नंदा मैडम की कक्षा (भाग-2)

लेखक – सुधीर श्रीवास्तव

(पिछले अंक में आपने पढ़ा था कि नंदा ने किस तरह संख्या पद्धति की जटिल संरचना को आसान उदाहरणों से बच्चों के सामने रखा और संख्याओं को बनाने के क्रम में दस-दस के समूह बनाने की प्रक्रिया को अपने अध्यापन में सम्मिलित किया।)

नंदा को जैसी उम्मीद थी, बच्चों ने आज उससे बढ़कर काम किया था. कक्षा में आते ही नंदा ने देखा कि हर एक बच्चे के पास कुछ-न-कुछ चीजों की ढ़ेरियाँ रखी थीं. तरह-तरह के बीज, नदी की रेत से इकट्ठे किए गए रंग-बिरंगे पत्थर, सीपी, घोंघों के सूखे हुए खोल, बघनखे के लटकने वाले फल और भी न जाने क्या-क्या. उसे यह बात साफ समझ में आ रही थी कि बच्चों को थोड़ी सी भी स्वतंत्रता मिलती है, तो उनकी रचनात्मकता छलकने लगती है. बच्चों के पास रखी ढ़ेरियों को देखकर लग रहा था जैसे उन में यह बताने की होड़ लगी है कि उनकी चीज दूसरों से अलग है और विशेष भी.

नंदा दरवाजे पर ठिठकी सी खड़ी रही, बच्चे दौड़कर आए और उससे लिपट गए. “अरे छोड़ो .... छोड़ो’’ कहती रही नंदा और ऐसे ही बच्चे उसे अपने साथ कक्षा के अंदर ले आए.

“मैडम आज क्या करेंगे? ’’ कुछ बच्चे कूद-कूद कर ये पूछ रहे थे. नंदा ने झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा - “पहले तुम सब अपनी जगह पर बैठो और बिल्कुल चुप हो जाओ, तब बताऊँगी’’.

एक-डेढ़ मिनट में कक्षा एकदम शांत हो गई. बच्चों की आँखों से उत्सुकता झाँक रही थी. नंदा ने कहा - “कल तुम लोगों ने यह बताया था कि दस-दस के ढेर को मिलाते जाएँ, तो दस, बीस, तीस, चालीस बनते जाते हैं. आज हम देखेंगे कि इन ढ़ेरियों में थोड़ी और चीजें मिला दें, जैसे दस की तीन ढेरियों में पाँच चीजें और मिला दें तो कितने हो जायेंगे? इस पूरे को हम किस-किस तरह से बता सकेंगे और क्या इसका कोई अलग नाम भी है?’’

नंदा ने देखा कि कुछ बच्चे उसकी तरफ एकटक देखे जा रहे थे. उनके चेहरे पर असमंजस के भाव थे. उसने कहा - “चलो इसे इस तरह समझते हैं.’’ उसने एक बच्ची के पास रखे मटर के दानों में से मुट्ठीभर दाने उठाए और उन्हें अपनी टेबल पर रखा. एक बच्ची से उन्हें दस-दस की ढ़ेरियों में रखने के लिए कहा. बच्ची ने ऐसा ही किया. दस-दस की तीन ढेरियाँ बनीं और दो दाने शेष रह गए.

नंदा ने पूछा - “यहाँ मटर के कितने दाने हैं, कौन-कौन बता सकते हैं? ’’ कुछ बच्चों ने हाथ उठाए.

नंदा ने एक बच्चे से कहा - “अरविंद तुम बताओ. ’’ उसने एक-एक करके तीनों ढेरियों को गिना और फिर दो दानों को भी, और कहा - “दस, बीस, तीस और दो दाने याने बत्तीस’’.

इतना होते-होते सभी बच्चे टेबल के इर्द-गिर्द जमा हो गए थे. नंदा ने कहा - “गुड! इस ढेर में चीजें दो तरह से रखी हैं. कोई बताएगा इनमें अलग-अलग बात क्या है? ’’ बच्चे सोच रहे थे. नंदा प्रतीक्षा कर रही थी.

दयानंद, जो अक्सर शांत रहता था, उसने कहा - “मैडम, गलत हो जाएगा तो? ’’

“तो कोई बात नहीं. तुम्हारे मन में जो बात आ रही, वो बताओ बेटा’’.

दयानंद की हिम्मत बढ़ी. उसने कहा - “यहाँ चार ढेर हैं. तीन में तो दस-दस मटर हैं, और एक में बस दो ही हैं. ’’ उसने अपनी आँखों में प्रश्न लिए नंदा की ओर देखा. शायद वह आश्वस्त होना चाहता था’’.

