अजादी बर

लेखक - नेमीचंद साहू (गुल्लू)

अतेक लड़िस पुरखा मन
जान लअपन गंवादिन
अजादी ल दे के आखिर
नाव ल अमर करादिन ''

झुकय नही काकरो आघू
अइसन अंदोलन चला दिन
मरगे कटगे तभो ले
नाव ल अमर करादिन ''

जुरमिल लड़िन सबोझन
बइरी ल लोहा मनादिन
टक्कर ले टक्कर देके
नाव ल अमर करादिन ''

घर-दुआर क संसो छोड़
जीत के डंका बजादिन
इकलौता बेटा मरगे
नाव ल अमर करादिन ''

कतको मॉग उजड़गे
फॉसी म घलो चढ़ादिन
महतारी के मान रखिन
नाव ल अमर करादिन ''

अनियाय ले लड़के हमर
झंडा ल सुघ्घ फहरादिन
बनगे पुरोधा भारत के
नाव ल अमर करादिन ''

इही ल मया कहिथे न

लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

बदरी हे कारी कारी,
छाये हावय मतवारी।
धान के बिजहा हे पिवरा,
तरसत हे सब के जीवरा।।
इही ल मया कहिथे न.

गिरत हे रिमझिम पानी,
चुहत हे ओरिछा छानी।
माते हावय जी किसानी,
झूमे नाचे जिनगानी।।
इही ल मया कहिथे न.

बिजली चमकत हे लाली,
मौसम के रंग गुलाबी ।
हरियर दिखे सब डाली,
लईका बजावे ताली ।।
इही ल मया कहिथे न.

खुलखुल हांसत हे गोरी,
लमाये मया के डोरी ।
सुम्मत के बांधे डोरी,
करमा गावत हे होरी,
इही ल मया कहिथे न.

करिया बादर

लेखक - बलदाऊ राम साहू

करिया बादर आही संगी,
सब के मन हरसाही संगी।

झिमिर-झिमिर पानी गिरही
कमिया मन मुसकाही संगी।

तरिया, नरवा, नदिया भरही,
सब मन मजा उड़ाही संगी।

मछरी, मेचका कूद-कूद के,
मस्त मल्हारी गाही संगी।

रुख - राई जम्मो हरियाही,
सुग्घर रूप बनाही संगी।

बादर ऊपर जब बादर छाही,
सुरुज हर असकटाही संगी।

किसानी के दिन आगे

लेखक - मनोज कश्यप

नांगर अऊ तुतारी के
जुड़ा अऊ पंचारी के
रापा गैंती कुदारी के
मनटोरा मोटियारी के
मनोज ला सुरता आगे
किसानी के दिन आगे ।
कबरा लाल धौंरा के
खुमरी अऊ कमरा के
आनी बानी रंग मोरा के
बांटी अऊ भौंरा के
भाग फेर जागगे
किसानी के दिन आगे ।
बादर अऊ पानी के
खपरा खदर छानी के
डोकरा डोकरी कहानी के
लिमऊ आमा चटनी के
दिन फेर लकठियागे
किसानी के दिन आगे ।
धान खेती करइया के
जामुन लीम छईंया के
गीत ददरिया गवइया के
गोंदली बासी अमरईया के
सबके मन उम्हियागे
किसानी के दिन आगे ।

चंद्रयान-दू (सरसी छन्द)

लेखक - कमलेश कुमार वर्मा

चंद्रयान-दू के भारत हा, करत हवय अभियान।
येकर पाछू वैज्ञानिक मन, देवत हे बड़ ध्यान।।

लइकापन मा चंदा मामा, कहिके गावन गान।
उँहे पहुँचही अब भारत के, दूसर बेरा यान।।

भेद खोलही नवा नवा अब, इसरो चन्द्र विमान।।
दक्षिण कोती जाके लाही, पानी-खनिज निशान।।

अंतरिक्ष मा पकड़ बाढ़ही, दुनिया मा सम्मान।
बने सफलता पाही येहा, लाही नवा प्रमान।।

