कहानी

ईंट का जवाब पत्थर

लेखक - हरिश जायसवाल

पाली तालुका के बोईदा गांव में एक घटना हुई. एक बार एक गरीब किसान ने किसी अमित सेठ से एक कुआं खरीदा. पर जब वह कुएं से पानी भरने गया तो सेठ के आदमी ने उसे पानी लेने नहीं दिया. उसने कहा - 'मैंने सिर्फ कुआं बेचा है, पानी नहीं. यदि पानी चाहिए तो कुछ और पैसे देने होंगे.' उस आदमी और किसान के बीच झगड़ा हो गया.

दोनों झगड़ा सुलझाने के लिए गांव के जायसवाल गुरूजी के पास गये. दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद गुरूजी ने अमित सेठ से कहा - 'क्योंकि तुमने अपना कुआं बेच दिया है इसलिए तुम अपना पानी अब उस कुएं में नहीं रख सकते. या तो अपना पानी उसमें से बाहर निकाल लो या कुएं में पानी रखने का किराया किसान को दो.'

अमित सेठ को समझ में आ गया कि उससे भी अधिक बुध्दिमान लोग संसार में हैं. उसने झुककर गुरूजी को नमस्कार किया और वहां से बाहर चला गया. गरीब किसान मन में बोला - 'यह रहा ईंट का जवाब पत्थर.'

उदण्ड लल्लू

लेखक - दीपक कंवर

एक गांव मे लल्लू नाम लड़का रहता था. वह दिनभर इधर-उधर घूमता और किसी न किसी से लड़ाई-झगड़ा करता रहता था, जिसकी शिकायत सब उसके घर तक रहते थे. इससे उसके माता-पिता भी बहुत परेशान रहा करते थे. उन्होने समझाने की बहुत कोशिश की पर लल्लू मानता ही नहीं था. इसी कारण उसके दोस्त भी नहीं थे.

एक दिन वह अपने नयी सायकल पर गांव की गलियों मे घूम रहा था. बीच रास्ते मे दो बैल लड़ रहे थे. उनसे बचने के लिए जैसे ही लल्लू किनारे पर आया, वह‍ सायकल सहित बड़े से गड्ढे मे गिर गया. उसके हाथ पैर मे चोट लगी. वह दर्द के कारण अम्मा-बाबूजी कहकर चिल्लाने लगा. उसी रास्ते मे दो-तीन लड़के गुज़र रहे थे. लल्लू को गड्ढे में गिरा देखकर एक लडका बोला – ‘‘अच्छा हुआ यह गिर गया. बहुत झगड़ा करता है.’’ दूसरा लड़का भी बोला – ‘‘अब पता चलेगा परेशानी क्या होती है. इसे नहीं उठायेंगे.’’ तभी तीसरा लड़का समझाते हुए कहने लगा – ‘‘नहीं यार कुछ भी हो बेचारा छटपटा रहा है. झगड़ालू है तो क्या हुआ, इंसान तो है. कम से कम हमे उसके जैसा नहीं होना चाहिए. हमे उसकी मदद करना चाहिए.’’ सभी ने तीसरे लड़के की बात मान ली और सहारा देकर लल्लू को बाहर निकाल और उसके घर पहुंचा दिया.

पलंग पर लेटे हुए लल्लू अब सोचने लगा – ‘‘मै कितना उन लड़कों से झगड़ा किया करता था. फि‍र भी उन्होने मेरी मदद की. अगर वो मेरी मदद नहीं करते तो मेरा क्या हाल होता.’’ यह सोच कर लल्लू पश्चाताप करने लगा. उसने तय किया कि अब से किसी को झगड़ा नहीं करेगा. उसके बाद वह सभी से अच्छा व्यवहार करने लगा. उसके इस बदले हुए व्यवहार से माता-पिता भी बहुत खुश थे. अब लल्लु उदण्ड की जगह सीधा-सादा हो गया था.

