नन्हा कौआ

लेखक - बलदाऊ राम साहू

महानदी के तट पर एक पीपल का पेड़ था. उस पेड़ पर कुछ कौए रहते थे. सुबह होते ही वे एक साथ भोजन के तलाश में निकल जाते और साँझ होने पर लौट आते. एक दिन जब वे लौट रहे थे तब उन्होंने बगुलों का एक झुंड देखा. जिसे देखकर वे आवाक रह गए. सभी बगुले एक से बढ़कर एक सुन्दर. उस पर चमकीले पंख तो उनकी सुन्दरता को और भी व्दि गुणित कर रहे थे. बगुलों की सुन्दरता पर एक बूढ़े कौंए ने कहा – ‘‘वाह, ईश्वर ने इन्हें कितना सुन्दर बनाया है. इनके ये श्वेत पंख तो जैसे चंद्रमा को चुनौती दे रहे हैं.’’ सब कौओं ने बूढ़े कौए की हाँ में हाँ मिलायी, लेकिन एक नन्हे कौए को बूढ़े कौए की बात नहीं जँची. बड़ों के सामने कुछ कहना अच्छी बात नहीं है, यह सोचकर नन्हा कौआ चुप रहा. वैसे तो यह नन्हा कौआ सदैव अपनी प्रतिक्रिया देता था, किन्तु उसका आज मौन रहना बाकी कौओं के लिए आश्चर्य की बात थी. उसे मौन देखकर बूढ़े कौए ने कहा -''क्यों भाई आज तुम मौन कैसे?' बूढ़े कौए की बात सुनकर नन्हे ने कहा - 'बाबा, ईश्वर ने सभी जीवों को अनोखा बनाया है, भले ही कोई अपना अनोखापन देख नहीं पाया हो.'

नन्हे की बात बहुतों को समझ में नहीं आयी. कुछ तो नन्हे का मुँह ताकने लगे और कुछ ने काँव-काँव कर के अपनी असहमति जताई. बूढ़े कौए ने कहा – ‘‘अरे रुको, इसे अपनी बात कहने दो.’’ बूढ़े कौए की बात सुनकर सभी मौन हो गए.

नन्हे ने कहा - ''बाबा हम सभी का रंग काला है, इसका मतलब यह नहीं कि हम अनुपयोगी और बेकार हैं. ईश्वर ने हमारी रचना भी कुछ सोच-समझकर ही की होगी. हमारा रंग जरूर काला है लेकिन हम चतुर होते हैं. हमारी चतुराई का सभी लोहा मानते हैं. फिर हम जैसा परोपकारी इस सृष्टि में दूसरा और कौन है. हम अपनी अनेक क्रियाओं के माध्यम से लोगों तक शुभ संदेश भी पहुँचाते हैं. ईश्वर ने हमें यहाँ सेवा भाव देकर भेजा है. जो काम हम कर सकते हैं उसे कोई दूसरा नहीं कर सकता.

‘‘पर हमारी आवाज?’’ एक दूसरे नन्हे कौए ने कहा. इस पर वह नन्हा कौआ बोला – ‘‘हाँ, यह सही है कि हमारी आवाज कर्कश है, पर हमारी तरह सभी प्राणियों में कुछ न कुछ कमियाँ भी अच्छाइयों के साथ ईश्वर ने ही दी हैं, ताकि किसी को अपने पर घमंड न हो, और यह हमारे वश में नहीं है. पर हम अपने व्यवहार को अच्छा बना कर अपने को और अधिक उपयोगी प्राणी बना सकते हैं. लोगों की पहचान तो उनके काम से होती है न कि उसके रूप-रंग से.’’ नन्हे की बात सभी को भा गई. वे अब खुश हैं. सभी ने जोर से काँव-काँव कर के नन्हे को खूब शाबाशी दी और बूढ़े कौंए ने उसे भरपूर आशीष दिया.

जंगल में कृष्ण जन्माष्टमी

लेखक – दीपक कंवर

सुंदर वन मे सभी प्रकार के जीव जन्तु हंसी-खुशी रहा करते थे. वहां के राजा शेर सिंह ने कृष्ण जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाने ओर उनका उत्साह बढ़ाने के लिए पुरस्कार की घोषणा की. मुनादी कराई गई की जो इस साल पहले मटका फोड़ेगा उसे पुरे साल मुफ्त मे भोजन व महल मे रहने का मौका दिया जायेगा. जन्माष्टमी के दिन कार्यक्रम खुले मैदान मे रखा गया, जहां राजा के बैठने लिए उंचा स्थान था. चारो तरफ मटका फोड़ प्रतियोगिता देखने के लिए भरी भीड़ इकटठा थी. मटके को इस बार पहले सालों की अपेक्षा ज्यादा उंचाई पर बांधा गया था. मटका फोड़ मे हिस्सा लेने के लिए उत्साही जानवरों ने अपना-अपना नाम लल्लु सियार के पास लिखा दिया और अपनी अपनी बारी का इंतजार करने लगे.

लल्लु ने पहले नटटु बंदर का नाम पुकारा. नटटु आया और उसने उछल-उछल कर मटका तोड़ने की कई कोशिशें कीं, पर वह सफल नहीं हुआ. उसकी हरकतों से दर्शक खूब ठहाके लगाकर हंसे. दुसरी बारी कल्लू भालु की थी. कद मे छोटा और मोटा होने के कारण वह उछल भी नहीं सकता था. दोनो टांगें उठाकर उसने पूरा ज़ोर लगाया पर उसकी सभी कोशिशें बेकार हो गयीं और वह मायूस होकर लौट आया. तीसरी बारी पर जब गज्जू हाथी का नाम आया तो सभी को विश्वास होने लगा कि इस बार ज़रूर वह मटका फोड़ देगा. पर वह भी थोड़ा सा चूक गया. चारों ओर सन्नाटा छा गया. सब सोचने लगे कि अब किसकी बारी है और कौन मटका तोड़ पायेगा. अब बारी लम्बूलाल उंट की थी. सबको यकीन हो गया था कि बस यही मटका तोड़ेगा. सभी उत्साह मे ताली बजाने लगे, लेकिन लम्बू तो मटके को बस मुंह से छू भर पाया. सभी निराश हो गये.

