यात्रा वृतांत - कुटुमसर गुफा
लेखिका - पद्यमनी साहू
साल सागौन के आसमां से बातें करते ऊँचे ऊँचे पेड़ नीचे हरी हरी घास की चादर बहुत ही सुहावना नज़ारा था. जगदलपुर के ये वन छत्तीदसगढ़ की धरती की शोभा बढ़ा रहे थे. ऐसा दृश्य जो अनायास ही किसी का भी मन अपनी ओर आकर्षित कर ले. जगदलपुर के इन्ही जंगलो के बीच मे प्रकृति की एक अनुपम रचना है - कुटुमसर गुफा. गुफा के अंदर जाने के लिये एक छोटा सा रास्ता है. नीचे उतरने के लिए सीढ़ी बनी है. पहले चट्टानों से होकर ही नीचे जाना पड़ता था. अंदर सूर्य का प्रकाश नही पहुँच पाता इस लिए यहाँ घना अंधेरा रहता है. प्रकाश के कृत्रिम स्रोतों से यहाँ प्रकाश की व्यवस्था की गई है.
आगे जाने पर हमे पानी के छोटे छोटे कुंड मिले जिसमे छोटी छोटी मछलियां थीं. ये मछलियां अन्धी मछली के नाम से जानी जाती हैं. ये मछलियां सदैव अंधेरे में रहती है इसलिए इनकी आंखें नहीं होती और इन्हें अंधी मछली कहते हैं.
हम बड़े ही उत्साह से आगे बढ़ रहे थे. गुफा में लगातार पानी का रिसाव होता रहता है इस कारण चट्टाने फिसलनदार हैं. हम काफी सम्हल कर चल रहे थे. आगे बढ़ने पर हमने गुफा की दीवारों पर अनेक मनमोहक आकृतियां देखीं. पानी में घुला हुआ चूना पानी के बूंद-बूंद टपकने के कारण जम गया था और अब मनोहारी आकृतियों के रूप में दिख रहा था. यह आकृतियां झूमर की लड़ जैसी दिखती हैं. गुफा लगभग 1 किलोमीटर लम्बी है. हमे बड़ी उत्सुकता थी कि गुफा के अंतिम छोर पर क्या होगा. कुछ दूर जाने पर हमारी जिज्ञासा शांत हो गई. गुफा के अंत में एक शिवलिंग स्थापित है जिसमें फूल पत्र चढ़े थे. शिवलिंग के दर्शन कर हम इस अद्भुत व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गुफा के बारे में बातें करते करते हुए हम बाहर आ गये.
तो बच्चों इस बार छुट्टियों में कुटुमसर गुफा देखने ज़रूर जाना.