प्रिय सहेली

लेखक - दीपक कंवर

गांव मे एक गरीब कुम्हार परिवार रहता था. वो मिट्टी के बर्तन, दि‍या, मूर्ति, खिलौने बनाते थे और उसे बेचकर अपना जीवन यापन करते थे. उस परिवार में एक छोटी सी लड़की थी जिसका नाम सीता था. वह भी खिलौने बनाना सीख गई थी. वह जो भी जानवर, पक्षी आदि देखती, वैसे ही खूबसूरत खिलौने बना लेती. उसके पास हाथी, घोड़ा बकरी, गाय, कुत्ता, बिल्ली, चूहा और बहुत सारे पक्षि‍यों के खिलौने हो गये थे. इन्हें वह अपने घर मे सजाकर रखती थी.

स्कूल मे उसकी प्रिय सहेली रूपा थी. आज रूपा का जन्मदिन था. उसने सीता को आमंत्रित करते हुए कहा था कि जब तक सीता उसके घर नहीं आयेगी जब तक वह केक नहीं काटेगी. सीता दिन भर असमंजस मे थी कि उसके घर क्या उपहार लेकर जाये. अच्छे तोहफे लेने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे. उसके पास नए कपड़े भी नहीं थे. शाम का वक्त हो चला था. सीता अपने पुराने कपड़े ही पहनकर और अपने सबसे प्रिय हाथी के खिलौने को लेकर अपनी सहेली के घर की ओर चल पड़ी.

घर के दरवाजे के बाहर खड़े होकर उसने सकुचाते हुए देखा. घर रंग बिरंगे फूलों व लाइटों से सजा हुआ था. दूसरे मेहमान बढ़िया-बढ़िया कपड़े पहने हुए थे और सुंदर-सुंदर तोहफे लाए थे. यह सब देखकर सीता शर्मा गई और उसने हाथी का खिलौना छुपा कर रख लिया. तभी रूपा की नजर सीता पर पड़ी. वह बहुत देर से सीता का इंतज़ार कर रही थी. रूपा उसे अंदर ले आई. फिर उसने पूछा – ‘‘मेरी सहेली आज मेरे जन्मदिन पर क्या लाई है?’’ ऐसा सुनकर सीता की आंखें भर आईं और झिझकते हुए उसने मिट्टी का हाथी आगे बढ़ा दिया.

हाथी का खिलौना देखकर रूपा ने बहुत ही खुश हुई. उसने रूपा को गले से लगा लिया और कहा – ‘‘मेरी सहेली के हाथों से बना हुआ तोहफा मेरे लिए अनमोल है. मै इसे हमेशा संभालकर रखूंगी.’’ उसकी आंखों मे खुशी के आंसु आ गए. फिर दोनो ने मिलकर केक काटा और बहुत धूमधाम से जन्मदिन मनाया.

सुखी व दुखी की दोस्ती

लेखि‍का – दीप्ति दीक्षित

दो लड़के थे. एक का नाम सुखी और दूसरे का नाम दुखी था. दोनों ही अपने नाम के बिल्कुल विपरीत थे. दुखी पढ़ाई लिखाई और अन्य कार्यों में बहुत तेज था व हमेशा प्रसन्न रहता था. विद्यालय में सभी शिक्षकों का वह प्रिय था. परन्तु सुखी हमेशा शैतानी करता था व कभी भी पढ़ाई और अपने भविष्य के बारे मे न सोचते हुए बदमाशियों में ही लगा रहता था.

