हमर मोगली चेंदरू

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

छत्तीसगढ़ के मयारू बेटा चेंदरू तोर नाव न

बघवा संग खेले कूदे असल मोंगली कहाय न

छत्तीसगढ़ बस्तर के घनघोर जंगल म मारिया जनजाति के चेंदरू मण्डावी ह पूरा दुनिया म 'टाइगर ब्याय' अउ 'असली मोगली' के नाव ले परसिध्द हावे.

चेंदरू के जीवन ह बड़ बिचित्र रिहिस. ओखर संगी बाघ मन ले रिहिन. अउ वहू ह कोन्हों चिड़ियाघर के नही.असल जंगल के संगवारी रहाय. हर बेरा म ओखरो से खेलई,कूदई,खवइ अउ तो अउ ओखर संग म सोय घलो. एखरो बारे म स्वीडन के परसिध्दच डायरेक्टर अरेन सेक्सडोर्क ल ये किस्सा के बारे मे पता चलिस त ओहा तुरते चेंदरू से मिले ल आगे अउ ओखर संग एक महीना ले रिहिस अउ ओकर बारे मे जानिस घलो. देश बिदेश म बस्तर ल पहचान देवइया हमर मयारू चेंदरू मण्डावी ले 1957 म 'द जंगल सागा' (अंग्रेजी म 'द फ्लूट एंड द एरो') नाव ले स्वीडिश फिलिम ल 'अरेन सक्सडोर्क' घलो बनाय रिहिस. ओखर संगवारी बघवा मन ले रहाय ओखरे बारे म ओ फिलिम म देखाय घलो गे हावे. चेंदरू के ऊपर ले 'ब्याय एंड द टाइगर' नाव ले एक ठन किताब ल घलो लिखे गे हावे. 'अरेन सक्सडोर्क' अपन संग म स्वीडन ले गे रिहिस अउ एक महीना ले अपन संग म अपन बेटा कस रखे रिहिस. ओखर देखभाल अरेन के गोसईन अस्त्रिड ह करय जोन ह अच्छा फ़ोटो ग्राफर रिहिन. जेन बेरा म फिलिम ल देखाय गिस त चेंदरू मंडावी ल स्वीडन समेत पूरा बिदेश ल घुमाय गे रिहिस.

1958 बछर म कान फिलिम उत्सव म ये फिलिम ल देखाय गिस. गड़बेंगाल गांव ले कभू बाहिर नई गे रिहिस चेंदरू मण्डावी ह. अउ ओह फिलिम के सेती कई महीना ले चेंदरू ह बिदेश म रेहेल घलो मिलिस. चेंदरू के दुनिया ह बदल गे रिहिस हावे.बिदेश म लोगन मन ओखर से मिले बर अउ ओला देखेल आय. लोगन देख के बड़ अचरच म पड़ जाय की ये छोटेकुन लइका ह बघवा संग म रथे खवई पियई ओखर पीठ म बइठ के जंगल म घुमईं बात ल करथे. चेंदरू मण्डावी पूरा रातो रात पूरा दुनिया भर म परसिद्ध होगे. अउ 'अरेन ह चेंदरू ल अपन बेटा घलो बनाय बर राजी रहींन त उही बेरा म ओखर गोसईन अस्त्रिड संग म ओखर तलाक घलो होंगे.त ओहर चेंदरू ल छोड़े बर अपन देश भारत लइस त बम्बाई म भारत के प्रधानमंत्री 'जवाहर लाल नेहरू' ले चेंदरू के मेलमेलाप कराय घलो गे रिहिस हावे.ओला पढ़ाई लिखई अउ नौकरी देवाय के बात घलो केहेरिस. लेकिन चेंदरू के ददा ह अपन बेटा ल अपनेच जगह म बुलइस घलो. जब लईकुशहा उमर के चेंदरू वापिस अपन गाँव म अइस त ओहा अपन माटी के सचई ल घलो जाने रहाय. बीतत बेरा के संग म चेंदरू ह नरायनपुर अउ बस्तर के जंगल म घलो गवांवत रिहिस हावे. गढ़बेंगाल गाँव के लोगन मन बताते चेंदरू ह जब बिदेश ले लौटिस त ओहा कई साल ले अनचेतहा रहाय.गाँव के लोगन मन ले दुरिहिया दुरिहिया अउ बदहवास रहाय. कभू-कभू ओखर ऊपर जइसे कोन्हों दौरा पड़े कस रहाय त ओहा अपन अतीत म घलो गवा जाय.

