जुगत

लेखक – बलदाऊ राम साहू

साँझ हो रही है, किन्तु रात अभी बाकी है. हमें समय रहते कार्य कर लेना चाहिए - बूढे़ कौए ने कहा. पर यह कैसे संभव है, दादा? एक कौए ने पूछा. अरे, सब संभव है. दुनिया में कुछ असंभव नहीं होता, सिर्फ लगन और मेहनत चाहिए. हम कब तक हाथ में हाथ धरे बैठे रहेंगे. तो हम क्या कर सकते है दादा? एक ओर कौए ने प्रश्न किया.

हम सब रोज-रोज कितनी पीड़ा सहते हैं. यह साँप आता है और हमारे अंडे खा जाता है. कभी-कभी तो वह हमारे नन्हे बच्चों को भी खा जाता है. तुम लोगों को कोई चिंता नहीं. कहते हो हम क्या कर सकते हैं. बूढ़े कौए ने ललकारते हुए अपनी बात जारी रखी - आज की रात हम सब के लिए चुनौती की रात है. सुबह होने से पहले हमें अपना काम पूरा कर लेना है. अब तुम सब जाओ और आस-पास से नुकीले काँटे ला कर उन्हें इस पूरे पेड़ पर ऐसे तरीके से लगाओ कि उस साँप को पता भी ना चले.

बूढ़े कौए की बात सभी को जँच गई. सभी कौओं ने उड़ान भरी और काँटे चुनने चले गए. एक के बाद एक कौए काँटे लाते गए और बूढ़े कौए के बताए अनुसार पेड़ की तनों और शाखाओं में कतारबध्‍द लगाते गए. अब तो इस काम में छोटे बच्चे भी मदद करने लगे. छोटे बच्चे आस-पास से नुकीले काँटे लाकर बूढ़े कौए को दे जाते थे. बूढ़ा कौआ उन्‍हे अपने अनुसार लगाता जाता था.

काम पूरा करते-करते रात बीतने वाली थी, परंतु कौओं की आँखों में नींद और शरीर में थकान कहाँॽ सभी उत्साह से काम में लगे हुए थे. सुबह लगभग चार बजे कार्य पूरा हुआ. बूढ़ा कौआ सभी को एक जगह बुलाकर समझाने लगा.

देखो, आज हम सबने मिलकर एक बड़ा कार्य किया है. बड़े कार्य को इसी तरह मिलजुल कर किया जाता है. अब हम सभी अपने-अपने घोंसले में जाएँ और विश्राम करें. आज सुबह कोई नहीं चिल्लाएगा. आज कोई भोजन की तलाश में भी नहीं जाएगा. आज हम साँप के आने की प्रतीक्षा करेंगे.

सभी कौए अपने-अपने घोंसलों में जाकर आराम करने लगे. सुबह हो गई. सूर्य की गुनगुनी धूप आने लगी. सभी कौए साँप की आने की प्रतीक्षा करते हुए चुपचाप अपने घोंसले में बैठे गुनगुनी धूप का आनंद लेते रहे.

आज कौओं के चिल्लाने की आवाज नहीं आ रही थी. साँप असमंजस में था कि आज सारे कौए सुबह होने से पहले ही तो भोजन की तलाश में चले गए? मन में यही विचार करते हुए साँप अपने बिल से निकला और सीधे पेड़ की ओर बढ़ा. उसने पेड़ पर चढ़ने से पहले एक बार फिर से फन उठाकर इधर-उधर देखा कि कौए कहीं अपने घोंसले में तो नहीं है. वह जानता था कौए जब तक पेड़ पर रहेंगे, काँव-काँव चिल्लाते रहेंगे. परंतु कौओं की आवाज नहीं आने से वह आश्वस्त हो गया कि कौए भोजन की तालाश में चले गए होंगे.

यही सोचकर साँप धीरे-धीरे पेड़ की ओर बढ़ा और बिना आवाज किए पेड़ पर चढ़ने लगा. कुछ ही ऊपर पेड़ पर चढ़ने के बाद उसे कुछ चुभने लगा. फिर भी वह किसी तरह अपने को बचाते हुए चढ़ने का प्रयास करता रहा. जैसे-जैसे वह ऊपर चढ़ता गया वैसे-वैसे चुभन भी बढ़ती गयी. धीरे-धीरे उसका पूरा शरीर छिल कर लहुलुहान हो गया. अंत में वह अपने को हर तरफ से असमर्थ पाकर नीचे उतरने लगा लेकिन पेड़ के तने पर तो चारों तरह काँटे लगे थे. वह कहाँ तक बच पाता. उतरते समय भी उसे काँटे चुभ रहे थे. अंत में उसे छलाँग लगानी पड़ी.

