दाई मय सिपाही बनहू

लेखक - लुकेश्वर सिंह ध्रुव

दाई मय सिपाही बनहू
सरहद म जाहू
दुश्मन ल मार भगाहू
दाई मय सिपाही बनहू
सच के रद्दा म चलहू
भाई-भाई म मया जगाहू
देश बर जिंहू देश बर मरहू
देश परेम के गीत गाहू
दाई मय सिपाही बनहू
चापलूसी ले दूर रहू
न देश के संग गद्दारी करहू
न दुश्मन ल पीठ देखाहू
भारत माता के सच्चा बेटा कहाहू
दाई मय सिपाही बनहू

दिया बन जतेन

लेखक - श्रवण कुमार साहू, प्रखर

चल न संगवारी दीया बन जतेन,
बाती के संगे-संग, जल जतेन।।

गिल्ला-गिल्ला माटी, चाक म चढ़के,
सुग्घर-सुग्घर दीया, बन जतेन।।

आगी म तप के, निखर जतेन।
कुम्हार के भाग, हमू बन जतेन।।
चल न जी, अंधियार डगर ल,
हमू मिल के, अंजोर कर देतेन।।

कभु बनतेन, गरीब के उजियारा
कभु आरती बनतेन, भगवान के।

इही बहाना तो, सेवा कर जातेन।
हम मानवता अउ, सब इंसान के।

दीया के सुख दुःख, दीया ह जाने।
जेन तिल-तिल करके, जलत रहिथे।।

दूसरा के सुख के, खातिर वोहा।
जिनगी म कतेक, दुःख ल सहिथे।

जेन ह अपन, आखिरी साँस ले,
दूसरा ल जीवन, देवत रहिथे।

जेन कभू लेय नइ हे, ये दुनियाँ म।
उल्टा जिनगी भर, सबको दिया है

वोकरेच नाम ह सहिच म,
ये दुनियाँ म दीया हे,,, दीया हे।।

दीपमाला

लेखक - योगेश ध्रुव भीम

उजले घर उजले आँगन
घर के व्दारे बाग बगीचे
गाँव गली ये चौराहे में
प्रेम के दीपक जले हुए हैं
दीपों की दीपमाला से

बच्चे बूढ़े हँसते गाते
अंधकार को दूर भगाते
स्नेह के हैं दीप जलाते है
घर व्दार को हैं ये सजाते
दीपो की दीपमाला से

उजले कपड़े पहने सब जन
लक्ष्‍मी जी का शुभ आगमन
आयीं माता शुभ चरणों से
अन्नकूट धेनु को देते
हलधर जन की सेवा करते
दीपो की दीपमाला से

भर भर मुठ्ठी बंटे बतासे
फुलझड़ी और अनार जलाते
गीत प्रेम से सब हैं गाते
आनंद मंगल की बधाई देते
दीपो की दीपमाला से

राष्ट्र प्रेम के धागों में बंधकर
भाईचारे का संदेश देते
दीपो की उज्ज्वलता लेकर
उत्‍सवमिलकर सभी मनाते
दीपों की दीपमाला से

पढ़व आज (कज्जल छंद)

लेखिका - चित्रा श्रीवास

सबले पहिली करव काज
शाला जाके पढ़व आज
जिनगी के हे इही राज
करही दाई ददा नाज।।

शिक्षा देवय सदा साथ
बड़का धन हे हमर हाथ
ऊँचा राखय सदा माथ
मनखे बनथे अपन नाथ।।

मय नेहरू बन जातेंव

लेखक - संतोष कुमार साहू 'प्रकृति'

मुखडा-
मय चाचा बन जातेव का जी, मर नेहरू बन जातेव।
पहिन के टोपी अऊ पजामा, गुलाब धरके आंतेव।।

1
जम्मो जगत ल मया करेबर, अपन जीवन ल बितायेंव।
नई रहितीस कोनो खचका डबरा, बरोबर सब ल बनातेंव।
नान्हें लयिका मोर संगवारी, लयिका दिवस मनातेंव।।

2
धरम करम के भेद पाट के, मया के रूख उपजातेंव।
भुंईया के भारे उना करेबर, ज्ञान के जोत जलातेंव।
भारत दाई के बेटा बनके , करजा ल मेहा चुकातेंव।।

3
चंदा सूरूज ल खेलवना बनाके, शनि मा चढके आतेंव।
मंगल बुध अऊ गुरू म जाके, आखर दिया जलातेंव।
अरूण वरूण अऊ यमराजा मा, भोंरा बांटी खेल आतेंव।।

4
नान्हें नान्हें हाथ गोड हे ,सोच ल बडका बनातेंव।
आसमान मा छेदा करके, सिहांसन मय लगातेंव।
ज्ञान गली के रद्दा बनाके, सत मारग ला दिखलातेंव ।।

चाचा नेहरू बच्चों का प्यार देख कर खुद बच्चा बनाने हेतु ओत प्रोत हो जाते हैं और अपने बालपन को याद कर कह उठते हैं -

मय लयिका बन जातेंव

मुखडा-

मय लयिका बन जातेंव का जी, मय लयिका बन जातेंव।
धरके बस्ता अउ कलम ल, ज्ञान के आखर पातेंव।।

1
गुरू बबा के ज्ञान ल पाके ,नाव उपर कर जांतेंव।
दाई ददा के सेवा बजाके, जनम सुफल कर जातेंव।
पढे लिखे बर लयिका बनके, रोजेच स्कुल जातेंव।।

2
भौंरा बांटी खेले ल खेलके ,कम्प्यूटर म मजा उडातेंव।
खो कबड्डी फुगडी खेलके, गणित ल मेहा बनातेंव।
अनार अउ गिनती ल लिखतेंव, गुणा भाग कर आंतेंव।।

