कहानी

परिवार का सदस्य

लेखक - राजेश मेहरा

मन्नू अपनी दादी के साथ हिमाचल प्रदेश के कुल्लू गांव में रहता था. उसका गांव पहाड़ के छोटे ढ़लान पर बसा था. उसके गांव के चारों तरफ प्राकृतिक छटाओं की कमी नही थी. कमी थी तो सिर्फ मूल सुविधाओं की. बूढ़ी दादी अब बुजुर्ग होने के कारण ज्यादा चल नही पाती थी. घर ढ़लान पर होने के कारण बार बार दादी को लकड़ी आदि लाने के लिए नीचे उतरने पड़ता था. दादी किसी तरह उतर तो जाती लेकिन फिर घर पर आने के लिए उसे चढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी. मन्नू ने गांव की पंचायत से कह कर घर मे दादी के लिए शौचालय तो बनवा दिया था लेकिन वह अपनी दादी की अन्य कामों में मदद नही कर पाता था. अपना जीवन यापन करने के लिए उनके पास बकरियां थी जिन्हें चराने के लिए उसे भी ऊपर जंगलो में रोज सुबह ही जाना पड़ता था. बकरियां चराकर वह देर शाम ही लौट पता था. मन्नू अपनी दादी के लिए बहुत चिंतित रहता था. मन्नू और दादी का जीवन किसी तरह से कट रहा था. अब उनको एक ओर मुसीबत ने घेर लिया था. पिछली रात को आदमखोर बाघ ने उनकी बाहर बंधी एक बकरी का शिकार कर लिया. एक तो गरीबी ऊपर से ये मुसीबत. अब तो मन्नू भी टूट रहा था लेकिन उसकी दादी उसे ढांढस बंधाती और कहती कि सब ठीक हो जाएगा भगवान पर भरोसा रखो.

अब मन्नू रात को बाहर बंधी बकरियों की रखवाली करता और सुबह बकरियां चराने जाता. नींद पूरी ना होने के कारण वह कमजोर भी होने लगा. एक दिन सुबह से ही थोड़ी बूंदाबांदी हो रही थी. मन्नू अपनी बकरियों को लेकर ऊपर पहाड़ पर जंगल की तरफ चराने जा रहा था तभी उसे किसी की करहाने की आवाज आई. एक बार तो उसने सोचा कि कहीं वही आदमखोर बाघ तो किसी जानवर को नही मार रहा लेकिन फिर करहाने की आवाज आई तो वह उसी दिशा में चला. पहुंचने पर उसने देखा कि एक जंगली गधा कुछ झाड़ियों के पास घायल पड़ा है. मन्नू ने अपनी बकरियों को चरने छोड़ दिया और गधे के पास पहुंचा. लगता था कि बाघ ने उसे घायल किया था लेकिन वह किसी तरह बच गया था. मन्नू को जंगल की कुछ जड़ी बूटियों का ज्ञान था जिसे उसकी दादी ने सिखाया था. मन्नू ने तुरन्त कुछ जड़ी बूटियां इक्कठी की और पास में बहते झरने से पानी लाकर गधे के घावों को धोया. उसने जड़ी बूटियों को पीसा और अपने गमछे की मदद से गधे के घावों पर बांध दिया. गधे ने अब करहाना बन्द कर दिया था. मन्नू ने उसके लिए खाने और पानी का भी इंतजाम किया. शाम होते होते गधा खड़ा हो गया. लेकिन वह कमजोर लग रहा था. मन्नू ने सोचा यदि इसे यहां छोड़ा तो बाघ इसे खा जायेगा. मन्नू ने अपनी बकरियों को भी इक्कठा किया और गधे को भी हांक कर किसी तरह अपने घर ले आया.

दादी को उसने सारी बात बता दी. दादी उसकी बात से खुश थी कि उसने घायल गधे की मदद की. रात को दादी ने गधे के लिए अच्छी जड़ी बूटियों और खाने का इंतजाम किया ताकि वह जल्दी ठीक हो जाये. गधा भी मन्नू ओर दादी की सेवा से खुश था. रात को खाना खाने के बाद मन्नू बाहर बकरियों की रखवाली के लिए बैठा रहा. गधे को बिल्कुल भी अच्छा नही लगा कि मन्नू रात को भी जाग रहा था. गधे को यह बात समझ आ गई थी कि मन्नू बकरियों की देखभाल के लिए ही जाग रहा है. मन्नू बीच बीच मे थोड़ा सोता लेकिन कुछ आवाज सुनते ही वह जाग जाता. सुबह फिर मन्नू अपनी बकरियों का दूध निकाल कर उन्हें जंगल मे चराने चल दिया. जाते हुए उसने गधे को कहा कि तुम यहीं रहो और जल्दी ठीक हो जाओ.