दू झन बेटी अपन हाथ मा, येकर धरे कमान।
श्रीहरिकोटा के धरती ले, करही ये प्रस्थान।।

चीला रोटी

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

दाई बनाथे चीला रोटी ।
बढ़ मिठाथे चीला रोटी ।

राजु , रानी अउ छोटी,
सबला भाथे चीला रोटी ।

डोकरी दाई अउ ममादाई ल,
बढ़ सुहाथे चीला रोटी ।

हरेली के तिहार म,
घर घर बनाथे चीला रोटी ।

चऊंर पिसान के बनाथें,
जेला कहिथे चीला रोटी ।

छत्तीसगढ़ के नारी

लेखक - श्रवण कुमार साहू ‘‘प्रखर’’

कारी ल कारी झन समझव,येहा छत्तीसगढ़ के नारी ये—

श्रध्दाक के इही ह फूल हरे,पूजा के येहा अधिकारी ये
कोनों कहिथे येला अबला, कोनो कहिथे ये बिचारी ये
कोनो कहिथे नारी ह तो, बस दया के अधिकारी ये
नर ल नारायण बना देथे, वोहा अईसन महतारी ये

जब 2 नर म बिपत पड़थे, नारी ह वोकर सेवा करथे
जब देश धरम बिपत पड़थे,नारी ह वोकर बर लड़थे
ममता बर केंवची फूल हरे,अउ बैरी बर छुरी कटारे ये

श्रद्धा से मुड़ी नवा ले तै, वोहा तोला सब कुछ दे देही
कोनों बेटी बर आँखी फोड़े,तोर जीवरा ल वो ले लेही
समता ममता अउ दया धरम के,नारी ह फुलवारी ये
नारी के आँसू रामायण, वोकर हर करनी ह गीता ये
माँ बनगे त वोहा यशोदा, धरम राखे बर सीता ये
छत्तीसगढ़ के संस्कृति के, वोहा सौंहत चिन्हारी ये

वोहा बहिनी के राखी ये, वो जनम देवैया महतारी
बाबू के बेटी दुलौरिन, वो जिनगी के संग संगवारी ये
वाणी म वोहा शारद ये, वोहा काली के किलकारी ये

वो पथरा जईसन अहिल्या, वोमा शबरी के हे भक्ति
राजिम, करमा के रूप धरे, वोमा दुर्गा के हे शक्ति
धरती दाई वोला कहिथे, वो जग जननी अवतारी ये

झड़ी

योगेश ध्रुव 'भीम'

चारो मुड़ा चिरई जाम कस '
तेहर नंगत अंधियारे हावस ''

फुसुर फुसुर तेहर गिरथस '
लागत कोड़हा छनके कस ''

अंधियारे हावस तेहर जइसे '
इंदर देव ह पहरा देवत हावे ''

तोर गिरे ले धरती मैंय्या के '
सुसी घलो ह बुतावत हावे ''

डबरा खोधरा घलो ह भरगे '
गिंधोल मन नरयावत हावे ''

झिंगरा मन ह नाचत घलो न '
बत्तर किरा ह उड़ावन लागे ''

झड़ी तोरे गिरे ले रीझत मन '
खुलगे भाग ह हलधरिया के ''

सँझकेरहा ले उठ के घलो '
नांगर खेत म जोतत हावे ''

अईसे गिरथस कलेचुप तय '
जइसे मौनीबबा बने हावस ''

इसने घलो तेहर गिर झड़ी '
दगा झन दे एसो के साल म ''

नानचुन लयिका

लेखक - संतोष कुमार साहू ‘‘प्रकृति’’



नानचुन लयिका जान के हमला, नई डलवाना रे।
लुक लुक लक लक, लुक लुक लक लक।।
अकल पीलारी जान के हमला, नई तरसाना रे।।
लुक लुक लक लक, लुक लुक लक लक।।
चक्कर भौंरी चक्कर भौंरी, नाच नचा देबोन।।



स्कुल म बड मजा आथे , डर नई लागे एकोकनी।
जीहां जम्मो लयिका पढथे, चाहे बाबु चाहे नोनी।।
घर ले बढिया स्कुल हाबे, कोनो नई हे अनजानी।
भौंरा बांटी खेले ल खेलके, डांढ बनाबोन नानचुन।।



