नंदा मैडम की कक्षा

लेखक – सुधीर श्रीवास्तव

आज स्कूल जाते समय नंदा बहुत खुश थी. बात दरअसल यह थी कि वह पिछले कई दिनों से यह तय नहीं कर पा रही थी कि कक्षा 3 के बच्चों के साथ संख्याओं की अवधारणा पर काम कैसे किया जाए. यहां तक आते-आते बच्चों ने 100 तक की गिनती लिखना पढ़ना और चीजें गिनना तो सीख लिया है, आसानी से जोड़ने घटाने के सवाल भी कर लेते हैं. हासिल और उधार के प्रश्न ही अभ्यास के कारण कर लेते हैं. एक तरह से उन्होंने इन तरीकों को याद कर लिया है. लेकिन वह जानती थी कि बच्चों को यह पता नहीं है कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं.

वह चाहती थी कि बच्चे लिखी हुई संख्याओं को न केवल नाम से पहचाने बल्कि उनके अर्थ भी समझें. देखें कि जिन अंकों की मदद से संख्या लिखी गई है उनको यहां एक खास मतलब से लिखा गया है. एक ही अंक अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग अर्थ रखते हैं ……… ऐसी और भी बातें हैं …... लेकिन यह किया कैसे जाए? इसी उधेड़बुन में कई दिन लग गए थे. आज सुबह उसे एकाएक उपाय सूझा. क्यों न बच्चों को उन परिस्थितियों में ले जाया जाए जिन परिस्थितियों में संभवतः पुराने लोगों ने संख्या पद्धति पर सोचा होगा. हो सकता है वह अपनी कोशिश में सफल ना हो लेकिन यह तो तय है कि बच्चों को कुछ सोचने का मौका मिल सकेगा. उसने अपने दिमाग में दो-तीन दिनों के काम का एक मोटा खाका तैयार कर लिया था. उसकी कल्पना में कई बातें आ जा रही थी. बच्चे यह सवाल करेंगे…….. मेरे जवाब यह होंगे……. मेरे प्रश्न क्या होंगे? बात कैसे शुरू होगी? कक्षा की परिस्थितियों की कल्पना कर उसे बार-बार रोमांच हो रहा था.

जैसे ही वह कक्षा में आई बच्चों ने चिल्लाकर कहा - गुड मॉ ऽऽऽऽऽ र्निंग मैडम. गुड मॉर्निंग बच्चों नंदा उसी लहजे में जवाब दिया. बच्चों को शांत और स्थिर होने में एक आद मिनट लग गया. तब तक नंदा उन्हें मुस्कुराती हुए देखती रही. बच्चों को उसका यह तरीका मालूम था. जब कक्षा शांत हो गई तो उसने कहा - बच्चों आज मैं तुम्हें एक मजेदार कहानी सुनाने जा रही हूं. यह कहानी बहुत पुराने जमाने की है. इतने पुराने कि उस समय लोगों को थोड़ी बहुत ही गिनती आती थी पर मजे की बात यह थी कि उनका काम रुकता नहीं था. सुनोगे? हां हां… जरूर सुनेंगे. सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा और खुशी के मारे तालियां बज गई.

नंदा ने कहना शुरू किया - एक छोटे से गांव में एक किसान रहता था. बहुत मेहनती था वह. उसने अपने घर के पीछे बाड़ी में कई तरह के फल और सब्जियां उगा रखी थी. कभी-कभी वहां से फल और सब्जियां तोड़ता, अपनी जरूरत के हिसाब से अपने पास रखता, बाकी मोहल्ले पड़ोस में बांट देता. गांव के दूसरे लोग भी ऐसे ही अपनी चीजें आपस में बांटा करते थे. एक बार उस किसान की बाड़ी में खूब अमरुद फले. बड़े-बड़े हरे-पीले मीठे अमरूद. वह टोकरी भर अमरुद लेकर घर आया. अचानक उसके मन में विचार आया कि इन्हें गिन कर देखा जाए कि यह हैं कितने? टोकरी से एक-एक अमरुद निकाल कर बाहर रखा गया और गिनता गया एक, दो, तीन, चार, पांच, छ:, सात, आठ, नौ और दस …. गिनती तो खत्म हो गई अमरूद बचे रहे. अब क्या करें? उसे उतनी ही गिनती आती थी जितनी उसके हाथ में उंगलियां थी. वह सोचता रहा सोचता रहा …… आखिर उसे एक तरकीब सूझ गई. उसने 10 तक की गिनती का ही उपयोग कर अपने सारे अमरुद गिन लिए.