दिन में गधे ने देखा कि दादी भी बड़ी मुश्किल से नीचे से कोई सामान लेकर ऊपर चढ़ पाती है. गधे को मन्नू और दादी पर तरस आया. उसने उन दोनों की मदद करने की ठानी. कुछ दिनों में गधा मन्नू ओर दादी की सेवा से स्वस्थ हो गया. मन्नू ने उसका नाम भोला रख दिया था. मन्नू ने एक दिन उसे वहां से जंगल मे चले जाने को कहा लेकिन उसने अपनी आँखों मे आंसू लाकर और गर्दन हिलाकर मना कर दिया. मन्नू उसे जाने के लिए बार बार कह रहा था लेकिन वह अपनी गर्दन हिला देता. ये देख दादी मुस्कुराई ओर बोली - 'मन्नू वो नही जाना चाहता अब वह यहीं रहेगा.' इतना सुन भोला खुश हुआ.

अब दादी जैसे ही नीचे जाने लगती तो भोला उनके सामने बैठ जाता था और दादी उस पर बैठ जाती. इस प्रकार अब भोला दादी को नीचे जाने और ऊपर लाने में मदद करता और कोई भारी सामान भी होता तो वह उसे अपनी पीठ पर लादकर ले आता. दादी अब सामान लाने ले जाने के लिए परेशान नही होती थी. मन्नू भी अब दादी को खुश होते देख खुश होता. एक रात जब मन्नू बकरियों की रखवाली के लिए बाहर बैठा तो भोला ने गर्दन के इशारे से उसे अंदर जाकर सोने को कहा. मन्नू नही समझ पाया तो भोला ने उसका हाथ अपने मुँह से पकड़ा और उसे घर के अंदर धकेल दिया. मन्नू समझ गया कि भोला उसे अंदर घर मे सोने को कह रहा है और वह खुद बकरियों की देख भाल करेगा. अब भोला रात में बकरियों की रखवाली भी करने लगा. दो बार बाघ आया तो उसने ढेंचू ढेंचू की आवाज निकाल कर दादी ओर मन्नू को जगा दिया. मन्नू जलती मशाल लेकर आया और बाघ को भगा दिया.

अब मन्नू निश्चिन्त होकर सोता था. उस बाघ का आतंक पूरे गांव में फैलने लगा. ठंड का मौसम था अतः सब घर मे सो जाते तो बाघ उनके पालतू पशुओं को आसानी से शिकार करके ले जाता. एक रात तेज बारिश हो रही थी. रात को बाघ मन्नू की बकरियों की तरफ बढ़ा तो भोला ने शोर मचाना शुरू किया लेकिन तेज बारिश की वजह से मन्नू ओर दादी तक शायद आवाज नही जा पाई. बाघ एक बकरी को मुँह में भरने ही वाला था कि भोला ने हिम्मत कर जोर से उसे दुलत्ती मारी. बारिश की वजह से फिसलन थी तो दुलत्ती लगते ही बाघ फिसलता हुआ नीचे घाटी में जा गिरा और मर गया. बाघ के मरने की खबर सुबह सुबह मन्नू और दादी ने भी सुनी. मन्नू ने बकरियों के पास बाघ के निशान देखे तो वह समझ गया कि भोला ने ही बाघ को मारा है. मन्नू ने सारी बात अपनी दादी को बताई तो दादी ने भोला को बहुत प्यार किया और उसे खाने को भी दिया.

अब गांव में बाघ की दहशत नही थी और भोला ने दादी ओर मन्नू की मुश्किलें भी हल कर दी थीं. अब भोला, मन्नू ओर दादी खुशी से रहने लगे। भोला अब उनके परिवार का सदस्य था.