पत्रकार मन ह बस्तर जाए त ओ मन ह गढ़बेंगाल गांव जाए अउ चेंदरू मंडावी ले मीले घलो. अउ दो तीन घांव अईसे होए रीहिस की चेंदरू हर पत्रकार मन ल देख के जंगल डहर भाग जाए.तओखर घर वाला मन बताय घलो की ओहर पैंट-शर्ट पहन के अवैय्या मनखे मन ल देख के भाग जथे. अउ यहु सच आए ओहर ह उपेक्षा के शिकार हो गे रिहिस. तेखरे सेती ओहर अंदर अंदर म टूटगे रिहिस. अइसे लागे जइसे ओखर आघू म ओकर अतीत ह आवत हावे. वहू ह एखर ले मुक्ति पईस. हमर राज के नाम ल बिदेस म पहुचइयाँ बेटा चेंदरू ल लोगन भुलागे अउ गुमनामी जिंदगी ल जियत धीरे-धीरे 70 बरस उमर म 18 सितम्बर 2013 म गढ़बेंगाल के चेंदरू मंडावी ह भगवान घर चलदिस. जेहर बघवा मन ले दोस्ती अउ दिलेर चेंदरू मंडावी ह बिदेश म बड़ नाव घलो कमईस. जेखर नाव ल अमर करे खातिर छत्तीसगढ़ सरकार ह जंगल सफारी म चेंदरू मण्डावी के नाव ले गुड़ी बना के असल म मयारू बेटा चेंदरू ल श्रध्दांजंलि दे हावे.

तोर नाव अमर रहाय मोर मयारू बेटा
चेंदरू मण्डावी तय छतीसगढ़ महतारी के

छत्तीसगढ़ म आजादी आंदोलन

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

गुलामी के दिन ल दूर करके सुराज लाये बर जुलुम के विरोध अउ अंग्रेज मन ले संघर्ष पूरा देश म होइस. 1857 म मेरठ के धरती ले एकर शुरुआत माने जाथे।फेर छत्तीसगढ़ के परलकोट म 1824 ले एकर शुरुआत होगे रहिस. जमीदार गैंद सिंह ह छापामार युध्द के तइयारी करत रहिस. बस्तर म माटी, रुख राई अउ अपन परम्परा के सिरजन अउ सुरक्षा बर मुरिया, कोई, हल्बा विद्रोह होइस जेमा आदिवासी परब, संस्कृति अउ उकर रीत पिरित के भाव रहिस.

छत्तीसगढ़ म 1857 के क्रान्ति के अगुवाई रइपुर जिला बलौदाबाजार तहसील के सोनाखान जमीदारी अभी के बलौदा बाजार जिला ले मानथे. इहा के जमींदार वीर नारायण सिंह रहिस. सन 1856 म आये अकाल म भूख पियास म ऐठत मनखे में जी जुदाई बर विद्रोह कर कसडोल के साहूकार माखन लाल के गोदाम ल लूट लीन. तेकर सेती चार्ल्स इलियट ह ओला रइपुर के जय स्तम्भ चौक म 10 दिसम्बर 1857 के फांसी के सजा सुनाईन. वोह आजादी के ए लड़ाई म पहिली शहीद बनीन. वीर नारायण ह अपन अन्तस् के आवाज ल कभू दबन नई दिस.

संबलपुर म सुरेंद्र साय घला अंग्रेज सरकार के गलत नित बर विद्रोह करिन.1884 म उनला फांसी के सजा घला होइस. वोहा आजादी के लड़ाई के आखरी शहीद रहिस. इही समय म सैंकड़ों सैनिक मन रइपुर के छावनी म विद्रोह करदिन जेकर अगुवा छत्तीसगढ़िया माटी के मंगल पांडे हनुमान सिंग ह रहिस. वोह जुल्मी गवरनर सिडवेल ल जनवरी 1858 म मार दिस. उँकर 17 झन संगवारी ल पकड़ के फांसी के सजा सुनादिन अउ विद्रोह ल कुचल दिन.

