नवाचार
मस्ती की पाठशाला से बेहतर बनाएं सरकारी शाला
लेखिका - ममता बैरागी
जिंदगी में हर बार वक्त बदलता है और वक्त के साथ साथ सब कुछ बदलता है. वह जमाना था जब वेद मंत्रों को पढ़ाया जाता था. फिर युग बदला तब वेदों के साथ साथ हथियार चलाना भी सिखलाया जाने लगा. बाद में शिक्षा केवल किताबों सीमित रह गई. जिसे पढ़ना लिखना आ गया उसे शिक्षित कहा गया. आज समय आ गया है जब तकनीक का उपयोग कर मोबाइल से, कम्युटर से, पिक्चर्स से या विडियोज़ से शिक्षा देने की आवश्यकता महसूस होती है.
आज आप को बतलाते हुए ऐसा लग रहा है कि वाकई में जो शाला नहीं जाते वह अनपढ़, अज्ञानी है या वह जिसे फेसबुक, विडियोज़, लेपटाप चलाने नहीं आते वह अनपढ़ सा अनुभव करते हैं. सबके हाथ में मोबाइल है. अरे स्कूलों में पढ़ने वाले बालक ही क्या, अनपढ़ लोग भी बखूबी यह सब चला रहे हैं. हमें बुलाया गया, कम्प्युटर सीखने. पहले दिन ऐसा लगा कि पहली कक्षा में बैठे हों. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. धीरे-धीरे कुछ-कुछ समझे. तब तक समय पूरा हो गया. बस कुछ सीखा परन्तुर रूचि बढ़ गई. विचार आया कि अब वह दिन दूर नहीं जब सारे काम इनसे ही होंगे. यहां पर नवाचार करने को मन हुआ है. बच्चे तो बच्चे ठहरे. उन्हें मोबाइल के जरिए भी शाला बुला सकते हैं. या शाला में ऐसा हॉल बना लें जहां पिक्चर के माध्यम से भी बहुत कुछ सिखाया जा सकता है. तब में पाती हूँ कि जो सोच रही हूं वह तो नवोदय क्रांति परिवार के बहुत से शिक्षक साथियों, विशेषकर शिक्षक गोपाल कौशल जी ने भी किया है. तब से लग रहा है कि हम भी कुछ कर दिखाएं. कुछ गा कर बताएं और कुछ तत्काल लिखने को कहें. तब शाला में रौनक भी रहेगी ओर बच्चो की संख्या भी बढेगी. कुछ तो ऐसा करना होगा कि बच्चों को उनके माता पिता रूचि लेकर स्कूल भेजें. बच्चो को क्योंकि बहुत सी सुविधाएं दी गई हैं - ड्रेस, छात्रवृत्ति, किताबें, भोजन आदि. इसके बाद भी माता-पिता इसे नकार देते हैं. उन्हें ही रुचि ही नहीं तो बच्चे स्कूल कैसे आएं. अब बहुत गंभीरता से सभी शिक्षकों को इकट्ठा होकर इस समस्या से निपटने के लिए सोचना होगा जिससे सभी बच्चे शाला आएं. अगर सभी आ गये तब तो मजा ही मजा है. फिर उन्हें केवल उनकी नींव से जोडना है. एक अनपढ़ भी सब्जी बेचता है तो रुपये पूरे गिनकर लेता-देता है ओर हिसाब का भी बहुत पक्का होता है. तो ऐसी क्या कमजोरी है कि अनपढ़ व्यक्तियो को हिसाब किताब करना आ रहा है ओर पढ़े-लिखे बच्चो को नहीं. कहीं कमी है. इस कमी को फिर से सुलझाना होगा. कुछ ऐसा करना होगा कि बच्चे बोल उठें.
बेहतर और आनंददायी शिक्षा के प्रयास
लेखक एवं चित्र - प्रेमचंद साव
मैं आप सभी साथियों को शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला अरेकेल, विकास खंड बसना, जिला-महासमुंद (छत्तीसगढ़) में किये जा रहे बेहतर और आनंददायी शिक्षा के लिये किए जा रहे प्रयासों से परिचित कराना चाहता हूं.
