छत्‍तीसगढ़ी बालगीत

मोर स्कूल

लेखक - अजहरुद्दीन अंसारी

जइसे अँगना म फूले गोंदाफूल संगी, मोर स्कूल ।।
जइसे चंदा कर संगे ताराघुल संगी, मोर स्कूल ।।

खाए बर खाना मिले पिंधे बर कपड़ा ।।
पढे बर पोथी संगी ज्ञान मिले बगरा ।।

कतेक सुघर लागे रेडीयो कर धुन संगी, मोर स्कूल ।।
जइसे अँगना म फूले गोंदाफूल संगी, मोर स्कूल ।।

नान - नान लइका के रमथे पढ़ाई जी ।।
कागज के नाव बने कागज के हवाई जी ।।

बने कागज के आनी-बानी फूल संगी, मोर स्कूल ।।
जइसे अँगना म फूले गोंदाफूल संगी, मोर स्कूल ।।

महूआ के रुख तरी मोर स्कूल गा ।।
गुरुजी डार हवें, लइका हें फूल गा ।।

गाँव गवटिया बनाइन मिल जुइल संगी, मोर स्कूल ।।
जइसे अँगना म फूले गोंदाफूल संगी, मोर स्कूल ।।

जइसे चंदा कर संगे ताराघुल संगी, मोर स्कूल ।।

स्कूल आ पढ़े बर

लेखक - संतोष कुमार कर्ष

सोनू तै स्कूल काबर नइ आस,
स्कूल म आ के पढ़ ले।
अपन जिंदगी ल गढ़ ले,
सोनू तै स्कूल आना जल्दी।

अनार के दाना हे गोल-गोल,
आमा ल खा के मीठा बोल।
इमली के स्वाद हे खट्टा।
ईख के स्वाद हे मीठा।
सोनू तै स्कूल आना जल्दी......

उल्लू की आंखी हे गोल गोल,
ऊन के हावय गोला।
ऋषि के नाम हे भोला,
सोनू तै स्कूल आना जल्दी.....

एकतारा ला तेहर बजा ले,
ऐनक पहन के हीरो।
नई पढ़बे त बन जाते जीरो,
अऊ कोनो कति तै मत जा।
स्कूल कति तै जल्दी आ,
सोनू तै स्कूल आना जल्दी......

ओखली म कुटथे हल्दी,
औरत ल कहिथे माता।
अंगूर खा के मीठे बोल,
अ: करके किताब खोल।
सोनू तै स्कूल आना जल्दी....

जल्दी जल्दी जल्दी।

Visitor No. : 6717082
Site Developed and Hosted by Alok Shukla