साहसी दीपक

लेखिका – कु. चमेली साहू

एक दीपक नाम का लड़का था. वह बहुत साहसी था. एक दिन वह स्कूल जा रहा था कि उसने एक आदमी को एक बच्ची को खींचते हुए ले जाते देखा. उसे शक हुआ कि वह आदमी उस बच्ची को ज़बरदस्ती ले जा रहा है. दीपक मे उस आदमी को रोका तो वह भागने लगा. दीपक ने उसपर एक पत्थर फेंका. उस आदमी ने दीपक पर धूल फेंकी. धूल दीपक की आंखों में चली गई. उस आदमी ने दीपक को भी पकड़कर आपनी गाड़ी में ज़बरदस्ती डाल लिया. दीपक को उसने सर पर ज़ोर से मारा जिससे दीपक बेहोश हो गया.

जब दीपक को होश आया तो उसने देखा कि वह एक कमरे में बंद है. कमरे में बड़ा अंधेरा था. दीपक को उस आदमी ने एक रस्सी से बांध दिया था. अचानक दीपक को एक कांच का टुकड़ा ज़मीन पर पड़ा दिखा. वह ज़मीन पर घिसटता हुआ कांच के पास पहुंचा. उसने अपने मुंह में कांच को पकड़ कर रस्सी को काट दिया. फिर वह उस कमरे से निकला. पास के दूसरे कमरे में वह दूसरी बच्ची बंद थी. कमरे के दरवाज़े पर ताला लगा था. दीपक ने एक पत्थर से ताला तोड़ दिया और उस बच्ची को छुड़ा लिया. पास में एक डण्डा भी पड़ा था. दीपक ने उसे उठा लिया और उस आदमी का इंतज़ार करने लगा. थोड़ी देर में वह आदमी वहां लौटकर आया. दीपक छुपकर बैठा था. उसने पीछे से उस आदमी को डण्डा मारा तो वह गिरकर बेहोश हो गया. दीपक छोटी बच्ची को लेकर वहां से भाग नि‍कला.

दीपक ने स्कूल जाकर अपने शिक्षक को सारी बात बताई. शिक्षक के कहने पर पुलिस ने वहां जाकर उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया. दीपक के साहस की सभी ने तारीफ की.

बदलाव

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

कुछ दिनों पहले स्कूल में नए खेल शिक्षक का आगमन हुआ था. बच्चो में उत्सुकता थी कि खेल वाले शिक्षक है तो कद काठी बड़ी मजबूत होगी और बड़े कड़क होंगे. पर उनका ये अनुमान गलत था. मास्टर जी साधारण कद काठी के और हंसमुख थे. खेल के मैदान में अनुशासित. गुरुजी सब बच्चो को कड़ी मेहनत से खेल की बारीकियां सिखाते थे. ऐसे में कुछ लफंगे उदण्ड लड़के केवल सब पर फब्तियां कसते रहेत थे. गुरुजी की नजर इनमे से सबसे बदमाश रवि पर पड़ी. कद काठी और शारीरिक चुस्ती उसमे थी. बच्चो से पूछने पर पता चला कि रवि की उदण्डता के कारण ही वो टीम में नही रहता था.

गुरुजी ने रवि को प्यार से समझाकर उसे लगातार अभ्यास कराया. उसमे सचमुच गजब की स्फूर्ति थी, जिनका अहसास उसे हो गया. रवि मन लगाकर खेलने लगा. कुछ दिन बाद रवि राज्य और राष्ट्रीय स्तर के लिए भी सि‍लेक्ट हो गया. एक दिन अखबार में उसका फ़ोटो भी छपा. बच्चों ने उसे सम्मान देना शुरू कर दिया. रवि सबकी आंखों का तारा बन गया. धीरे धीरे उनके स्वभाव में काफी परिवर्तन हो गया था. अब उसने नशा-पान करना छोड़ दिया. उनके मन में सबके लिये अपनेपन का भाव उत्प न्नप हो गया. वह सबका आदर करता और अपने आचरण को बदलकर अनुशासित रहने लगा. मास्टार जी के सिखाने पर अच्छाआ खेल कर रवि स्कूल में सबका चहेता बन गया.