दुखी हमेशा उसे समझाता व सही राह पर लाने की कोशिश करता पर कभी कोई फायदा न होता. विद्यालय के शिक्षक भी उससे परेशान थे. सुखी को हमेशा दुखी से ईर्ष्या होती थी क्यों कि सब लोग दुखी को पसंद करते थे और उसी की तारीफ करते थे. एक बार सुखी ने अपने पुराने खिलौनो से एक बहुत ही अच्छा विज्ञान का मॉडल बनाया. उसने दुखी को भी माडल दिखाया. दुखी ने उसकी बहुत प्रशंसा की और अपने शिक्षकों को सुखी के व्दारा बनाया वह मॉडल दिखाया. सभी ने उसकी बहुत प्रसंशा की. सूखी को यह बहुत अच्छा लगा. इसके बाद वह नित नये प्रयोग करने लगा और अपने शिक्षकों का चहेता बन गया. पढ़ाई के प्रति भी उसकी रुचि जागृत हो गई. अब वह बिना शैतानी किए बहुत अच्छे से पढ़ाई व सभी कार्य करने लगा. इससे उसके माता पिता भी बहुत प्रसन्न हुए. बड़ा होकर वह एक वैज्ञानिक बना, तथा उसने बहुत से आविष्कार भी किये.

सफलता

संकलनकर्ता - कु. प्रीति बंसल

नितीश एक गॉंव का पला बढ़ा इंसान था. मन में आगे बढ़ने की उमंग थी. कुछ अच्छा करने का उत्साह था. वह घर वालों से जिद करके पढाई के लिए शहर चला गया. नितीश शुरुआत से ही अव्वल दर्जे का छात्र रहा था. कालेज से भी वह अच्छे नंबरों से पास हुआ. एक अच्छी कंपनी में नौकरी भी मिल गयी थी. करीब 4-5 साल बाद नितीश गॉंव लौटा तो उसने देखा आज भी लोगों में वही प्यार और स्नेह की भावना थी. गॉंव के लोग नितीश को इंजिनियर बाबू कहकर बुलाते थे. यह सुनकर नितीश मन में सम्मान महसूस करता था.

एक दिन किसी ने नितीश को बताया कि गॉंव में एक साधू बाबा आये हैं. वो जब भी नाचते हैं बारिश होने लगती है. यह सुनकर नितीश को बड़ा आश्चर्य हुआ. नितीश विज्ञान का छात्र था और वो जानता था कि ऐसा कोई जादू संभव ही नहीं है. उसे लगा कि बाबा भोले गॉंव वालों को बेवकूफ बना रहा है. यही सोचकर वह बाबा से मिलने गया. नितीश ने जाकर बाबा को चेलेंज कर दिया कि आपके पास कोई जादू नहीं है. अगर आपके नाचने से बारिश हो सकती है तो मेरे नाचने से भी ज़रूर होगी. गॉंव वाले भी देखने के लिए इकट़ठा हो गए. नितीश ने नाचना शुरू किया. नाचते हुए बार बार आसमान की ओर देखता लेकिन बारिश नहीं हुई. नितीश थोड़ी देर में ही थक गया. अब बाबा की बारी थी. बाबा ने नाचना शुरू किया, और घंटों नाचते ही रहे. बहुत देर तक बारिश नहीं हुई. बाबा भी लगातार नाचे जा रहा था. काफी देर बाद आसमान में बादल छाने लगे. बाबा नाचते हुए थका नहीं बल्कि घंटो नाचता रहा. कुछ देर बाद बादल जमकर बरसे. घनघोर बारिश हुई. नितीश ने सर झुकाकर बाबा से इस जादू के बारे में पूछा. बाबा ने कहा- ‘‘बेटा ये कोई जादू नहीं है. न ही ये कोई कला है. ये तो बस एक दृढ़ निश्चय है. मैं जब भी नाचता हूँ तो दो बात का ध्यान रखता हूँ. पहली बात मैं मन में खुद को विश्वास दिलाता हूँ कि अगर मैं नाचूंगा तो बारिश जरूर होगी. और दूसरी बात कि अगर बारिश नहीं हुई तो मैं तब तक नाचूंगा, जब तक बारिश ना हो जाये. बस यही मेरी सफलता का राज़ है.

कहानी की नैतिक शिक्षा - जब किसी नए काम की शुरुआत करें तो खुद पर विश्वास रखें कि आप सफल ज़रूर होंगे. और तब तक प्रयास करते रहें जब तक सफल न हो जायें. यही हर सफलता का मन्त्र है.

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