जीना सीखो ( कुकुभ छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

जीवन को तुम जीना सीखो, हर पल खुशी मनाओ जी ।
चाहे कितने संकट आये, कभी नहीं घबराओ जी ।।

सिक्के के दो पहलू होते, सुख दुख आनी जानी है ।
कभी खुशी तो गम भी आते, सबकी यही कहानी है ।।

होना नहीं उदास कभी भी, गीत खुशी के गाओ जी ।
चाहे कितने संकट आये, कभी नहीं घबराओ जी ।।

भेदभाव अब करना छोड़ो, सेवा का पथ अपनाओ ।
भूले भटके राह जनों को, सच्चे मारग दिखलाओ ।।

भूखे को सब भोजन देकर, प्यासे प्यास बुझाओ जी ।
चाहे कितने संकट आये, कभी नहीं घबराओ जी ।।

करते हैं जो सच्ची सेवा, कभी नहीं दुख पाते हैं ।
मिलता है आशीष उसी को, खुशियों से भर जाते हैं ।।

बाँटो प्रेम सभी में साथी, हर पल प्यार लुटाओ जी ।
चाहे कितने संकट आये, कभी नहीं घबराओ जी ।।

माटी का ये जीवन प्यारे, माटी में मिल जायेगा ।
मिट जायेगी सारी हस्ती, नाम यहीं रह जायेगा ।।

नेक काम सब करते जाओ, मन में पाप न लाओ जी ।
चाहे कितने संकट आये, कभी नहीं घबराओ जी ।।

तितली

लेखक - बलदाऊ राम साहू

तितली आई कहीं से उठकर
भौंरों ने देखा तब मुड़कर।

रंग - बिरंगी पंखों वाली
कुछ पीली कुछ है कली।

फूलों पर आकर बैठ गईं
वे रस चूसकर ऐठ गईं।

भौंरे तो काले-काले थे,
मदमस्त मौले मतवाले थे।

कुछ ने तो खूब रौब दिखाया,
बाकी ने उनको समझाया ।

तिरंगा

लेखक – गिरजाशंकर अग्रवाल

तीन रंगों से सजा हुआ
है भारत की शान
हम सब की पहचान वो
तिरंगा जिसका नाम

केसरिया सफेद हरा
तीन हें जिसके रंग
उन्नहति का संदेश देता
चक्र भी जिसके संग

लहराता आसमान पर
है निराली शान
वीर सपूतों की याद दिलाता
तिरंगा जिसका नाम

ऐसे न्यारे झंडे पर
है मुझको अभिमान
भारतीयों की जान है वो
तिरंगा जिसका नाम

तेरी यादें

लेखक - महेन्द्र देवांगन ‘माटी’

जैसे सूरज की किरणों से, गर्मी हमको मिलती है ।
और भोर की लाली में ही, कली डाल में खिलती है ।।
बागों में भी फूल देखकर, तितली भी इठलाती है ।
वैसे ही मन चहक उठे जब, याद तुम्हारी आती है

जैसे कलियाँ देख देखकर, भौंरे गाना गाते हैं ।
फूलों की खुशबू को पाकर, लोग सभी सुख पाते हैं ।।
बारिश की पहिली बूँदों से, सौंधी खुशबू आती है ।
वैसे ही मन चहक उठे जब, याद तुम्हारी आती है ।।

दिन आये स्कूल के

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

चुन्नू मुन्नू रानू गीतू
बब्बू शिब्बू मोनू मीतू
चलो शरारत बन्द करो
अब देखो बस्ता खोल के
बीत गयी गर्मी की छूट्टी
दिन आये स्कूल के...

नयी ड्रेस नई नई किताबें
मिलकर मन को भाएंगे
रंग बिरंगे चित्र तुम्हारे
मन में ही छा जाएंगे
नये-नये और मित्र बनेंगे
घर आँगन से दूर के
बीत गयी गर्मी की छुट्टी
दिन आये स्कूल के...

रंग-बिरंगी चित्र लगे है
कक्षा की दीवार में
दाल भात और ताजी सब्जी
मिलेंगे आहार में
नही झगड़ना, लड़ना भिड़ना
मेरे बच्चे भूल के
लगा हुआ है झूला आँगन
आना उसमें झूल के
बीत गई गर्मी की छुट्टी........!!

मास्टर जी है बड़े निराले
बात नए बतलायेंगे
कभी कहानी बन्दर वाली
कभी गीत मनोहर गायेंगे
जोड़-घटाना,गुना-भाग भी
सिखलाते है खेल में
बीत गयी.....!!

पानी

लेखिका एवं चित्र - स्नेहलता 'स्नेह'

जीवन का संचार है पानी
रोगों का उपचार है पानी

देह के भीतर देह के बाहर
श्वांसो का आधार है पानी

सूखती नदियाँ देख रही हूँ
बहता अश्रुधार है पानी

मैली नदियाँ देख स्वयं को
कहती हैं बीमार है पानी

मानव खेले इस सृष्टि से
सचमुच में लाचार है पानी

जल दोहन और वृक्ष कटाई
जीवन दूभर यार है पानी

बेशकीमती जल की बूँदे
धरती का श्रृंगार है पानी

फुग्गे

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

नन्ही-नन्ही छोटी प्यारी
पीकर हवा बड़ी मतवाली
लाल,गुलाबी ,काली,पीली
हरी, बैगनी ,सादी ,नीली
छोटी,मोटी,लम्बी, चौड़ी
बड़ी सेब और दिल की जैसी
तनी रबड़ की डोरी उछले
तनकर छन-छन जिसमें बोले
गेंद बने कभी घर आँगन
बिना पंख ही उड़े आसमाँ
मेलो की है रौनक यह
बचपन को है भाता
चुन्नू मुन्नू बबली पिंटू
सबका मस्ती भरा पिटारा...