इतना कहकर नंदा चुप हो गई. बच्चे तो मानो उसी दुनिया में घूम रहे थे. कुछ क्षणों बाद चुप्पी टूटी. एक बच्ची ने पूछा - उस किसान ने सारे अमरुद कैसे गिने होंगे मैडम? यही तो हमें जानना है. जैसा उस किसान ने किया कुछ ऐसी ही कोशिश हम भी करके देखेंगे.

ऐसा कहकर नंदा ने अपने बैग से एक रैली निकाली और उसमें रखे इमली के बीजों को टेबल पर उलट दिया. उसने बच्चों से कहा - मान लो यह अमरुद हैं, इन्हें हम गिनेंगे और हां, ध्यान रहे कि हमें केवल दस तक की गिनती आती है. हम गिनते समय ग्यागरह, बारह, तेरह……. और इसके आगे की गिनती का उपयोग नहीं करेंगे.

एक बच्चा टेबल के पास आया. उसने एक-एक बीज निकालकर अलग रखते हुए गिनना शुरू किया, लेकिन दस तक गिनने के बाद रुक गया……… सोचने लगा अब क्या? कक्षा के बच्चे खुसुर-फुसुर कर रहे थे. नंदा ने उन्हें चुप कराने की कोशिश नहीं की. थोड़ी देर में एक बच्ची ने पूछा - मैडम हम दस से आगे नहीं गिन सकते क्या?

गिनना तो दस के आगे भी है किन्तु हम ग्यारह, बारह, तेरह ……. ऐसे नहीं गिन सकते. नंदा ने एक बार फिर अपनी शर्त समझाई. तो क्या हम बचे हुए को फिर से नहीं गिन सकते? बच्ची ने कुछ सोचते हुए दोबारा पूछा.

यही तो समस्या का हल था. नंदा को लगा कि वह खुशी से चिल्ला पड़ेगी. उसे उम्मीद नहीं थी कि बच्चेथ इतनी जल्दी इसे ढूंढ लेंगे. उसने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा - सोचना पड़ेगा.

लेकिन यह विचार पूरी कक्षा को एक दिशा दे गया. उस बच्ची ने कहा - मैं गिन कर देखती हूं. उसने पहले से गिने दस बीजों के ढेर को किनारे खिसकाया और बचे हुए बीजों में से एक-एक बीच निकालते हुए गिनना शुरू किया. देखते-देखते दस बीजों की दूसरी ढेरी बन गई. नंदा ने उस बच्ची के लिए तालियां बजाईं फिर उसकी पीठ थपथपा कर कहा - बहुत अच्छा बहुत ही अच्छा.

पूरी कक्षा तालियों की आवाज से गूंज गई. बच्ची के चेहरे पर मुस्कुराहट आई. अब थोड़े से बीच बच गए थे. नंदा ने पूछा अब कौन गिनेगा? मैं मैं मैं…. के शोर से कक्षा भर गई. सारे बच्चों के हाथ उठे हुए थे. पीछे बैठे कुछ बच्चे घुटनों पर तो कुछ पीछे पूरी तरह खड़े हो गए. सबकी इच्छा थी कि उन्हें भी मौका मिले.

नंदा आनंदित हो उठी. बच्चों ने रास्ता ढूंढ़ लिया था. इतना आनंद उसे कभी न मिलता यदि वह खुद हल बता देती. उसकी नजर एकाएक उस बच्चे पर पड़ी जो इस पूरे माहौल से अप्रभावित चुप बैठा था. नंदा ने कक्षा को शांत करते हुए कहा - ठीक है, ठीक है. मुझे पता चल गया है तुम सभी गिन सकते हो. मैं दयानंद को मौका दूंगी. उस शांत बैठे बच्चे को अपने पास बुलाते हुए उसने कहा - आओ दयानंद मेरे पास आओ बेटे.

