कहानी

Lazy कौआ और चालक Fox

लेखक – अजय कुमार कोशले

एक banyan के पेड़ पर एक आलसी crow रहता था. वह इतना lazy था कि जब उसके सारे friends भोजन की तलाश में निकल पड़ते थे तब भी वह crow पेड़ पर सोया रहता था. जब sunrise होता था तभी वह food की तलाश में उड़ता था. Today भी उसने ऐसा ही किया. कुछ देर fly करने के बाद वह थक कर एक house के पास बैठ गया. इस house में एक old woman रहती थी. वह बड़ा बना रही थी. बड़ा देखकर कौए का मन ललचा गया. कौआ बुढ़ि‍या का ध्या न हटने की प्रतीक्षा करने लगा. Suddenly कौए की नज़र एक दूसरे कौए पर पड़ी जो एक pole पर बंधा हुआ था. बुढ़ि‍या ने कौए से कहा – ‘‘भाग जाओ नही तो तुम्हे भी बांध दूंगी.’’ कौआ डर कर घर के back में चल गया. वहां से भी उसे बड़ा दिखाई दे रहा था.

कुछ देर में बुढ़ि‍या व्य स्तग हो गई. उसका ध्याकन हट गया. मोका पाकर कौआ बड़ा लेकर उड़ गया और एक पेड़ पर जाकर बैठ गया. तभी बड़े की smell पाकर एक fox वहां आ गया. लोमड़ी ने देखा कि कौआ बड़े को पकड़ कर बैठा है. लोमड़ी को एक plan सूझा. वह कौऐ से बोला – ‘‘कौआ भाई मैने सुना है आप बहुत मीठा गाते हो. जंगल मे सभी आपकी तारीफ करते हैं. एक बार sing करके मुझे कोई song सुना दो. कौआ लोमड़ी के झांसे में आ गया. उसने गाना शुरू कर दिया – कांव... कांव... कांव.... बड़ा उसके मुंह से गिर गया. लोमड़ी बड़ा खाकर happy हो गया और कौआ hungry ही रह गया. Moral of the story – आलस मत करो और किसी के बहकावे में मत आओ.

Word Meaning – Lazy – आलसी, banyan - बरगद, crow - कौआ, friend – मित्र, sunrise- सूर्योदय, today - आज, fly – उड़ना, house – घर, old woman – बूढ़ी महिला, pole - खंबा, suddenly - अचानक, back – पीछे, smell - महक, fox - लोमड़ी, plan - योजना, sing – गाओ, गाना, song - गाना, happy – खुश, hungry – भूखा.

दस का दम

लेखक - दिलकेश मधुकर

एक राजा अपनी प्रजा से उनकी फसल का अधिकांश हिस्सा अपने राजसी गोदाम में जमा कर लेता था. कई साल की अच्छी फसल के बाद अचानक एक साल अकाल पड़ गया. लोग राजा से चावल मांगने गए. राजा ने चावल देने से इंकार कर दिया.

एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों को दावत पर बुलया. दावत के लिए गोदाम से 2 बोरी चावल हाथी पर लादकर राजमहल लाए जा रहे थे. रास्ते में आशा नाम की एक लड़की ने बोरे के एक छेद में से गिर रहे चावल को अपनी चुनरी में इकट्ठा कर लिया. राजा के महल के दरवाजे पर खड़ा सिपाही उसे देखकर चिल्लाया - 'रुक जाओ! तुम चावल चुरा कर कहां ले जा रही हो?' आशा बोली- 'मैं चोरी नहीं कर रही हूं. यह चावल तो एक बोरे में से गिर रहा था. मैं उसे राजा को लौटाने आई हूं.'

राजा ने उसको पास बुलाकर पूरी बात सुनी और कहा- 'मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं. तुम जो मांगोगी, तुम्हें मिलेगा.' आशा बोली- 'मुझे चावल के 10 दाने दीजिए.' राजा बोला- 'सिर्फ 10 दाने! मैं तुम्हें कोई बड़ा इनाम देना चाहता हूं.'

आशा बोली- 'तो ठीक है, आज आप मुझे चावल के 10 दाने दें. फिर आप 10 दिन तक हर रोज इसके 10 गुना दाने देना. राजा ने कहा- 'ठीक है, मिल जाएगा.'

पहले दिन 10 दाने, दूसरे दिन 100, तीसरे दिन 1000, चौथे दिन 10000 दाने दिए गए. ऐसे करते-करते नवें दिन एक अरब दाने हो गए. इससे दो गोदामों का सारा चावल खाली हो गया. राजा के पास अब देने को और चावल बचा ही नहीं था. राजा ने हताश होकर आशा से माफी मांगी और कहा – ‘‘मैं अपना वचन पूरा नहीं कर सकता. अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है.