भारत के संग संग छत्तीसगढ़ के अलग अलग जगा म अंग्रेज मन के विरोध अलग अलग ढंग ले होवत रहिस. जेमा रविशकर शुक्ल, बैरिस्टर छेदीलाल, नारायणलाल मेघावले, नत्थू जी जगताप, घनश्याम गुप्त, कुंज बिहारी चौबे आसन कतनो सेनानी मन अगुवाई करत रहिस. छत्तीसगढ़ के धमतरी म कंडेल नहर सत्यग्रह ह गांधीजी ल आये बार मजबूर कर दिन. पण्डित सुन्दर लाल शर्मा, नारायनलाल मेघवाले, छोटेलाल श्रीवास्तव मन एकर अगुवा रहिस, पण्डित सुंदर लाल शर्मा जी के अछूत उध्दाार के काम ले तो गांधीजी अतका प्रभावित होइस की वोला अपन गुरु घला मानिस.

मजदूर किसान ल संगठित कर उकर हक बर लड़े के काम ठाकुर प्यारे लाल सिंह ह के अगुवाई म होइस।एसनहा रुद्री नवागांव सत्याग्रह अउ जगा जगा आजादी बार लीक सियान जवान सब्बो के मेहनत अउ बलिदान ह आजादी के नव सुरुज ल देखाइस.

सिरतोन म अपन अधिकार बर खुदे ल आगू आये ल परथे अपन माटी म अपन परब रीतअउ नीत ह तो सुराज आय. आजादी के नव सुरुज म जन्म लेहन के हमर भाग ल सँवारे ल चाही. फेर जबतक हमन ए अधिकार के बने ढंग ले उपयोग नई करबो त एकर कोनो मतलब नई होवय. आवव हमें हमर भुइया बर रख्वारी अउ खुशहाली बार उदिम करन इही ह देशभक्त मन बर सही म हमर श्रधांजलि होही.

नागपंचमी के तिहार

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

हिन्दू समाज में देवी - देवता के पूजा करे के साथ - साथ पशु - पक्षी अऊ पेंड़ - पौधा के भी पूजा करे के रिवाज हे. सब जीव - जन्तु उपर दया करना हिन्दू समाज के परम्परा हरे. उही परंपरा के अंतर्गत हमर समाज में सांप के भी पूजा करे जाथे. सावन महीना के अंजोरी पाँख के पंचमी के दिन नाग देवता के पूजा करे जाथे. ये दिन नाग पंचमी के रूप में मनाये जाथे. नाग पंचमी के दिन गाँव - गाँव में विशेष उत्साह रहिथे. ये दिन धरती ल खोदना मना रहिथे. आज के दिन नाग देवता ल दूध पियाय के परंपरा हे. एकर पहिली माटी के नाग देवता या चित्र बनाके ओकर पूजा करे जाथे. नारियल, धूप , अगरबत्ती जलाके दूध चढ़ाये जाथे अऊ कोनो परकार के हानि मत पहुंचाय कहिके विनती करे जाथे. आज के दिन गाँव - गाँव में कुसती प्रतियोगिता होथे. जेमे आसपास के बड़े - बड़े पहलवान मन आके अपन दांव पेंच देखाथे, अऊ वाहवाही लूटथे. हमर देश ह कृषि प्रधान देश हरे. खेत मन में सांप ह रहिथे अऊ जीव - जन्तु, मुसवा आदि मन फसल ल नुकसान पहुंचाथे ओकर से भी रकछा करथे. एकरे पाय एला छेत्रपाल भी कहे जाथे. साप ह बिना कारन के कोनो ल नइ काटे. जेहा ओला नुकसान पहुंचाथे या मारे के कोशिश करथे उही ल काटथे अइसे कहे जाथे.

नाग पंचमी के एक पौराणिक कथा हाबे. एक किसान अपन परिवार सहित राहत रहिस. ओकर दू बेटा अऊ एक बेटी रहिस. एक दिन किसान ह अपन खेत में नांगर जोतत रहिस त माटी के नीचे दबे सांप के तीन ठन पिला ह मरगे. अपन पिला मन ल मरे देखके नागिन ह बहुत दुखी होइस अऊ बदला लेके ठान लीस. रात कुन जब किसान के पूरा परिवार सुते रहिस त नागिन ह आके किसान ओकर बाई अऊ दूनो बेटा ल चाब के भागगे. ओकर बाद दूसर दिन नागिन ह जब लड़की ल चाबे बर आइस त लड़की ह ओला देख डरिस अऊ दूध के कटोरा ल ओकर आघू में मढ़ा दीस अऊ हाथ जोड़ के छमा मांगिस.