दयानंद सामने आया. उसने बिना कुछ पूछे बचे हुए बीजों को गिनना शुरू किया. एक, दो, तीन, चार, पांच, छ: और सात ……. बस. नंदा को आश्चर्य हुआ और खुशी भी. उसे लग रहा था दयानंद किसी मुश्किल में है. शायद कक्षा में चल रही बातचीत उसे समझ में नहीं आ रही हो. शायद उसकी तबीयत ठीक ना हो. लेकिन उसने तो बिल्कुल सही ढंग से गिना. फिर भी दयानंद का ध्यान रखना होगा. मन ही मन निश्चय कर उसने कहा - वाह, वाह. बहुत अच्छे, बहुत अच्छे , बैठो. बच्चों का ध्यान तीनों ढ़ेरियों की ओर ले जाते हुए उसने कहा - अब हमें बताना है कुल कितने बीज हैं. सत्तााइस, सब बच्चे जोर से चिल्ला उठे.

नंदा मुस्कुराई. फिर धीरे से उसने कहा - हम तो यह मान कर चल रहे हें कि हमारी गिनती दस तक है, ग्यारह नही है, बारह नहीं है. तो 27 होगा क्या? बच्चों की आवाज आई - ओह! उन्हें यह समझ मैं आ रहा था कि बीज हैं तो सत्ताइस लेकिन उन्हें सत्ताइस नहीं कहना है. सब सोचने लगे अब क्या करें?

नंदा ने कहा - तुम लोग चाहो तो एक दूसरे से बातचीत कर सकते हो. दो-चार मिनट की बातचीत के बाद कुछ चेहरों पर मुस्कान दिखाई पड़ने लगी. नंदा को समझ में आ गया कि बच्चों ने कुछ पा लिया है.

उसने सोचा, बच्चों को पहल करने दूं. वह चुप रही. बच्चों का धैर्य व्यग्रता में बदल रहा था. अंततः उनसे रहा नहीं गया. वे बोल पड़े - मैडम अब बताएं क्या?

जरूर लेकिन एक एक करके. नंदा ने कहा. एक बच्ची खड़ी हुई. उसने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को पूरा फैला कर कहा - इतने, इतने, फिर इतने. आखिरी बार उसने अपनी केवल सात उंगलियां दिखाईं.

नंदा अवाक होकर उसकी ओर देखती रह गई. उसने सोचा ना था कि ऐसा जवाब भी आ सकता है. बहुत आश्चर्य से बोल पड़ी - वाह क्या बात है. तुमने तो कमाल कर दिया. मारे खुशी के वह खुद को रोक नहीं पाई. आगे बढ़कर उसने बच्ची के दोनों गालों को हाथों में भर लिया और अपने से चिपका लिया. फिर उसकी पीठ ठोंक कर पूछा - यह तुमने कैसे सोचा?

बच्ची ने कहा - मैडम यह मैंने अकेले नहीं सोचा. उसने अपने साथियों की ओर इशारा करके कहा - हम सब लोग सोच रहे थे, संख्या को बोलना नहीं है तो कैसे बताएं? बात करते-करते यह आईडिया आ गया. नंदा उस समूह के पास पहुंची. सब बच्चों को शाबाशी दी. पूरी कक्षा से कहा - इनके लिए सभी लोग जोर से तालियां बजाओ. पूरी कक्षा जोश से भर गई थी. नन्हे हाथों की तालियां गडगड़ाने लगीं.

कक्षा शांत हुई तो नंदा ने पूछा - क्या इसके अलावा कोई और तरीका है? उसने देखा कि अभी भी बहुत से बच्चों ने हाथ उठा दिए. उसने बच्चों के एक ग्रुप से कहा - बेटे तुम लोग कुछ बताओगे? बच्चों ने कहा - मैडम दस, दस और सात.

अरे वाह क्या बात है. इनके लिए भी तालियां. नंदा ने जोर से कहां. पीछे से कुछ बच्चों ने कहा - मैडम हम भी बताएंगे. हां हां बताओ. दो बार दस और सात. बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया तालियां बजनी चाहिए.

बहुत मजेदार दृश्य था. सारे बच्चे खुशी और उत्साह से भरे हुए थे. उनकी छोटी-छोटी कोशिशों को सराहना मिल रही थी. उनके चेहरे पर विश्वास दिख रहा था. उन्हें देखकर लग रहा था जैसे उन्होंने कोई बड़ा मैच जीत लिया है.