3
अंगरेजी बड मजा आथे, विज्ञान म जीव ल बतातेंव।
इतिहास अउ भूगोल पढके, नक्शा झट ले बनातेव।
जीव जनावर रूख अउ राई, परयावरण पढ जातेंव।।

4
गांव गली ल सुघ्घर करतेंव,रद्दा निछमल कर आतेंव।
घर घर म शौचालय होतिस, गांव ल सरग बनातेंव ।
कोनो नई रहितिस लांघन भुखन, मिल बांट के खांतेंव।।

5
दाई ददा के नाव जगाके, भुंइया के नाव जगातेंव।
सते करम ल करके भैय्या, मया के गंगा बोहातेंव।
मेहनत के कमाई ह पूरथे, सब झन बतलातेंव।।

मिट्ठू अउ मुसला

लेखक - नेमीचंद साहू

लालच म फंसगे सबोझन
सिकारी के जाल म ।
सियान के बात न इ मानय
पड़ जाते जंजाल म ।।

किसने किस्सा मिट्ठू के
फंसगे सबों ह जाल म ।
कतको करिस उदिम फेर
पड़े रहिस जंजाल म ।।

अलगे-अलगे उड़ाय सबों
बुता है चलो सिधय नहीं।
कचरा हो जथे झाड़ू घलो
एके साथ जभे राहय नहीं।।

सुनता ले उडिन सबों
फांदा ह चलो उडागे।
उदिम बनिस ओकरे जेकर
सबों म जोनहा बुढागे।।

उडावत-उडावत सबोझन
मुसवा राहय संगवारी ।
अचरज म पड़गे ओहर
बिपत ल देख भारी ।।

फांदा ल सबों कुतर दिन
मिट्ठू अजादी पाइन ग।
मिल जुरके सबों कोन्हों
सुघ्घर गीत गाइन ग ।।

यहू घलो नंदावत हावे

लेखक - योगेश ध्रुव भीम

गाँव म नई दिखे
खोर गली म कुँआ
पानी के भरैय्या घलो
नई दिखे पनिहारिन
यहु घलो नंदावत हावे

घर म नई दिखे कभू
मूसर बहाना ढेंकी न
चाउर ल छरैय्या घलो
देखे ल नई मिले न
यहू घलो नांदावत हावे

माटी कुरिया खदर छानी
अउ मोटरा के बोहैय्या न
ढेरा के अटैय्या घलो
छकड़ा गाड़ी ल चलैय्या
यहु घलो नंदावत हावे

नई दिखे गाँव खोर म
गोड़ेला चिरैय्या घलो
टेहर्रा नई दिखे कभू
भाट भटरी अउ मांगैय्या
रहस डंडा के नचैय्या
यहु घलो नंदावत हावे

चुनी रोटी के खवैय्या
पान रोटी ल बनैय्या
भदही पनही के पहनैय्या
मोरा खुमरी के ओढाय्या
ये नवा जमाना आगे न
यहु घलो नंदावत हावे

बखरी बारी म टेरा टेरैय्या
नरवा बाहरा ढोढगी म
चोरिय्या के खेलैय्या घलो
मचान के बनैय्या न
य घलोहू नंदावत हावे

लीला नाटक के करैय्या
गड़वा बाजा ल बजैय्या
पंडवानी ल गवैय्या
यहु घलो नंदावत हावे

गली खोर म नइ दिखे
चिखला घलो अउ माटी
होगे यहु ह पक्की
भूईय्या कहाँ ले
सोखही घलो पानी

अब होगे हे करलाई
यहू घलो नंदावत हावे
ये नवा जमाना आगे भीम
ये नवा जमाना आगे

शरद पुन्नी

लेखक - योगेश ध्रुव भीम

पुन्नी के चँदा न, अंजोर बगराये हावे
अगासे भूईय्या म, ठिठोली करत न

अमरीत बरसावत, खोखम के फुले म
तरिया अउ नरव के, पानी म छिछले हावे

घर के दुवारी अउ, कुरिया के छानी म
बखरी बियारा म, हाँसत गावत हावे

बबा के माची अउ, लईका के थारी म
शरद के चँदा ह, अंजोरी बगराये हावे

गोले तोर चेहरा अउ, रुपे तोर सुघ्घर न
मन ल रिझाये तय, पगला बनाये हावस

केंवट के डोंगी अउ, रूखवा के फुनगी म
शरद के चँदा तय, मोती कस दमकत न

लईका सियाने के, मन ल तय मोहडारे
तोरे अंजोरी ये, सब ल घलो रिझाये न

नदियां समुंदर म, छिछले अंजोरी कस
शरद के चँदा घलो, अमरीत पियाये तय

मूरझाये तन ल तय, हरियाये मन ल न
तोरे अंजोरी घलो, निक मोल लागे हाबे

दूध भाते कटोरा ह, छानी म रखाय हावे
शरद के चँदा तय, अमरीत ल बरसादे न

मोर गाँव के गली म, लईका गोहारे परात घलो
शरद के अंजोरी तोला, भीम ह बुलावत हावे

हइय्या रे हइय्या

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला

हइय्या... रे...हइय्या...
चलव...रे...भइय्या...

सुघर डगर
गाँव डहर
जाबोंन रे भइय्या...हइय्या रे...

आमा अमराई
डोलय रुखराई
झूलबोंन रे भइय्या... हइय्या रे...

कोइली गाही
बेंदरा मटकाही
जीभराबोंन रे भइय्या...हइय्या रे...

दाई खिसियाही
अबड़ हाँसी आही
हा...हा...हा...

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