बालगीत

चिड़िया

लेखक - बलदाऊ राम साहू

फुदक-फुदक आने वाली, नन्ही चिड़िया।
चीं-चीं गीत सुनाने वाली, नन्ही चिड़िया।

फुर्र-फुर्र उड़ जाती है ना जाने किस ओर,
गाँव शहर दिख जाने वाली, नन्ही चिड़िया।

चोंच में भर कर दाना लाती खलिहानों से,
मेहनत करके खाने वाली, नन्हीं चिड़िया।

ति‍तली रानी

लेखक - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)

एक थी ति‍तली रानी, सुंदर और सुहानी।
पंख पखारे आती है, बाग में वह मुस्काती है।।
सुंदर -सुंदर पंखों से, बडी वह इतराती है ।
डाल-डाल पर जाकर, अपनी चाल दिखाती है।।
फूल-फूल पर बैठ कर, पराग चूस वह खाती है।
परियों से भी वह सुंदर, अपनी शान दिखाती है।।
मन ही मन ति‍तली रानी, सुंदर वह मुस्काती है।
बच्चों की मन को वह, बडे प्यार से भाती है।।

नाना नानी गाते गाना

लेखक देवानंद साहू

नाना नानी गाते गाना
सा रे ग म प ध नि सा
मामा मेरे तुम भी गाओ
सा नि ध प म ग रे सा

सा सा रे रे ग ग म म
सात सुरो से सजते सरगम
प प ध ध नि नि सा सा
मन को ये भाते है हरदम

तुम भी मेरे सुर में गाओ
अपने सुर से इसे मिलाओ
पौष्टिक नित भोजन को खाओ
पढ़ने रोज स्कूल को आओ

बनायें नयी रंगोली

लेखक - चन्द्रहास सेन

आ गया ऋतुराज बसंत, खुशियां चारों ओर हैं।।
मचल रहे हैं बाग बगीचे, यौवनाई का जोर है।।

पीली चूनर ओढ़ धरा आम्र कुंजो से कह रही।।
मलयगिरि की चंदन खुशबू, मेरे तन से निकल रही।।

नील परी अलसी के पौधे, नीले अम्बर से पूछ रहे।।
कब बजेगी शहनाई अपनी, रिश्ते नए जुड़ रहे।।

सरसों की मादकता देख, टेसू में मुस्कान है।।
ऋतुराज के आगमन की, यही तो पहचान है।।

नहीं अछूता मानव जन, बना रहे हैं टोली।।
मधुर मुस्कान से कह रहे हैं, आ रही है होली।।

गली गली में गुलाल उड़ेगा, रंग जायेगी चोली।।
मन भावन मीतों से करेंगे, अजब गजब ठिठोली।।

सभी जनों से मैं कहूंगा, बोलें हरपल मीठी बोली।।
व्देष घृणा मे प्रेम मिलाकर, बनायें नई रंगोली।।

बसंत

लेखक - गोपाल कौशल

शिशिर ऋतु की हुई बिदाई
बसंत आया धरा पर बधाई ।।
मंद-मंद हवा चली गांव-गली
डाल-डाल पर कलिया खिली ।।

कोयल वन-आंगन कूक रही
तितली रानी हुलस रही ।।
भौंरों का सुमधुर गीत सुन
कुमदिनी भी बिहँस रही ।।

हर्षित जन - मन ,वन - संत
आया धरा पर प्यारा बसंत ।।
हरियाली संग खुशहाली देने
आया ऐश्वर्य - वैभव अनंत ।।

बसंत बहार

लेखिका - पुष्पा नायक

ऋतुओं में राजा की संज्ञा है जिसे
प्रेम प्यार की मोहिनी शक्ति है जो
आम की मंजरियों का मुकुट
सरसों का पीला फूल
चारों ओर हो मौसम का खुमार
लो आ गई बंसंत की बहार

कोयल की मोर की आवाज़
ठिठुरन के अंत की नई शुरुआत
धरती भरे रंग बिरंगे फूलों से
फूलों की खुशबू से सारा माहौल
हो खुशगवार
लो आ गई बसंत की बहार

अलसी के नीले फूल
गेहूं की पकती हुई बालियां
महुए की महक
प्रकृति को हो जैसे सोलह श्रंगार
लो आ गई बसंत की बहार

बसंत जितना वन का है उपवन का है
उससे कहीं ज्यादा मन का है
मनुष्य मन की कोमल
प्रेम भावनाओं का उभार
लो आ गई बसंत की बहार

बारह मास

लेखक - चन्द्रहास सेन

चैत बैशाख की धूप में,जला धरती का कण कण। ।
सूखा कुंआ खाली पोखर, प्यासा तरसा जन जन । ।

