नंदा मैडम की क्लास

उस रात नंदा को देर तक नींद नहीं आई. वह दूसरे दिन होने वाली कक्षा पर लगातार सोचती रही. उसके दिमाग में दो-तीन सवाल थे. पहला तो यही कि कक्षा में गणित की शुरुआत करने की जो पारंपरिक प्रक्रिया है, उसमें संख्याओं के पहले की अवधारणाओं पर काम करने की आवश्यकता को कैसे जगह दी जाए.दूसरी बात यह कि इसे कक्षा प्रक्रिया के रूप में कैसे संचालित किया जाए, जिससे सभी बच्चों को बराबर मौके मिलें. वे सोचें भी, आपस में विमर्श भी करें और किसी परिणाम तक खुद पहुंचने की कोशिश भी करें.

इन दोनों बातों के अलावा नंदा यह भी सोच रही थी यह काम सुधा, हरप्रीत और एहसान सर खुद भी करें. सोने के पहले उसने अपनी योजना का एक खाका बना लिया और इन बातों को अपनी डायरी में लिख लिया.

सुबह वह बहुत जल्दी स्कूल पहुंच गई. वहां पहुंचकर अपने कबाड़ वाले थैले से उसने छांट-छांटकर कुछ-कुछ चीजें निकाल लीं. यह वे वस्तुएं थीं जिनका उपयोग वह अपने शिक्षण में अक्सर किया करती थी. उसने मोटे कागज की पतली-पतली पट्टियों पर कुछ गतिविधियों के नाम लिखे और उन्हें लेकर कक्षा में आई. दीवारोंऔर जमीन पर एक-एक, दो- दो पट्टियों को टेप से चिपका दिया. हर गतिविधि के लिए जिन-जिन चीजों की जरूरत थी, उन्हें अलग-अलग थैलियों में रख लिया. इतनी तैयारी होते तक अभी स्कूल में कोई नहीं आया था. प्रार्थना होने में अभी काफी समय था. इस बीच नंदा ने अपने तीनों साथियों को काम बांटने की योजना भी मन ही मन बना ली.

थोड़ी ही देर में सुधा, एहसान और हरप्रीत एक-एक कर स्कूल पहुंच गए. नंदा ने मुस्कराकर सभी का स्वागत किया. सभी जाकर प्रधान पाठक के कमरे में बैठ गए. एहसान ने इधर-उधर नजर दौड़ाते हुए पूछा, नंदा आज कुछ खास बात है क्या? तुम बड़ी जल्दी आ गई हो. यहां तो बड़ी तैयारियां दिखाई पड़ रही हैं.

नंदा दो पल चुप रही. फिर उसने कहा, सर कल संख्याओं को लेकर जो बातें हम कर रहे थे, उस पर ही एक शुरुआत मैं करना चाहती हूं. इसे लेकर कर मेरे दिमाग में जो योजना है वह मैं बताना चाहूंगी, यदि आपकी अनुमति हो. नंदा, तुम्हें अनुमति की जरूरत नहीं है. मुझे यकीन है तुम जो करोगी, अच्छा करोगी. बताओ तुमने क्या सोचा है. सर, मैंने सोचा है कक्षा एक और दो के बच्चों के साथ हम ऐसी गतिविधियां करेंगे जो संख्याओं की औपचारिक शुरुआत के पहले की जाना चाहिए. इससे हम सभी उस क्रम को समझ सकेंगे जिससे संख्याओं को समझने में मदद मिलती है. हम शायद उस फर्क को भी देख पाएं जो इस तरीके से आगे बढ़ने पर बच्चों में आता है. नंदा ने कहा.

सुधा ने पूछा, नंदा इस काम में कौन-कौन शामिल होंगे?

सुधा, मैं सोचती हूं तुम, मैं और प्रीत कक्षा एक और दो के बच्चों को साथ-साथ लेकर काम करें. कक्षा तीन, चार और पांच के बच्चों को एहसान सर संभाल लें.

वो तो ठीक है नंदा, लेकिन तीन अलग-अलग कक्षाओं के बच्चों के साथ मैं कौन सा काम करूंगा. एहसान ने पूछा.

सर, मैंने यह भी सोच रखा है. कक्षा चार और पांच स्तर पर गणित में एक अवधारणा है जिसमें यह समझने के मौके हैं कि कोई एक वस्तु अलग-अलग कोण से देखने पर अलग- अलग दिखाई पड़ती है. नंदा ने एहसान को आश्वस्त करते हुए कहा.

हरप्रीत जो अब तक चुप थी बोल पड़ी, क्या यह भी गणित का हिस्सा है?

इसका जवाब सुधा ने दिया. हां प्रीत, गणित माने केवल संख्या और संक्रियाएं भर नहीं है. इनसे परे भी बहुत सी बातें गणित में समाई हुई हैं.

अच्छा. हरप्रीत ने धीरे से कहा.