नंदा ने फिर पूछा, किसी और के पास कोई दूसरा उत्तर है? बच्चों ने कहा, नहीं मैडम, हम भी ऐसा ही सोच रहे थे. बहुत अच्छा तुम लोगों ने जिस तरह इस समस्या का हल ढ़ूंढ़ा, कुछ वैसा ही उसके सामने भी किया होगा. तुम सभी ने मिलकर बहुत बढ़िया काम किया है बहुत ही बढ़िया.

लेकिन मेरे मन में एक सवाल है. यह कहकर नंदा चुप हो गई. सभी बच्चे उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगे. उसके मन में यह विचार उसने लगा कि ऐसा सवाल होगा. जब मैं इस कहानी के बारे में सोच रही थी तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा. प्रश्न यह था कि यदि उस किसान को दस तक की गिनती नहीं आती, मान लो वह केवल आठ तक की गिनती जानता तो क्या वह पूरे अमरुद गिन पाता?

सारे बच्चे एक बार फिर सोच में पड़ गए. नंदा ने कहा - इसके लिए तुम अभी परेशान ना हो. कल सोच कर आना फिर सब मिलकर इसका जवाब देंगे.

दूसरा दिन -

दूसरे दिन जब नंदा अपनी कक्षा में पहुंची तो बच्चों ने उसे घेर लिया और चिल्लाने लगे, हमने बना लिया, हमने बना लिया. अच्छा ठीक है, ठीक है…. बैठ जाओ… अरे भाई पहले बैठ जाओ…. हाजिरी भरने दो फिर कल के सवाल पर बात करेंगे.

नहीं मैडम पहले सुनिए. हाजिरी बाद में.

अच्छा बाबा ठीक है. लेकिन पहले बैठो तो. सारे बच्चे बैठ गए तब नंदा ने पूछा कितने बच्चों से बना? सभी बच्चों ने हाथ उठा दिए. सामने बैठे बच्चों ने कहा मैडम आज हम लोग पहले बताएंगे कल हमारी बारी सब के बाद आई थी. अच्छा ठीक है चलो तुम ही लोग बताओ.

एक बच्चे ने कहा - मैडम वह किसान है न, सबसे पहले अमरूदों को एक तरफ रख देगा. ढेर में से आठ अमरूद निकालकर अलग ढ़ेरी बनाएगा. फिर आठ अमरूद निकालकर दूसरी ढेरी बनाएगा. ऐसे ही आठ-आठ अमरूदों की ढेरी बनाता जाएगा. एक बार ऐसा होगा कि आठ अमरुद नहीं बचेंगे. उनको अलग से गिन लेगा. फिर वह बता सकेगा कि आठ-आठ अमरूदों की इतनी ढ़ेरियां और इतने अमरूद और…..

नंदा चकित थी. संख्या पद्धति की इस संरचना को कोई बच्चा इतनी आसानी से समझा देगा. वह भी एक अलग परिस्थिति में. यह उसकी कल्पना में नहीं था. उसके मुंह से बस इतना ही निकला - तुम सब तो कमाल करते हो क्या बात है. अपने आप उसके हाथों से तालियां बज गईं. सारे बच्चे तालियां बजाने लगे. नंदा सोच रही थी हम बड़े लोग बच्चों को कितना छोटा करके आते हैं. हम पहले ही यह सोच लेते हैं कि बच्चे यह नहीं कर पाएंगे, बच्चे वह नहीं कर पाएंगे. यदि उन्हें सोचने और आपस में बातचीत करने के मौके दिए जाएं तो उनकी सहज बुद्धि कितने रास्ते ढूंढ लेती है, कितने तर्क बुन लेती है, कितने सवाल करती है, कितने जवाब बना लेती है. आखिर क्यों न हो. यह भी तो इंसान ही हैं ना.

नंदा को इस विचार प्रवाह में बहना अच्छा लग रहा था. उसे लगा कि शिक्षक के रूप में सवालों के जवाब खुद दे देकर हम समस्याओं से जूझने की बच्चों की नैसर्गिक क्षमता को विकसित नहीं होने देते. ऐसा करके हमें लगता है कि हम उनकी मदद कर रहे हैं लेकिन हम उन्हें कुछ मायनों में कमजोर कर रहे होते हैं. उसे तितली की कहानी याद आ रही थी जो अपने कोकून से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही थी और एक बच्चे ने उसकी मदद करने के लिए कोकून में एक बड़ा सा छेद बना दिया था. तितली बाहर तो निकल आई पर उसके पंख पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए थे. उसने उड़ने की कोशिश की पर वह उड़ न सकी और आखिर मर गई….. बेचारी.