अबकी बार एक अजनबी का नाम पुकारा गया. इसे सुनकर सभी इधर-उधर देखने लगे. एक लम्बा काले-काले धब्बों वाला नया जानवर नज़र आया, जिसकी लम्बी-लम्बी टांगे और लंबी गर्दन थी. उसका नाम जिराफ था. राजा ने पड़ोसी राज्य से जिराफ को खासतौर पर आमंत्रित किया था. इस कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए उसने अपना नाम सीढ़ी लिखवाया था. उसने अपनी लम्बाई का फायदा उठाते हुए एक ही बार मे मटका फोड़ दि‍या. चारों तरफ तालि‍यों की गड़गड़ाहट से मैदान गूंज उठा. सभी जानवरों ने नाचते गाते कृष्ण जन्माष्टनमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया.

मजा आता है

लेखक - निशांत शर्मा

बड़ो के सो जाने के बाद घर में रखे फ्रीज में से चुपके-चुपके चॉकलेटस और आईस क्रीम निकालकर खाने में मजा आता है. भरी दोहपर में किचन की अलमारी में से चुपके से डिब्बे खोलकर मीक्चर, सलोनी और मिठाई निकालकर खाने में मजा आता है. नहाते समय खल-खल बहते पानी के साथ उछल कूद करने में मजा आता है. तैयार होते समय अपनी पसंद का कपड़ा और ड्रेस पहनने में मजा आता है. मम्मी के बने हाथो का पोहा, उपमा, आलू के पराठे और फ्राईड चावल खाने में मजा आता है. छुट्टि‍यों के दिनों में टेलीविजन में कार्टून नेटवर्क, पोगो छोटा भीम, टॉम एंड जैरी, मोटू-पतलू देखने में मजा आता है.

दोपहर में खाने के समय मम्मी के हाथों का बना गरमा गरम दाल चावल उन्हीं के हाथों से मसलकर उन्हीं के हाथों से खाने में मजा आता है. शाम के गरमा गरम चाय के साथ Parle-G डूबा डूबा कर खाने में मजा आता है. चाय के बाद मोहल्लों के दोस्तों के साथ गिल्ली-डंडा, खो-खो, कबड्डी, क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन और वॉलीबॉल खेलने में मजा आता है. परंतु कभी-कभी लगता है कि यह स्मार्टफोन और मोबाईल हमसे हमारा बचपना तो नही छीन रहा, क्योंकि आज जिन लम्हो में हमें अपने दोस्तों के साथ खेलकूद करना चाहिए उन लम्हो को हम अपने स्मार्टफोन के साथ बि‍ता कर अपना बचपना खो रहे हैं. स्मार्टफोन हमारा दूसरा परम मित्र जो बन गया है. एक बार बिना स्मार्ट फ़ोन के जिंदगी गुजार कर तो देख पगले....जिंदगी जीने का मजा आता है.

मम्मी मुझसे रूठना मत

‌लेखक - ‌निशांत शर्मा

सुबह मुझको यदि‍ स्कूल जाने के लिए जगाओगी और मेरी नींद नहीं खुली तो मम्मी मुझसे रूठना मत. जल्दी-जल्दी ब्रेकफास्ट चाय नाश्ता नहीं किया तो मम्मी मुझसे रूठना मत. स्कूल जाते समय यदि रोया तो मम्मी मुझसे रूठना मत. स्कूल टेस्ट में यदि कम नंबर लाया और अपना टिफिन पूरा नहीं खाया तो मम्मी मुझसे रूठना मत. स्कूल ड्रेस गंदा कर के घर आया, जूता कीचड़ में लबालब कर के लाया तो मम्मी मुझसे रूठना मत. होमेवर्क के समय यदि दोस्तों के साथ खेलने चला गया, टीवी में कार्टून देख लिया तो मम्मी मुझसे रूठना मत. घर का काम नहीं किया अपनी मस्ती में मस्त रहा तो मम्मी मुझसे रूठना मत. पापा से चॉकलेट पिज़्ज़ा बर्गर की फरमाइश की तो मम्मी मुझसे रूठना मत.

फिर भी यदि आप रूठोगी तो आपको सौ नहीं हजार बार मनाऊंगा, क्योंकि मुझे मालूम है कि जो सबसे प्यारा और नजदीक होता है न, लोग उसी से रूठते हैं. रूठने से ही तो प्यार बढ़ता है. मैं अपना नटखट पन जारी रखूंगा आप मुझसे रूठती रहिए. मैं आपको मनाता रहूंगा. बस भगवान, ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु से एक ही प्रार्थना करता हूं कि आप जैसी मां मुझे सात जन्मों में बार-बार मिले. मैं ही आपका बेटा बनकर इस दुनिया में जन्म लूं. मम्मी ओ मम्मी.... जैसा भी हूं आपका लाडला हूं, आपका प्यारा हूं. मेरी शैतानी में भी आपके लिए मेरे प्रति और मेरे लिए आपके प्रति असीम प्यार छिपा है. फिर भी कहता हूं मम्मी मेरी तमाम शैतानियों के बावजूद आप मुझसे कभी रूठना मत.

Visitor No. : 6630074
Site Developed and Hosted by Alok Shukla