आओ स्कूल चलें

लेखक - नेमीचंद साहू

बजती घण्टी ठिन-ठिन
पढ़ो चलो हर दिन-दिन
करो पहले प्रार्थना सभी
फिर गिनती गिन-गिन !

हिन्दी का पाठ पढ़ने और
अक्षर शब्दो की बात करें
अटक-अटक जो पढ़े
उनको सब साथ करें!!

पहाड़े पढ़ो आगे बढ़ो
करो गणित का सवाल
जोड़ घटाना गुणा भाग
और कर दो तुम कमाल !!

जीवों को तुम पहचानो
अवलोकन कर बार-बार
देखो समझो जानो तुम
प्रर्यावरण का समाचार !!

कविता तुम याद करो
ग्रामर का करने ध्यान
चित्र देख मिलान करो
अक्षर से हो जाते पहचान!!

पाठ पढ़ तैयार हो
पीछे का अभ्यास करो
जोडीमिलान सही-गलत
पूरा करो खाली स्थान भरो!!

आओ सब जतन करें
पाठकों का फिर मनन करें
छुट्टी से पहले बच्चों
मिलकर गुरू का नमन करें!!

एक भारत श्रेष्ठ भारत

लेखिका एवं चित्र - श्वेता तिवारी

भारत उनतीस राज्यों का है संगम देश
सबके हैं अलग-अलग परिवेश
संस्कृति-सभ्यता सबसे सुंदर
भाईचारा निराला है
राज्य-राज्य की विविधताओं में भी
आपस में प्रेम हमारा है
भाँति-भाँति के फूल खिले हैं
इनमें खुशबू लिए हुए
भिन्न-भिन्न रंगो से हैं
इंद्रधनुष के रूप लिए हैं
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
मिलकर देश बना है
स्वर्णिम इतिहास से भरपूर
भारत देश हमारा है
गुजरात में भी मनती लोहड़ी
पंजाब में भी होली की धूम
अरुणाचल में भी गरबा खेलें
केरल में भी नाचें घूमर घूम
अलग अलग है भाषा बोली
परन्‍तु एक अपनी पहचान
भारत माँ के लाल सभी हैं
भारत के हम वासी महान

कब आओगे गांधी

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

धधक रही है आज समाज मे अनाचार की आँधी
कब आओगे जग के रखवाले पुतली के ओ गाँधी

संयम का पुल टूट चुका है
ढ़ह रहा महल अहिंसा का
बढ़ता जाता भेदभाव
क्या होगा निर्बल इंसा का

तेरे बन्दर ऊंघ रहे है
स्वप्न हुई अब तेरी कहानी
दांडी यात्रा कौन करे
नमक बन गया हैं अब पानी

कब आओगे जग के रखवाले
पुतली के ओ प्‍यारे गाँधी....

मानवता का सब्र टूटता
सत्य ने फिर हिम्मत हारी है
नहीं दीखता आस-पास भी
कहीं करो या मरो का नारा

चरखों ने अब उम तोड़ा है
खो गए कहीं खादी और सूत
सच की बातें कौन करे अब
100 में नब्बे पूरे झूठ

झूठे में झूठों का शासन
करते सच की हें बर्बादी
कब आओगे जग के रखवाले
पुतली के ओ प्‍यारे गाँधी...

कलाम कुंडलियाँ

लेखक - डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

साधक थे विज्ञान के,
गढ़कर ज्ञान कलाम।
दिया मिसाइल देश को,
तब है उनका नाम।।

तब है उनका नाम,
हिन्द को सब कुछ माना।
बना देश का मान,
जगत ने भी है जाना।।

कह डिजेन्द्र कर जोरि,
नही अब कोई बाधक।
देश किया मजबूत,
नित्य ही बनकर साधक।।

कलाम को सलाम

लेखक - गोपाल कौशल

चाचा प्यारे कलाम
तुम्हें हजारों सलाम ।
नवभारत के निर्माता
किया जगत में नाम ।।

अग्नि, आकाश, त्रिशूल
से देश का बढाया मान ।
कभी वैज्ञानिक तो कभी
टीचर बनकर दिया ज्ञान ।।

ज्ञान-विज्ञान के थे पंडित
जन - जन के थे मीत।
राष्ट्र सेवा का संदेश देकर
कहा सद्भाव से बनों रंजीत ।।

किताबें

लेखक – डीजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

हर जिज्ञासु के मन में पाने की चाह है,
मंजिल तक पहुंचाने की यही एक राह है।

नया करने का इनमे बनता ख़्वाब है,
जिंदगी में सबसे अच्छी दोस्त किताब है।

इसी में कबीर के दोहे एवं संतों की वाणी है,
इसी में अच्छी कविता एवं अच्छी कहानी है।

