अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

रिश्ता

शनिवार का दिन था. कक्षा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का कालखंड चल रहा था. बच्चे एक-एक कर कविता, कहानी, गीत, चुटकुले आदि प्रस्तुत कर रहे थे. कई बच्चे अपनी पारी की प्रतीक्षा किए बिना दौड़ - दौड़ कर आगे आते जा रहे थे. उनका उत्साह और उनकी तैयारी देखकर तिवारी सर को बहुत खुशी हो रही थी.

हो भी क्यों ना? वे बच्चों के लिए बड़ा परिश्रम करते थे. बच्चों की भाषा संबंधी योग्यता हो या उनके नैतिक मूल्यों का विकास, हर बात के लिए वे नए-नए प्रयत्न करते ही रहते थे.

कक्षा में यह सब चल रहा था. जो बच्चे मुखर थे, जिनमें किसी प्रकार का संकोच न था वे अपनी पारी आने के पहले ही सामने खड़े होकर अपनी प्रस्तुति दिए जा रहे थे.

पर इन सबसे अलग एक बच्चा और भी था, विवेक. विवेक बहुत योग्य था पर शांत रहता था. वह कभी खुद को दिखाने की कोशिश नहीं करता था. आज कक्षा में वह हर प्रस्तुति के बाद अपना हाथ उठाता था, शायद सर की दृष्टि पड़ जाए और वे उसे सामने आने की अनुमति दे दें. पर पता नहीं क्यों, ऐसा नहीं हुआ और छुट्टी का समय पास आ गया.

अचानक तिवारी सर की आवाज गूंजी, 'आज बस इतना ही. और हां, जो अभी तक सामने नहीं आ पाए वह सब खड़े हो जाएं. '

देखते-देखते पंद्रह बीस बच्चे खड़े हो गए. तिवारी जी की कड़कती हुई आवाज फिर आई, “ तो तुम लोगों ने कोई तैयारी नहीं की, चलो घुटनों के बल बैठ जाओ. ”

जिन बच्चों ने कोई तैयारी नहीं की थी उन्होंने सोचा, चलो सस्ते में छूटे. पर ऐसे बच्चे जिन्हें बहुत सी कविताएं, कहानियां, गीत आदि याद थे, पर जिन्हें आगे आने का अवसर नहीं मिल पाया, वे दुखी हो गए. विवेक भी उन्हीं में से एक था. सर का आदेश होते ही अपमान और दुख से उसका चेहरा लाल हो गया. दूसरे बच्चों की तरह वह भी कक्षा में पीछे की दीवार के किनारे घुटनों पर बैठ गया.

उसका सिर झुका हुआ था. वह सोच रहा था, मेरा अपराध क्या है, मैंने दूसरों के मौके नहीं छीने या मैंने अपनी बारी की प्रतीक्षा की या फिर चिल्ला-चिल्लाकर सर का ध्यान अपनी ओर नहीं खींचा. यह सब सोचते-सोचते उसका मन पीड़ा से भर गया. उसकी आंखें छलक पड़ीं और आंसू टप-टप नीचे गिरने लगे. उसके अगल- बगल के बच्चों ने जब यह देखा तो तुरंत चिल्लाने लगे सर विवेक रो रहा है......

संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी

जब बच्चों ने अपने शिक्षक तिवारी सर को विवेक के रोने की बात बताई तब शिक्षक ने विवेक के पास आकर उसके रोने का कारण पूछा. विवेक ने बताया कि उसने सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए तैयारी की थी पर उसे अपनी प्रस्तुति देने का मौका ही नहीं मिला और सजा भी मिल गई यह बताते हुए विवेक पुनः रो पड़ा. शिक्षक को अपनी गलती का एहसास हुआ.विवेक के अलावा कुछ और बच्चे भी थे जिन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देने का अवसर नहीं मिला था. शिक्षक ने उन सभी बच्चों को सांत्वना देते हुए कहा कि , बच्चो मुझे भी दुख है कि आप लोगों को आज के कार्यक्रम में अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर प्राप्त नहीं हो पाया और मैंने आप लोगों को दण्ड भी दे दिया.मैं ऐसी गलती पुन: नही होने दूंगा.अब आगामी शनिवार को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में आप लोगों को जरूर ही अवसर दिया जाएगा.

तिवारी सर की यह बात सुनकर विवेक को अच्छा लगा और उसने रोना बंद कर दिया. अब विवेक को अगले शनिवार की प्रतीक्षा थी उसने अपने कार्यक्रम के लिए बहुत अच्छी तरह से तैयारी की आखिर शनिवार आया और तिवारी सर ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में सबसे पहले विवेक को ही अपनी प्रस्तुति के लिए बुलाया. विवेक की प्रस्तुति सभी को बहुत पसंद आईं.