आशा बोली - 'मैं इसे सभी भूखे लोगों में बांट दूंगी और आपको भी आपकी जरूरत के अनुसार एक बोरा चावल दूंगी. राजा समझ गया कि हमें स्वार्थी और लालची नहीं होना चाहिए.

जैसे को तैसा

लेखिका - कविता कोरी

लाखासर गांव में एक मजदूर टेकराम अपनी पत्नी फूलमती के साथ रहता था. वह बहुत सीधा-सादा और भला आदमी था. फूलमती भी उसी की तरह भोली-भाली थी. दोनों पति-पत्नी घर आए मेहमानों की खूब खातिरादारी करते थे. वे चाहते थे कि मेहमान आएं, मगर एक दो दिन रुककर वापस चले जाएं. मेहमान अगर ज्यादा दिन रुक जाते थे तो गरीब होने के कारण उन्हें परेशानी उठानी पड़ती थी.

एक बार टेकराम का एक दूर का रिश्तेदार अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ दशहरा मनाने उनके यहां आया. टेकराम और फूलमती बहुत खुश हुए. दोनों ने उन लोगों की अच्छी आवभगत की. दशहरे के बाद उन लोगों को वापस लौट जाना था, लेकिन यहां की खातिरदारी देखकर उन लोगों ने दीवाली तक रुकने का मन बना लिया. अब तो टेकराम और फूलमती सोच में पड़ गए, क्योंकि मेहमान के रूकने से उनके आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी. एक सप्ताह के बाद भी जब उन लोगों ने लौटने का नाम नहीं लिया तो टेकराम ने एक उपाय सोचा.

अगले दिन खेत जाते समय मजदूर टेकराम ने अपने अपने रिश्तेदार को एक कुदाल और टोकरी पकड़ाते हुए कहा, ”भाई साहब, आज हमारे मालिक के यहाँ मजदूरों की कमी हो गई है. जरा आप मेरे साथ खेत पर चलिए. मैं मिट्टी काट काटकर दूंगा और आप उसे खेत से दूर कोने पर डालते जाइयेगा.' यह सुनकर टेकराम का रिश्तेदार थोड़ा सकपकाया. चाहकर भी वह इनकार नहीं कर पाया. उसे टेकराम के साथ जाना पड़ा. मिट्टी ढ़ो-ढ़ो कर कुछ ही देर में रिश्तेदार का अंग-अंग दुखने लगा. मारे भूख के पेट में चूहे कूदने लगे. रो धोकर उसे शाम तक मिट्टी उठानी ही पड़ी. उसने फैसला कर लिया कि अब वह यहां एक पल भी नहीं रूकेगा. उसने अपनी पत्नी को वापस चलने की तैयारी करने को कहा तो वह बोली, ‘‘अभी क्या जल्दी है. दीवाली तक रुको ना, कितनी मेहमान नवाजी हो रही है, हमारी यहां.’’ उसने मुंह बिगाड़कर कहा, ‘‘मुझे नहीं रुकना यहां, तुम्हें रुकना है तो दीवाली तक रुको. मैं तो कल सुबह ही यहां से चला जाऊंगा.“ सुबह हुई तो रिश्तेदार बिना कुछ खाए पिए ही वहां से चल दिया.

रिश्तेदार की पत्नी बच्चों के साथ अभी भी जमी हुई थी. अगले दिन फूलमती झूठ-मूठ कराहती हुई बोली, ‘‘भाभी! मुझे आज बुखार चढ़ आया है. मैं आज कोई काम न कर सकूंगी, खाना भी नहीं बना सकूंगी.’’ रिश्तेदार की पत्नी बोली, ‘‘कोई बात नहीं, तुम आराम करो. मैं खाना बना लेती हूं.’’ यह कहकर वह उठी और रसोई में जाने लगी. ‘‘रूको भाभी,’’ फूलमती ने उसे रोकते हुए कहा. ‘‘खाना बाद में बनाना पहले घर व्दार की झाड़ू से सफाई कर लो, कुछ गंदे कपड़े पड़े हैं, उन्हें भी धो डालना. चालीस किलो गेहूं भी चक्की में पीसना है.’’ रिश्तेदार की पत्नी काम में जुट गई. काम निपटाते निपटाते शाम हो गई. इस बीच वह भूखी प्यासी ही रही. भूख के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था. किसी तरह रोते झींकते उसने सारा काम पूरा किया. उसे फूलमती का यह व्यवहार बेहद अखरा. उसने समझ लिया कि अब यहां से जाने में ही भलाई है. अगली सुबह वह बच्चों के साथ जाने लगी तो फूलमती बोली, ‘‘भाभी! मेरी तबीयत खराब है अभी दो चार दिन और रूक जाती तो अच्छा रहता.’’ नहीं, अब मैं यहां नहीं रूकूंगी. मेरा घर जाना बहुत जरूरी है.’’ यह कहकर वह बच्चों के साथ चल दी. मजदूर टेकराम और उसकी पत्नी फूलमती ने चैन की सांस ली.

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