बालगीत
सरस्वती वंदना
लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'
पद्मासिनी वरदान दो
जड़ता मिटा कर ज्ञान दो
नव प्रेरणा नव प्राण दो
पद्मासिनी वरदान दो
हे ज्योतिका, स्वरसाधिका
तुम ही हरो तम उर्मिका
रौशन जगत वसुधान दो
जड़ता मिटा कर ज्ञान दो
हे मान देवी, हंसिका
किशलय नवल दो पल्लिका
जड़ चेतना प्रतान दो
जड़ता मिटा कर ज्ञान दो
ये स्नेहयम संसार हो
उत्तम मनुज व्यवहार हो
पूजन दिशा ईशान दो
जड़ता मिटा कर ज्ञान दो
माँ ईषिका, तुम तारिका
तुम गीतिका, तुम कंजिका
हर होंठ पर मुस्कान दो
जड़ता मिटा कर ज्ञान दो
गिनती
लेखकी - महेन्द्र देवांगन 'माटी'
एक चिड़िया आती है, चींव चींव गीत सुनाती है ।
दो दिल्ली की बिल्ली हैं, दोनों जाती दिल्ली हैं ।
तीन चूहे राजा हैं, रोज बजाते बाजा हैं ।
चार कोयल आती हैं, मीठे गीत सुनाती हैं ।
पाँच बन्दर बड़े शैतान, मारे थप्पड़ खींचे कान ।
छः तितली की छटा निराली, उड़ती हैं वह डाली डाली ।
सात शेर जब मारे दहाड़, काँपे जंगल हिले पहाड़ ।
आठ हाथी जंगल से आये, गन्ने पत्ती खूब चबाये ।
नौ मयूर जब नाच दिखाये, सब बच्चे तब ताली बजाये ।
दस तोते जब मुँह को खोले, भारत माता की जय जय बोले ।
जहाँ सोच, वहाँ शौचालय
लेखक - द्रोण साहू
मेंढक ने कहा,
ओ मछली रानी
कहते लोग
तुम्हें बड़ी सयानी
पर तुम्हारी हरकत
बड़ी बचकानी
जहाँ पर रहती हो
वहीं शौच करती हो
तालाब का पानी
करती हो गंदा
रोज का तुम्हारा
यही है धंधा
फैल रहीं इससे
कई बीमारी
खत्मव हो जाएगी
दुनिया हमारी
मछली राजा को
यह बात समझाओ
और अपने घर पर
शौचालय बनवाओ
दीप जले
लेखक - द्रोणकुमार सार्वा
अंधकार चीरकर
मन की पीड़ा दूरकर
उल्लसित मन
सुमन तरंग
ज्योतिर्मय जग में
भीनी सुगन्ध
दीप जले, दीप जले !
अलसाए खेतों में
मेहनत का प्रतिफल हो
बंगले की आभा से
झोपड़िया रोशन हो
मानवता सजोर रहे
हिन्दू न मुस्लिम हो
माटी का नन्हा लोंदा
हाथों में साथ बढे
दीप जले, दीप जले !
घर की खिचडिया सही
भले न पकवान बने
तरसे न बचपन फिर
भूख न शैतान बने
नन्ही सी बिटिया की
आभा न आंच आये
खुशीयो को अपनी
दूजा न रो पाए
दीप जले, दीप जले !
बम और लरियो के
इतनी न धमाके हो
उजड़े न घर बार कोई
अपनो की यादें हो
सरहद सुकून मिले
अमन की बिसाते हो
हाथ बढ़े, गले मिले
दीप जले, दीप जले !
पंख पसारे मोर
लेखिका - श्रीमती अंजूलता भास्कर
नील गगन में काले बादल '
रिमझिम जल बरसाते बादल '
तड़-तड़ कर बिजली है चमके '
कितना अच्छा नाचें मोर ''
रंग बिरंगे पर फैलाकर '
सब मित्रों को पास बुलाकर ''
झूम -झूम कर नाचें मोर ''
देख रहे है चुन्नी मुन्नी '
मचा मचा कर कितना शोर ''
सब्जी गीत
लेखिका - श्वेता तिवारी
करेले की हो रही सगाई
शकरकंद नाचन को आई
लौकी ने मंडप को सजाया
टमाटर ने मेंहदी लगाई
भिंडी ने भोजन पकाया
फूलगोभी ने थाली सजाई
आलू ने आँसू बहाये
कद्दू ने कर दी बिदाई
शकरकंद नाचन को आई
दोस्ताना
लेखक – अजय साहू
दोस्ती तो यारा करना ज़रूरी है
दोस्ती के बिना ये ज़िंदगी अधूरी है
दोस्त हों अच्छे तो दोस्ती का मज़ा है
दोस्ती न करो तो बड़ी सज़ा है
दोस्ती में दोस्त के लिये सब कुछ करना चाहिए
दोस्ती करने के लिए खुशी-खुशी जाइये
दोस्ती का शब्द सचमुच हीरा है
सबसे अच्छा दुनिया में बस दोस्त मेरा है
एक बूंद
लेखक - नेमीचंद साहू
आशा की किरण, दिल के अरमान
एक बूंद प्यासे के लिए अमृत समान
निहारती पलकें, सिसकते बचपन
दर्द से कराहते प्यार का अपर्ण
बीज का समर्पण, मिट्टी का बलिदान
जीवन की बूंद में प्राण के समान
चलती नैय्या, है मझधार
बूंद भर आशा ले जाये पार
किरणों का उजियारा, दीप का प्रकाश
बूंद का सहारा, जीवन की आस
हँसने दीजिए
लेखक - अरविंद वैष्णव
फ़ूल सी बेटियां हैं, इन्हें खिलने दीजिए
पर्यावरण को कभी भी न उजड़ने दीजिए
माना कि गहरा अंधेरा छाता है कभी
दीप उम्मीदों का फिर भी जलने दीजिए
मुस्कुराना भूल से गये है हम सभी
होठो पे हँसी का सुरुर आने तो दीजिए
खुशियां सदा इनके दामन में गिरें
अरविंद, बेटियों को खिलकर हंसने तो दीजिए
मध्याह्न भोजन गीत
लेखक - विकास कुमार हरिहारनो
भोजन को पहले नमन करें,
तब ग्रास हृदय से ग्रहण करें
भोजन तो सबकी जननी है,
वह पालन दे, वह पोषण दे
मन को निर्मल रख सेवन कर,
सात्विकता का हो पूर्ण असर
मन काया को संतृप्त करे,
हे जननि हमेशा हित ही करें
तन सुंदर सुदृढ़ बने मेरा,
मन ऊर्जा का संचार करें।