महानदी गंगे

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

तय पियास घलो बुझाथस छत्तीसगढ़ महतारी के '
तोला कईथे चित्रोत्पला नीलोत्पला महानदी गंगे ''

हमर छत्तीसगढ़ राज के सबले बड़का नदीया महानदी आय.अउ ये ह धमतरी जिला के सिहावा नगरी तहसील के सिहावा पहाड़ ले निकले हावे.अउ इहि पहाड़ में घलो हमर छत्तीसगढ़ के महान रिसि सिंगी ह तपस्या घलो करे रिहिस.पहाड़ के ऊपर म नानकुन कुंड ले पानी के धार ह बोहावत रइथे.अउ इहि ह आगु डहर जाके बड़का नदी के रूप ल धर लेहे.अउ ये ह कई जुग ले बोहावत घलो हावे.एखरो नाव हर अलग अलग जुग म अन्ते अन्ते रिहिस हावे.कोन्हों समय म 'चित्रोत्पला, नीलोत्पला, कनकन्दनी' घलो रहाय.अउ महानदी नाव हर रिसि सिंगी के गुणवान अउ बात मनइया चेला महानन्दा के त्याग तपस्या अउ बलिदान के सेती रिसि ह खुस होके अपन चेला के नाव ल अमर करे के खातिर अपन बेटी नदी के नाव ल घलो महानदी रखे रिहिस तब ले आज तक महानदी के नाव ले जाने जाथे.

त्याग करिस तोर चेला महानंदा ह घलो सिंगी '
नाव रखेच घलो तोर बेटी के महानदी गंगे ''

'यहु नदी ल हमर राज के जीवन दायनी गंगा घलो कहे जाथे' जनश्रुति के अनुसार ले सुनें ल मिलथे की महानदी ह जब अपन कुंड ले निकलथे त ओ ह उत्ती डहर जाएल लगथे त ओला रिसि ह देख के कथे देख बेटी ओती तेहर जाबे त तोर मान गाउन नई होए.तय हर लउट जा.अतको बात ल सुन के दाई हर फारसिया गांव ले माहामाया दाई के चरण पखार के वापिस दक्छिन दिशा म आ जथे.कांकेर जिला ले तोर धार बोहावत भण्डार दिशा कोती वापीस धमतरी जिला म तय आथस माता.अउ तोरेच धार ल छेक के सन 1978 म गंगरेल गाँव म पण्डित रविशंकर शुक्ल सागर परियोजना नाव ले बाँध घलो बने हे.ये बांध ल बनाये म ओ जगह के 52 गांव ल उसाले ल घलो पडिस. येखर पानी ह आस पास के खेत के सिचाई करथे.अउ भिलाई के स्पात कारखाना ल पानी घलो देथे.जब तोर लहरा मारत धार हा आगु बढते त रुद्री म घलो सन1915 म पिकप वीयर(डॉ खूबचंद बघेल परियोजना) बांध बने हावे.तेहर माता अपन अमृत रूपी जल ले हमर छत्तीसगढ़ महतारी के पियास ल घलो बुझाथस. तेखरे सेती तोला 'हमर राज के गंगा कहे गे हावे' तेहर इहां के जीवन रेखा हरस.ते ह रकसहू ले भंडार डहर बोहावत आथस तोर संग म पैरी अउ सोंढूर नदिया के धार ह राजिम म एक जगह मिल जथे जेन ल तिरवेनी संगम घलो कहे गेहे.राजिम में भगवान कुलेश्वर अउ राजिमलोचन के तोला आसीस घलो मिलथे.तोर खड़ में माता राजिम,सिरपुर,आरंग अउ शिवरीनारायण जइसे शहर ह बसे हावे.तेहर दाई बड़का नदिया घलो अस.तोर लंबई ह हमर राज म 286 किलोमीटर अउ पुरेच लंम्बाई घलो 864 किलोमीटर हावे.तोर बिकराल धार ह बोहावत महतारी धमतरी जिला ले धरती दाई के पियास बुझावत रइपुर,महासमुंद,बलोदाबजारअउ जांजगिरचापा डहर जाथो.तोरेच खड़ म शिवरीनारायण जिईसे पवित्तर शहर हाबे.इहाँ ले तोर धार उत्ती भंडार होत बोहावत उड़ीसा के संबलपुर जिला ले होवत कटक म पहुँचथो अउ उही जगह म तोर बोहावत धार ल छेक के सबले लंबा हीराकुंड बांध घलो बनाये हावे.तोर अमृत रूपी पानी ले उड़ीसा के पियास ल घलो बुझाथो.अउ आखिर बेरा म तोर लहरा मारत धार ह महतारी बंगाल के खाड़ी म गिर के समुंदर म जा के समा जथे.