किताब ज्ञान की वह अनमोल धरोहर है,
जैसे कि जन भरा अथाह सरोवर है ।

सामाजिक जीवन जीना बेहतर सिखाती हैं,
स्वर्णिम भविष्य गढ़ना हमे बतलाती हैं।

विविध संस्कृतियों का अध्ययन हमे कराती हैं,
सर्वधर्म समभाव की शिक्षा हमे बताती हैं।

मन के दुर्गुणों को निकालना सिखाती हैं,
सबसे अच्छी सखा किताबें कहलाती हैं ।

गाँधी शास्त्री का भारत

लेखक - पुनाराम वर्मा

गाँधी,शास्त्री के भारत को
आओ मिलकर पुनः सजाएँ।
रूके नही अब झुकें नही हम
स्वच्छ, सशक्त, गुणवान बनाएँ।।

चलें उसूलों पर उनके ही
सादा जीवन सब अपनाएँ।
सामाजिक समता समरसता के
जन-जन में फिर भाव विकसाएँ।।

उठकर सत्ता की राजनीति से
सात्विक आचार विचार पनपाएँ।
अहं, स्वार्थ को तजकर आओ
मानवता के किरण जगाएँ।।

गुणों का अनुसरण करें
स्वावलम्बन के भाव भरें।
भौतिकता की चकाचौंध तज
स्वदेश हित चाव भरें।
परिवर्तन के दृढ़ संकल्पों से
शान्ति, एकता जश्न मनाएँ।।

रौशन करें राहों को सबके
सीखें जीनें की कलाएँ।
गौरवशाली पूर्वजों के
पदचिन्हों पर शीश झुकाएँ।
युगपुरूषों इन पुण्यपुरूषों को
मिलकर श्रध्‍दा सुमन चढ़ाएँ।।

गाँधी, शास्त्री के भारत को
आओ मिलकर पुनः सजाएँ।
आओ मिलकर पुनः सजाएँ।।

चींटी रानी

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

चींटी रानी चींटी रानी
लगती तुम बड़ी सयानी
करती तुम दिन भर काम
करती हो कब आराम ?
नहीं किसी से लड़ती तुम
नहीं किसी से डरती तुम
मुफ्त कि नहीं खाती तुम
मेहनत करना सिखाती तुम
देख तुम्हें होती हैरानी
चींटी रानी चींटी रानी

जाड़ा आया

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला

उछलता कूदता जाड़ा आया
देखो कैसे इतराता जाड़ा आया

रवि की स्वर्णिम किरणे लेकर
धूप सजाता जाड़ा आया

ओस की बूंदें हथेली पे रख
मोती सा बिखराता जाड़ा आया

गरम-गरम खाने-पीने का
लाभ बताता जाड़ा आया

स्वेटर मफलर रजाई की
याद दिलाता जाड़ा आया

छत्तीसगढ़

(राज्‍योत्‍सव पर विशेष)
लेखिका - सुनीला फ्रेंकलिन

छत्तीसगढ़ माता है अपनी
हम इसकी सन्तान हैं
धन्य-धान्य से हमको भरती
देती सुरीली तान हैं
हम सब इसके छत्तीस बेटे
अनेकता में एक है
संस्कृति इसकी ही हमको
बनाती इंसान नेक हैं
कण-कण से यह फसलें देती
कटोरा है ये धान का
लाज रखनी है हमको ही
इसके दूध-पान की
सुख-शांति बरसती रहती
इसमें चारों-ओर है
लगता है यहाँ मेले पे मेला
नाचता मन का मोर है

दिव्य गुण धारण करें हम

लेखक - पुनाराम वर्मा

दिव्य गुण धारण करें हम
बगियां के गुलगुल फूल बनें।
सुख की वर्षा करें सभी पर
चलता फिरता स्कूल बनें।।

मंसा,वाचा,कर्मणा जुबां पर
रहे खबरदारी बड़ी।
विकारी मर्यादाएँ भूलें।
मुख में हो मूलहरे जड़ी।।

बाप,शिक्षक सतगुरू पढ़ाते
हम उनके अनुकूल बनें।।
दिव्य गुण धारण करें हम
बगियां के गुलगुल फूल बनें।।

आत्मा समझें खुद को पहले
अवगुणों का त्याग करें।
दुःख न देंगे कभी किसी को
हर दिल में वैराग भरें।।

श्रीमत पर चलते रहें और
माया के सीने की शूल बनें।।
दिव्य गुण धारण करें हम
बगियां के गुलगुल फूल बनें।।

पुरूषार्थ करें उच्च पद खातिर
यह तो विचित्र पढ़ाई है।
आओ अब तकदीर संवारें
ऊँचे स्वर्ग चढ़ाई है।।