राजा और दर्जी

लेखिका - कविता कोरी

किसी राज्य में एक राजा रहता था. राजा अक्सर गांव-गांव जाकर प्रजा और लोगों की समस्याओं को सुनता था और उनमें सुधार की पूरी कोशिश करता था. उसकी कर्तव्यनिष्ठा के चर्चे दूर देशों तक फैले हुए थे. ऐसे ही एक बार राजा किसी गांव में प्रजा की समस्याओं को जानने के लिए भ्रमण पर निकले हुए थे. उसी दौरान राजा के कुर्ते का एक बटन टूट गया. राजा ने तुरंत मंत्री को बुलाया और आदेश दिया कि जाओ, इस गांव में से ही किसी अच्छे से दर्जी को बुला लाओ, जो मेरे कुर्ते का बटन लगा दे. तुरंत पूरे गांव में अच्छे दर्जी की खोज शुरू हो गई. संयोग से उस गांव में एक ही दर्जी था जिसकी गांव में ही एक छोटी सी दुकान थी. दर्जी को राजा के पास लाया गया. राजा के कहा- मेरे कुर्ते का बटन सि‍ल सकते हो? दर्जी के कहा- जी हुजूर, ये कौन सा मुश्किल काम है? दर्जी ने तुरंत अपने थैले से धागा निकाला और राजा के कुर्ते का बटन लगा दिया.

राजा ने खुश होकर दर्जी से कहा- बताओ, तुम्हें इस काम के कितने पैसे दूं? दर्जी ने कहा- महाराज ये तो बहुत ही छोटा सा काम था, इसके मैं आपसे पैसे नहीं ले सकता. राजा ने फिर कहा- नहीं तुम मांगो तो सही, हम तुम्हें इस काम की कीमत जरूर देंगे. दर्जी ने सोचा कि बटन तो राजा के पास था ही, मैंने तो बस धागा लगाया है, मैं राजा से इस काम के 2 रुपए मांग लेता हूं. फिर से दर्जी ने मन में सोचा कि मैं राजा से अगर 2 रुपए मांगूंगा तो राजा सोचेगा कि इतने से काम के इतने सारे पैसे मांग रहा है. कहीं राजा ये न सोचे कि बटन लगाने के मुझसे 2 रुपए ले रहा है तो गांव वालों से कितना लेता होगा ये दर्जी? यही सोचकर दर्जी ने कहा- महाराज आप अपनी स्वेच्छा से कुछ भी दे दें. अब राजा को भी अपनी हैसियत के हिसाब से देना था ताकि समाज में उसका रुतबा छोटा न हो जाए. यही सोचकर राजा ने दर्जी को 2 गांव देने का आदेश दे दिया. अब दर्जी मन ही मन में सोचने लगा कि कहां तो मैं 2 रुपए मांगने की सोच रहा था और कहां तो राजा ने 2 गांवों का मालिक मुझे बना दिया.

दो बाल्टी

लेखक - अजय कुमार कोशले

एक गांव था. गांव में एक किसान रहता था. उस गांव में कुछ वर्षों से अकाल पड़ा था. गांव के पानी की बहुत समस्या थी. सभी लोग दूर नदी से पानी लेने जाते थे. एक किसान के पास दो बल्टियां थीं. एक बाल्टी अच्छी स्थिति में थी तथा दूसरी बाल्टी में छेद था. किसान रोज़ दोनो बाल्टियों में नदी से पानी लाता था. छेद वाली बाल्टी में घर पहुंचने तक आधा ही पानी शेष रह जाता था और दूसरी बाल्टी में पूरा पानी भरा रहता था.

बिना छेद वाली बाल्टी को स्वयं पर घमंड हो गया. उसने दूसरी बाल्टी से कहा – मैं अपने अंदर पूरा पानी भर कर लाती हूं. तुम्हारे अंदर तो आधा ही पानी रहता है. मैं बहुत अच्छी हूं तो किसान का पूरा सहयोग करती हूं. यह सुनकर दूसरी बाल्टी. उदास हो गई. उसने किसान से पूछा – मुझमें छेद है फिर भी आप मुझमें पानी क्यों लाते हो. किसान मुस्कुराया और बोला – इस बार जब मैं नदी से पानी भर कर लाऊं तो घ्यान से देखना और बताना कि आपको क्या दि‍खाई दिया. दूसरे दिन जब किसान पानी लेकर आया तो छेद वाली बल्टी ने देखा कि उसकी ओर भूमि गीली थी तथा उस पर हरी-हरी घास भी थी जबकि दूसरी ओर भूमि सूखी और बिना घास के थी. तब किसान ने उससे कहा कि आपके छेद के कारण की भूमि की सिंचाई हो रही है और अकाल में भी घास निकल सकी है. इसीलिये मैं आपमें पानी लेकर आता हूं.

