कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको रामेश्वरी चंद्राकर जी की लिखी अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी. पिछले अंक में दी गई अधूरी कहानी नीचे दी गई है.
एक लड़की थी. उसका पढ़ाई में बहुत मन लगता था पर उसके पापा उसे काम पर भेजते थे. जब वो बोलती थी की मुझे स्कूल जाना है तो उसके पाप कहते थे कि स्कूल नहीं काम पर जाओ. जब उस लड़की ने अपने पापा की बात नहीं मानी और पढ़ने के लिये स्कूपल चली गई तो उसके पापा उस लड़की के स्कूल गये और उसकी सहेलियों से कहने लगे की तुम लोगों ने ही इसे बिगाड़ा है. इसके बाद उसके पापा ने उसे स्कूल नहीं जाने दिया बल्कि किसी के घर कम पर भेज दिया. एक दिन उस लड़की की तबीयत ख़राब हो गयी और वह काम पर नहीं गयी. उसके पापा ने उससे पूछा की तुम काम पर क्यों नहीं गयी ? उस लड़की ने कहा कि मेरी तबियत ख़राब है इसीलिए मैं काम पर नहीं गयी. यह सुनकर उस लड़की के पापा उसे बहुत मारा.
यह कहानी हमें अनेक लोगों ने पूरी करके भेजी है. उनमें से 2 कहानियां नीचे प्रकाशित की जा रही हैं.
श्रीमती प्रतिभा पांडेय व्दारा पूरी की गई कहानी
मार खाने के बाद लड़की बहुत रोयी और रोते रोते लेट गयी तभी उसे उसके स्कूल शा प्रा शाला डोंगरीपारा में पढ़ाने वाली मैडम श्रीमती प्रतिभा पांडेय व्दारा रचित छत्तीसगढ़ी गीत याद आ गया जिसमे 'सरकारी स्कूलों' में मिलने वाले लाभो को बताया गया था. और वो गाने लगी -
फीस के चिंता झंन कर पापा, निशुल्क शिक्षा मिलही,
खाना उँहा मिलही और किताब भी ह मिलही,
साईकिल भी ह मिलही, औ ड्रेस भी ह मिलही
कइसे समझाओ पापा तोला..... सरकारी स्कूल भेज दे मोला...
काम ल सिखाही उँहा ,सिलाई सिखाही
समर क्लास लगा के मोला गुणवंतीन बनाही
कैसे समझाऊँ पापा तोला,,, सरकारी स्कूल भेज दे मोल
पढ़े भेज दे मोल............ स्कूल भेज दे मोला........
रोते रोते वह लड़की सो गयी
इधर उसके पापा उसके इस गीत को सुन रहे थे. उन्होंने मन में विचार किया कि बात तो सही है. जब इतनी सारी सुविधाएं सरकारी स्कूलों में मिल रही हैं, और बच्चो के समग्र विकास पर ध्यान दिया जा रहा है, समर क्लास लगा के नयी नयी चीज़े बनाना और नई नई बाते सिखायी जा रही हैं, फिर मैं क्यों भूल कर रहा हूँ. वे अपनी बेटी के पास गए और उसे गोद में उठा कर गीत के रुप में बोले -
सरकारी स्कूल के फायदा, मैं ह नही तो जानेव,
तोला स्कूल नही भेज के ,भूल तो कर डालेव,
अपन भूल ल मैं ह सुधारहु , मैं ह पढ़हाहू तोला,
मैं ह पढ़हाहू बेटी तोला, सरकारी स्कूल भेजहु तोला।
अपने पापा की बाते सुनकर लड़की खुश हो गयी और रोज ख़ुशी ख़ुशी स्कूल जाने लगी.
शिक्षा -सरकारी स्कूलो में मिलने वाली सुविधाओं को आम जनता तक पहुचाना ताकि बच्चो एवं बालिकाओ को उसका लाभ मिल सके और वे पढ़ लिख सके.
श्रीमती लक्ष्मी मधुकर व्दारा पूरी की गई कहानी
उस लड़की का नाम आशा था. आशा के स्कूल नहीं आने पर शाम को मधुकर गुरूजी उनके घर आये. उन्होंने आशा की तबीयत के बारे में पूछा. आशा के पापा मनसुख को बाल शिक्षा अधिकार कानून और बाल श्रमिक अपराध के बारे में बताया. गुरूजी ने बताया कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम नहीं कराना चाहिए बल्कि उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल भेजना चाहिए. मनसुख को गुरूजी की बात समझ आ गई. उसने आशा का इलाज कराया और रोज स्कूल भेजने लगा.
कुछ समय बाद मनसुख की मुलाकात गुरूजी से हुई. तब उसने बताया कि उनकी लड़की डॉक्टर बन गई है. गुरूजी ने मनसुख को बधाई दी. तब उसने गुरूजी को धन्यवाद दिया और कहा कि आपकी ही प्रेरणा से ही मेरी बेटी डॉक्टर बनी है.
अगले अंक के लिये अधूरी कहानी हमें कविता कोरी जी ने लिखकर भेजी है जो हम नीचे दे रहे हैं –
अधूरी कहानी - मछुआरा
लेखिका - कविता कोरी
एक बड़ा जलाशय था. जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं. ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं. उस जलाशय में भी बहुत-सी मछलियां रहती थी. वह जलाशय दूर से आसानी से नजर नहीं आता था.
उस तालाब में तीन मछलियां रहती थीं. उनके स्वभाव भिन्न-भिन्नत थे. ईना नामक मछली संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी. मिना कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो. डिका का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार है. करने कराने से कुछ नहीं होता. जो किस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा. एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकड़ कर घर जा रहे थे. बहुत कम मछलियां उनके जाल में फंसी थीं, अतः उनके चेहरे उदास थे. तभी उन्हें झाडियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिखाई दिया. सबकी चोंच में मछलियां दबी थीं. उन्हो्ने अनुमान लगाया कि झाडियों के पीछे नदी से जुड़ा जलाशय है, जहां बहुत सी मछलियां पल रही हैं. मछुआरे पुलकित होकर झाडियों में से होकर जलाशय के तट पर आ निकले और ललचाई नजर से मछलियों को देखने लगे. एक मछुआरा बोला अहा! इस जलाशय में तो मछलियां भरी पड़ी हैं। आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा. यहां हमें ढेर सारी मछलियां मिलेंगी - दूसरा बोला. तीसरे ने कहा आज तो शाम घिरने वाली है. कल सुबह ही आकर यहां जाल डालेंगे. इस प्रकार मछुआरे दूसरे दिन का कार्यक्रम तय करके चले गए. तीनों मछलियों ने मछुआरे की बात सुन ली थी.
अब आप इस कहानी को पूरा करके हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दीजिये. अच्छी कहानियां हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे.