सामान्य ज्ञान

हमारा विलुप्त होता लोकपर्व भोजली

ले‍खिका - श्रीमती प्रतिभा पांडेय

अगस्त के महीने में छत्तीसगढ़ में एक प्रमुख लोकपर्व मनाया जाता है जिसका नाम है – ‘भोजली’. इसे किंजलिया, भुजरिया आदि कई नामो से भी जाना जाता है.

सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं. जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्था न में छायादार जगह में स्थापित किया जाता है. उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है. दाने पौधे बनकर बढ़ते हैं. महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्माान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं. सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीासगढ की शान हैं. खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है. किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं.

सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं. रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं. भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है. इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है.

तो चलिए सब मिलकर गाते हैं –

देवी गंगा, देवी गंगा,
लहर तुरंगा हो, लहर तुरंगा।

हमरो भोजली दाई के हवाई,
सोने सोन के अंगा।।

हाँ हो----- देवी गंगा।

सूरज का परिवार

लेखक - दीपक कुमार कंवर

दूर आकाश मे बहुत से तारों और ग्रहों के परिवार रहा करते थे. इनमें से एक परिवार था सूरज का. उसके आठ बेटे और एक बेटी थी. बेटे थे – बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति शनि अरूण, वरूण और यम. बेटी थी धरती. सभी अपने पिता की छत्रछाया मे हंसी खुशी रहते एक साथ हंसते-खेलते, घूमते-फिरते थे.

पड़ोसियों से भी उनका अच्छा संबंध था. परंतु कुछ उदण्ड धूमकेतु और पुच्छल बच्चे भी थे जो हमेशा लड़ाई झगड़ा करते रहते थे. लड़को को तो कुछ नहीं कर पाते, पर उनकी बहन धरती को हमेशा तंग करते थे. इससे सब लोग परेशान थे. धरती बहुत ज्यादा परेशान होती थी. वह रोते हुए अपने भाईयों से शिकायत करती तो उसके भाई उन्हें धमकाकर भगा देते. पर वे नहीं मानते कुछ दिनों मे मौका पाकर फिर तंग करते थे. धूमकेतु और पुच्छल की उदण्डता से परेशान होकर धरती ने पिता सूरज को सारी बात बताई. सुरज ने ढ़ांढ़स बधाते हुए कहा – ‘पुत्री तुम अपनी शक्तियों को पहचानो. अपनी रक्षा स्वंय करोगी तभी वे समझेंगे और तुमसे दूर रहेंगे. धरती ने प्रणाम करके पिता से विदा ली.

धरती ने पिता की सलाह मानते हुए अपने अंदर की हवा और पानी के ताकत को समझा. अब जब भी धूमकेतु और पुच्छल तारे तंग या मारने पीटने आते हैं तो धरती उन्हें मारकर भगा देती है. धरती अपनी ताकत व विश्वास के बल पर जीव- जन्तुओ पेड़-पौधों को भी जीवन देने लगी.

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