ओकर कलपना ल देखके नागिन ल दया आगे अऊ खुश होके वरदान मांगे ल बोलीस. त लड़की ह अपन दाई ददा अऊ दूनो भाई ल जिंदा करें के वर मांगिस. त नागिन ह तथास्तु कहिके जिंदा कर दीस.

वो दिन से पंचमी के दिन नाग पूजा करे के परंपरा चलगे. आज के दिन खेत में कोनो नांगर नइ चलायें अउ जमीन ल भी नइ खोदे. आज के दिन जेहा सच्ची श्रध्दा भक्ति से नाग देवता के पूजा करथे ओला नाग देवता के आशीरवाद मिलथे अऊ ओला सांप ह नइ काटे. जय नाग देवता.

संस्मरण - भोजली पर्व

लेखिका एवं चित्र - श्वेता तिवारी

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार ग्राम बेलगहना के शासकीय प्राथमिक विद्यालय बेलगहना म हर्षोल्लास के साथ मनाय गिस. भोजली छोटे-छोटे लइका संग उखर माता मन भाग लिन औउ 'देवी गंगा लहर तुरंगा' की धुन म गीत गात गली मोहल्ले में यात्रा निकालीन. विद्यालय ल समुदाय से जोड़े के सेति यह प्रयास करथन.

भोजली पर्व ह मितानी-मितान के नाम से जाने जाथे. हमरे छत्तीसगढ़ के लोक पर्व भोजली मां सुख शांति के संदेश देथे. भोजली के भुइयां मा पानी रहे यह विश्वास आस्था के प्रतिक हे. विद्यालय म माता मनके भागीदारी बढ़ाए बर विद्यालय में लोक पर्व भोजली मनाय गय. शिक्षा म गुणवत्ता लाए बर माता मन ल जागरूक करना जरुरी है.इखरे ख़ातिर शिक्षिका श्वेता तिवारी विद्यालय म लोक पर्व मनाय जेमा माता मन ला आमंत्रित कर स्कूल के गतिविधि ल जाने गृह कार्य में का मिलीस. सब्बो माता मन कक्षा के जानकारी लेके लइका के स्तर सुधारे में मदद कर सकत हे.

मोर पहली शिक्छक

(भारतरत्न डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम मिसाईल मैन एवं पूर्व राष्ट्रपति के अदम्य साहस लेख अंश से लिया गया स्वविचार)

छत्तीसगढ़ी में अनुवाद - योगेश ध्रुव 'भीम'

जब मे हर रामेश्वरम म कक्छा पांचवी में पढ़त रहेंव त सिरी शिव सुब्रमण्यम अय्यर मोर पहली शिक्छक राहत रिहिस. ओहर हमर स्कूल के सबले बढ़िया शिक्छक घलो रहाय. ओखर कक्छा म सबो झन ल उपस्थित रहवई ह सब ले बढ़िया घलो लागे.

एक दिन ओहर चिरई मन के उड़ई के बारे म समझाय के उद्देश्य ले कक्छा म व्याख्यान घलो दिस. ओहर तख्ता म डेना,पूछी अउ मुड़ी ल बढ़िया ढंग ले बतावत एक ठन चिरई के फोटो बनईस. ओखर बारे मे बतइस कइसे ओहा अपन डेना ल फड़फड़ावत चिरई ह उड़ई ल करथे अउ कइसे अपन पूछी के सहारा ले उड़ई के दिसा ल बदलथे घलो. इहि बिसय म ओहर पचीस मिनट ले भासन दिस. उही भासन म ओहर चिरई के उड़ई, अकास म एकदम रुकई अउ समूह म उड़ई जइसे कई ठन धारना मन ल बिस्तार ले समझईस घलो.