सीख – हमे कभी भी किसी वस्तु को बेकार समझ कर नहीं फेंकना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इसका लाभ कुछ समय के अंतराल में पता लगता है.

साँप और चूहा

लेखक - द्रोण साहू

बहुत पुरानी बात है. उस समय नाग भी अन्य साँपों की तरह ही था. वह चूहों को खाता भी नहीं था. सब लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते थे. एक दिन की बात है, साँप और एक चूहा आस-पास ही खाना ढूँढ़ रहे थे. साँप बहुत लंबा था इसलिए उसका सिर एक जगह रहता तो उसकी पूँछ कहीं दूसरी जगह होती थी. चूहा खाना ढूँढते-ढूँढते अनजाने में ही खाना समझकर साँप की पूँछ को पकड़ लेता था. साँप ने एक बार तो कुछ नहीं कहा, दूसरी बार भी चुप रहा, पर तीसरी बार उससे रहा नहीं गया. उसने चूहे से कहा, दोस्त, यह कोई खाने की चीज नहीं है, बल्कि मेरी पूँछ है. बिल्कुल वैसी ही जैसी तुम्हारी है. चूहे ने भी बड़े भोलेपन से जवाब दिया, सॉरी दोस्त, अनजाने में हो गया. क्योंकि तुम बहुत लंबे हो तो तुम्हारी पूँछ कहीं रहती है और तुम्हारा सिर कहीं और रहता है. तो मुझे लगता है कि तुम दूर निकल चुके हो और मैं तुम्हारी पूँछ को खाने की कोई चीज़ समझकर पकड़ लेता हूँ.

दोनों फिर से खाना ढूँढने लगे, पर चूहे ने फिर से वही हरकत दुबारा की. एक बार दो बार नहीं बल्कि बार-बार. अब साँप का गुस्सा बढ़ गया. वह सीधे चूहे की और झपटा. चूहा भागने लगा. भागते-भागते वह एक बिल में घुस गया. नाग भी उसके पीछे-पीछे बिल में घुस गया. चूहा बिल के दूसरे सिरे से निकला. साँप भी उसके पीछे-पीछे निकल आया. चूहा आगे आगे और साँप उसके पीछे-पीछे.

चूहा भागते-भागते एक किसान के पास गया. उसने किसान से विनती की - किसान भैया, मुझे बचा लो. साँप मुझे मारना चाहता है. किसान ने कहा - चूहा भाई, मैं तो एक किसान हूँ. धान उगाता हूँ. मैं साँप को मार नहीं सकता. तुम बाल काटने वाले के पास जाओ. चूहा बाल काटने वाले के पास दौड़ा. उसने बाल काटने वाले से भी यही विनती की. बाल काटने वाले ने कहा, दोस्त, मैं तो बस बाल काटने वाला हूँ. मैं तुम्हें साँप से नहीं बचा सकता. तुम लोहे के औजार बनाने वाले के पास जाओ. अब चूहा औजार बनाने वाले के पास भागा. उसके पीछे-पीछे साँप भी दौड़ा चला आ रहा था. लोहे के औजार बनाने वाला भट्टी में लोहे को गर्म करके उस पर अपना भारी-भरकम हथौड़ा चला रहा था. औजार बनाने वाले का हथौड़ा थोड़ा ऊपर उठा ही था कि चूहा उसके बीच में से कूदकर उस पार निकल गया. साँप भी उसके पीछे-पीछे को कूद गया, पर साँप के ठीक सिर के पास औजार बनाने वाले का भारी-भरकम हथौड़ा आ गिरा – धम्म. साँप वहीं बेहोश हो गया. जब साँप को होश आया तो वहाँ न तो कोई चूहा था और न ही लोहे के औजार बनाने वाला. सभी डरकर भाग गए थे. साँप ने अपने सिर को छुआ तो उसे महसूस हुआ कि उसके सिर के आगे वाला भाग चपटा हो चुका था,तथा वह अन्य साँपों से अलग दिख रहा था. उसी दिन से चूहे और साँप में दुश्मनी हो गई तथा नाग का फन चपटा हो गया.

Visitor No. : 6700898
Site Developed and Hosted by Alok Shukla