चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें अनेक कहानियां मिली हैं जिनमें से कुछ को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं.

भगवान का दूत

लेखक - विश्वविजय मरकाम

जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वह बहुत चालाक थी. एक दिन उसके मन में विचार आया कि वह शहर जाए. जब वह शहर में पहुंची तो बहुत से कुत्ते उसके पीछे पड़ गए. वह कुत्तों को देखकर वहां से भागने लगी. भागते - भागते वह एक दीवार के पास पहुंची. उसने दीवाल को पार करने के लिए छलांग लगाई तो उस पार एक घड़े में जा गिरी. उस घड़े में नीला रंग भरा था. वह लोमड़ी भी नीले रंग की हो गई. तब उसके दिमाग में विचार आया कि वह जंगल में जाकर सभी जानवरों को बुध्दू बनाए. वह सभी जानवरों को कहने लगी कि मैं भगवान का दूत हूं और मुझे तुम्हारी रक्षा करने के लिए भगवान ने भेजा है. आज से तुम सब मेरा हुक्म मानना. जाओ मेरा मनपसंद खाना लाओ. तभी अन्यक लोमड़ियों ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. उनकी आवाज को सुनकर नीली लोमड़ी अपने आप को रोक नहीं पायी और वह भी चिल्लाने लगी. तभी उसे शेर ने उसे देख लिया और मार डाला.

शिक्षा - चलाकी हर वक्त काम नहीं आती।

शिक्षा

लेखक - भगवान सिंह

एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. उसके दो बेटे थे. दोनों मूर्ख थे और बहुत ही शरारती भी. उनकी मां उनको कहती थी कि तुम दोनों शेर राजा के यहां काम मांग लेना. सुबह उन दोनों की मां उन्हें लेकर शेर राजा के यहां गई. उन दोनों की मां ने शेर से कहा की कि मेरे दोनों बेटों को अपने घर में काम पर रख लीजिए. शेर राजा ने मना कर दिया. उन्होंने कहा कि मुझे अनपढ़ और मूर्ख सेवक की ज़रूरत नहीं. अगर मेरी सेवा करना है तो विव्दान सेवक बनकर दिखाओ.

लोमड़ी और उसके दोनों बच्चे लौट गए. फिर रोज़ लोमड़ी अपने बच्चों को कहती कि जाओ और कहीं से शिक्षा पाकर आओ, पर उसके दोनो बेटे नहीं मानते थे. एक दिन शाम के समय उनकी मां शहर के पास से गुज़र रही थी. अचानक उसने देखा कि एक बूढ़ा कुत्ता कुछ पालतू जानवरों को शिक्षा के बारे में कुछ बता रहा था. उस कुत्ते का रंग नीला था. लोमड़ी मन ही मन सोचने लगी कि यही मेरे बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं. फिर लोमड़ी अपने दोनों बच्चों को लेकर शहर की ओर चल दी. आधे रास्ते में उन्हें कुछ आदमी दिखे. आदमियों को देखकर वे भागने लगे. वे भागते - भागते किसी के बाड़े में कूद पड़े. उस बाड़े के अंदर एक बड़ा सा टब था. तीनों उस टब में गिर पड़े. वे उससे निकले तो उन्होंने देखा कि वह नीले रंग के हो चुके थे. फिर वह बूढ़े कुत्ते के पास पहुंचे. लोमड़ी ने कुत्ते से कहा कि मेरे दोनों बच्चों को अपना शिष्य बना लीजिए. कुत्ता भला था इसलिए उसने लोमड़ी के बच्चों को अपना शिष्य बना लिया. फिर लोमड़ी चली गई.

कुछ दिनों के बाद लोमड़ी के दोनों बच्चे शिक्षा ग्रहण करके जंगल में वापस पहुंचे. उसके बाद दोनों शेर राजा के यहां फिर से गए. इस बार शेर राजा ने उन दोनों को अपना मंत्री बना ही लिया.

सीख - शिक्षा के बिना किसी को कुछ नहीं मिल सकता.

