छत्तीसगढ़ी बालगीत

छत्तीसगढ़ी भासा के महत्तम

लेखक - डॉ. जयभारती चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ, गुरतुर बोली आय,
आमा के रूख मा कोइली मीठ, बोली अस आय.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ.....

हिदय के खलबलावत भाव ल उही रूप म लाय,
फूरफूंदी अस उड़त मन के, गीत ल गाय.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ.....

जइसन बोलबे तइसन लिखबे, भासा गुन आय,
जै जोहार अउ जै जवहरिया, सब्द भासा के आय.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ......

अपन भासा म गोठियावव, सरम का के आय,
छत्तीसगढ़ी भासा हमर राज के भासा आय.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ.....

हमर भासा बर रूख पीपर, करेजा म ठंडक देवय,
लोक गाथा अउ लोक गीत हर, सबके पीरा हरय.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ.....

अपन भासा म पढ़व लिखव, गोठियावव इही गोठ,
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, देस म हे चिन्हार.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ.....

अपन भासा के बढ़ोतरी बर, जुरमिर अलख जगाबों,
अब्बड़ सुघ्घर भासा के सुवास ल फहराबों.
छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ........

बसंत छा गे

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

जब ले आ हे ऋतु बसंत हा, मन हा सबके डोलत हे ।
बाग बगीचा सुघ्घर लागे, रहि रहि कोयल बोलत हे ।।

मउरे हावय आमा संगी, अब्बड़ के ममहावत हे ।
फूले हावय फूल सबो जी, सबके मन ला भावत हे ।।

सुरसुर सुरसुर हवा चलत हे, डारा पाना डोलत हे ।
बाग बगीचा सुघ्घर लागे, रहि रहि कोयल बोलत हे ।।

पींयर पींयर सरसों फूले, खेत खार मा झूमत हे ।
चना मटर ला खाये बर जी, लइका मन हा घूमत हे ।।

आये हे संदेश पिया के , छुप छुप चिठ्ठी खोलत हे ।
बाग बगीचा सुघ्घर लागे, रहि रहि कोयल बोलत हे ।।

वंदे मातरम

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

देश हमर हे सबले प्यारा, एकर मान बढ़ाना हे ।
भेदभाव ला छोड़ो संगी, सबला आघू आना हे ।।

आजादी ला पाये खातिर, कतको जान गँवाये हे ।
देश भक्त मन आघू आइस, तब आजादी आये हे ।।

नइ झुकन देन हमर तिरंगा, लहर लहर लहराना हे ।
भारत माँ के रक्षा खातिर, सीमा मा अब जाना हे ।।

राजिम मेला

श्रवण कुमार साहू ‘प्रखर’

श्रध्दा के दीया म, भक्ति के बाती, सजा के आये हों
ये मोर राजिम, तोरे दुवारी, म संगम के धारी म

कंचन थारे, अगर के बाती
पूजा करौं मैं, तोरे दिन राती
तोरचे गुण ल मैं निसदिन बावंव
संझा बिहनियां चाहे आधी राती
चंदन बंदन अउ नरियर के भेला सजा के लाए हों
ये मोर राजिम तोरे दुापरी संगल के धारी म

महानदी पैरी सोंढ़ुर के धारा
राजीव लोचन अउ कुलेश्वेर सहारा
लोमेश आश्रम लगे मनभावन
देवता बसे जिहां पति‍त पावन
तन के शक्ति अउ मन के भक्ति संग म लाए हों
ये मोर राजिम तोरे दुवारी संगम के धारी म

चंदन जस माटी अमरित कस पानी
जिहां गूंजे साधू संतों के वाणी
चलो पुन्नी मेला म जाबो
काया माया सब ल उजराबो
पितर के तर्पण अउ जीवन के दर्शन करे बर आए हों
ये मोर राजिम तोरे दुवारी संगम के धारी म

राजिम मेला

प्रिया देवांगन 'प्रियू'

राजिम मेला आगे संगी,
घूमे ल सब जाबो।

राजीव लोचन के दर्शन करके,
जल चढ़ा के आबो।

अब्बड़ भीड़ हाबे संगी,
राजिम के मेला में।

जगा जगा चाट पकौड़ी,
लगे हे ठेला में ।

किसम किसम के माला मुंदरी,
सबोझन बिसाबोन।

नान नान लइका मन बर,
ओखरा लाई लाबोन।

बड़े बड़े झूला लगे हे,
लइका मन ह झूलत हे।

ब्रेक डांस अऊ आकाश म,
बइठे बइठे घूमत हे।।

सुंदर हे पढ़ाई

लेखक - देवानंद साहू

सुंदर हे पढ़ाई, अब नई हे एमा खोंट
सब मिल जुल के पढ़बो झन करहु अब सोच ।
भाषा सरल होगे, गणित के पढ़ाई
अइसे सुहाथे जइसे, दूध कस मलाई।
गतिविधि समझाहि समझ मे आहि तोर
ज्ञान ल बगराही मोर नवाचार के शोर

एक बेर नही शिक्षक दस बेर सिखाही
तभो नई समझबे त वो मया ले सिखाही
सिरतोन कहिथो लइका अब आजा स्कूल ओर
राज के पक्षी मैना अउ देश के पक्षी मोर।

मुसवा

लेखक - बलदाऊ राम साहू

कुतर-कुतर के खाथस मुसवा,
काबर ऊधम मचाथस मुसवा।

चीं-चीं, चूँ-चूँ गाथस काबर तैं,
बिलई ले घबराथस काबर तैं ।

काबर करथस तैं हर कबाड़ा,
अब तो नइ बाँचे तोरो हाड़ा।

बिला मा रहिथस तैं छिप के,
हिम्मत हे तब देख निकल के।

कान पकड़ के नचाहूँ तोला,
अड़बड़ सबक सिखाहूँ तोला।

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