कहानी

अंत भला तो सब भला

लेखिका - कु.रोशनी मरकाम, कक्षा आठवीं, शा. पूर्व मा. वि. नवापारा कर्रा

रामगढ़ राज्य के राजा रामेश्वर की दो पत्नियां थी, कौशल्या और सुभद्रा. सुभद्रा स्वभाव से सुशील और गुणी थी जबकि कौशल्या कपटी व चालबाज औरत थी. सुभद्रा के दो बच्चे थे. एक पुत्र शिखर और दूसरा पुत्री सुधा. कौशल्या को एक भी बच्चा नहीं था. इस कारण उसे अपनी सौतन से जलन होती थी. उसने राजा के कान भरे कि सुभद्रा के बच्चे उनके नहीं बल्कि किसी और के हैं. राजा कौशल्या की बातों में आ गया और उसने सुभद्रा को महल से निकाल दिया. सुभद्रा अपने बच्चों को लेकर मायके गई परंतु उसकी मां ने भी उसे अपने घर में पनाह नहीं दी. उसकी मां ने कहा - जो अपने पति की नहीं हुई वह किसी की नहीं, और उसने दरवाजा बंद कर लिया. सुभद्रा अपने बच्चों को लेकर जंगल की ओर चल दी और वही एक झोपड़ी बनाकर रहने लगी.

कुछ वर्ष बीत गए. एक दिन सुभद्रा के दोनों बच्चों ने उससे अपने पिता के बारे में पूछा. सुभद्रा कुछ नहीं बोली और रोने लगी. उसके बच्चों ने अपनी मां को रोते देख फिर कभी यह प्रश्न नहीं करने का वादा किया. इधर महल में कौशल्या को एक भी बच्चा नहीं हुआ. उसका व्यवहार राजा की प्रति भी अच्छा नहीं था. राजा ने जब पता लगाया तो उसे मालूम हुआ कि सुभद्रा के बच्चे राजा के ही हैं और कौशल्या ने झूठ बोला था. यह जानकर राजा ने कौशल्या को महल से निकाल दिया और सुभद्रा की तलाश करने लगे. तलाश करते करते राजा को जंगल में वह झोपड़ी मिल गई, जहां पर सुभद्रा अपने बच्चों के साथ रहती थी. राजा ने सुभद्रा से क्षमा मांगी और उसे तथा बच्चों को महल ले आया. सब खुशी-खुशी रहने लगे. इसीलिए कहते हैं अंत भला तो सब भला.

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