मासिक वाल मैगजीन बाल दर्पण का नियमित प्रकाशन - मासिक वॉल मैगजीन - ‘बाल दर्पण’ का नियमित प्रकाशन किया जाता है. इससे छात्र-छात्राओं में स्वयं सीखने की प्रवृत्ति, लेखन क्षमता, बौद्धिक क्षमता एवं मौलिक सोच को बढ़ावा तथा अपने आसपास के घटनाक्रम को जानने, राज्य, देश, विदेश में घटित घटनाओं को लिखने और समझने में सहायता मिल रही है. वॉल मैगजीन के माध्यंम से छात्र-छात्राओं व्दारा सामान्य ज्ञान के साथ-साथ कहानी, कविता, चित्र, अनमोल वचन, पहेली, विज्ञान पहेली, चुटकुले, निबंध, प्रेरक प्रसंग, पर्यावरण संरक्षण, ग्लोबल वार्मिंग, विज्ञान एवं स्वच्छता से संबंधित, चित्र एवं अन्य मनोरंजक जानकारियों को नए तरीके से पेश किया जा रहा है. इसमे छात्र-छात्राओं के स्वरचित लेख भी समाहित होते हैं. बच्चों में भाषायी कौशल,लेखन क्षमता, बौध्दिक क्षमता और तर्क क्षमता प्रखर हो रहे हैं.
चिल्ड्रन बैंक की शुरुआत - बच्चों को बचत करने की लिए सीख देने हेतु चिल्ड्रन बैंक की शुरुआत की गई है. छात्र-छात्राओं को पॉकेट मनी के रूप में कुछ रुपए मिलते हैं. उन्हींह रुपयों में से कुछ रुपए का बचत करके वे चिल्ड्रन बैंक खाता में जमा कर रहे हैं. इससे छात्र-छात्राओं में बैंकों में पैसा जमा करने,बचत करने एवं बैंकिंग प्रणाली को समझने में मदद मिल रही है. छात्रगण आत्मनिर्भर बनने के साथ बैंक की कार्य प्रणाली को भी समझ पा रहे हैं. सभी बच्चों को पासबुक भी वितरित की गई हैं.
विज्ञान मेला का आयोजन - बच्चों में वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति सजग बनाए रखने हेतु,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अभिरुचि उत्पन्न व प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए विज्ञान मेला व प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. प्रोजेक्ट कार्य करने से छात्रगण विज्ञान के किसी भी पहलू को अधिक गहराई से सीखने का अवसर मिल रहा है.
बाल कैबिनेट का गठन - स्कूल में सूचना आदान प्रदान करना, नवाचार गतिविधियों का आयोजन, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने, व्यायाम तथा विभिन्न खेल आयोजित करने, प्रार्थना सभा, बाल सभा, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, महत्वपूर्ण दिवस एवं अन्य कार्यक्रमों के सफल संचालन के लिए बाल कैबिनेट का गठन किया गया है. नियमित रूप से हर माह बैठक आयोजित कर पंजी संधारण किया जाता है. बच्चों को चुनाव प्रक्रिया समझाने के लिए प्रत्यक्ष चुनाव आयोजित करवाया जाता है. बाल कैबिनेट के गठन से छात्र-छात्राओं में लोकतंत्र और संविधान के प्रति निष्ठा, आपस में सहभागिता की भावना जागृत होने के साथ-साथ अभिव्यक्ति और नेतृत्व क्षमता का भी विकास हुआ है. बाल कैबिनेट के गठन से छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों के बीच समन्वय बढ़ाने में सहायता मिल रही है.