मैडम जी…. बच्चे उसे झिंजोड़ रहे थे. अचानक उसकी तंद्रा टूटी. उसने अपने आप को संभाला और अपने विचार क्रम को तोड़ते हुए बच्चों से कहां- सॉरी बेटे तुम लोगों के उत्तर ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया….. अच्छा चलो बताओ किसी के पास इससे अलग उत्तर है?

ऐसे ही हम भी देंगे मैडम.

बहुत अच्छा.

नंदा के दिमाग में नया प्रश्न आ रहा था कि यदि ढ़ेरियों की संख्या आठ से ज्यादा हुई तो बच्चे कैसे गिनेंगे? फिर उसे लगा कि अभी इतनी ही बात की जाए. अभी जो कुछ हो पाया है उसी विचार को और पक्का होने दूं तो ज्यादा अच्छा रहेगा. उसने बच्चों से कहा - सुनो…. सुनो, अभी इस बात को यहीं खत्म करते हैं. कल हम जिन बीजों को गिन रहे थे उन्हीं पर कुछ और बात करते हैं. क्या किसी को याद है कि हमने कल कितने बीज गिने थे?

दस, दस, और सात बीज.

दो बार दरस और सात बीज, बच्चों के उत्तर आए .

ठीक, अब जरा सोचो यदि हमारे पास गिनती में दस के बाद और नाम होते जैसे दो बार दस के लिए , तीन बार दस के लिए ….. और इसके आगे भी तो क्या होगा?

……. कोई उत्तर नहीं आया.

अच्छा चलो एक काम करते हैं. हम अपने मन से कुछ नाम बनाते हैं. नंदा ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को सामने दिखाते हुए कहा इतनी चीजों के लिए हमारे पास एक नाम है दस. अब अगर इतनी इतनी चीजें दो बार हो यानी दस और दस हो जाएं तो इनके लिए कोई नाम सोच लें - क्या नाम दें?

बच्चे थोड़ी देर इसे समझने की कोशिश करते रहे फिर एक बच्ची ने उठकर धीरे से कहा - मैडम जी, दस और दस के लिए नाम है न बीस.

अरे हां, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं. बेटी तुमने अच्छा याद दिलाया. दस और दस को हम बीस कहते हैं. गुड. अब तो अपना काम आसान हो गया चलो अब बताओ तीन दस को क्या कहेंगे? तीस - कुछ बच्चों ने एक साथ कहां. और चार दस को? चालीस. सभी बच्चे जोर से चिल्लाए. अब उन्हें यह पैटर्न समझ में आने लगा था. नंदा और आगे पूछती इसके पहले कई बच्चे कहने लगे –

पांच दस को पचास.

छ: उस को साठ.

सात दस को सत्तर.

बस बस. मैं जान गई कि तुम सबको यह नाम मालूम है. बहुत. आओ हम सब मिलकर एक काम करें. मैं बोर्ड पर इन्हें लिखती हूं. तुम सब लोग सोच कर उसके आगे की संख्या का नाम लिखना. इतना कहकर नंदा ने बोर्ड पर बाईं ओर इस तरह लिखा -

दो आर दस ........

एक बार दस .......

सात बार दस ......

चार बार दस .......

नौ बार दस .......

तीन बार दस ......

दस बार दस ........

उसने बच्चों को बारी-बारी से आने के लिए कहा. बच्चे क्रम से आते गए. उन्होंने संख्या के आगे उनका नाम लिखा. दो तीन बच्चे थोड़े झिझक रहे थे. वे ज्यादा कुछ सोच पाते उसके पहले दूसरे बच्चे संख्या बोल देते. नंदा को लगा अभी कुछ और अभ्यास कराने की जरूरत है. बोर्ड के पास बुलाने पर सभी बच्चों को चांस नहीं मिल पा रहा है. उसने सभी बच्चों से कहा - सब अपनी-अपनी कॉपियों में ऐसे ही उन संख्याओं को लिखो जिन्हें तुम जान गए हो.