बहुत सुहानी है बरसात (विधा- जयकारी छंद)

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

काले बादल छाये आज'
बहुत सुहानी है बरसात''
वन में नाचे सुन्दर मोर '
यमुना तीरे है चितचोर''

करते बरखा में मनुहार'
चातक पाखी रहा पुकार''
स्वाती की है पावन बूँद '
पीता चातक आँखें मूँद''

गिरी आज पहली बरसात'
सौंधी महकी धरती मात''
पौध लगाकर डालो खाद'
तभी रहे धरती आबाद''

पंछी गाते राग मल्हार'
हरा भरा रखना संसार''
पानी का पहचानो मोल'
बूँद बूँद इसकी अनमोल''

बेटियाँ

लेखक एवं चित्र - प्रेमचंद साव

बेटियों से ही घर में आती खुशियाँ अपार।
बेटियों के बिन अधुरा घर संसार।।

गृहस्थी के कार्यों में हाथ वह बटायें।
सभी काम-काज को मंगल कर जाये।।

जन्म हुआ बेटी का,
घर में छायीं खुशियाँ।

गुंज उठा घर आंगन,
मीठी किलकारियाँ।।

हँसती हैं जब खुलकर,
खिल उठती कलियाँ।।

चलने पर उनके,
बजे पायल छम-छम।

हाथों के कंगन,
खनकते हैं खन-खन।।

फूलों सी कोमल,
हिरनी सी चंचल,
माँ की दुलारी,
बाबुल की परि‍याँ।।

कल तक थीं अनपढ़,
आज टाप टेन में।
बेटों से कम नहीं
हैं हमारी बेटियाँ।
पवित्र है वह आंगन,
जिस में पली बेटियाँ।।

रक्षाबंधन

लेखिका - श्वेता तिवारी

राखी भेज रही हूं भैया
सावन की पूनम को आज
जनम जनम तक रखना भैया
मेरी इस राखी की लाज
नहीं साज आडंबर है
बस स्नेह सजे दो धागे हैं
नहीं चतुरता सुघराई हैं
दो शब्द प्रेम में पागे हैं
शब्दों के धागों में भै'या
तुम बँधते हो आज

कुमकुम का कर तिलक भाल पर देती तुम्हें स्नेह का राज
जनम जनम तक रखना भैया तुम मेरी राखी की लाज

वर्षा ऋतु आई है

लेखिका - पद्यमनी साहू

नव जीवन साथ लाई है।
ग्रीष्म से तपती धरा पर
अमृत धार बरसाई है।।

सुखते जल मण्डल में
मौजो की बहार लाई है।
तितली नाचे भौंरे गाये
मछली मेंढक मौज उड़ाये।
इतनी खुशियां लाई है
वर्षा ऋतु आई है।।

फूलों की खुशबू से
महका है चमन सारा।
नजरें जहाँ भी जाती है
भा रहा हर नजारा।।

कलियों पर मंडराते भंवरे
प्रेम का गीत सुनते हैं।
उसने भी तृप्ति पाई है
वर्षा ऋतु आई है।

हरियाली की चादर ओढा
धरा का कर रहा श्रृंगार।
रूप और सौंदर्य का उसको
दे रहा अनोखा उपहार।
लगती धरती कितनी प्यारी
अनुपम अदभुत और न्यारी।।

दृश्य मनोहर छाई है
वर्षा ऋतु आई है।

सूरज आया

लेखक - बलदाऊ राम साहू

बड़े सवेरे सूरज आया
पंछी ने हमें बतलाया
चुभती गरमी तुम देना मत
किरणों को जाकर समझाया।

तभी पेड़ के पत्ते बोले
आहिस्ता-आहिस्ता डोले
ठंडी हवा चली पुरवाई
मुर्गों ने जब बाँग लगाई।

गौरैया आई कहीं से उड़कर
नाच दिखाई वह फूदककर
मुनिया गा रही थी गाना
कौए ने तब मारा ताना।

कहीं दूर से आया कबूतर
पानी पीया वह उतरकर
मुनिया उसको दाना दे दी
कबूतर ने आभार जताया।

हरियाली

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

पौधा एक लगाकर देखो, हरियाली छा जायेगी।
महक उठेंगे बाग बगीचे, चि‍ड़ि‍या गाना गायेगी।।

झूम उठेंगे पौधे सारे, नदियाँ भी लहरायेंगी ।
चहक उठेंगी चिड़ि‍यां सारी, अपनी प्यास बुझायेंगी ।।

हरी भरी पेड़ों की छाया, राही भी सुस्तायेंगे ।
खूब लगेंगे मीठे फल जब, बड़े मजे से खायेंगे ।।

शुध्दग हवा जब आयेगी तो, दिल भी खुश हो जायेगा ।
रहें स्वस्थ बच्चे बूढ़े सब, बीमारी भग जायेगी ।।

आओ साथी मिलकर सारे, हम भी पेड़ लगायेंगे ।
अपनी धरती अपनी माटी, इसको स्वर्ग बनायेंगे ।।

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