सामुदायिक सहभागिता - शाला में विविध कार्यक्रमों एवं नवाचारी गतिविधियों के व्दारा अध्यापन होने से सामुदायिक सहभागिता बढ़ी है. ग्राम के एक कर्मचारी श्री आदित्य देवांगन ने डिजिटल अध्ययन करने के लिए एलईडी टीवी क्रय हेतु ₹ 10000 का सहयोग राशि प्रदान की गई. इसी तरह से श्री सनेश भोई ने लेक्चर बाक्स एवं श्री शिव प्रसाद डड़सेना ने बैंड, ड्रम एवं अन्य वाद्य यंत्र प्रदान किए हैं. इससे पालकों एवं शिक्षकों में आपसी तालमेल मे वृध्दि हुई है.
इसके अलावा छात्र-छात्राओं में सर्वांगीण विकास हेतु राष्ट्रीय त्यौहार, उत्सव, महापुरुषों की जयंती, पुण्यतिथि, राष्ट्रीय दिवस, अंतर्राष्ट्रीय दिवस एवं अन्य महत्वपूर्ण दिवस के अवसर पर विविध कार्यक्रम जैसे भाषण, गीत, नृत्य, निबंध लेखन, चित्रकला, नाटक, तात्कालिक भाषण, रंगोली प्रतियोगिता, मेहंदी प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है. इससे छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास में मदद मिल रही है. विद्यालय में अपना प्रतीक चिन्ह एवं प्रतीक वाक्य – ‘ज्ञानम् परमम् ध्येयम्’, का उल्लेख किया गया है एवं शाला की दीवार पर प्रतीक चिन्ह एवं वाक्य को लिखा गया है. शाला परिसर को पूर्ण हरा-भरा बनाने का संकल्प लिया गया है. कमरों के अंदर टीचिंग एड्स, गणित कार्नर, विज्ञान कार्नर आदि का निर्माण किया गया है. विज्ञान एवं अन्य विषयों का अध्यापन क्रियाकलाप एवं गतिविधि आधारित किया जाता है.
संपर्क - प्रेमचंद साव, शिक्षक शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला अरेकेल, सं.कें.- बंसुला, विकास खंड-बसना, जिला-महासमुंद(छत्तीसगढ़) पिन 493554 मो.नं.-8720030700
कहानियां और शिक्षा में इनका उपयोग
लेखक - संजय गुलाटी
कहानी सुनाना सीखने-सिखाने की सबसे पुरानी और शक्तिशाली विधि है. दुनिया भर की संस्कृतियों ने हमेशा से ही विश्वास, परंपरा और इतिहास को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कथा/कहानियों का उपयोग किया है. कहानियां कल्पनाशीलता को बढ़ाती है, कहानी कहने और सुनने वाले के बीच समझ स्थापित करने के लिए सेतु का काम करती है और बहुसांकृतिक समाज में श्रोताओं के लिए समान आधार तैयार करती है. कहानी सुनाने का उद्देश्य मनोरंजन के साथ साथ उससे शिक्षा प्राप्त करना होता है। मनुष्य में मौखिकता के उपयोग से सिखाने, समझाने और मनोरंजन करने की स्वाभाविक क्षमता होती है , इसी कारण से कहानी का उपयोग रोजमर्रा की जिदगी में प्रचलित है. कहानी-कथन को “भाषा, स्वर के उतार-चढ़ाव, शारीरिक-गति, हाव-भाव आदि के उपयोग से श्रोताओं के लिए किसी कहानी की घटना और चित्र को सजीव बनाने की कला के रूप” में परिभाषित किया जा सकता है. कहानी-कथन का सबसे महत्वजपूर्ण पहलू यह है कि कहानी को पूरा करने और उसे फिर से बनाने के लिए श्रेाता किस प्रकार से कहानी के दृष्य और विवरण अपने मस्तिष्क में विकिसत करते हैं. भारत के संदर्भ में, जहाँ बहुसांस्कृतिक समाज है, कहानी स्कूल में शिक्षण शास्त्र का एक सशक्त माध्यम हो सकती हैं. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा इस बात की अनुशंसा करता है कि स्कूली ज्ञान को समुदाय के ज्ञान से जोड़ा जाए. विभिन्नत समुदायों में ज्ञान के संसाधन के रूप में प्रचिलत कहानियां, स्कूल को समुदाय से जोड़ने का एक अच्छा साधन हैं. कहानियाँ बच्चों को समूह में चुप्पी तोड़ने, समुदाय से सीखने, कहानी लिखने, कहानी की घटना पर आधारित रचनात्मक चित्र बनाने और अर्थर्पूण सीखने के अनुभव बनाने के लिए प्रेरित करती हैं. स्कूलों में यह महत्वतपूर्ण विधा बच्चों के लिए उपयोगी शिक्षण उपकरण है. कहानी के उपयोग से विषय में भी रोचकता आ जाती है. भाषा का कहानी कहने की कला से स्वाभाविक जुड़ाव होता है । दूसरे विषय में भी कहानी के उपयोग से जांच पड़ताल / खोजबीन का काम किया जा सकता है.