बच्चे काम करने में मशगूल हो गए. कुछ बच्चे एक-दूसरे से पूछकर या तो जान रहे थे या अपनी समझ के प्रति आश्वस्त हो रहे थे. नंदा ने उन्हें आपस में बातचीत करने से नहीं रोका. उसे हमेशा यह लगता है कि बच्चे आपस में बातें करके भी बहुत कुछ सीख सकते हैं. पांच-सात मिनट बाद बच्चे अपनी कापियां लेकर उसके पास आने लगे. प्रायः सभी बच्चों ने बहुत हद तक सही किया था. शब्दों को लिखने में कहीं-कहीं मात्रा, वर्ण आदि की त्रुटियां थी. नंदा ने सोचा, इन शब्दों के हिज्जे बाद में सिखा दूंगी अभी तो इनको ढंग से काम करने दूं.

उसने देखा बच्चे बहुत मजे से काम कर रहे हैं. उसे लगा इस काम को थोड़े अलग ढंग से भी करके देखा जाना चाहिए. उसने बच्चों से पूछा - क्या हम लोग पूछने बताने का खेल खेलें? कक्षा में जो खेल नंदा करती थी उसमें यह भी एक खेल था. इस खेल में बच्चे ही सवाल करते और बच्चे ही जवाब देते थे. नंदा ने जैसे ही पूछा बच्चों के शोर से कक्षा गूंज गई.

खेलेंगे…. हां हां खेलेंगे… देखते ही देखते कक्षा दो हिस्सों में बट गई. टीम ए और टीम बी. नंदा ने पूछा - आज खेल का नियम क्या होगा? एक बच्ची ने कहा - जब एक टीम दूसरी टीम से सवाल करेगी तो सवाल पूछने वाला यह भी तय करेगा कि जवाब कौन देगा. नंदा ने पूछा - क्या यह बात सब को मंजूर है? सब ने कहा - हां. ठीक है

फिर बारी-बारी से हर टीम ने सवाल पूछना शुरू किया. सबसे पहले टीम ए की नेहा ने पूछा - तीन बार दस यानि‍ कितना होगा, अंजलि बताएगी. तीस अंजलि ने कहा.

अब अंजलि ने पूछा - नौ बार दस कितना होगा, अनवर बताएगा. नब्बे. अनवर ने उत्तर दिया…….और खेल चलता रहा. खेल के खत्म होने तक नंदा आश्वस्त हो चुकी थी कि सभी बच्चे यह समझ गए हैं कि दस, बीस, तीस…. में कितने कितने दस शामिल हैं.

खाना खाने का समय हो गया था. उसने कहा - आज बस इतना ही. कल फिर नया के खेल खेलेंगे. और हां कल जब आओ तो कुछ चीजें ढूंढ कर लाना, जैसे छोटे-छोटे ति‍नके, बजरी, गिट्टी के टुकड़े, कंकर, चूड़ी के टुकड़े और ऐसी ही कुछ चीजें जो आसानी से मिल जाएं. ठीक है? अच्छा अब जाओ अब तुम्हारे खाने की छुट्टी. जल्दी आना. आज तुम्हें एक मजेदार कहानी सुनाउंगी.

बच्चे हो.... हो.... करते हुए कक्षा से बाहर निकल गए जल्दी आने के लिए. खाने की छुट्टी के बाद जब बच्चे आए तो नंदा ने उन्हें सिंदबाद की कहानी सुनाई. बच्चों ने बहुत मन से कहानी सुनी. थोड़ी देर बाद छुट्टी हो गई. नंदा आकर स्टाफ रूम में बैठी. उसका दिमाग कल की कक्षा की योजना बनाने में लगा हुआ था. थोड़ी देर बाद उसने कुछ बातें तय की और उन्हें अपनी डायरी में लिख लिया.