पढे बर नई लागे थोरकिन, हमला कोनो आनाकानी ।
होशियार बनबोन देखही दुनिया, नई होय कोनो मनमानी।।
नोनी बाबु आगु बडबोन, देखही जम्मो मनखे परानी।
आगु आगु बढते रहिबोन, चाहे सुखारो बिंदिया रानी।।



जिहाद बनाबोन किसम किसम के, राकेट ल उडाबोन जी।
मंगल म कबड्डी खेलबोन, चंदा म बिल्लस ढुलाबोन जी।।
नरवा ढोरगा नई तो जावन, झटकुन स्कुल जाबोन जी।
ज्ञान दीया ल मन भरके, अंधियार ल दुरिहा भगाबोन जी।।

पानी बरसा दे

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

तोर अगोरा हावय बादर, सबझन देखत रस्ता ।
कब आबे अब तिही बता दे, हालत होगे खस्ता ।।

धान पान सब बोंयें हावय, खेत म नइहे पानी ।
कोठी डोली सुन्ना परगे, चलय कहाँ जिनगानी ।।

बादर आथे उमड़ घुमड़ के, फेर कहाँ चल देथे ।
आस जगाथे मन के भीतर, जिवरा ला ले लेथे ।।

माथा धर के सबझन रोवय, कइसे करे किसानी ।
सुक्खा हावय खेत खार हा, नइहे धान निशानी ।।

किरपा करहू इन्द्र देव जी, जादा झन तरसावव ।
विनती हावय हाथ जोड़ के, पानी ला बरसावव ।।

सौंधी सौंधी खुशबू हा जब, ये माटी ले आही ।
माटी के खुशबू ला पा के, माटी खुश हो जाही ।।

बम्बरी के फूल

लेखक - श्रवण कुमार साहू'प्रखर'

सावन ल देख के,
बम्बरी ह घलक फूल गे।
देख तो वोकर रूप ह,
बड़ सुग्घर खुलगे।।

लोहा कस करिया तन म,
सोनहा फूल फुले हे।
हरियर लुगरा सहिन,
वोकर पाना सुग्घर खुले हे।।

बम्बरी के कली लागे,
नोनी के नाक के फूल
बम्बरी के फूल लागे,
गोरी के कान के झूल।।

बम्बरी म चढ़े हे,
देख तो तेलहा चांटी।
बम्बरी के फर जईसन,
गुड़िया के छाँटी।।

पाना अउ फूल देख,
कहाँ लुकागे वोकर काँटा।
सबके जीवन म अईसन,
आथे सुख दुःख के बाँटा।।

बिपत के पतझड़ म,
जेन मनखे ह झुलही।
सावन के सुख म,
बम्बरी कस फुलही।।

बरस जा बादर कारी

लेखक - कमलेश कुमार वर्मा

काबर तैंहा नइ बरसत अस, अब रे बादर कारी।
उमड़-घुमड़ के घेरी-बेरी, लालच देथच भारी।।

गरज-चमक के आस जगाथस, पर नइ रेंगय धारी।
दाना-पानी कइसे मिलही, तहीं बता उपकारी।।

धान सुखावत खेत-खार मा, फटगे हे दनगारी ।
लांघन मरही जीव-जंतु मन, दुच्छा होही थारी।।

कहाँ इहाँ अब घर मा होही, बर-बिहाव तइयारी।
अपन गला मा डोरी कसही, कइ किसान लाचारी।।

मनखे सब गोहार लगावत, शिव शंकर- भंडारी।
दरस दिखा के अब तँय कर दे, उर्रा खेती-बारी।।

बरसा के दिन आवत हे

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे ।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे ।

तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे ।
आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे ।

बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे ।
घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे ।

हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे ।
बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे ।

घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे ।
घटा घनघोर छावत , बरसा के दिन आवत हे ।

ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना ह उलहावत हे ।
किसम किसम के भाजी पाला, नार मन लमावत हे ।

चढहे हाबे छानही में, खपरा ल लहुंटावत हे ।
घटा घनघोर छावत , बरसा के दिन आवत हे ।

सबो किसान ल खुसी होगे , नांगर ल सिरजावत हे ।
खातू माटी लाने बर , गाड़ा बइला सजावत हे ।