कार्यक्रम के बाद तिवारी सर ने विवेक को बुलाया और कहा कि तुम अच्छे कलाकार हो लेकिन अपने संकोची स्वभाव के कारण ही पीछे रह जाते हो तुम्हे अपनी संकोची प्रवृत्ति को बदलना चाहिए. उस दिन के बाद विवेक को अपने अंदर एक नये आत्मविश्वास का अनुभव होने लगा और उसका संकोची स्वभाव बिलकुल ही बदल गया

प्रीति सिंह व्दारा पूरी की गई कहानी

बच्चे तिवारी सर को बताते हैं कि विवेक रो रहा है तिवारी सर को भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हुआ जो विवेक इतना रो रहा है वह उससे पूछते हैं कि क्या हुआ, रो क्यों रहे हो फिर भी विवेक चुप रहता है और बिना कुछ बोले घर आ जाता है. घर पर माँ भी यही सवाल करती है क्या हुआ बेटा कुछ बोलते क्यों नहीं फिर भी वह कुछ नहीं बोलता और अपने कमरे में चला जाता है रात बीतती है रोज की तरह उस दिन भी सवेरा होता है फिर वही स्कूल जाने समय भी हो जाता है उसका स्कूल जाने का मन नहीं कर रहा था और माँ के कहने पर चला जाता है. वहाँ उसे पता चलता है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रभारी अब तिवारी सर के जगह शुक्ला सर आ गए हैं. शुक्ला सर क्लासरूम में आते हैं क्योंकि उनका पहला दिन था तो सभी बच्चों से उनका नाम पूछते है और खूब सारी बात करते हैं. बहुत जल्द ही शुक्ला सर सभी बच्चों में लोकप्रिय हो जाते हैं. वे सभी बच्ची को आगे आने के अवसर प्रदान करते हैं उन्हें प्रोत्साहित करते परन्तु विवेक अभी भी सार्वजनिक सभा में प्रस्तुति देने से घबराता, मंच पर खड़े होते ही उसके शब्द और विचार दोनों शून्य हो जाते मूँह से एक शब्द भी ना निकलता.

शुक्ला सर भी बहुत दिनों से देख रहे थे कि विवेक कुछ शांत सा रहता है कुछ पूछने पर ज्यादा नहीं बोलता फिर एक दिन शुक्ला सर पूरी क्लास के सामने उसे बुलाते हैं उसके सर पर हाथ रख रखकर बोलते हैं तुमने जो कविता लिखी है मैंनेे तुम्हारी कॉपी में देखा है उसे आज सबके सामने सुनाओ. पहले तो वह संकोच करता है फिर सर की ओर देखता है तो उसे हिम्मत मिलती है. वह अपनी कविता कुछ अटकते हुए बोलता है और पूरी क्लास तालियों की आवाज से गूंज उठती है. उस दिन के बाद तो जैसे उसके पंखों को उड़ान मिल जाती है.

डिजेन्द्र कुर्रे व्दारा पूरी की गई कहानी

कुछ बच्चों ने तिवारी सर को बताया कि सर जी विवेक रो रहा है. उसके आंसू थम नहीं रहे हैं. तिवारी सर ने विवेक से पूछा- “विवेक बेटा क्यों रो रहे हो? आप लोगों ने तैयारी नहीं कि थी उसी का दंड आप लोगो को मिल रहा है.”विवेक सिसकते हुए कहा “सर मैंने तैयारी कि है परंतु मेरी बारी नहीं आने के कारण मैं नहीं बता पाया.”तिवारी सर ने बोला “चलो अभी सुनाओ .”विवेक ने अपनी प्रस्तुति दी जो क्लास में सबसे अच्छी प्रस्तुति थी. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए विवेक को इनाम भी दिया गया . बाद में तिवारी सर को आत्मग्लानि भी महसूस हुई कि वे सभी बच्चों को अवसर दे नहीं पाये.उन्होंने तय किया कि वें आने वाले समय में सभी बच्चों को उचित अवसर देने का प्रयास अवश्य करेंगे.

तुषार देवांगन कक्षा आठवीं शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला चंगोराभाठा दक्षिण पूर्व, रायपुर व्दारा पूरी की गई कहानी

उसके बाद तिवारी सर बोले “विवेक तुम क्यों रो रहे हो?”तब विवेक रोते-रोते बोला “सर मुझे कहानी याद थी और मेरी बारी आई ही नहीं इसलिए मैं नहीं बोल पाया और आपने मुझसे बिना पूछे मुझे दंड दे दिया .”तभी सर बोले कि ठीक है तुम रोना बंद कर दो और अपनी कहानी पूरी कक्षा को सुनाओ. फिर अगले शनिवार को हम ऐसी योजना बनाएंगे कि सभी बच्चों का बारी आए और जो सबसे अच्छी कहानी सुनाएगा उसे इनाम दिया जाएगा.