जेठ तपा कुछ ऐसा, सन सन चली पवन।।
आषाढ़ सुहावन मन भावन, धरती बनी दुल्हन ।।

सावन बरसा भादो बरसा, ताल तलैया जागे।।
नाव चली नदी की धारा, कृषक झूमे नाचे।।

गया बिखर बादलों का झुँड, कुँवार मन कुम्हलाया।।
आया कार्तिक पाक महीना, घर घर दीप जलाया।।

ठँडक आया खेत लहराया, अगहन पूस कटी फसल।।
मेहनत नाचे किस्मत जागे, जीवन हुआ आज सफल।।

माघ महीना मेल बढावे, सुन्दर मेला मड़ाई।।
फागुन आयो रंग बरसायो,सबसे कर लो मिताई।।

मौसम

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

कैसा दिन है आया,
बिन मौसम बरसात है लाया।
ठंडी ठंडी हवा के साथ,
पानी की बौछारें लाया।

स्वेटर साल ओढ के सब,
घर में बैठे हैं दुबके ।
गरम गरम चाट पकौड़े
खा रहे चुपके चुपके ।

गरमा गरम चाय,
सबके मन को भाया ।
स्वेटर पहने या रैनकोट
अभी तक समझ न आया।

मिट्टी की सौंधी खुशबू
मन मे है खुशियाँ लाया ।
ठंडी के इस मौसम में
कैसा दिन है आया ।

सरहद पर जवान

लेखक - गोपाल कौशल

सरहद पर खड़े जवान
हमारी आन-बान-शान ।
इनकी जांबाजी पर
गर्व करता हिन्दुस्तान ।।

खड़े रहते सीनातान
सरहद पर शेरे जवान ।
देश का ये रक्षा कवच
गर्व करता हिंदुस्तान ।।

भरते नित नई उडान
गाकर प्यारा राष्ट्रगान ।
जय हिंद,वंदे मातरम्
गर्व करता हिंदुस्तान ।।

शत्रु की ले लेते जान
सरहद पर खड़े जवान ।
सुकून से सोता अवाम
गर्व करता हिंदुस्तान ।।

शून्य डिग्री पर जवान
मुस्तैदी से रखें ध्यान ।
हर माँ बेखौफ़ रहती
सरहद पर है जवान ।।

फर्ज निभाता जवान
दर्द छुपाता जवान ।
कर्ज दूध का उतारता
देकर वह अपनी जान ।।

हम सबका स्वाभिमान
सरहद पर खड़े जवान ।
देशप्रेम के ये फौलादी
गर्व करता हिंदुस्तान ।।

सरस्वती वंदना

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

कुंदामाल मैं अर्पित करती
श्रध्दा पुहूप समर्पित करती

हे त्रिगुणा त्रिलोकव्यापिनी
सुर की देवी संगीतदायिनी

मै लोहा धातु तुम पारस
स्वर्ण बनाओ चढ़ाऊं गंधरस

शब्द शक्ति उत्कृष्ट बना दो
अमृत ज्ञान का मुझे पिला दो

अनुशीलन वेदों का करूं
ध्यान गुरूचरण कमल धरूं

कलम को मेरी बुध्दि देना
हृदय भाव में शुध्दि देना

स्नेहमयी आचरण होवे
भाई-भाई में रण न होवे

ब्रम्हचारिणी हे आराध्या
जन-जन को दान दो विद्या

कलम सैन्य गढ़े नव साहित्य
प्रखर तेज हो बने आदित्य

'स्नेह' दासी अरदास करें
धरती गगन उल्लास भरे

मेरा प्यारा स्कूल

लेखिका - पद्यमनी साहू

मेरा प्यारा स्कूल मन को बहुत है भाता
रंग बिरंगे फूलों की क्यारी से मुझको बहुत लुभाता।

बेला जूही और गुलाब लगते है सारे खास
सुंदर तितलियों की कतार लग जाते फूलों के पास ।

शिक्षक कक्षा में जब आते खेल खेल में हमें पढ़ाते
हिंदी गणित और भूगोल झटपट हम समझ जाते ।

नई नई चीजें हैं लाते हमे ज्ञान की बात बताते
गीत कविता हमे सिखाते सच्चाई की राह दिखाते।

चित्रों से है सजी दीवारें सुंदर सुंदर प्यारे प्यारे
सोनू मोनू चिंकी नीतू विस्मय हो कर देखें सारे ।

मेरा प्यार स्कूल मन को बहुत है भाता
रंग बिरंगे फूलों की क्यारी से मुझको बहुत लुभाता।

शिक्षा

लेखिका - रीता माने

शिक्षा के बिना हमारा जीवन अंधकारमय है
शिक्षा से ही हमारा देश महान है
हर किसी को समझाओ शिक्षा का महत्वम
लड़का हो या लड़की दो को दो बराबरी का अवसर
क्यों ‍कि शिक्षा ही सबके जीनव का आधार है
शिक्षा से ही हमारा देश महान है
अशिक्षा हमारे जीवन में बुराइयों की जड़ है
शिक्षा से इस बुराई को दूर करना हमारा परम कर्तव्य है
शिक्षा का प्रसार फैलाओ देश को आगे बढ़ाओ
क्योंकि शिक्षा ही ...................
शि‍क्षा से ही .....................