सबो के दुख हर तारनी महानदी गंगे माता '
छत्तीसगढ़ म तय जनम धरे पियास बुझाये महतारी '
बंगाल खाड़ी म जाके समुन्दर म समाये महानदी गंगे ''

हरेली तिहार अउ परंपरा

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

सावन महिना के सुरू होते साठ चारो डाहर हरियर - हरियर दिखे ल धर लेथे. रूख, राई, खेत-खार सब डाहर जेती देखबे तेती चारो मुड़ा हरियाली छाय रहिथे. नदियाँ-नरवा मन में पानी बोहात रहिथे अउ मेचका मन टरर-टरर नरियावत रहिथे. सब डाहर हरियर-हरियर देखके मन ह तक हरिया जाथे. इही सब ल देखके किसान मन ह सावन महिना के अंधियारी पाँख के अमावस्या के दिन हरेली तिहार मनाथे. हरेली तिहार के दिन किसान मन ह बिहनिया ले उठ के अपन गाय-बइला मन ल गोठान में भेज देथे. ऊंहा राऊत मन ह वोला राखत रहिथे.

लोंदी खवाय के परम्परा - हरेली तिहार के दिन गाय बइला ल लोंदी खवाय के परम्परा हे. किसान मन ह गेंहू के आटा ल सान के लोंदी बनाथे. अंडापान या खम्हार पत्ता में खड़ा नमक के पोटली बना के गाय बइला मन ल खवाथे. साथ में दार चाँऊर लेगे रहिथे तेला पहटिया (चरवाहा) ल देथे. ओकर बदला पहटिया मन दसमूल कांदा अऊ जंगली गोंदली ल परसाद के रूप में देथे. तेला घर भर के माई पिल्ला बाँट के खाथे.

औजार मन ल पूजा करे के परम्परा - हरेली के दिन किसान मन घर जतका खेती किसानी के औजार रहिथे जैसे-नांगर, बसुला, हथौड़ी, खुरपी, रापा, सब्बल, कुदारी, आदि जतका समान रहिथे सब ल धो मांज के एक जगा रखथे अऊ घर भर के सब झन ओकर पूजा करथे. चीला चढ़ाये के परम्परा - आज के दिन किसान मन ह खेत में चीला चढ़हाथे अऊ ओला परसाद के रुप में बांटथे. गरम-गरम चीला ल चटनी के संग खाय ले मजा आ जाथे.

नीम डारा खोंचे के परम्परा - आज के दिन राऊत मन या बइगा मन ह घर-घर जाके नीम के डारा ल दरवाजा में खोंचथे. एकर खोंचे से घर में भूत परेत या कोई भी परकार के जादू-टोना घर में परवेश नई करे, अइसे माने जाथे.

गेंड़ी बनाय के परम्परा - हरेली तिहार के लइका मन बहुत इंतजार करत रहिथे. काबर के आज के दिन लइका मन ल गेंड़ी चढ़हे बर मिलथे. गेंड़ी ल लंबा-लंबा बांस के बनाये जाथे अऊ बीच में पाँव रखे बर पाऊ बनाये जाथे. पहिली गेड़ी के पूजा करे जाथे. ताहन लइका मन ह चढ़के अब्बड़ मजा पाथे.

खेल खेले के परम्परा - हरेली के दिन गाँव के मन ह एक जगह सकलाथे अऊ किसम-किसम के खेल खेलके आनंद उठाथे. जैसे - गेड़ी दउड़, बइला दंउड, कबड्डी, नरियर फेंकउला आदि.

देवी-देवता ल मनाय के परम्परा - हरेली के दिन गाँव के जतका देवी - देवता हे ओकर पूजा करे जाथे अऊ कोनो परकार के अनिष्ट गाँव में झन होय कहिके प्रार्थना करे जाथे.

आज के दिन से ही गाँव में बइगा मन अपन चेला मन ल मंतर सिखाय के शुरू करथे. ग्रामीण क्षेत्र में मान्यता हे कि आज के दिन रात में टोनही मन अब्बड़ झूपथे. एकरे पाय कोनो आदमी रातकुन अपन घर से नइ निकले. लेकिन ये अंधविश्वास ह अब खतम होवत जात हे. हमर छत्तीसगढ़ में ये हरेली तिहार ल किसान मन ह बढ़िया धूमधाम से मनाथे. ये तिहार ह सबला मिलजुल के रहे के अउ अपन काम ल लगन से करे के संदेश देथे.