एहसान ने नंदा की ओर देखते हुए कहा, ठीक है नंदा, मैं गणित की पुस्तकों से इसे समझने की कोशिश करता हूं. यह भी सोचता हूं कि एक साथ तीन कक्षाओं के बच्चों के साथ इसे कैसे करना चाहिए.और हां, मैं थोड़ा अलग बैठ कर काम करता हूं. तुम तीनों यहीं बैठो.

ऐसा कहते हुए एहसान वहां से उठकर कक्षा तीन की ओर चले गए.

उनके जाने के बाद सुधा ने कहा, एहसान सर जैसे सहयोग करने वाले प्रधान पाठक कम ही होंगे. देखा नंदा, तुमने जो काम उन्हें सुझाया, उस पर तुरंत राजी हो गए. कोई और होता तो नाराज हो जाता. कहता, अपने सीनियर को काम बताते हो.

और हां, उन्होंने पूछा भी नहीं कि मुझे करना कैसे होगा, यह नया टॉपिक है कैसा. खुद से समझने के लिए भी तैयार हो गए. काम सीखने और नया करने की इच्छा ही उन्हें बड़ा बना देती है. हरप्रीत ने अहसान की प्रशंसा करते हुए कहा.

तुम दोनों की बातें बिल्कुल सही हैं. इन्हीं के सहयोग से हम कुछ नया कर पाते हैं. कोई और होता तो शायद कह देता यह सब प्रयोग हटाओ. इससे स्कूल की व्यवस्था बिगड़ती है. नंदा ने कहा.

सुधा, अब हमें कक्षा एक और दो में क्या-क्या करना है, कैसे करना है इस पर नंदा से थोड़ी बात कर लेनी चाहिए. ठीक है ना नंदा ?

आज हम जो कुछ शुरू करने जा रहे हैं वह संख्या के पहले की जरूरी अवधारणाएं हैं. इसमें हम पांच - छह तरह के काम करेंगे, जैसे चीजों को क्रम से जमाना, ढेर में से चीजों को छांटना या किसी खास गुण के आधार पर एक जैसी चीजों को साथ-साथ रखना, किसी खास क्रम में रखी चीजों के क्रम को आगे बढ़ाना, जोड़ी मिलाना वगैरह-वगैरह.

बाप रे बाप! इतना सारा काम एक साथ ?

यह कैसे होगा नंदा और यह हम क्यों कर रहे हैं. हरप्रीत ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा.

मेरी प्यारी प्रीत, तुम बहुत जल्दी घबरा जाती हो. पर तुमने जो सवाल किए हैं वे बहुत ही बढ़िया और जरूरी सवाल हैं. हर टीचर के दिमाग में यह बात बिल्कुल साफ होनी चाहिए कि वह क्लास में क्या करेगी और क्यों करेगी. इन दोनों सवालों से फिर एक नया सवाल जन्म लेना चाहिए, इसे करूंगी कैसे.

सुधा ने नंदा की बात को आगे बढ़ते हुए कहा, इस काम को हम मिलकर करेंगे प्रीत. और तुम्हारे क्यों वाले सवाल पर ही तो कल इतनी लंबी चर्चा हुई थी. पर अभी इतना फिर से कह देती हूं कि बच्चों को संख्याओं के अनुभवों से जोड़ने के पहले उन्हें कुछ और अनुभवों से गुजरने देना चाहिए. ये अनुभव संख्याओं तक पहुंचने की सीढ़ियां हैं, ऐसा समझ लो.

नंदा ने सुधा की बात का समर्थन करते हुए कहा, कोई बच्चा स्कूल आने और संख्या सीखने के पहले अनौपचारिक रूप से ऐसे अनुभवों से बार-बार गुजरता है.

एक उदाहरण देती हूं, तुमने कभी दो-तीन साल की बच्ची को खिलौनों के ढेर के साथ काम करते देखा होगा. क्या वह अपनी पसंद की चीजों को अलग कर पाती है? एक दूसरे उदाहरण पर सोचें, मानलो किसी घर के बाहर बहुत से बच्चों के जूते-चप्पल बिखरे पड़े हैं और एक बच्ची उनमें से अपनी चप्पलों को ढूंढने की कोशिश कर रही है, क्याउम्मीद करती हो?

हां, मुझे लगता है कोई तीन साल की बच्ची यह काम आसानी से कर लेगी. हरप्रीत ने कहा.

अब सोचो ऐसा करते समय उस बच्ची के दिमाग में क्या चल रहा होगा? कौन से पैरामीटर या मानदंड होंगे जिनका उपयोग बच्ची अपनी चप्पल पहचानने के लिए कर रही होगी?

सुधा ने कहा, मुझे ऐसा लगता है नंदा, हम इंसानों में कई गुण नैसर्गिक रूप से मौजूद होते हैं. मां- बाप या शिक्षक के रूप में हम बच्चों में उन गुणों या क्षमताओं को और मजबूत करने के मौके बनाते हैं.

