला आप हमारे घर नहीं जा सकती हो तो क्या हुआ आप हमारे गांव के पास एक मंदिर में रह सकती हो. फिर बुढ़िया बोली - अरे बेटा मैं वहां रहूंगी तो मुझे कुछ काम मिल सकता है क्या? दूसरा बच्चा बोला - दादी जी आपको ज्यादा काम तो नहीं करना होगा. हमारे मंदिर के पास छोटा सा बगीचा है. उस बगीचे में छोटे-छोटे पेड़ पौधे हैं. तुम्हें नदी से पानी लाकर पेड़ पौधों में डालना होगा. इतना ही काम है.

दादी जी ज्यादा काम करने में असमर्थता जताती हैं. उसे देखकर तीसरे बच्चे ने कहा - दादी जी नदी तो मंदिर के पास ही है. आप क्यों फिक्र करती हो. हम सब बच्चे आपसे रोज़ मिलने आएंगे. हम पेड़ पौधे में पानी डालने के लिए आपकी मदद भी करेंगे. वह बुढ़िया उन बच्चों के साथ मंदिर आ जाती है. सभी बच्चे उस बुढ़िया को मंदिर में छोड़कर अपने-अपने घर चले जाते हैं. बुढ़िया मंदिर में मन लगाकर काम करती है. बच्चे आकर उसका सहयोग करते थे. बेचारी बुढ़िया को बच्चों के माध्यम से काम मिल जाता है. बुढ़िया बच्चों को आशीर्वाद देती हैं. अब वह बुढ़िया मंदिर में खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करती है.

शिक्षा - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें असहाय एवं दीन दुखियों की सेवा करनी चाहिए.

मां बाप को भूलना नहीं

लेख‍िका - कुमारी टिकेश्वरी

एक राज्य में एक राजा और उसकी पत्नी रहते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने किसी बच्चे को गोद लेने की सोची. राजा बच्चे की खोज में लग गया. राजा एक आदमी के घर पहुंचा. उसके तीन बेटे थे. सबसे बड़े बेटे का नाम रिंकू, मंझले बेटे का नाम टिंकू और सबसे छोटे बेटे का नाम पिंकू था. राजा ने छोटे बेटे को अपना पुत्र बनाना चाहा. फिर उसने पिंकू के माता-पिता से बात की. पिंकू के पिता ने कहा - ठीक है मैं आपको अपना बेटा दूंगा लेकिन मैं उसे सप्ताह में एक बार देखने जरूर आऊंगा. राजा ने कहा - ठीक है, परंतु पिंकू को नहीं बताओगे कि तुम उसके पिता हो. उसने वचन दिया कि वह पिंकू को नहीं बताएगा. दूसरे दिन राजा पिंकू को ले जाता है. राजा ने पिंकू को खूब अच्छी परवरिश की. कुछ दिनों बाद राजा ने अपनी पत्नी से कहा - अब पिंकू बड़ा हो गया है. क्यों न हम उसके लिए विद्यालय बनवाएं. रानी ने कहा - तुम सही कहते हो. पिंकू को शिक्षा देने के लिए हमें उन्हें स्कूल भेजना चाहिए. राजा ने नदी के किनारे विद्यालय बनवाया. उस नदी के किनारे एक बहुत सुंदर मंदिर था. राजा ने सोचा - इस विद्यालय में तो पानी की समस्या नहीं है लेकिन यहाँ एक सुंदर बगीचा बन जाए तो अच्छा होगा. राजा ने बगीचे के लिए उसमें विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे लगवाए. स्कूल के समय पर बच्चे और शिक्षक पेड़ पौधे की सेवा करते थे. बच्चे स्कूल की छुट्टी होने के बाद भी पिंकू के साथ बगीचे में खेलने आते थे. पिंकू पढ़-लिख कर बड़ा व समझदार हो गया था.

वह एक दिन खेलते हुए जंगल की ओर शिकार करने गया. वहां राजकुमार पिंकू को एक झोपड़ी दिखाई दी, जो बहुत पुरानी हो गयी थी. राजकुमार झोपड़ी के अंदर गया. उसने देखा कि एक असहाय बूढ़ा व्यक्ति बिस्तर पर लेटा हुआ अपने बेटे को याद कर रहा था. वह बार-बार पिंकू-पिंकू कह कर बुला रहा था. पिंकू पूछा कि वह उसका नाम क्‍यों ले रहा है? वह बूढ़ा व्यक्ति समझ गया कि यह उसका बेटा पिंकू ही है. लेकिन पिंकू को कुछ याद नहीं था. उस बूढ़े व्यक्ति ने पिंकू को अपने बिस्तर के पास बुलाकर सिराने बैठने को कहा. वह बूढ़ा व्यक्ति पिंकू को पिछली घटना के बारे में जानकारी दिया. पिंकू समझ गया कि यही मेरे पिताजी हैं. पिंकू अपने पिता जी को असहाय व बीमार देखकर उसे गांव ले गया. गांव में डॉक्टर बुलाकर उसका इलाज कराया. वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया. राजा ने उसे अपने घर में रहने के लिए जगह दे दी. वे सब खुशी-खुशी रहने लगे.