दयालू लोमड़ी

लेखिका - कविता कोरी

एक छोटा सा गांव था जिसमें बहुत ही भले लोग रहते थे. परंतु जिस प्रकार गुलाब में कांटा होता है उसी प्रकार गांव के भले लोगो के बीच कुछ दुष्ट स्वभाव के लोग भी थे. उनमें से एक का नाम था भोला. भोला अपने नाम के उलट एकदम क्रोधी, चालाक एवं कपटी स्वभाव का था. वह अपने माता पिता की देखभाल करना तो दूर उन्हें अनेकों कष्ट भी दिया करता था. एक दिन उसने क्रोधवश अपने माता-पिता को भोजन नहीं दिया. माँ बाप अपने आराध्य देव का ध्यान कर चुपचाप भूखे ही सो गए. सुबह जब भोला उठा तो वह एक लोमड़ी बन गया था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे ? उसने अपने आराध्य देव से प्रार्थना की. आराध्य देव ने कहा तुम अपने माता-पिता से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते हो इसलिए तुम्हें लोमड़ी बना दिया गया है. जब तुम अपने माता-पिता की नि:स्वार्थ सेवा करोगे तो तुम्हें वापस मनुष्य बना दिया जाएगा. फिर क्या था, भोला अपने माता-पिता के आस पास रहने लगा और उनकी सेवा करने लगा. पहले-पहले तो उसके माता-पिता डरे, पर बाद में वे आश्वस्त हो गए. भोला खाना पकाता, लकड़ी लाता, गाय चराता, माता-पिता के पैर दबाता, उनके कपड़े धोता, उनमें नील भी चढ़ाता. कभी-कभी उसी पानी में नहाकर वह नीला भी हो जाता था. धीरे*धीरे उसे यह सब करने में मज़ा आने लगा. उसके हृदय में परिवर्तन को देखकर आराध्य देव ने उसे पुनः मनुष्य बना दिया. अब भोला अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रहने लगा.

कालू लोमड़

लेखक - राजेश कुमार मरावी

एक समय की बात है. एक जंगल मे कालू नाम का एक लोमड़ अपने माता पिता के साथ रहा करता था. वह जंगल में बहुत मौज मस्ती करता और खुश रहता. एक दिन कालु अपने माता पिता के साथ खाने की तलाश मे जंगल से दूर चला गया. उस रास्ते से सरकस वाले गुजर रहे थे. उनकी नजर कालू और उसके परिवार पर पड़ी. सरकस के मालिक ने अपने नोकरों से कहा - जाओ उस लोमड़ी को पकड़ लो. उससे सरकस मे काम करवाएँगे. सरकस मे काम करने वाले कालू को पकड़ने के लिये दौड़े. कालू तथा उसका परिवार अपनी जान बचाने के लिए जी जान लगाकर भागते रहे. कालू अपने परिवार से बिछड़ गया. वह भागते-भागते एक घर मे घुस गया. उस घर मे कोई नहीं था. आँगन मे एक टब मे नीले रंग का पेंट था. कालू उस पेंट मे गिर गया. उसका शरीर पूरा नीला हो गया. कालू घर के बाहर आया तो सामने सरकस वाले थे, लेकिन उन्होने कालू को पहचाना नहीं. कालू ने देखा उसका शरीर नीला हो गया है, इसलिए वे लोग पहचान नही पा रहे हैं. कालू बहुत खुश हुआ, और अपने घर की ओर चल दिया.