कहानी क्या है ?
कहानी को परिभाषित करने से पहले एक बात स्पष्ट करना ज़रूरी है कि जिस प्रकार गीली मिट्टी को अलग अलग रूपों में ढ़ाला जा सकता है, उसी प्रकार हमारी कहानियां भी अपनी प्रकृति, सुनने / पढ़ने वालों और परिस्थिति के अनुसार अपने आप को अलग-अलग रूपों में ढ़ाल सकती हैं. कहानी के कुछ संभावित रूप इस प्रकार हैं : उपन्यास, कविता, नाटक,चलचित्र,संस्मरण,ऑडियो,दृश्य (चित्र) आदि. चलिए अपने पहले प्रश्न, ‘कहानी क्या है ?’ पर वापस चलते हैं. शुरू करने के लिए हम कह सकते हैं, कहानी किसी यात्रा का वर्णन है. किसी कहानी में हम एक या अधिक पात्रों की यात्रा का अनुसरण करते हैं. ये पात्र किन्ही बाधाओं को पार करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में लगे होते हैं. शब्दकोश क्या कहते हैं ?
- एक वास्तविक या काल्पनिक कथा
- किसी गद्य का छोटा काल्पनिक टुकड़ा
- किसी कल्पना या उपन्यास की योजना
- तथ्यों का लेखा जोखा
- एक समाचार
- एक पौराणिक कथा…. आदि आदि
कहानी किसी सच्ची या काल्पनिक घटना का इस प्रकार का वर्णन है जिसमें कहानी सुनने वाला सुनकर कुछ अनुभव करता है या कुछ सीखता है. कहानी जानकारी, अनुभव, दृष्टिकोण या रुख को समझाने का एक माध्यम भी है. हर कहानी के लिए एक कहानीकार और एक सुनने वाला होता है. माध्यम चाहे कोई भी हो, यह जरूरी है कि एक कहानी कहने वाला और एक कहानी को ग्रहण करने वाला होना ही चाहिए.
कहानियां आती कहां से हैं ?
हम सब रोज कहानियां कहते हैं – ज्यादातर अपने आप से. किसी विषय पर अपने विचार बनाने, भविष्य के बारे में कल्पना करने, अपने आप को कुछ याद दिलाने, समझाने आदि के लिए हम अपने आपको कहानी सुनाते हैं. हम सभी के अंदर कहानी सुनाने का एक तंत्र होता है और सामग्री से भरपूर होता है. यही वो जगह है जहां कहानियों का जन्म होता है। इस प्रकार पहले कहानीकार और कहानी के पहले श्रोता हम स्वयं ही हैं.