मम्मी-पापा आप ही मेरे ऐश्वर्या राय और आप मेरे जेम्स बॉन्ड

लेखक - निशांत शर्मा

मम्मी पापा जब से होश संभाला आप दोनों को ही अपना रोल मॉडल माना, जाना, पहचाना. जैसे जैसे बड़ी होती गई आप दोनों को कॉपी करती गयी. कोशिश करती थी कि आप जैसा करते हो वैसा करूं, वैसी दिखूं. पापा, इसी चक्कर में कभी आपके जैसे वयस्क बनकर शेविंग क्रीम लगाकर शेविंग करने की एक्टिंग करती थी, तो कभी मम्मी जैसे बेलन और आटा लेकर रोटी बेलने की कोशिश करती थी. कभी आपके जैसे पावर वाला चश्मा लगाकर पेपर पढ़ने की एक्टिंग करती थी, तो कभी मम्मी जैसे होठों पर लिपस्टिक लगाकर कांच को घंटों निहारने की एक्टिंग करती थी. मुझे मालूम है मम्मी-पापा आप दोनों ने मुझे लालने पालने के लिए अपनी पाई पाई कमाई व पूरी मेहनत लगा दी. मेरी पढ़ाई के लिए उधार तक आपने लिया ताकि मैं पढ़ लिखकर बड़ी अफसर आई.ए.एस. कलेक्टर बनूँ. आपने अपने पेट की भूख काटकर मेरा पेट भरा. आपने अपना मन मार कर मेरे शौक को पूरा किया. मम्मी-पापा मैं यह आपको विश्वास दिलाती हूं कि मैं आपकी मेहनत एवं समर्पण को व्यर्थ नहीं जाने दूंगी. आप दोनों का नाम पूरे जग में रोशन करूंगी. आप दोनों ही मेरे शिव-पार्वती हैं. आप ही मेरे विष्णु-लक्ष्मी हैं. आप दोनों हो तो मैं हूं वरना मैं कुछ भी नहीं. आप ही दोनों मेरी ऊर्जा आप दोनों ही मेरी शक्ति हो. आप ही मेरे जीवन रूपी पिक्चर के ऐश्वर्या राय और आप ही मेरे जेम्स बॉन्ड हो. लव यू मम्मी लव यू पापा.

शिक्षक दिवस

लेखिका - पद्यमनी साहू

सुबह जल्दी उठकर दादा जी तैयार हो गए. अपनी घड़ी व रुमाल के लिए बहु रानी को आवाज लगाई. माधवी दादाजी की छड़ी और शाल लेकर आई. अपने मधुर स्वर से दादाजी को पूछने लगी – ‘दादू आप कहां जा रहे हैं?’ दादा जी ने – ‘कहा बेटी आज शिक्षक दिवस है. मैं जी.सी. स्कूल में पढ़ाता था. वहीं जा रहा हूं. शिक्षक सम्मान समारोह में मुझे आमंत्रित किया गया है.’ माधवी बड़े भोलेपन व मासूमियत से दादाजी को पूछने लगी – ‘दादू यह शिक्षक दिवस सम्मान समारोह क्या होता है?’ दादाजी ने माधवी को अपनी गोद में बिठा लिया और बताने लगे – ‘बेटी आज के दिन, 5 सितंबर को, हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. 5 सितंबर के दिन हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति श्री राधा कृष्ण जी का जन्मदिन है. राधा कृष्ण जी का जन्म तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली गांव में हुआ था. राधाकृष्णन जी एक शिक्षक भी थे. शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान व उपलब्धि के कारण उनके सम्मान में उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.’ तभी माधवी का भैया शिवा भी क्रिकेट खेल कर आ गया और दादा जी के पास बैठ गया. शिवा दादा जी को बताने लगा उसके स्कूल में भी प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है. देश के राष्ट्रपति होते हुए भी राधाकृष्णन जी शिक्षक कहलाना अधिक पसंद करते थे. माधवी ने दादा जी से प्रश्न किया – ‘दादू इस दिन मनाए जाने वाले शिक्षक सम्मान समारोह में क्या क्या होता है?’ दादाजी ने बताया – ‘मेरी नन्ही परी, इस दिन समाज में शिक्षक की भूमिका, उनके महत्व व कर्तव्यत को याद किया जाता है. बच्चों के सर्वांगीण विकास में शिक्षक के अपूर्व योगदान को याद किया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय एवं प्रशंसनीय कार्य करने वाले शिक्षकों का, प्रतीक चिन्ह एवं श्रीफल से सम्मान किया जाता है. इतने में बहुरानी भी नाश्ता लेकर आ गई. दादाजी, शिवा और माधवी ने साथ बैठ कर नाश्ता किया. शिवा अपने स्कूल की ओर जाने लगा. दादाजी भी शिक्षक सम्मान समारोह में चले गए.

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