हां सुधा, बहुत अच्छी बात कही तुमने. एक शिक्षक के रूप में हमें ठीक ठीक समझने की जरूरत होती है कि कब किस चीज पर हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

अब अगर हम कक्षा में चलें तो वहीं बता पाऊंगी हमें काम कैसे करना है.

प्रधान पाठक के कक्ष से निकलकर तीनों उस कमरे में आ गईं जहां पहली कक्षा बैठती थी. वहां नंदा ने कुछ देर पहले ही गतिविधियों के नाम वाली पट्टियां चिपका रखी थीं. कुछ पट्टियां फर्श पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चिपकी हुई थीं. हरप्रीत ने देखा कुल नौ गतिविधियों के लिए जगहें निर्धारित की गई थीं. हर जगह पर नंदा ने एक-एक थैली रख दी थी जिसमें उस गतिविधि के लिए कुछ-कुछ चीजें रखी हुई थीं.

सुधा ने देखा एक पट्टी पर लिखा था, दाईं मुट्ठी-बाईं मुट्ठी. उसने उसके पास रखी थैली खोली. उसमें इमली के बहुत से बीज रखे हुए थे. उसे कुछ समझ में नहीं आया. उसने नंदा की ओर देखा. नंदा मुस्कराई और बोली मैं हर गतिविधि के बारे में बताऊंगी, चिंता मत करो. फिलहाल इतना बता दूं कि इस गतिविधि में एक बच्चा अपनी बाईं और दाईं दोनों मुट्ठियों में एक-एक मुट्ठी बीज निकालकर फर्श पर अलग-अलग रखेगा. फिर उसके समूह के बच्चे मिलकर दोनों ढेरियों से एक एक बीज निकाल कर जोड़ियां बनाते जाएंगे. अंत में देखेंगे क्या किसी ढेरी में बीज बच गए.यदि हां, तो बताएंगे किस मुट्ठी में ज्यादा बीज आए, किसमें कम. यदि किसी ढेरी में बीज नहीं बचे तो कहेंगे, दोनों ढेरियों में बराबर-बराबर बीज थे.

हमारी भूमिका क्या होगी नंदा? हरप्रीत ने पूछा.

प्रीत, अभी हमने नौ गतिविधियां रखी हैं इसलिए बच्चों के नौ ग्रुप्स होंगे. हर ग्रुप में कक्षा एक और दो के बच्चे मिले-जुले रहेंगे.

हम तीनों, तीन-तीन ग्रुप के बच्चों के साथ काम करेंगी. बच्चों को एक गतिविधि करने में पंद्रह से बीस मिनट लगेंगे. इसके बाद हर ग्रुप अपने आगे वाले ग्रुप की गतिविधि करने के लिए अपनी जगह छोड़ कर उसकी जगह पर चला जाएगा. नंदा ने समझाते हुए अपनी बात रखी.

हरप्रीत ने कहा, यानी जो ग्रुप गतिविधि एक पर था, गतिविधि दो पर चला जाएगा. गतिविधि दो वाला समूह गतिविधि तीन की जगह पर. ठीक है ना नंदा?

हां प्रीत, तुमने ठीक समझा.

इसी समय एहसान भी वहां आ गए. उन्होंने कहा, मैंने पूरा पाठ ठीक से समझ लिया है. कुछ ऐसी चीजें भी इकट्ठी कर लिया हूं जिनके चित्र बच्चे आसानी से बना सकते हैं. जैसे गिलास, कप, डस्टर, बोतल, वगैरह.

पर मेरे मन में यह सवाल है कि गणित की किताब में इस पाठ को क्यों रखा गया है?

सर, इस पर हमें बातचीत करनी पड़ेगी. वैसे जब आप बच्चों के साथ इस पर काम करेंगे तो कुछ बातें खुद-ब-खुद स्पष्ट होती जाएंगी. हां, एक अनुरोध आपसे है, आप कक्षा तीन, चार और पांच के बच्चों के आठ- दस ग्रुप बनाइएगा. हर ग्रुप में तीनों कक्षाओं के बच्चे रहें तो बहुत अच्छा रहेगा. हर ग्रुप के पास एक-एक वस्तु हो जिसका वे चित्र बनाएंगे. एक बहुत खास बात ध्यान में यह भी रखनी होगी कि बच्चे वस्तु को अलग-अलग तरफ से देखेंगे. सामने से, बगल से, ऊपर से और वह चीज उन्हें जैसी दिखाई पड़ेगी वैसा ही चित्र बनाने की कोशिश करेंगे.

इन सब चर्चाओं के बीच प्रार्थना का समय हो गया था. घंटी बजी और ये चारों प्रार्थना के लिए बच्चों के पास चले गए.

क्या नंदा की योजना सफल हो पाई ?

दोनों कक्षाओं में क्या-क्या हुआ यह जानने के लिए अगला अंक पढ़ें.

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