सबरी के जूठा बोइर

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

चरन नवाओ मोर सबरी दाई '
छत्तीसगढ़ के तय साधवी ओ ''

सोन के मिरगा भेस धरे मारीच राक्छस ल मार के राम अउ लच्छमन ह अपन पर्णकुटी म आथे.त ओ मन ह सीता ल चिल्लाय लागथे. सीता के कोन्हों डहर आरो पता नई मिले .त ओ मन ल अड़ बड़ दुख होथे. अउ जंगल जंगल म एती ओती बहिय्या भूतहा कस खोजन लागथे. उही बेरा रददा म एक झन तड़फथ जटायु ह घलो मिलथे. ओहर ह बेसुध भुइय्या म पड़े रथे. जटायु ह सीता माता ल लेगत देख ओखर रक्छा खातिर रावण संग लड़त अपन एक ठन डेना ल गाँवयल पड़थे. राम हर देख के ओला पानी पियाथे त ओ ह अपन सुध म आ जथे. सुध म आये के बाद म जटायु ह रावण ले सीता ल अपन पुष्पक विमान म बैठा के ले जाए के घटना ल घलो राम ल बताथे. अउ उहि बेरा म जटायु ह राम के गोद म अपनेच परान ल तियाग देथे.

पंछी होके तेहर जुद्ध करेस घलो रावण ले '
नाव अमर होगे परान तियागे गोद राम के ''

राम ल अड़ बड़ दुख घलो होथे अउ अपनेच हाथ ले जटायु के मौद माटी ल करथे. तभेच आगु डहर दोनो भाई हर सीता ल खोजे बर जाथे. रददा म जावत एक दिन ओ मन ल एक झिंन डोकरी हर मिलथे. ओखर नाव हर सबरी रहय. ओहर भीलनी जाती के घलो रहय.

तोर अगोरा म परभु चुन्दी घलो ह पाक गे '
कन्हिया झुकता आँखि मा अंधरौटी छागे ''

सबरी दाई ह राम ल अपन कुटिया म आय बर नेवता घलो देथे. ओखर कुटिया ह पम्पा सरोवर के पार म मतंग जंगल म रहय. अउ वहू जंगल म बोइर के अबड़ पेड़ घलो रहय. राम लच्छमन के सबरी दाई ह अड़बड़ मानगोन घलो करथे.

आय हावे तोर दुवारी म भगवान घलो राम '
उद्धार करे बर तोर बने बने तय खवाले ''

ओहर बोइर ल चीख चीख के देखथे मीठ अउ कड़हा बोइर मन ल अलगेच अलग कर राम बर सकेल के घलो रखे रथे. परेम के भावना ले जूठा बोइर ल सबरी दाई हर राम के थारी में परोस घलो देथे. ओहर अबड़ भोली घलो रहाय. ओकर परेम ह भगवान राम बर भारी रहाय. राम ह घलो बिना छुआ-छुत के ओखर नेवता ल मानथे. अउ ओहर सबरी के जूठा बोइर ल परेम ले खाथे घलो. राम के नजर म घलो सबो मनखे मन एके समान रहाय. जात-पात के अधार ले कोन्हों ल छोटे बड़े समझई ल ओहर गलत माने.

जात पात के तय भेद मिटाय ओ मोरे राम '
चरण पखारे सबरी दाई शिवरीनरायन कहाय ''

ओखर बिचार म परेम ह सबो ले बड़का रहाय. सबरी दाई ह राम ल किष्किन्धा के राजा सुगरिव के बारे म बतइस अउ दोनो भाई राम लच्छमन ह पहाड़ डहर जाए बर लगिस.

तभे तो केहे गेहे

पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय '
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ''

मुअखरा कैलेंडर

प्रस्तु तकर्ता - शीला गुरुगोस्वामी

सियान मन कहिथें पण्डित के पोथी पतरा, फेर पण्डिताइन के मुअखरा. पुराना जमाना म जब कलेंडर नइ रिहिस तब हमर सियान मन तीज तिहार के पता लगाय बर अइसे कहँय :-

रथदूतिया के 15 दिन हरेली

हरेली के 15 दिन राखी

राखी के 8 दिन आठे

आठे के 8 दिन पोरा

पोरा के 3 दिन तीजा

तीजा के बिहान दिन गनेसचौथ

गनेस ठंडा करेके बिहानदिन पितरपाख

पितरपाख के बिहानदिन नवरात

नवरात के 10 दिन दसेरा

दसेरा के 20 दिन देवारी

देवारी के 10 दिन जेठोनी

अइसे हमर सियान मन बिना कलेंडर अउ पंचांग के तीज तिहार ल जान डारयँ अउ हँसी खुशी के साथ तिहार मन ल मना डारे!

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