हमरो देवारी तिहार

लेखक - योगेश ध्रुव भीम

माटी के दिया बगराथस,तय घलो अंजोर न
आय हावे देवारी तिहार,पहुना कस बनके

घर म अवैय्या सबो सगा के मानगोन हमन बड़ सेवा भाव ले घलो करथन. अउ जब हमर घर म अवैय्या सगा दाई देवी लक्छमी के स्वागत म कइसन कमी ल घलो कर सकबोंन? हमर हिन्दू रीति रिबाज ले देवारी तिहार के सुभ दिन घलो दाई लक्छमी हा हमरो घर आथे. अउ हमन ल धन धान्य ले सदा भरे रहाय के आसीस ल देथे.दाई लक्छमी के आय के खुसी म हमन अपन घर कुरिया ल अड़बड़ सुघ्घर ढंग ले सजाथन घलो अउ मनोती करथन की दाई लक्छमी के आसीस हर बेरा बने रहाय. हमर सबो भारतीय तिहार के भाव ह घलो एकेच आय. परेम अउ खुसिया के अदला-बदली हरे. भले एखर मनाइय्या के तरीका मन अन्नते-अन्नते रथे घलो. देवारी ह घलो सबले बड़का तिहार हरे जेन ल पूरा परिवार मन मिल जुल के एके संग ले मनाय जाथे. हमर अपन परिवार के सदस्य जेन ह दुरिहिया रहिथे ओहर घर म आथे अउ संघरा एक साथ बईठ के प्यार ल बाँटत तिहार ल मनाथे ओखर प्यार ह दुरिहिया ले खीच घलो लाथे. अउ घर म मेला मड़ई कस लागे लगथे. पूरा परिवार ह खुसी ल बांटत खुसी के अनुभव ल करथे घलो. चारो डहर फटका फोडट आतिसबाजी करत मन बइठे बैर ल भुलावत परेम से दिया जलाय घलो जाथे अउ सदियों ले ये तिहार ल पांच दिन ले मनाय जाय के परम्परा घलो हावे.

पहली दिन तेरस - देवारी तिहार के एक ठन पहली कड़ी आय. देवारी के दु दिन पहली तेरस के दिन ल धनतेरस कहे जाथे. ये दिन आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि पूजा करे के अबड महत्व हावे घलो.

रोग राई ले घलो, हमला तय बने बचाबे
अरज करत धनमंत्री, आयुर्वेद के गुन बताबे
नवा जिनिस बिसात
तेरस दिया जलाबोन

यहु दिन लोगन मन नवा नवा बर्तन सोना चाँदी के खरीदई ल करथे घलो. ये दिन धन्वन्तरि के पूजा करत भगवान ल पूरा परिवार ल रोगराई ले बचाय के आसीस ल मांगें जाथे.नवा नवा जिनिस ल बिसा के घर व्दार चलाय के सिख ल लईका मन ल देथे घलो. अउ इसने तेरस ल बढ़िया ढंग ले खुसी-खुसी ले मनाय जाथे.

दूसर दिन चौदस - धनतेरस के दूसर दिन ले चौदस आथे. जेन ल रूप चौदस.

बिहनिया ले नहा के, सूरुज ल चढ़ाबोंन पानी
चौदह ठन दिया जलाबोन, अमराज़ ल मानके

नरक चौदस घलो कथे. ये दिन बड़े बिहनिया पहट ले उठ के नहाय के बाद म सूरुज भगवान ल जल चढ़ाय के अबड़ महत हावे.ये दिन अपन देह ल सुघ्घर बनाय के आसीस मांगे जाथे. अउ साम के देराउठि म यमराज के नाव लेके चौदह ठन दिया जलाय जाथे अउ बने-बने रखे के आसीस ल मांगत अपन मन के बैर भाव ल दूर करत परेम ले रहाय के भाव मन म लाय घलो जाय के परम्परा हावे.

तीसर दिन सुरहोती - कातिक महीना के अमावस्या के अंधियारी रात म सबो डहर रिकबिक रिकबिक दिया ल जलावत देवारी घलो मनाय जाथे. यहु दिन माता देवी लक्छमी, सरसती, गनेस देवता के पूजा ल करत बने-बने राखे के आसीस ल मांगे जाथे.अउ अंधियारी रात म माटी के दिया जलाके अंजोरी करय के परम्परा घलो आय.

माटी के दिया ल, जलाबोन
अंजोरी ल घलो बगराबोन
लक्छमी के, चरन पखारत
आसीस ल मांगबोन घलो

जइसन हमन अंधियारी रात म माटी के दिया ल जलावत अंजोरी ल बगराथन उइसने हमर मन ल घलो सुघ्घर बनावत परेम के दिया ल सदा सदा ले जलावत रहिबोंन इहि सन्देस ल देवारी ह सबो झन ल देथे.

चौथा दिन गोबरधन पूजा - सुरहोती के दूसर दिन किसान भाई मन अपन गोधन ल सुघ्घर ले नहवाके पूजा ल करत गोबरधन खुन्दावत खिचड़ी खवाथे अउ रउत मन ह सोहाई ल बांधते घलो जेन ल अन्नकूट कहे जाथे अउ रउत मन आसीस देवत दोहा ल पारथे घलो.

कोलकी कोलकी बईला चराय
अउ बईला के सींग म माटी रे
ठाकुर घर जोहारे ल गेव संगी
फुटहा हड़िया म बासी रे

ये दिन घलो कहय जाथे भगवान सिरी किसन ह लोगन अउ गोबंस के रक्छा खातिर गोबरधन परबत ल अपन छीनी अंगूरी म उठाय रिहिस अउ सबो झन के रक्छा ल करे रिहिस. ये तिहार ह हमन सबो झन ल परेम अउ भाईचारा ले रहे के सन्देस देवत सबो परानी ले मिल जुल के रहाय ल सिखाथे घलो.

अरसी फूले घमा घम भईय्या
मूनगा ह फूले सफेद रे
चार हाथ के कौड़ी बधेव
होंगे जवानी म भेंट रे

पांचवा दिन भाई दूज - तिहार के आखरी बेरा के रूप म आखरी तिहार भाई दूज ह घलो आथे. ये तिहार ह हमर भाई बहिनी के परेम ल बतावत हमन ल हसी खुसी ले रहाय के सन्देस ल देथे. जइसन राखी के तिहार ल मनाथन अउ भाई ह अपन बहिनी ल अपन घर म बलाथे उइसने ये तिहार म बहिनी ह अपन भाई ल अपन घर बलाथे.

भाई बहिनी के परेम ह बने रहाय
भाई संग म बहिनी के रिसता न
भाई दूज ह सन्देस ल घलो देवत हावे

काबर की भाई बहिनी के परेम ह बचपना के परेम आय जेन ह हमला एकेच धागा म बाँधत ये रिसता ल अउ मजबूती देवत हमला लम्बा उमर ल घलो जिये के आसीस ल देथे.अउ आपसी भाईचारा मेल मेलाप करत एके संघरा ले रहाय के सन्देस देवत ये सबो तिहार ह आखरी बेरा होथे.

मोर देवारी के तिहार घलो
आय तय रिकबिक करत
देवत सन्देस संघरा रहय के
परेम के दिया जलाबोन घलो

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