सहनशील,मीठे होकर
हम वैतरणी के पुल बनें।
दिव्यगुण धारण करें हम
बगियां के गुलगुल फूल बनें।।

सच्चा गीता ज्ञान सुनाने
त्रिमूर्ति,गोला,झाड़,सीढ़ी हो।
ज्ञान स्मृति में बनी रहे
आने वाले दैव पीढ़ी हो।।

मधुर मुरली सुनाने वाले
कोकिल,कीर,बुलबुल बनें।
दिव्य गुण धारण करें
बगियां के गुलगुल फूल बनें।।

मैं पन को प्रभु में समा दें
सहज,निरंतर याद रहे।
श्वांसों-श्वांस में प्यारे भगवन
बस आपका उन्माद रहे।।

समाधान हों सभी समस्या
आओ ऐसे टूल बनें।
दिव्य गुण धारण करें हम
बगियां के गुलगुल फूल बनें।।

सुख की वर्षा करें सभी पर
चलता फिरता स्कूल बनें।।

दीप जलायें

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

आओ साथियों दीप जलायें,
मिलकर हम खुशियां मनायें।

दीपक से रौशनी जगायें,
अंधियारे को दूर भगायें।

एक एक दीप जलाकर हम
जग में उजाला लायें।

छोटे बड़े सब मिलकर,
दीवाली का त्योहार मनायें।

मीठे मीठे पकवान बनाकर,
मिल बांट कर हम खायें।

करे शरारत बच्चे मिलकर,
फुलझड़ी घर पर जलायें।

आओ साथियों दीप जलाये,
मिलकर हम खुशियां मनायें।।

दीवाली गीत

लेखक एवं चित्र - त्रिलोकी नाथ ताम्रकार

जगमग -जगमग दीप जल उठे
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

स्वच्छता की हैं बात बताते
प्रदूषण से हैं खैर मनाते
गुड्डा-गुड्डी-गीता-गणेश
भेज रहे बधाई संदेश
फेसबुक-व्हाट्सएप वाली
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

झालरों से घर को सजाते
व्दार पर रंगोली बनाते
कभी मिठाई की फोटो भेज
घर पर ही खुशियां मनाते
वीडियो देखोटिक-टॉक वाली
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

रोशनी की न्याय फुलझड़ी
सर-सर करती घूमी चकरी
चुटपुट-चुटपुट ग्रीन पटाखा
धनतेरस की आई बहार
स्नैपचैट और ट्वि‍टर वाली
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

रूप चौदस से सज कर देखो
चौ-पहिए में लक्ष्मी आई
गली-गली गोधन वाली
फोटो भेजो सेल्फी वाली
भाई दूज भी ई-मेल वाली
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

जगमग-जगमग दीप जल उठे
व्दार-व्दार चमकी दीवाली

नशा छोड़ो

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

नशा नाश का जड़ है प्यारे, इसको मत अपनाओ ।
स्वस्थ अगर रहना चाहो तो, सादा भोजन खाओ ।।

इज्जत पैसा दोनों होते, एक साथ बर्बादी ।
रोज लड़ाई झगड़ा होते, बनो नहीं तुम आदी ।।

टूटे घर परिवार सभी से, रिश्ते नाते छोड़े ।
ऐसी आदत वालो से अब, काहे रिश्ता जोड़े ।।

खाने को लाले पड़ जाते, बच्चे भूखे सोते ।
जीना मुश्किल हो जाता है, कलप कलप कर रोते ।।

मद्यपान अब करना छोड़ो, सादगी को अपनाओ ।
मिट जायेगा क्लेश कलह सब, घर में खुशियाँ लाओ ।।

पावन लगता है

लेखक - अरविंद वैष्णव

भाई बहन का रिश्ता प्यारा
पावन लगता है ।

भाई दूज का पर्व
मनभावन लगता है ।।

बहना से होते सुरभित
घर और आंगन ।
भाई की रक्षा का भाव
यमपाश मिटाना होता है ।।

बहना की मुस्कान से
भाई का मन खिल जाता है।
जाते-जाते दीपोत्सव
अपनापन सिखलाता है ।

कुछ बहनों के भाई
सीमा पर तैनात हैं ।
ऐसे वीर जवानों को
करते हम सलाम हैं ।।

पौधे हैं अनमोल

(विज्ञान कविता)
लेखक - पेशवर यादव

सूरज की किरणों से
खाना बना रहा हूँ
स्वंय खा रहा हूँ
औरो को खिला रहा हूँ

(2)
गति प्रकाश से
प्रकाशानुवर्तन कर रहा हूँ
CO2 और जल पीकर
कार्बोहाइड्रेट बना रहा हूँ