शिक्षा - हमें इस कहानी से सीख मिलती है कि अपने मां बाप को कभी भूलना नहीं चाहिए.

गुरु की परीक्षा

लेखक – शेखर पटेल

एक गांव में एक स्कूल था. उसी स्कूल में बहुत सारे बच्चे पढ़ने आते थे. उन्हीं मे से थे मोहन और सोहन. उन दोनों की परीक्षा पूरी हो चुकी थी. जब मोहन और सोहन श‍िक्षा पूरी करके अपने घर जा रहे थे तो उन्हें शिक्षक ने पास बुलाया और कहा - बच्चों आज तुम अपने घर जा रहे हो, लेकिन तुम्हें अपने घर जाने से पहले एक और परीक्षा देनी पड़ेगी. इस परीक्षा में पास हो गए तो तुम अपने घर जा सकते हो.

मोहन ने पूछा कैसी परीक्षा गुरुजी? गुरुजी ने कहा- तुम दोनों को मेरा एक छोटा सा कार्य करना है. मोहन ने कहा – हम अवश्य ही आपका दिया कार्य पूरा करेंगे. गुरूजी ने कहा - बच्चों मैं तुम दोनों को एक-एक कबूतर देता हूं. तुम्हें ऐसी जगह ले जाकर उसे मारना है जहां तुम्हें कोई देख ना रहा हो. मोहन और सोहन दोनों कबूतर को लेकर चले जाते हैं. मोहन अपने कबूतर को लेकर मंदिर के पास एक सूनसान गुफा में ले जाकर मार डालता है और तुरंत अपने स्कूल आता है. गुरुजी से कहता है कि मैंने उस कबूतर को मार दिया है. क्या मैं इस परीक्षा में सफल हो गया हूं? गुरुजी ने मोहन से कहा मैंने तुम्हें और सोहन दोनो को यह कार्य दिया है. परीक्षा के परिणाम के लिए तुम्‍हे सोहन का इंतजार करना पड़ेगा. शाम हो गयी. गुरुजी को सोहन का चिंता होने लगी थी. तभी दूर से सोहन आते हुए दि‍खा. सोहन गुरु जी को प्रणाम करता है. गुरुजी सोहन को आशीर्वाद देते हुए पूछते हैं कि तुम्हें इतनी देर कैसे हो गई और तुम्हारे हाथ में यह कबूतर कैसे जिंदा है? सोहन ने कहा - गुरुजी यह कहानी बहुत लंबी है. बस यह समझ लीजिए कि मैं इस परीक्षा में सफल नहीं हुआ हूं. मुझे क्षमा करें. यह सुनकर गुरुजी ने कहा - रुको सोहन तुम जब तक हमें पूरी बात नहीं बताओगे तुम्हें हम स्कूल के अंदर आने नहीं देंगे. बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ था. सेाहन ने कहा - गुरूजी आपने कहा था कि उसको ऐसी जगह पर मारना जहां पर तुम्हें कोई देख ना रहा हो. मैं इसे मारने के लिए जंगल ले गया. मगर वहां मौजूद जानवर देख रहे थे. फिर मैं इसे बगीचे में ले गया. वहां तो कोई नहीं था मगर पेड़-पौधे मुझे देख देख रहे थे. इसके बाद मैं इसे नदी के पास ले गया. वहां मुझे मछली और नदी देख रही थीं. इसके बाद मैं इसे एक गुफा में ले गया. वहां मुझे अंधेरा देख रहा था. सबसे बड़ी बात तो यह क‍ि मैं इसे खुद देख रहा था.

सोहन की बात सुनकर गुरूजी मुस्कुराए और बोले - सोहन तुमने सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की है. जो मैं तुम्हें समझाना चाहता था वह तुम समझ गए हो. तुमने इस कबूतर को इसलिए नहीं मारा क्योंकि सब देख रहे थे. यही बात एकांत में भी हमें गलत काम करने से रोकती है. अगर हम गलत काम करने से पहले सोच लें कि हमें कोई देख रहा है तो हम गलत काम नहीं करेंगे. गुरुजी की बात सुनकर मोहन को लगा कि मेरी शिक्षा अभी पूरी नहीं हुई है और वह स्कूल में ही रुक गया और सोहन गुरु जी को प्रणाम करके घर चला गया.

शिक्षा - कोई भी कार्य सोच समझकर और सत्य के मार्ग पर चलते हुए करना चाहिए.

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