काँटो से उसका पूरा शरीर बुरी तरह घायल हो गया था. उसमें चलने की भी शक्ति नहीं बची थी. कौए साँप को घायल अवस्था में देखकर एक साथ काँव-काँव चिल्लाने लगे. अचानक कौओं की काँव-काँव की आवाज सुनकर साँप भयभीत हो गया और जल्दी से अपने बिल में जा बैठा. अब तो साँप को समझ आ गया कि यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है.

उस दिन के बाद साँप ने कभी भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश नहीं की. अब कौए खुश थे. अब न तो कोई उनके अंडों को क्षत-विक्षत करता और न ही उनके बच्चों को प्राण लेता. बूढे कौए की जुगत काम आई. सभी कौओं ने उस बूढ़े कौए के प्रति आभार जताया. बूढ़े कौए ने कहा - जब तक हम एक रहेंगे तब तक कोई हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकता. यही तो एकता की ताकत है.

भाई दूज की कहानी

लेखिका एवं चित्र – प्रज्ञा सिंह

दीवाली के दो दिन के बाद भाई दूज का त्योहार आता है जिसमें भाई की लंबी उम्र की मंगल कामना की जाती है, हम बचपन से भाई दूज की कहानी सुनते आ रहे हैं जिसे मैं आज आप सब को सुना रही हूँ.

एक ब्राह्मण थे उनकी सात लड़कियां थीं. सब की शादी हो गई थी. सब अपने ससुराल में सुखी थीं. बड़ी बहन गरीब घर में गई थी. उनका एक भाई था उसका नाम था लैगुअर कुँअर. भाई की शादी होने वाली थी अतः वह बहनो को लेने गया. सब बहनों को लाने के बाद फिर बड़ी बहन के घर गया. बड़ी बहन पहले से नहीं जा सकती थी तो बोली तुम जाओ मैं बाद में आऊंगी. भाई जाने वाला था तो सुबह से उठ कर बहन ने कनकी की रोटी बनाई और एक कपड़े मे बांध कर भाई को विदा की. उसके बाद देखती है की चकिया के पास सांप की पूंछ पड़ी थी. वो चावल के साथ पिस गया था, वह दौड़ते-दौड़ते गई कि कही भाई खा न ले. देखा कि भाई नदी में नहा रहा था. उसने रोटी उठा कर नदी में फेंक दी. भाई ने देखा किन्तु कुछ नहीं बोला. बहन घर वापस आ रही थी तो उसको प्यास लगी. उसने देखा एक लोहार के घर कुछ लोग काम कर रहे हैं. वह वहीं चली गई और बोली प्यास लगी है. वे लोग बोले कुंए से पानी निकाल लो. वह पानी भर रही थी तब उसने उन लोगों की बातें सुनी. वह लोग कह रहे थे कि एक काल तो टला. उसने पूछा कैसा काल? उन लोगों ने बताया उसी के भाई का काल! उन लोगों ने सात काल बतलाये. वह लोग बोले, अगर बहन उपाय कर सकती हो भाई बच जायेगा. एक काल तो काट चुकी बाकी. छ: काल बचे हैं. उपाय पूछ कर वह सीधे घर गई और एक झोला लेकर पहुंच गई मायके. मायके आकर उसने कहा जो भी नेग दस्तूर होता वह मैं आगे करूंगी. सब लोग बोले यह पागल हो गई है लेकिन उसने किसी का बुरा नहीं माना. उसको तो भाई की जान बचानी थी. व‍ह कहती रही कि मंडप में आगे मैं जाऊँगी. सब चुप रहे. फेरा में करूंगी, जामा में पहनूंगी, बारात में दूल्हा में बनूंगी, ऐसा करते-करते पूरी शादी निपट गई. फिर सब की बिदाई का समय आया सब को अच्छी-अच्छी बिदाई दी गई. इसको खादी की साड़ी दी गई. उसने प्रेम से साड़ी रखी और सब को एक दिन रुकने के लिये बोली. सब रुक गए तब उसने अपना झोला खोला और पूरी बात बतलाई. अब सब उसकी तारीफ़ करने लगे. वह बोली तारीफ़ की जरूरत नहीं है. इतने में यमराज आ गए और बोले बहन तुम मुझे भाई बनाओगी मेरी कोई बहन नहीं है. बहन नाम जमुना था. वह भाई दूज का दिन था. वह हाथ न्योति खाना खिलाई. यमराज ने भाई बहन को बहुत आशीर्वाद दिए और बोले जो भाई दूज के दिन बहन से हाथ नेवतायेगा उसकी उम्र बढ़ेगी.