कक्छा के आखरी म ओहर पढ़या मन ल पूछय घलो,में हर पढ़ाए हावव ओला समझ पाव की नही? मैहर बोलेव मोला समझ नई आइस. त इहि बात ल दूसर पढ़इया मन ल घलो दोहराय. सिरी अय्यर ह हमर बात मन ल सुन के नइ विचलित होइस,बल्कि ओहर सबो पढ़इया मन ल साम के बेरा म समुन्दर के तीर म पहुचेल घलो बोलिस. उही साम रामेश्वरम के समुन्दर तट म पूरा कक्छा के पढ़इया मन ह इक्कठा होय रिहिस. रेती के टीला ले समुन्दर के लहरा मन ह टकराय तेखर मजा ल बहुत उठायेन. हमर शिक्छक अय्यर जी ह हमन ल दस अउ बिस के समूह म उड़ावत समुन्दर चिरई मन ल देखाइस. ओला देख के हमन बहुत चकरायेन घलो. उड़ावत चिरई कोती इसारा करत हमन ल किहिस की उड़ावत चिरई ल गौर से देखव अउ उड़ावत समय ओहर कइसन नजर आथे, अउ कइसन परकार ले अपन डेना ल फड़फड़थे घलो. शिक्छक ह ए बात म जोर दिस की चिरई मन के पूछी ल ध्यान लगाके देखना चाही अउ लक्छ करना चाही की अपन इच्छित दिसा म मुड़े बर अपन पूछी के उपयोग ल कइसन करथे.

एखर बाद म ओहर एक ठन प्रश्न पूछिस - चिरई के शरीर म मशीन ह कहां हावे अउ ओ मशीन ल शक्ति बर बल कहाँ ले मिलथे घलो? त ओहर समझईस कि शक्ति हर ओखर जीवन अउ उड़ान भरे के पेरना ले मिलथे. ये सबो बात ल बास्तविक जीवन के घटना के उदाहरन ल देके समझईस घलो. सिरी अय्यर ह एक महान शिक्छक रिहिस. ओ हमन ल प्राकृति म उपलब्ध बास्तविक उदाहरन के आधार म सैध्दान्तिक बिशय के ज्ञान ल देवे. ऐला कथे सच्चा अध्यापन.

मोर बर ये घटना ह सिरिफ चिरई के उड़ई-किरया ल समझई तक सीमित नइ रिहिस. चिरई के उड़ई पाठ ह मोर करेजा म खास भावना ल घलो जगा दे रिहिस. मे हर सोचेव भबिस्य म पढ़ाइ के करम म उडई अउ उड़ान-परनाली ले जारी राखहु. सिरी अय्यर के अध्यापन अउ समुन्दर-किनारे के ओ दिन के घटना ह मोर भबिस्य म मोला अपन पेसा चुनई म मोर मदद घलो करिस.

एक दिन कक्छा समाप्त होय के बाद म साम के बेरा म अपन शिक्छक ल पुछेव की कइसन परकार उड़ान-परनाली ले संबंधित अध्ययन जारी रखे बार आगु पढाई करे जाए? ओहर मोल आराम ले बढ़िया समझइस की पहले तय अपन आठवीं के पढाई ल पूरा कर, फेर हाई स्कूल कर, ओखर बाद म उड़ान-परनाली के सिक्छा प्राप्त करे बर कोई इंजीनियरिंग कॉलेज म दाखिला लेबे. ओहर कहिस की यदि मे हर अपन पूरा पढाई ल अच्छी तरह ले कर लेथो त उड़ाई बिज्ञान के छेत्र म कुछु करें मा सक्छम हो सकहु. ओखर सलाह ले चलत मे हर जब कॉलेज म दाखिला लेव त में हर भौतिकी म अध्ययन ल करेव अउ मदरास इस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी म मेहर ऐरोनाटिक्स इंजीनियरिंग बिसय ल चुनेव. चिरई के उड़ाई के परदरसन अउ शिक्छक मोहदय के ये सलाह मोर जीवन ल एक ठन लक्छय दिस. ऐखर से मोर जीवन म एक नवा मोड़ अईस अउ संजोग से,इहि ले मोर पेसा ह घलो तय होइस. एक रॉकेट इंजिनियर, एरोस्पेस इंजीनियर,परउद्योगिकवेत्ता के रूप म मोर जीवन रुपान्तरित घलो होइस.

'ज्ञान प्राप्त करने के लिए चिंतन एवं कल्पना की स्वतंत्रता आवश्यक है और शिक्षक को इनके लिए उपयुक्त माहौल का निर्माण करना चाहिए'

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