(३)
प्रांकुर मुलांकुर से,
प्ररोह-रोह बन रहा हूँ
तना जड़ पत्तियों को
जल पि‍ला रहा हूँ

(4)
वाष्प का उत्सर्जन करके
जल चक्र बना रहा हूं
स्वंय सींच रहा हूँ
औरों को पि‍ला रहा हूँ

(५)
सूरज के ताप से
स्वंय तप रहा हूँ
दुनिया के खुशहाली के लिए
ऑक्सीज़न बना रहा हूँ

मिट्टी वाले दीये जलाना

लेखिका – शीला गुरूगोस्‍वामी

राष्ट्रहित का गला घोंट कर
छेद न करना थाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में।

देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में।

बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दीये बिकें बाजारों में,
छिपी है वैज्ञानिकता
अपने सभी तीज-त्योहारों में।

चायनीज झालर से आकर्षित
कीट पतंगे आते हैं,
जबकि दीये में जलकर
बरसाती कीड़े मर जाते हैं।

कार्तिक और अमावस वाली,
रात न सबकी काली हो।
दीये बनाने वालों की अब
खुशियों भरी दीवाली हो।

अपने देश का पैसा जाए,
अपने भाई की झोली में।
गया जो पैसा दुश्मन देश,
तो लगेगा राइफल की गोली में।

देश की सीमा रहे सुरक्षित
चूक न हो रखवाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में।

मैं नन्हा सा हिन्दुस्तान

लेखिका एवं चित्र - मनीषा राघव सिंह

मैं नन्हा सा सहमा सा, हिंदुस्तान हूँ,
पता नहीं की मैं वाकई हिंदुस्तान हूँ?
मैं बचाना चाहता हूँ अपने जंगल को, वृक्षों को
और उन नादान बेटियों को जिनसे मैं डरता हूँ.

मैं बचाना चाहता हूँ अपने जल को, नभ को,
अपनी धरती माँ को अपने आप से,
क्यों कि मैं नादान हिंदुस्तान हूँ

मैं विकास कर रहा हूँ,
लेकिन अपनी नादानी से शायद अपने आप को खोके,
रोके रोके मुझे मेरी नादानियों से
ताकि अपनी आने वाली पीढ़ियों को दे जाऊं
जो मैंने अपने पूर्वजों से पाया था.

मैं सौम्य हूँ, मैं सरल हूँ, मैं हिंदुस्तान हूँ,
न मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान हूँ,
मैं सिर्फ हिंदुस्तान हूँ.

बच्चोँ मेरा ख्याल रखो,
पढ़ लिख कर स्वच्छ सुन्दर हिंदुस्तान रचो.
मैं नन्हा सा सहमा सा हिंदुस्तान हूँ,
पता नहीं की मैं वाक़ई हिंदुस्तान हूँ?

वृक्ष

लेखिका - सुनीला फ्रेंकलिन

ऊँचे-ऊँचे ये वृक्ष विशाल,
मोटा तना है मोटी डाल।

दूर दूर तक बाँहें फैलाये,
खेत खलिहानों में है छाये।

लहराते है ये झूम-झूम कर,
गीत गाते ये घूम-घूम कर।

जहाँ देखो ये वही खड़े हैं,
अटल-अजेय से वही अड़े है।

है हरे-भरे नयनाभिरामी,
सदा विजय की ये भरते हामी।

इन पर बैठ कर चिड़िया गाती,
और ताल देती हैं इनकी पाती।

बादलों को ये आकर्षित करते,
वर्षा देकर हमको हर्षित करते।

प्राणप्रद वायु भी ये देते हैं,
फिर भी दाम हमसे नहीं लेते है।

पर्यावरण है इनके दम पर,
प्रेम ये हमसे करते जम कर।

फिर भी इन्हें हम नुकसान पहुँचाते,
जान-सुनकर भी हम कष्ट उठाते।

अब कुछ तो हमको करना होगा,
वरना किए का फल भरना होगा।

आओ मिलकर हम ये काम करें,
वृक्षारोपण कर हम अपना नाम करें।

जादूगर

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

गाँव में आया जादूगर
खेल दिखलाया जादूगर
पकड़ छड़ी उसने घुमाया
झट से पैसा उसने बनाया
उसने जादू खूब दिखाएँ
हमने ताली खूब बजाएँ
मन में आया एक सवाल
पहुँच जाऊँ नैनीताल
मन की बातें जा खोला
जादूगर से जा बोला
हँसकर बोले जादूगर
सुन मेरे बाजीगर
सब हाथों की सफाई है
नहीं इसमें सच्चाई है
मैं वह बेचारा हूँ
हालात के आगे हारा हूँ
जादू मैं दिखाता हूँ
सब को रोज़ हँसाता हूँ

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