नंदा मुस्कुरा उठी. उसने अपनी उगलियों से दयानंद की ठुड्डी पकड़ी. उसे दाएँ-बाएँ हिलाते हुए कहा - “एकदम सही मेरे बच्चे.’’

दयानंद के चेहरे पर खुशी आ गई. उसकी आँखों में आत्मविश्वास की झलक दिख रही थी और सभी बच्चों को दयानंद की कही बात समझ में आ गई थी. वे सभी देख पा रहे थे कि जितनी चीजों को बत्तीस गिनते थे, उसमें एक खास तरह की व्यवस्था है. नंदा को भी यह बात समझ में आ रही थी कि उसकी इस कोशिश का असर बच्चों के दिमाग पर पड़ रहा है और संख्या की एक अलग तस्वीर बननी शुरू हो रही है. उसने धीरे से पूछा - “क्या हम सभी अपनी-अपनी चीजों से बत्तीस चीजें अलग कर सकते हैं?’’

कुछ बच्चों ने धीरे से “हाँ’’ कहा ....... कुछ ने हाँ में केवल सिर हिलाया, कुछ चुपचाप सोचते रहे. कक्षा में यह वह समय था जब सारे बच्चे किसी संख्या की इस नयी व्यवस्था को देखने, समझने और आत्मसात करने की मानसिक प्रक्रिया से गुजर रहे थे. नंदा सबकी अलग-अलग मनःस्थितियों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी.

कक्षा में शांति थी. अभी कोई किसी से बात नहीं कर रहा था. हर एक बच्चा अपनी ढ़ेरियों से जुड़ गया था. हर एक के मन में ‘बत्तीस’ अपनी एक नयी छवि बना रहा था. नंदा उन्हें काम करते हुए उत्सुकता से देख रही थी.

थोड़ी ही देर में हर बच्चे ने इस संख्या को चीजों को रखने की एक खास व्यवस्था के रूप में प्रदर्शित कर लिया था. और अब समय था एक-दूसरे के काम को देखने का. प्रत्येक बच्चा आश्वस्त होना चाहता था कि जो उसने किया है, वह सही है.

इस बीच नंदा लगातार सोच रही थी कि अब आगे कैसे बढूँ. बच्चों की कठिनाई यह है कि कोई संख्या बोलने पर वे उसे लिख नहीं पाते क्योंकि संख्याओं की पहचान का कोई तर्कसंगत आधार उनके पास नहीं था. उन्होंने संख्यओं को क्रम से बोलने की प्रक्रिया को दुहरा-दुहरा कर संख्याओं के नामों को क्रम से रट लिया था. अचानक उसे यह सूझा कि संख्या का नाम देकर संख्या को वस्तुओं के समूह व्दारा प्रदर्शित करने की प्रक्रिया को उल्टा कर दें तो बात बन जायेगी. याने पहले वस्तुओं के किसी समूह को दस-दस की ढ़ेरियों में व्यवस्थित करने को कहा जाए. फिर इन समूहों को गिनकर बची हुई चीजों को गिनने को कहा जाए. हाँ, यही ठीक रहेगा. इससे बच्चे सही संख्या नाम तक पहुँच जाएँगे, क्योंकि उन्हें दस, बीस, तीस गिनना तो आ ही गया है. और उन्हें क्रम से गिनती बोलना भी आता है. बस यही किया जाए.

नंदा के मस्तिष्क में एक विचार तो स्पष्ट हो गया था. अब उसे करके देखने की जरूरत थी. यह देखना था कि यह तरीका कारगर हो पाता है या नहीं. उसने देखा बच्चों ने अपनी संकलित चीजों से बत्तीस को व्यक्त करने का काम कर लिया था. यह थोड़ा आसान था क्योंकि उसने मटर के दानों का उपयोग करके पहले एक प्रदर्शन तो कर ही दिया था. अब कठिनाई के स्तर को थोड़ा सा बढ़ाया जाए. यह सोचकर उसने बच्चों से कहा - “चलो, एक और संख्या पर हम काम करते हैं. मैं तुम्हें संख्या का नाम नहीं बताऊँगी, पर यह बताऊँगी कि इसकी व्यवस्था क्या है. ठीक है? ’’

बच्चों को मालूम था कि मैडम जो भी काम देती हैं, उसके तरीके भी बताती हैं. वे आश्वस्त थे कि वे कर ही लेंगे. उन्होंने कहा - “हाँ मैडम !’’ नंदा ने कहा - “हम एक ऐसी संख्या बनाएँगे, जिसमें दस-दस चीजों के चार समूह हैं और सात चीजें और भी हैं. बना लोगे? ’’