भाई दूज का मंत्र भी है जिसे भाई का हाथ न्यौते के समय बोला जाता है. साथ ही गोबर से भाई और उसकी सात बहनों की मूर्ति बना कर पूजा की जाती है. भाई को टीका कर उसकी लंबी उम्र की मंगल कामना की जाती है. भाई दूज का मंत्र है -

जैसे जमुना जम को नेवते, बहन भाई को नेवते,
जैसे गंगा जमुना जल बाढ़े वैसे भाई की आयु बाढ़े

ज्ञान ने बचाई बल्लू की जान

लेखक – ढ़ालेन्‍द्र साहू

एक बार की बात है बल्लू नाम का लड़का जंगल के रास्ते से स्कूल से अपने घर जा है रहा था. उसके सारे दोस्त उससे पहले घर चले गए थे मगर बल्लू को उस दिन देर हो गयी थ. इसलिए उसे अकेले घर जाना पड़ रहा था. रास्ते मे चलते हुए बल्लू को अचानक एक भालू दूर से अपनी ओर आते हुए दिखाई दिया. बल्लू डर के मारे कांपने लगा और इधर उधर छुपने की जगह खोजने लगा. वह एक पेड़ के खोल में जाकर छुप गया. भालू और नजदीक आ गया था. तभी बल्लू को उसकी माँ की बताई एक कहानी याद आयी जिसमे माँ ने बताया था कि भालू मुर्दा जीव को नही खाते. बल्लू ने फट से तरकीब लगाई और जैसे ही भालू उसके पास पहुँचा बल्लू अपनी सांस को कुछ पल के लिए रोक कर लेट गया. भालू उसे सूंघकर मुर्दा समझा और आगे बढ़ गया और बल्लू की जान बच गयी. उसके बाद बल्लू अपने घर चला गया और माँ को पूरी कहानी बतायी. माँ ने उसे शाबाशी भी दी और जंगल के रास्ते कभी अकेले नही आने जाने की बात भी सिखाई.

किचन गार्डन

लेखक एवं चित्र - त्रिलोकी नाथ ताम्रकार

शाम को स्कूल से घर के दरवाजे पर पहुंचते ही मोनू ने आवाज़ लगाई - मम्मा.... मम्मा.. कहां हो?

मैं यहां हूं मोनू - मां चावल साफ करते हुए बोली.

मोनू स्कूल बैग को रखकर मां की गोद में बैठ कर मां के चेहरे को अपनी और करते हुए बोली - मां आज हमारे स्कूल में पालक की सब्जी बनी थी.

मां ने कहा - लेकिन तुम्हें तो भाजी साग पसंद नहीं है.

मां पालक में आयरन - सबसे ज्यादा होता है. आप तो कुछ नहीं जानती! - मोनू ने मुंह बिसूरकर कहा.

मां ने कहा - अच्छा, और फिर काम में लग गई.

मोनू - और जानती हो मां यह पालक हमारे स्‍कूल के खेत की है.

मां - स्‍कूल के खेत की?

हां मां - मोनू बोली - हमारे स्कूल में किचन गार्डन है जहां मैं और मेरी सहेलि‍यों ने पालक लगाया था. उसी की सब्जी है. जानती हो मां, हमने स्कूल के किचन गार्डन में सब प्रकार की सब्जियां लगाई हैं - टोमेटो (टमाटर), लेडी फिंगर - अरे.. भिंडी, करेला, लौकी, धनिया - ऐसी सब सब्जी लगाई हैं. हमारे गुरु जी बताते हैं कि‍ गोबर की खाद सबसे अच्छी होती है. हमने क्यारी में गोबर की खाद डाली थी. मां बोली - अच्छा मेरी बेटी तो आज बहुत अच्छी बातें बता रही है.

अच्छा मैं खेलने जा रही हूं - मोनू बोली.

अरे रुको तो.. मां ने कहा. जा.. किचन गार्डन से भटा तोड़ कर ले आ शाम की सब्जी बनानी है.

मोनू - ओहो मां किचन गार्डन की सब्जी स्कूल के लिए है हमारे घर के लिए नहीं. मां -अरे.. बारी (बाड़ी) से बेटू.

तो ऐसे बोलो न मम्मा. टोकरी लेकर मोनू बोली - चलो न मां दोनों चलते हैं. मां -अच्छा चलो.

दोनों घर से लगी बारी में जाते हैं. भटा तोड़ते हुए मोनू बोली- मां, बारी में हमारे स्कूल के किचन गार्डन की तरह सब्जियां लगी हैं.

मां बोली - हां मोनू ये मिर्ची, जीमिकांदा, कोचई, तोरई, और यह तुम्हारा लेडीफिंगर. उधर छानही में कोंहडा(कुम्हड़ा) - तुमा(लौकी) और..

मोनू - हां मां टोमेटो और धनिया भी है इसे तो किचन गार्डन कह सकते हैं. सब्जी तोड़कर वापस आते हुए मोनू बोली - मेरी मम्मा सब जानती हैं. कल स्कूल में सबको बताऊंगी कि हमारे घर में भी किचन गार्डन है.

और मोनू खेलने चली गई. मां मुस्कुराती हुई मोनू को देखने लगी.

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