धूर्त भेड़िया

लेखिका - श्रीमती नंदनी राजपूत

बहुत साल पहले की बात है. एक भेड़िया भोजन की तलाश में जंगल छोड़कर शहर की ओर निकल पड़ा. शहर में कुछ कुत्ते उसके पीछे पड़ गए. कुत्तों ने उसे खूब छकाया. अपनी जान बचाने के लिए वह एक दीवार से दूसरी ओर कूद पड़ा. वह घर किसी रंगसाज़ का था. वह धड़ाम से एक नीले रंग से भरे टब में जा गिरा. सारी रात वह उसी टब में पड़ा रहा. सुबह जब वह टब से निकला तो वह पूरी तरह से भीगा हुआ था. कुत्ते क्योंकि वह वहां से लौट चुके थे, इसलिए उसने भी वापस जंगल पहुंचने में ही खैर मनाई. जब वह एक दरिया के पास पहुंचा तो अपनी परछाई देखकर हैरान रह गया, क्योंकि उसका रंग पूरा नीला हो चुका था. उसने सोचा क्यों ना इसका फायदा उठाया जाए. उसने जंगल के सभी जानवरों को इकट्ठा किया और बोला मुझे परमात्मा ने तुम्हारा राजा बना कर भेजा है. आज से तुम सबको मेरा हुक्म अपना फर्ज समझते हुए पूरा करना होगा. जिसने जरा सा भी कोताही कि उसे मैं जान से मार दूंगा. सभी जानवर घबरा गए. उसका रंग विचित्र था. न जाने परमात्मा ने उसे कितनी ताकत देकर भेजा है. उन सभी ने यहां तक कि शेर और चीते ने भी उसे अपना राजा मानने में अपनी भलाई समझी. सभी उसकी आज्ञा मानने लगे. कहते हैं 100 दिन चोर के, 1 दिन साद का. हुआ यूं कि एक दिन उस भेड़ि‍ये ने बहुत सारे भेड़ियों की आवाज़ें सुनीं. पुरानी आदतें और स्वभाव जल्दी कहां छूटते हैं. वह नीला भेड़ि‍या भी अपने आपको रोक नहीं पाया और ऊंची आवाज़ में चिल्लाने लगा. जब शेर और चीते ने उसकी आवाज सुनी तो वे झट से समझ गए कि यह परमात्मा का भेजा हुआ राजा नहीं बल्कि धूर्त भेड़िया है. शेर ने उस पर हमला कर दिया और वही उसका काम तमाम हो गया.

शिक्षा- इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी के साथ धोखा नहीं करना चाहिए क्योंकि धोखा करने वाला एक ना एक दिन ज़रूर पकड़ा जाता है.

मूर्ख लोमड़ी

लेखक - कुलदीप यादव

एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वह दुबली पतली और कमज़ोर थी. वह रोज भोजन की तलाश में यहां वहां घूमती रहती थी. एक दिन की बात है वह भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी, तभी उसे अचानक मांस की गंध आने लगी. वह उस गंध का पीछा करते करते हुए वहां तक पहुंच गई जहां मांस रखा था. उसने मांस को खाकर वही रात बितानी चाही. पास मे एक छोटा सा घर था जिसमें एक गरीब पेंटर रहता था. जब सुबह हुई तो वह लोमड़ी फिर भोजन की तलाश में चली गई. उस गरीब पेंटर के पास एक बकरी थी. लोमड़ी ने उस बकरी को खाने की सोची. जब बकरी चर रही थी. लोमड़ी ने उस पर हमला बोल दिया. लोमड़ी तो दुबली पतली और कमजोर थी इसलिए वह उस बकरी को नहीं मार पाई, पर बकरी ने अपने सींगों से उसे इतनी ज़ोर से मारा कि वह एक नीले रंग से भरे बर्तन में जा गिरी जिससे उसका शरीर पूरी तरह से भीग गया और वह नीले रंग की हो गई. वह लोमड़ी उस बकरी से बचते-बचते जंगल में वापस लौट गई. उसे देख सब जानवर डर गए. लोमड़ी ने सोचा कि सब जानवर तो मुझसे डर रहे हैं, क्यों नहीं इसका फायदा उठाया जाए. उस लोमड़ी ने कहा मैं अब से इस जंगल का की रानी हूं. जो भी मेरा कहना नहीं मानेगा मैं उसे मार दूंगी. सब जानवर डर गए. सब लोग उसकी बात मानने लगे. वहीं एक छोटा खरगोश रहता था. वह बहुत चतुर था. उसने उस लोमड़ी से कहा कि लोमड़ी रानी आपकी जगह को कोई लेना चाहता है. लोमड़ी ने गुस्से से कहा - कौन है वह ? मुझे उसके पास ले चलो. खरगोश लोमड़ी को एक तालाब के किनारे ले आया. अपनी परछाई को देखते हुए लोमड़ी ने गुस्से से तालाब में छलांग मार दी. तालाब में छलांग लगाने की वज़ह से उसके शरीर का रंग नीला रंग तालाब के पानी से धुल गया. उसका सारा भेद खुल गया.

शिक्षा- झूठ का समय ज्यादा दिन के लिए नहीं रहता.

अगले अंक के लिए कहानी लिखने के लिये चित्र नीचे दिया है -

अब आप इस चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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