बुध्द पूर्णिमा पर विशेष

लेखिका - सुनीला फ्रेंकलिन

वेसक (पालि वेसाख, संस्कृत: वैशाख) एक उत्सव है जो विश्व भर के बौध्दों एवं अधिकांश हिन्दुओं व्दारा मनाया जाता है. यह उत्सव बुध्दपूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन गौतम बुध्द का जन्म और निर्वाण दोनो ही हुए थे तथा इसी दिन उन्हें बोधि की प्राप्ति भी हुई थी. विभिन्न देशों के पंचांग के अनुसार बुध्दपूर्णिमा अलग-अलग दिन पड़ता है. विभिन्न देशों में इस पर्व के अलग-अलग नाम हैं. उदाहरण के लिए, हांग कांग में इसे बुध्द जन्मदिवस कहा जाता है, इण्डोनेशिया में 'वैसक' दिन कहते हैं, सिंगापुर में 'वेसक दिवस' और थाइलैण्ड में 'वैशाख बुच्छ दिन' कहते हैं. प्रस्तुत है बुध्द की एक प्रेरणादायक कथा -

अछूत लड़की

एक बार वैशाली नगर को बाहर जाते हुए गौतम बुध्द ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागते हुये एक लड़की का पीछा कर रहे हैं. वह लड़की डरी हुई थी. वह एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई. वह हाँफ रही थी. बुध्द ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले. खुद भी पिए और उन्हें भी पिलाए. इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुंच गए. बुध्द ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने के लिए कहा. बुध्द की बात सुनकर वह लड़की झेंपते हुई बोली – ‘महाराज मैं एक अछूत लड़की हूँ. मेरे पानी निकालने पर कुआं दूषित हो जाएगा.’ बुध्द ने फिर कहा – ‘पुत्री बहुत जोर की प्यास लगी है. पहले पानी पिलाओ.’ इतने में वैशाली के राजा भी वहां गए. उन्होंने बुध्द को प्रणाम किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगंधित जल प्रस्तुत किया. बुध्द ने उसे लेने से इंकार कर दिया. एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही. बालिका ने साहस बटोर कर कुएं से पानी निकाल कर खुद भी पिया और बुध्द. को भी पिलाया. पानी पीने के बाद बुध्द ने बालिका से भय का कारण पूछा. लड़की ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था. राजा ने प्रसन्न होकर मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी, लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मैं अछूत लड़की हूँ. यह पता चलते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया. मैं किसी तरह उनसे बच कर यहां तक पहुंची हूँ. तब बुध्द ने कहा – ‘सुनो राजन. यह लड़की अछूत नही है. आप अछूत हो. इस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का अपने आनन्द उठाया. उसे पुरस्कार दिया. यह अछूत हो ही नही सकती.’ गौतम बुध्द की बात सुनकर राजा लज्जित महसूस करने लगे. इस कहानी से हमे यही सीख मिलती हैं कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. जात पात के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव निरर्थक है. जो ऐसा सोचते हैं वे खुद सबसे बड़े अछूत हैं. इंसान अपने कर्मों से बड़ा होता है.

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