सुत उठ के बड़े बिहनिया, खेत खार सब जावत हे ।
घटा घनघोर छावत , बरसा के दिन आवत हे ।

बरसा

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

बरसा के दिन आगे जी,
झमाझम गिरत हे पानी।
परछी हा भरा गेहे,
टप टप चुहत हे छानी।
ओरछा होगे हे घर दुवार हा,
जगा जगा बाल्टी ला मढहात हे।
छानी ला लहुटाय नइहे,
बबा ह बड़बड़ात हे।
स्कूल हा खुल गेहे,
लइका मन हा जावत हे।
डबरा सबो भरा गेहे,
चोरो बोरो आवत हे।।

बरसात

लेखिका - पुष्पा नायक

तन मन ह सब के जुड़ागे,
देखौ घटा घलो करियागे,
चारो मुड़ा रुख राई हरियागे,
मोर खेत अउ खलिहानलहलहागे,
चिखला माटी ह माड़ी तक अमागे,
लइका मन के जइसे तिहार आगे,
जब ले बदरा के बयार आगे,
डबरा खोचका तरिया कस भरागे,
मेचका के टर टर,
चिरई चिरगुन के चहचहई,
निक लागे मोर गाँव अउ गँवई,
जब ले बरखा बरसागे।

बरसीस बादर

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

आज जम के बरसीस बादर
धरती ल पानी पोरसीस बादर

अँटाये खोचका डबरा ला
डब-डब ले भरीस बादर

सुक्खा करियाये रुखराई ला
सुग्घर हरिहर करीस बादर

गरजत चमकत अउ बरसत
सुख-सोहर गीत गाईस बादर

चीखला-माटी मं रंग-झाँझर
लइका मन ला नचाईस बादर

बादर लबरा होगे

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

अब असाढ़ ले सावन आथे
तरिया नदिया सबो सुखागे
तोर अगोरा म बइठे हन सब
बिन पानी सरी बुध छरियागे
जीव जिनावर तड़पे लागे
जोते खेत करवाही गड़थे
तीप के गोड़ के भोमरा होगे
लागत हे बादर लबरा होगे

तात तात लागे भिनसरहा
घाम घरी कस सुरुज ह पेरहा
अब्बड़ आस ले नजर गडाहे
भंडार बरसही सोच किसनहा
छोल चाँच तैयार खेत ह
बाट जोहत तैयार नगरिहा
आही बरोडा फेर उड़ाही
छाये बादर कबरा होगे
लागत हे एसो बादर लबरा होगे....

मय महानदी के पानी अंव

इस गीत में छत्तीसगढ की प्रमुख नदियो का नाम भी आया है
रचनाकार - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)

मय महानदी के पानी अंव, मय अमरित अमर कहानी अंव।
मय महानदी के पानी अंव,
मय लोटा भर के जुबानी अंव।।
सिरिंगि सिहावा दाई ददा मोर, मय रिषि मुनी के बानी अंव।।



कुंड ले निकल के बोहावत रहिथंव , मया दुलार बोहाथंव।
मोर मया म गंगरेल दुधावा, हीराकुंड ल अघाथंव ।।
दुरुग भिलयी के पियास बुझाथंव, लोहा बर मय नानी अंव।।
मय महानदी के पानी-------।।



शिवनाथ खारुन अरपा हसदो, मोरेच मया ल पाथय।
जोंक तांदुला मनयारी ह, मोरेच संग बतियाथय।।
पैरी सोढु संग संगवारी, मय ओखर बर संगवारी अंव।।
मय महानदी के पानी-------।।



धमतरी राजिम चंपारण ह , मोरेच महिमा ल गाथय।
महासमुंद आरंग सिरपुर ह ,मोरेच संग ममहाथय।।
सबुरी नारायण चंदरपुर म्, मय जुडा बोईर के पानी अंव।।
मय महानदी के पानी------।।



छत्तीसगढ़ मोर कोरा म खेलय, जेन हर धान कटोरा आय।
मय पिरित गठिया के रखथय, जयिसे दाई के जोरा आय।।
छत्तीसगढ़िया सबले बढिया, मय ओखर बर महतारी अंव।।
मय महानदी के पानी------।।