शिक्षा अंधकार को दूर कर उजाला फैला देती है
निराशा में आशा की किरण जगा देती है
असभ्यता से सभ्यता का पाठ पढ़ा देती है
अज्ञान से ज्ञान का प्रकाश फैला देती है

विटामिन और रोग (चौपाई छंद)

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

है विज्ञान ज्ञान का गागर, खोज करे क्यों खारा सागर
देखो सीखो दैनिक घटना, प्रश्नों के उत्तर मत रटना

बच्चो बातें मेरी मानो, फल सब्जी खाने की ठानो
गौ का दूध बड़ा गुणकारी, दूर रखे तन से बीमारी

अंधापन है रात रतौंधी, दूर करे पीले फल सब्जी
गाजर, आम पपीता खाना, और रतौंधी दूर भगाना

नींबू दूर करे है स्कर्वी, और घटाए तन की चर्बी
होत विटामिन सी है ऐसा, दंत चमकता मोती जैसा

धूप सुबह की लगे औषधी, तगड़ी होती सारी हड्डी
दूध विटामिन डी है देता, सारी दुर्बलता हर लेता

श्रीफल पानी लगता मीठा, बना विटामिन ई का पीठा
मूंगफली अखरोट मलाई, फूलों जैसी रंगत पाई

रूधिर का थक्का जल्दी जमता, काम विटामिन ‘के’ ये करता
पालक मेथी बथुआ सरसों, अलसी मक्का खाओ गुड़ जों

बच्चों पानी पीना ज्यादा, भोजन गर्म और हो सादा
पिज्जा बर्गर तुम मत खाओ, मैगी नूडल घर मत लाओ

याद करो सब ये चौपाई, मैने तो जी भर के गाई
लगती है मुझको मनभावन, ज्ञान नदी है सबसे पावन

मुहावरे ही मुहावरे

लेखक - नेमीचंद साहू

जीवन रूपी बगिया में
मिले फूल और धागा,
सदाचार, मीठे बोल से
बने सोने पे सुहागा !

अपनों से रूठना समझो
अपनी तकदीर का फूटना!
धूल में मिले सम्मान भी
और हो तख्ता उलटना !

आज देश पर संकट है,
शत्रुका ताक पर रहना !
अहिंसा के हम पुजारी
तभी दॉत पीसकर रहना!

अगर हम मिले साथ सभी
उनको पड़े नाक रगड़ना
आ जाये औकात में तो,
पल में ही नशा उतरना !!

पॉव फूक-फूककर रखना
देते है नसीहत ज्ञानी !
बाल बॉका न कर सके,
अगर न करे मनमानी !!

बिल्ली के गले घंटी बॉधना
प्रारंभ उन्होंने कर दिया !
हमने भी अब की बार,
कसके तमीचा जड़ दिया!!

पैरों तले जमीन खिसकना
अब पता चल ही जायेगा !
मौत का सिर पर खेलना
यकीनन एक दिन आयेगा !!

लोहे के चने चबाना अब
बायें हाथ का खेल अपना!
सौ सुनार की एक लुहार की
आज बस एक ही सपना !!

अर्थ

  1. सोने पे सुहागा - लाभ ही लाभ होना
  2. तकदीर का फूटना - काम बिगड़ना
  3. तख्ता उलटना - बना हुआ काम बिगड़ना
  4. ताक में रहना - मौका देखना
  5. दांत पीसना - गुस्सा होना
  6. नाक रगड़ना - क्षमा मॉगना
  7. नशा उतरना - घमंड उतरना
  8. पॉव-फूंक - फूंककर रखना - सोचकर काम करना
  9. बाल बॉका न होना - हानि न होना
  10. बिल्ली के गले में घंटी बांधना - खुद को परेशानी में डालना
  11. तमाचा जड़ना - बदला लेना
  12. पैरों तले जमीन खिसकना - होश उड़ जाना
  13. लोहे के चने चबाना - अत्यधिक कठिन कार्य
  14. बाएं हाथ का खेल - आसान काम
  15. सौ सुनार की एक लुहार की - अनेक कष्टों पर एक सुख भारी होना

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