कहानियों के साथ मेरा अनुभव
अगस्त - 2012 से जुलाई - 2018 तक छत्तीसगढ़ के चार जिलों बस्तर, सरगुजा, कबीरधाम और महासमुंद की 100 शासकीय प्राथिमक शालाओं के साथ काम करने का मौका मिला. इस दौरान सत्र 2014-15 और 2015-16 में इन स्कूलों में कहानी-उत्सव मनाया गया. इस उत्सव में गांव के बुजुर्ग / समुदाय के अन्य सदस्यों को कहानी सुनाने के लिए स्कूल में एक निश्चित तिथी पर आमंत्रित किया जाता है. एक सदस्य 8-10 बच्चों के एक समूह को गांव की संस्कृति से संबंधित कहानी सुनाते हैं. बच्चे कहानी सुनकर अपने-अपने समूह में कहानी लिखते हैं और घटनाओं तथा पात्रों की कल्पना कर कहानी का चित्र बनाते हैं. इस प्रकार बच्चे समुदाय के मौखिक ज्ञान को लिखित रूप देते हैं और अपने रचनात्मक-संज्ञानात्मक कौशलों के उपयोग से उनका चित्रण करते हैं. ये कहानियां किसी किताब से न होकर सीधे समुदाय से आती हैं जिनमें संस्कृति, समुदाय, पर्यावरण, इतिहास, भूगोल इत्यादि का समृध्द ज्ञान शामिल होता है और जो बच्चों के जाने-पहचाने संदर्भ / प्रसंगो से जुड़ा होता है. इस गितिविधि में एक तरफ जहां बच्चों ने कहानी के लेखक और चित्रकार के रूप में कहानी-उत्सव का आनंद लिया, वहीं समुदाय के सदस्यों को स्कूल में बच्चों की अकादिमक गतिविधि में शामिल होने की पहचान मिली और उन्होने बच्चों के भाषायी कौशलों के विकास में मदद करी.
इस आयोजन से जहां स्कूल और समुदाय की दूरी घटी, वहीं शिक्षक समुदाय में एक नयी चर्चा शुरू हुई कि सामुदायिक-ज्ञान स्कूली-ज्ञान का आधार है और समुदाय के सांस्कृातिक प्रसंगो की मदद से भाषा, विज्ञान, सामाजिक जीवन आदि का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है.
कहानी-उत्सव के आयोजन के पश्चात् स्कूलों में बहुत सी सामुदायिक कहानियां और उनसे संबंधित चित्र उपलब्ध हुए जो दीवार-पुस्तक, बड़ी और छोटी किताब, आदि बनाने के लिए उपयोगी साबित हुए. साथ ही बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा उनके स्कूल की गतिविधियों का हिस्सा बनी.
दो वर्षों तक कहानी-उत्सव का आयोजन 100 स्कूलों में किया गया जिसमें करीब 20000 बच्चों ने भाग लिया और समुदाय के करीब 500 सदस्यों ने बच्चों को कहानियाँ सुनायीं. लगभग 5000 कहानियों का दस्तावेजीकरण बच्चों व्दारा किया गया. सरगुजा जिले के अंबिकापुर ब्लॉक की प्रथमिक शाला बढ़नीझरिया की कुन्ती व्दारा लिखी गयी कहानी और उसके चित्र का एक उदाहरण प्रारंभ में दिया गया है.
भावनाओं का इंद्रधनुष
लेखिका एवं चित्र – विभा सोनी
बच्चों को अपनी भावना पहचानना. स्वीकार करना और उसे उचित तरीके से अभिव्यक्त करने की आवश्यकता को समझाने का प्रयास किया है. प्रत्येक बच्चे को मैंने एक चार्ट पेपर और स्केच पेन दिया. अब उन्हे इन्द्रधनुष बनाने को कहा प्रत्येक दिवस को एक रंग दिया. इसके बाद उन्हे आंखें बंद करके सात दिनों की घटना याद करने को कहा. और उसे एक चेहरे में व्यक्त करने को कहा। मैने बच्चों को अपने अपने चित्रों को दिखाने को कहा और सभी के चेहरे अलग-अलग तरह के भावों के थे. जिस बच्चे को उस हफ्ते में तकलीफ थी उसने दुःख की फोटो बनायी. जिस बच्चे को खुशी थी उसने हॅंसता हुआ बनाया. जिनका सप्ताह सामान्य था उसने सामान्य फोटो बनाया. तात्पर्य यह है कि हर बच्चे को अपनी भावनाओं को समझना, व्यक्त करना बहुत ही आवश्यक है.