योग

लेखक - कमलेश वर्मा

तन-मन ला रखना हे चंगा, करव सबो झन योग।
बीमारी नइ लेवय पंगा, काया रिही निरोग।।

भारत के हे ज्ञान पुराना, ऋषि मुनि-आविष्कार।
पूरा दुनिया मा छा के अब, योग करत उपचार।।

सबो अंग बर आसन हे जी, अड़बड़ होय प्रकार।
शरण योग के जावव संगी, झन राहव लाचार।।

फूट

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

वाह रे हमर बखरी के फूट, फरे हाबे चारों खूंट
बजार में जात्ते साठ, आदमी मन लेथे सबला लूट
मन भर खाले तेंहा फूट, खा के झन बोलबे झूठ
फोकट में खाना हे त आजा, उतार के अपन दूनों बूट
वाह रे हमर बखरी के फूट, फरे हाबे चारों खूंट
लट लट ले फरे हे एसो फूट, राखत रहिथे समारु ह
पी के दू घूंट

चोरी करथे तेला तो, देथे गारी छूट
मिरचा अऊ लिमऊ ल बांधे हँव, मारे झन कोनो मूठ
जतका खाना हे खाले तेंहा फूट, अऊ नई खाना हे
त चल ते इंहा ले फूट
वाह रे हमर बखरी के फूट, फरे हाबे चारों खूंट

आगे सँगी सावन

लेखिका - शीला गुरुगोस्वामी

हवा चलीस फुरर फरर
गर्जिस बादर गरर गरर
रूख राई डोलिस सरर सरर
लौकतचमकत बादर नाचे
आगे। सँगी सावन ह आगे
तरिया, नरवा, लबलबागे
खेत खार दबदबागे
छांहि मन चुहचुहागे
माड़ी भर चिखला ढलागे
आगे सँगी सावन ह आगे
मेचका टर्र टर्र नरियाये
झेंगरा मन तको सुर्राये
नांचुन बीजा बगराये
झाड़ झरोउखा लहलहआगे
आगे सँगी सावन ह आगे

खेती किसानी

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

बादर गरजे बिजली चमके, गिरय झमाझम पानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय, करबो खेती किसानी ।।
खातू कचरा फेंकय सबझन, नाँगर ला सिरजाये ।
काँटा खूँटी साफ करय सब, मेड़ पार बनवाये ।।
चूहत रहिथे परछी अब्बड़, छावय खपरा छानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय, करबो खेती किसानी ।।

बड़े बिहनिया बासी धर के, चैतु खेत मा जाथे ।
मिहनत करथे सबो परानी, तब बासी ला खाथे ।।
मिहनत के फल मिलथे संगी, हावय बादर दानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय, करबो खेती किसानी ।।

गुरूजी के गोठ

रचनाकार - संतोष कुमार साहू 'प्रकृति'

मोर स्कुल के लयिका मन ह, बड सुघ्घर लागे न।
बड सुघ्घर लागे न।
मोर स्कुल के......।।



कन्हो ह रामे, कन्हो ह लक्ष्मण,कन्हो ह किशन कन्हायी हे।
कन्हो ह दुर्गा ,कन्हो ह राधा, कन्हो ह सीता मायी हे।।
कन्हो ह ध्रुव कन्हो ह प्रहलाद हे, बड सुंदर लागे न।।
मोर स्कुल के लयिका मन ह, बड सुघ्घर लागे न ।।



इही मा बेला, गुलाबे इही मा , इही मा सूरजमुखी हे।
इही मा जूही ,चंपा इही मा, इही मा सुघ्घर चमेली हे।।
इही मा केंवरा इही मा मोंगरा ,बड सुंदर महके न।।
मोर स्कुल के लयिका मन ह बड सुघ्घर लागे न।।



कनहो ह गांधी, कन्हो ह गौतम , कन्हो ह विवेकानन्द हे।
कन्हो ह लक्ष्मी , कन्हो ह टेरेसा , कन्हो ह कस्तुरबा बाई हे।।
कन्हो ह अनसुईया कन्हो ह सावित्री,बड सुघ्घर लागे न।।
मोर स्कुल के लयिका मन ह
बड सुघ्घर लागे न।।

घाम (कुण्डलियाँ छंद)

रचनाकार - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

गरमी अब्बड़ बाढ़ गे, जरय चटा चट पाँव ।
भटकत हावय आदमी, खोजय सबझन छाँव ।।
खोजय सबझन छाँव, जीव हा तरसत हावय ।
सुखगे नदियाँ धार, कहाँ ले पानी पावय ।।
व्याकुल हावय देह, होय कब मौसम नरमी ।
चुहय पसीना माथ, बाढ़ गे अब्बड़ गरमी ।।1।।

