चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें कई मज़ेदार कहानियां मिली हैं, जिन्‍हें हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं –

प्रेम और त्याग

लेखक - संतोष कुमार कौशिक

रामू नाम का एक गड़रिया था. उसका संयुक्त परिवार था. वह अपने परिवार एवं गाय, भेड़, बकरी, ऊंट के साथ गांव-गांव जाता था. जहां भी सूरज ढ़लता, वहीं वह अपने परिवार के साथ रुक जाता और वहीं पर भोजन व विश्राम करता. रामू हमेशा अपने परिवार वालों को मिलजुल कर कार्य करने की प्रेरणा देता था.

एक दिन शाम को रामू काम करके घर वापस आया है तो उसने देखा कि उसके परिवार के सभी लोग मिल जुलकर भोजन बनाने, पानी भरने, पशुओं की देखभाल करने आदि‍ का काम साथ मिलकर कर रहे हैं. गाय बकरी कुत्ता आदि जानवर भी घर के सदस्य की तरह उसके पास आराम से बैठे थे. घर की एक महिला ने कुछ भोजन एवं फल गाय को खाने के लिए दिया. गाय ने सोचा कि मेरे साथी कुत्ता, बकरी, ऊंट हैं. उन्‍हें भेजन नहीं मिला. मैं अकेली कैसे खाऊंगी. यह सोचकर गाय थोड़ा सा खकर बाकी भोजन बकरी को दे दिया. बकरी भी सोच में पड़ गयी. उसने सोचा कि अगर गाय चाहती तो सभी भोजन खा जाती लेकिन उसने मुझे दे दि‍या. मेरे पास कुत्ता बैठा हुआ है. मैं उसे थोड़ा सा भोजन दे देती हूं. यह सोचकर कुछ थोड़ा सा स्वयं खाकर शेष भोजन उसने कुत्ते को दे दिया. कुत्ते ने भी उसका अनुकरण करते हुए कुछ भोजन खाकर शेष भोजन ऊंट को दे दिया. यह सब देखकर रामू की आंखें नम हो गयीं. उसने सोचा कि जेसा प्रेम और त्याग इन पशुओं में है वैसा तो मानव जाति में भी नहीं है. रामू ने अपनी पत्नी को बुलाकर सारी बात बताई और कहा –

मुखिया मुख सो चाहिए, खानपान को एक
पालय पोसय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक

अर्थात् मुखिया को मुख के समान होना चाहिए. जिस प्रकार से मुख भोजन करने के पश्चात जिस अंग को जितनी जरूरत पड़ती है उतना उस अंग को देकर सभी का पोषण करता है, उसी प्रकार हमें भी ऐसा ही करना चाहिये. ये पशु हमारे परिवार की तरह ही हैं. जब भी हम लोगों के लिए भोजन बनाओ तो इनके लिए भी साथ में भोजन बना दिया करो ताकि हम सब एक साथ मिलकर भोजन कर सकें. उस दिन से रामू की पत्नी सभी के लिए भोजन बनाती है और पूरा परिवार पशुओं को पहले भोजन देकर साथ में बैठकर खुशी से भोजन करता है.

लक्ष्मी की सीख

लेखक - इंद्रभान सिंह कंवर

ठंडी का दिन था. अम्मा जी और बड़ी बहू उस दिन सुबह से ही घर के बाहर चूल्हा जलाकर बातें करते हुए रोटियां सेक रहीं हैं. बगल में ही उनका पालतू कुत्‍ता - शेरू, प्यारा मेमना और धेनुकी गाय भी रहती है. नई बहू लक्ष्मी जो कि पानी लाने हैंडपंप गई थी, वापस आते हुए देखती है की अम्माजी दरवाजे पर ही सड़क पर खाना बना रही होती हैं.

यह देखकर वह हैरान हो जाती है. मगर नई बहू बेचारी अम्मा जी से इसका विरोध कैसे कर पातीॽ वह चुपचाप रह जाती है. यह सब लगातार कई दिनों तक चलता रहता है और लक्ष्मी के मन में प्रतिदिन उथल-पुथल मची रहती है. एक दिन हिम्मत जुटाकर वह अम्माजी से कह ही देती है कि अम्मा जी आप यहां खुले में सड़क पर खाना ना बनाएं, क्योंकि धूल के कण गंदगी एवं कीटाणू खाने में पड़ जाते हैं, जिससे हमारा स्वास्थ्य खराब हो सकता है.

यह सुनकर अम्मा जी लक्ष्मी से कहती हैं, कि कल की आई तो मुझे सिखाती है. मैं यह सब जमाने से करती आयी हूं. यह कहकर वे उसे चुप करा देती हैं. लक्ष्मी बेचारी मन मार कर चुप हो जाती है.

कुछ दिन बाद अचानक बाबूजी को पेट दर्द के कारण अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. पेट दर्द का कारण डॉक्टर खराब खाने को बताते हैं और शुध्‍द एवं ढ़का हुआ खाना खाने की सलाह देते हैं. तब अम्मा जी को लक्ष्मी की वह सभी बातें याद आती हैं जो वह उस दिन अम्मा जी से खाना बनाते हुए बोल रही थी.

उसके बाद से अम्माजी रसोई घर ही खाना बनाती हैं और उसे ढ़ंककर भी रखती हैं. वे अपनी दोनों बहुओं को भी रसोई घर के अंदर खाना बनाने और उसे ढ़ंककर रखने की सलाह भी देती हैं.

सीख - हमें सदैव शुध्‍द एवं ढ़ंका हुआ खाना ही खाना चाहिए.

अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें वाट्सएप व्दारा 7000727568 पर अथवा ई-मेल से dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्‍छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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