बच्चों के लिए शायद ये ज्यादा मुश्किल नहीं था. उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए कहा - “हाँ मैडम’’ और फिर सारे बच्चे जुट गए इस संख्या को बनाने में. इस बीच नंदा हर बच्चे के पास जा-जाकर देखती रही कि वे क्या कर रहे हैं. जिन्हें थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, उनसे एक-दो सवाल पूछकर उस जगह पर ले आती थी, जहाँ से वे अपने रास्ते स्वयं ढूँढ लें. थोड़ी देर में सभी बच्चों ने अपनी चीजों के पाँच-पाँच समूह बना लिए थे. कुछ ने खुद से किया, कुछ ने अपने साथियों से सहायता ली और कुछ लोगों को नंदा ने कुछ संकेत दिए थे. ऐसा कोई बच्चा नहीं था, जिसने यह काम नहीं किया हो. नंदा ने कहा - “बेटा ! तुम सभी लोगों ने बिल्कुल सही किया है. अब सब लोग अपने लिए जोर से तालियाँ बजा लो.’’

और फिर कक्षा तालियों से गूँज गईं.

नंदा ने कहा - “हमने जो संख्या बनाई है, अब उसका नाम हमें बताना है. सोचो क्या करेंगे? तुम लोग चाहो तो आपस में बातें कर सकते हो.’’

अब यह कक्षा विमर्श की कक्षा में बदल गई थी. बच्चे वस्तुओं के इस समूह को एक नाम देने की कोशिश में थे. ऐसा नाम जो पहले से निश्चित था. नंदा बड़े ध्यान से बच्चों की बातचीत सुन रही थी. वह यह देखना चाह रही थी कि बच्चे संख्या नाम तक पहुँचते कैसे हैं? उसने देखा कि पहले की सीखी गई दो बातें उपयोग में आ रही थीं. दस-दस के समूहों को दस, बीस, तीस ....... के क्रम में गिनना और संख्या को क्रम से बोलना. प्रायः सभी बच्चों ने दस-दस के चार समूह को गिनकर ‘चालीस’ का नाम पा लिया था. इसके आगे की सात चीजों को एक-एक नाम देकर क्रमशः गिनने में कुछ बच्चों को कठिनाई हो रही थी. नंदा ने उन्हें इस समस्या से जूझने दिया. उसे विश्वास था कि बिना उसकी मदद के भी बच्चे अपनी समस्या का हल ढूँढ लेंगे. चूँकि काम में बच्चों की आपसी सहभागिता थी. बच्चों ने एक-दूसरों की मदद से पा ही लिया कि चालीस के बाद एकतालीस से गिनती आगे बढ़ती है और फिर आगे की गिनती के नाम आने की प्रक्रिया तो स्वचालित ढंग से शुरू हो गई. अब केवल एक सावधानी की जरूरत थी कि सात के समूह की एक वस्तु के साथ एक नाम को संबंधित करना. दूसरी वस्तु के साथ क्रम में आने वाले दूसरे नाम को. और इसी तरह आगे भी. थोड़ी सी कोशिश के बाद बच्चों ने इस समस्या को जीत ही लिया.

अब कक्षा में बारी थी कि बच्चे अपनी-अपनी गिनती गिनकर बताएँ. नंदा ने कुछ बच्चों को बताने का मौका दिया. जिन बच्चों को मौके नहीं मिले, वे आतुर थे अपनी बात कहने के लिए. नंदा ने उनसे कहा - “बेटा ! कल हम और नयी संख्याओं पर काम करेंगे. तब तुम्हें भी बताने के मौके मिलेंगे.’’

नंदा को आज भी संतुष्टि थी कि बच्चों ने एक पड़ाव पार कर लिया था. अब वे संख्याओं को केवल उसके नाम से ही नहीं बल्कि उसके आकार से भी पहचानने की शुरुआत कर चुके थे. उसने बच्चों से कहा - “आज तुमने दो संख्याएँ बनाईं हैं और उन्हें नाम भी दिया है. कल हम इसी काम को और आगे बढ़ाएँगे. तुम सभी कुछ नई संख्याएँ सोचकर आना.’’

बच्चों ने अपनी चीजें समेटीं और उन्हें कक्षा में ही एक किनारे पर व्यवस्थित किया. कल उन्हें फिर एक बार इन चीजों के साथ काम करना था. उनके चेहरों पर भी खुशी और जीत जाने का भाव था.

(अगले दिन नंदा की रणनीति क्या थी, उसने क्या नया सिखाया, यह जानने के लिए अगला अंक देखें।)

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