बरसत आगी घाम मा, टोंटा अबड़ सुखाय ।
सुक्खा हावय बोर हा, कइसे प्यास बुझाय ।।
कइसे प्यास बुझाय, सबोझन खोजय पानी ।
काटे हे सब पेड़, याद आवत हे नानी ।।
बूँद बूँद बर आज, आदमी रोजे तरसत ।
का होही भगवान, घाम आगी कस बरसत ।।2।।

जेठ के सुरुज

लेखक – जी. आर. टंडन

अब मोला लागे बिहान झन होय जी।
जेठ के सुरुज हा कांटा कस चुभती जी।
जेठ के सुरुज बडे़ बिहरिया चरचराथे घाम हा।
करिया के कोइला होगे, हमरो सुग्घर चाम हा।
नेता हो, भिखारी हो, किसान झन होय जी।। अब मोला।।
सुत उठके किसान हा, लहुटावय माटी ढेला।
जाड़ घाम में कमाथे, चौउमास पानी के रेला।
हवा चले आगी अस, सब्बो जी व रोय जी।। अब मोला।।

गांव के नरवा गरुवा , गुरुवा बारी, सबो मांगे पानी पानी।
दया धरम मनखे म नैइये , खान होगे आनी बानी।
कोनो बरखा ला बरसाय बर, बर पीपर, लीम बोय जी।।
अब मोला लागे बिहान झन होय जी।।

पेड़

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

सर-सर सर-सर गाथे पेड़
हवा संग लहराथे पेड़
जरे भुईया गर्मी के मारे
छांव अपन बगराथे पेड़
टूहु देखावे लबरा बादर
अपना तीर खिंच के लाथे पेड़
भला मारथन पथरा हमन
मीठ फल टपकाथे पेड
बिख हवा के पी पी
ऑक्सीजन बगराथे पेड़
ननपन के झूलना बन झूले
बुढ़वा के लउठी बन जाथे पेड़
जिनगी भर संग हमर दे
सुघर मया बगराथे पेड़

परकीति रानी

लेखक - कमलेश कुमार वर्मा

परियावरन म बसे हे संगी, सबो के सुग्घर जिनगानी।
अवइया दिन बर बचाय रखव तुम रुख-राई अउ पानी। ।

फेक्टरी-गाड़ी के धुँआ ल देख, होवत हे बड़ पछतानी।
हवा म घुलथे जहर कस, अब सांस ह नइये आसानी।।

तरिया-नदिया घलो मइलागे, जउन हरे हमर कल्यानी।
कचरा के अड़बड़ ढेर लगा, करत हाबन नादानी।।

परदूसन ले बाढ़गे, तनाव-बीमारी-परसानी।
सोरगुल म कान ह भरगे, दुखदायी हे ये सब कहानी।।

साफ हवा-निरमल जल बर, उपाय करव आनी-बानी।
पेड़ लगावव-पेड़ बचावव, झन काटव येला मनमानी।।

जीव-जंतु, चिरई-चिरगुन के, कम सुनावत हे मीठ बानी।
जुरमिल सब संवारव संगी, हमर ये परकीति रानी।।

बरखा आगे...

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

बरखा आगे बरखा आगे
घुमड़- घुमड़ के गरजे बादर
चम-चम चम-चम बिजरी छागे
उजड़े रहिस धरती के कोरा
बूँद-बूँद ल पाके हरियागे
आसमान म चमकत सूरज
करिया बादर तीर लुकागे
टर्र-टर्र मेचका करथे
रतिहा म झिंगरा नरियाथे
तपत धरती के अन्तस म
बून्द बरस के मन ल भाथे...

रुख राई हे गहना

लेखक – जी. आर. टंडन

रुख राई हे एकर गहना, गंगा पांव पठार हव।
मैं छत्तीसगढ़ दाई के, छत्तीसगढ़ के मांथ नवावत हव।।
सिमगा, सिगारगढ़, सिगारपुर, सिरपुर, दुरूग, पाटन, लवण, अमोरा, हे।
सारधा, अकलमार, सुअरमार, सिरपुर, राईपुर, राजिम धान कटोरा हे।
गढ़ फिगेश्वर, मोहदी, खल्लारी।
बनगे रायपुर नवा राजधानी।
जगा, जगा देवी देवता के दस ना,
श्रद्धा फूल चरावत, हवा।।

ओखर, सेमरिया, पंडरभट्ठा, मोहित, विजय पुर, उपरौरा।।
कोटगढ़, कुरकट्टी, लाभांश, मारो,मदन, रतनपुर खरौंद।
केन्दा, सोंधी, टेंडर, को सवाई, होत बिहरिया चहरे चिराई।
इहां झरत हे, झर झर झरना, चिखला ला चंदन लगावत हवा।।

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