बारी बखरी खेती किसानी, मोर मया म हरियाथय।
किसम किसम के मया ल पाके, सबो बर मया बोहाथय।।
मत मारव गा मोला तुमन , तुंहर बर मय मामी अंव ।।
मय महानदी के पानी-----।।



अटल नगर के पियास बुझाथंव, जिंहा हे जंगल सफारी।
मंत्रालय मोर मया ल पाथय, नेता करमचारी।।
जतन ल मोरे करत रहवगा, मय मुकतांगन चिनहारी अंव।।
मय महानदी के पानी------।।



मोला जेन हर मयिलावत हे ,ओ हर दुख ला पावत हे।
घुरवा मोला बनाके गा, जहर म जिनगी बितावत हे।।
मोर मया ल छोडही जे हर, मय ओखर बर सुनामी अंव।।
मय महानदी के पानी------।।

मोर गांव

लेखक एवं चित्र - बलराम नेताम

आनी बानी के हे रुक राई सुग्घर हे ओकर छांव,
प्रकृति के कोरा म बसे हावय मोर गांव,

ठाकुर देव के जोहार लागव,
शीतला दाई ला माथ नवाव
दाई ददा के परथन पांव,
बढ़ सुघ्घर हे संगी मोर गांव।

तरिया पार के पिपर पेड़,
खेत खार अउ मेड़,
चिरई चिरगुन के चिव चाव,
बढ़ निक हे संगी मोर गांव।

आनी बानी के नता गोता ल मानथे,
जौन गांव म रहिथे तौन जानथे,
सगा पहुँना आय ले कांस के लोटा म देथे पानी,
ये तो हरे संगी मोर गांव के कहानी।

मोर दुलौरिन दाई

लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

मोर दुलौरिन दाई तेहा,
कहां चल देस आजा ओ।
खोजत हावंव मेहा दाई,
तोर बेटा दुलरवा राजा ओ।।
नौ महीना ले तेहा दाई,
अपन कोरा म सिरजाये।
मोर सुख के खातिर दाई,
तै लाखों दुख ल पाये।
कहां चल देस तेहा दाई,
रोवत हंव बेटा राजा ओ--

अंगरी धर के तेहा दाई,
मोला रेंगे ल सिखाए ।
नई जानव खाये बर तेन ल,
खाए बर तै सिखाए ।।
काबर तेहा रिसा गेस दाई,
अब तो तेहा आजा ओ----

कलप कलप के मन ह रोये,
बोहाए आँसू के धारा न।
तोला मन ह खोजत हावय,
गांव गली अउ पारा न।।
काबर कर देस तेहा दाई,
मोला तै बेसहारा ओ....

तोर बिना मैं कइसे जिहूँ,
कईसे जिनगी चलाहूँ ओ।
आही जब बिपत ओ दाई,
फेर कोन ल मै गोहराहूँ ओ।।
मोला कोन बलाही दाई,
कहिके बेटा राजा ओ---

तोर सुरता ल मेहा दाई,
कइसे करके भुलाहूँ ओ।
तोर बिना मैं ये दुनियाँ म,
कलप कलप मर जाहूँ ओ।।
मोर अंतस के पीरा ल दाई।
कोन ल मेहा देखाहूँ ओ---

राजा के दरबार

लेखक - बलदाऊ राम साहू

मम्मी मोला देवा दे
छोटकु मोटर-कार।
ओमा बइठ के जाहू
राजा के दरबार।

राजा के दरबार,
महामंत्री बन जाहूँ।
फरियादी ह आही
ओला नियाय देवाहूँ।

‘बरस’ कहत हे आज
महाराजा खुश होंही।
अउ खुश हो के मोला
अड़बड़ ईनाम देही।

सावन के झूला

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

सावन के झूला झूले मा, अब्बड़ मजा आवत हे।
सबो संगवारी मिलके जी, सावन के गीत गावत हे।।

हंसी ठिठोली अब्बड़ करत, झूला मा बइठे हे।
पेड़ मा बांधे हाबे जी, डोरी ला कसके अइठे हे।।