अगले हफ्ते जब फिर से सभी बच्चों ने कहानी सुनाई तो विवेक की कहानी सबसे अच्छी लगी .इसलिए उसे इनाम मिला और इससे सभी बच्चों का उत्साहवर्धन हुआ और वह नई-नई कहानी लिखने को प्रेरित हुए.

कन्हैया साहू (कान्हा) व्दारा पूरी की गई कहानी

अवसर की समानता

जब अन्य बच्चों ने सर को बताया कि विवेक रो रहा है तब सर उसके पास जाकर उसे डाट कर चुप कराने की कोशिश करते है तब विवेक और जोर से रोने लगता है. तब सर को एहसास होता है कि विवेक तो बहुत योग्य व शांत रहने वाला है वह बिना किसी कारण के इस प्रकार रोने वाले बच्चों में से नहीं है. तब तिवारी सर ने उसे अपने साथ अपने कार्यालय में ले जाकर रोने व दुखी होने का कारण पूछा, विवेक ने सारी बात बताई तब सर को ये पता चला कि वे अनजाने में ही विवेक और उस जैसे कई अन्य प्रतिभाशाली बच्चों के साथ न्याय नही कर रहे है जो अपनी बारी आने का इंतजार करते है और अवसर नही मिलने पर सामने आकर अपनी बातों को कह भी नही पाते है. जिसके कारण उन बच्चों की प्रतिभा दबी रह जाती है. उस दिन तो सर ने सभी बच्चों को घर जाने के लिए छुट्टी दे दी और उन्हें अगली बार के लिए तैयारी करके आने को कह दिया.

सोमवार को जब शाला पुनः लगी तो उस दिन भी बच्चें अपने अपने कार्यक्रमो की प्रस्तुति देने के लिये उत्सुक थे. निर्धारित समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ सर ने सभी बच्चों से पूछा कि अपने तैयारी की है या नही बहुत से बच्चों ने हाथ उठा कर हाँ में जवाब दिया उनमें विवेक भी था, पर कुछ बच्चों ने कोई जवाब नही दिया और वे डर कर दूसरे बच्चों के पीछे अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करते है. अब तिवारी सर ने पहले उन बच्चों को कविता, गीत पाठ के लिए बुलाया जो पीछे छुप रहे थे और उन्हें बड़े ही प्यार से समझाया कि तुम्हे जो भी आता है उसे निसंकोच सुनाओ, कुछ बच्चों ने तो डर कर ही सही गीत कविता आदि सुनाया पर जो कुछ नही सुना पाए सर ने उन्हें अगले दिन तैयारी करके आने को कहा. विवेक ने भी आज बहुत ही बढ़िया कविता पाठ किया और उसने सबको एक कहानी भी सुनायी. विवेक की प्रस्तुति को सुनकर सभी शिक्षकों व बच्चों ने बहुत जोर से तालिया बजा कर उसका उत्साह बढ़ाया.उसके बाद से तिवारी सर व अन्य शिक्षको ने सभी बच्चों पर समान रूप से ध्यान देना शुरू कर दिया अब स्कूल के सभी बच्चें पढ़ाई के साथ साथ अन्य गतिविधियों में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लेने लगे, सबको समान अवसर मिलने पर सब खुश थे और सबकी प्रतिभा का विकास भी होने लगा.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

उस दिन बहादुर अपनी माँ के साथ घर की साफ सफाई में लगा हुआ था. दीवारों पर और छप्पर के नीचे मकड़ी ने जाले बना लिए थे.

एक लंबी छड़ी में झाड़ू बांधकर वह जाले निकालने की कोशिश कर रहा था.

अचानक उसने देखा, छप्पर और दीवार के बीच की खाली जगह में बहुत सा घास - फूस जमा हो गया है. उसने अपनी झाड़ू से घास-फूस के ढेर को दूसरी ओर आँगन में गिरा दिया. तभी अचानक उसे चिड़ियों की तेज चहचहाहट सुनाई दी. उसने खिड़की से झांक कर बाहर देखा.

घास-फूस का जो ढेर बाहर गिरा था वह दरअसल चिड़ियों का घोंसला था. चिड़ियों के दो छोटे-छोटे बच्चे भी घोंसले के साथ गिर पड़े थे. उन बच्चों के पंख तो निकल आए थे पर वे उड़ नहीं पा रहे थे. बच्चों के साथ की दोनों चिड़ियाँ बच्चों की माँ और पिताजी थे उन दोनों ने चीख - चीख कर आसमान सर पर उठा लिया था. वे दोनों मजबूर थे. अपने बच्चों को उठाकर कहीं ले जा नहीं सकते थे

यह दृश्य देखकर बहादुर का मन दुःख और पश्चाताप से भर गया.

अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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