छत्‍तीसगढ़ी बालगीत

आ गे नवाचार

लेखक - अजहरुद्दीन अंसारी

आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार
जम्मो लइका इसकुल आवा होवत हे पुकार

खेल खेल में पढई लिखई खेल हे हजार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

मार पिटई कब के नंदागे मिले प्यार दुलार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

ए बी सी डी क ख ग घ छूटगे रट्टामार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

बदलत हे गा जुग जबाना करले तहूँ सुधार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

जोड़ घटाव गोटी बाटी मा लेनी देनी बजार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

हपता भर के लिखई पढई तहाँ ले इतवार
आ गे नवाचार संगी आ गे नवाचार

मोनू सोनू सुनीता रानी हो जा चल तइयार
जम्मो लइका इसकुल आवा होवत हे पुकार

तुलसी

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

घर अँगना अउ चउक मा, तुलसी पेड़ लगाव ।
पूजा करके प्रेम से, पानी रोज चढ़ाव ।।
तुलसी हावय जेन घर, वो घर स्वर्ग समान ।
रोग दोष सब दूर कर, घर मा लावय जान ।।
तुलसी पत्ता पीस के, काढा बने बनाव ।
सरदी खाँसी रोग मा, खाली पेट पियाव ।।
तुलसी पत्ता टोर के , रोज बिहनिया खाव ।
स्वस्थ रहय जी देंह हा, ताकत बहुते पाव ।।
तुलसी माला घेंच मा, पहिरय जे दिन रात ।
मिटथे कतको रोग हा, कभू न होवय वात ।।
तुलसी पत्ता खाय जे, बाढ़य ओकर ज्ञान ।
मन पवित्र हो जात हे, लगय पढ़य मा ध्यान ।।
तुलसी माला जाप कर, माता खुश हो जाय ।
बाढ़य घर मा प्रेम जी , संकट कभू न आय ।।

नवा बछर

लेखक - रामफल यादव

नवा बछर के नवा किरन ह,
आज बहुत मुसकावत हे।
खुसी के बड़का मोटरा बाँधे,
जग ल बड़ दुलरावत हे।
उठव चलव मोर संग संगी,
जाँगर के बाँधव बाना रे।
रुख म बइठे पंछी गाए,
पिरित के गुरतुर गाना रे।
बड़ पिरोही पुरवइया हे,
कुँवर बिरवा ह पुचकारत हे।
खुसी के बड़का मोटरा बाँधे,
जग ल बड़ दुलरावत हे।
आज बेरा हे करतब अपन,
चिन्हकेहम आगु जावन।
नदिया नरवा के निरमल जल,
देवत हवय एहि सिखावन।
सरलग चलइया ठिहा पाथे,
गोठ एहि सिखावत हे।
खुसी के बड़का मोटरा बाँधे,
जग ल बड़ दुलरावत हे।
गड़े न काँटा पाँव म कखरो,
दुख के बेरा झन आवय।
घरोघर सुख सुमत के मोंगरा,
गमकय अऊ महमही बगरावय।
पर उपकार करलव संगी,
जिनगी ल हुलसावत हे।
खुसी के बड़का मोटरा बाँधे,
जग ल बड़ दुलरावत हे।

मोर स्कूल

लेखक - अनकेश्वर प्रसाद महिपाल

अब्बड़ सुघ्घर हावै संगी,
स्कूल हा मोर जी.....
आके देख ले दिल,
खुश हो जाही तोर जी......
खेलकूद योग प्रार्थना,
रोज रोज करथन,
लइका मड़ई मा,
झूम झूम नाचथन,
चैंपियन स्कूल बनिस संगी
बगरिस अंजोर जी.....
अब्बड़ सुघ्घर हावै संगी,
स्कूल हा मोर जी......
गणित अंग्रेजी पढे मा,
बड़ मजा आथे ,
सुघ्घर सुघ्घर बात हमर,
गुरूजी मन बताथे,
पेपर मा हमर फोटो छपथे,
होवथे बडा शोर जी.....
अब्बड़ सुघ्घर हावै संगी,
स्कूल हा मोर जी. .......
सरस्वती माता के मंदिर मा,
ज्ञान के ज्योत जलाथन,
हाथ धुलाई करके,
मध्यान्ह भोजन खाथन,
जुरमिल के पढ़थन सबो,
नइ हे कोनो चोर जी,
अब्बड़ सुघ्घर हावै संगी,
स्कूल हा मोर जी. .....
अब्बड़ सुघ्घर हावै संगी,
स्कूल हा मोर जी. ...

पर्यावरण

लेखक - बलराम नेताम

दिनों दिन कटावत हे, रुख़राई,
परदूषित होवत हे, पर्याबरन भाई,
सुनले ददा, सुनले ओ मोर दाई,
पर्याबरन मा हे जम्मो लोगन के भलाई,
लोगन के भलाई के खातिर, मन ला बन से मिलाय बर लागहि,
ये पर्याबरन बर संगवारी, पेड़ जगाय बर लागहि।।

जइसन जइसन, पेड़ कटावत हे,
तइसन तइसन, फैकटरी बनावत हे,
सब अपन अपन, मन मर्जी चलावत हे,
कुआं नदिया तरिया डबरी अटावत हे, कुआँ डबरी के खातिर मन ला, बन से मिलाय बर लागही,
ये पर्याबरन बर संगवारी पेड़ लगाय बर लागहि।।

आज जेन डाहर, देखव,तौन डाहर कुहरा निकलत हे,
अइसन परदूषन मा संगवारी, मन ह घलो बिखलत हे,
ऐ परदूषन मा संगी, गेलेसियर ह घलो पिघलत हे,
एहि ग्लेशियर के खातिर मन ला, बन से मिलाय बर लागहि,
ये पर्याबरन बर संगवारी, एक पेड़ जगाय बर लागहि।।
पेड़ बचाय बर लागहि पेड़ लगाय बर लागहि।।

Visitor No. : 6629624
Site Developed and Hosted by Alok Shukla