दू सखी हा बइठे हे जी, दू झन हा झूलावत हे।
पारी पारी सबो संगी, एक दूसर ला बुलावत हे।।

हांस हांस के सबोझन हा, अपन अपन बात बतावत हे।
सावन के आगे महीना जी, सबोझन झूला झूलावत हे।।

सावन के मजा आवत न इये

लेखक – जी. आर. टंडन

एसो सावन में खेती खार, हरियावत न इये ना।
राखी के संदेश, सावन एसो, बनगे कलेश।
डबरा के मेनका चलो,
टरटरावत न इये ना।।
जगा जगा कारखाना होगे, सोचव अब मनुखहो।
बरखा के पानी ला रोकव, मेंड में बोवव पेड रुख हो।
आमा अमली ददा दाई बरोबर,एकर मया भुलाने न इये ना।,।।
चारतेन्दू महुआ, बर, पीपर, अब्बड़ सगा हे ममा मामी,
कुन्दरु करेला मोर कका काकी, भाजी हे, भौजी पटवा अमारी।
नरवा गरुवा घुरुवा बारी, चिन्हारी के मूनगा मितान आवत न इये ना।।
छत्तीसगढ़ के सावन मोर दीदी ला काबरा रोवावत हस।
भाई बहिनी बर राखी के, संदेश बनके आवतहस।
झूलना अउ सोलहसिंगारसावन के, मनभावत न इये ना।।।
एसो सावन खेतीखार हरियावत न इये ना।।।

सोन चिरई

लेखक - दिलकेश मधुकर

मोर छत्तीसगढ़ के सोन चिरैया,
स्कूल-स्कूल जाहि ।
मोर किशोरी नोनी ल,
जिनगी के पाठ पढ़ाहि।।

जतन के रद्दा ऐहर बताहि,
तन ल सुघ्घर बनाहि।
पोषक आहार मिलय सब झन ल,
अइसन उपाय सुझाहि।।

बाढ़त उमर म अड़बड़ कांटा,
गली-गली म छागे।
कांटा गड़य झन पांव म कोकरो,
अइसन रद्दा बनाहि।।

मोर किशोरी दुर्गा,लक्ष्मी,
इंदिरा, प्रतिभा, किरण बनहि।
सोन चिरैया के गोठ ल पा के,
दुनिया म नाम कमाहि।।

स्कूल जाबो

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

स्कूल जाबो पढ़े बर ,
जिनगी ला गढे बर।
मन लगा के पढ़बो,
तभे तो आघू बढबो ।
नवा नवा पुस्तक मिलही
नवा डरेस सिलवाबो ।
बढ़िया बढ़िया खाना मिलही,
पेट भर भात खाबो ।

नवा नवा संगवारी बनाबो,
अब्बड़ मजा आही ।
किसम किसम के खेल खेलबो,
गुरु जी मन सिखाही ।

नवा नवा कहानी किस्सा,
सुन के हम आबोन ।
घर में आ के खुसी खुसी,
सबझन ला बताबोन ।

स्कूल मोर मितान

लेखक - लुकेश्वर सिंह ध्रुव

स्कूल मोर मितान रे संगी
स्कूल मोर मितान '
जहाँ मिलथे क ख ग घ ले हमन ल गियान
स्कूल मोर मितान रे संगी
स्कूल मोर मितान '
जहाँ खेल खेल म सिखथन हमन गियान
स्कूल मोर मितान रे संगी स्कूल मोर मितान '
जहाँ मिलथे पौष्टिक खाना तिहा लगाथान हमन धियान
स्कूल मोर मितान रे संगी स्कूल मोर मितान '
जिहा होथे सबके सम्मान उहाँ पाथन हमन गियान
स्कूल मोर मितान रे संगी स्कूल मोर मितान '
जिहा होते एसएलए ले परीक्षा उहा बढ़ते हमर धियान
स्कूल मोर मितान रे संगी स्कूल मोर मितान '
पढ़बो पढ़हाबो आगे बढ़बो एला तेहा जान
स्कूल मोर मितान रे संगी स्कूल मोर मितान '

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