जाड़ के महीना

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

आ गे जाड के महीना, हाथ गोड जुडावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह, गोरसी ल दगावत हे ।
पानी ल छुत्ते साठ, हाथ ह झिनझिनावत हे ।
मुहूं म डारते साठ, दांत ह किनकिनावत हे ।
तेल फुल चुपर के, लइका ल सपटावत हे ।
कतको दवई करबे तब ले, नाक ह बोहावत हे ।
नावा बहुरिया घेरी बेरी, किरिम ल लगावत हे ।
पाउडर ल लगा लगाके, चेहरा ल चमकावत हे ।
गाल मुहूँ चटकत हावय, बोरोप्लस लगावत हे ।
एड़ी हा फाट गेहे, अब्बड़ के पीरावत हे ।
आगे जाड़ के महीना, हाथ गोड़ जुड़ावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह, गोरसी ल दगावत हे ।

नवा साल म

लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

नवा-नवा काम करबो, चलव नवा साल म।
चाहे राहन अमीरी म, या जिंयन तंगहाल म।।

सोवत मनखे मन ल,चलव न जगाना हे।
रोवत सुरतिया ल, चलव न हँसाना हे।।
अपन करम ल करबो,हमन ह हर हाल म।
नवा -नवा काम करबो,चलव नवा साल म।।

बीती बात बिसार के, नवा सोच लाना है।
सुम्मत के रद्दा म, दुनियाँ ल चलाना है।।
हमला नई पड़ना हे, अब फोकट के बवाल म।
नवा-नवा काम करबो, चलव नवा साल म।।

आँखि म देखे सपना ल, हमला अब सजाना है।
दीन, दुःखी, अबला ल, अपन गर लगाना है।
अब नई उलझना है, कोनो फोकट के सवाल म।
नवा- नवा काम करबो, चलव नवा साल म।।

दिन बदले, महीना, या बदले कोनो साल।
हर ऋतु, मौसम म, सब रहे खुशहाल।।
सब के सुख खातिर, जुट जाओ न पड़ताल म।
नवा- नवा काम करबो,चलव न नवा साल म।।

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