चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिए दिलकेश मधुकर जी का भेजा यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें 2 कहानियां प्राप्त हुई हैं जिन्हें हम प्रकाशि‍त कर रहे हैं -

बचाव की तैयारी

लेखिका - सीमा चतुर्वेदी

रानू के स्कूल में पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई गई थी. एक चित्र पर रानू की नजर ठहर गई. उसकी आंखें डबडबा आईं. शिक्षक की नजर जब रानू पर पड़ी तो वे तुरंत रानू के पास आकर प्यार से बोले – ‘‘क्या हुआ रानू बेटे इस पेंटिंग को देख कर तुम उदास क्यों हो गईं ? तुम्हारी आंखें क्यों भर आयीं ?’’ रानू बोली – ‘‘सर, मुझे मेरे गांव की याद आ गई. पिछली बरसात मे मेरा गांव बाढ़ के पानी में डूब गया था. मेरी प्यारी सी गाय गुनगुन भी उस बाढ़ में समा गई. हमारे खेती हुआ करती थी. खेत के बीच में ही हमारी झोपड़ी थी. पास में ही मेरे चाचा की भी झोपड़ी थी. पूरे परिवार ने मिलकर अपने हाथों से घरौंदा तैयार किया था. तीन दिन की लगातार बारिश से नदी-नाले भर गए और सैलाब बनकर हमारे गांव में घुस आये. सब बहुत परेशान हो गए. मेरा भाई, जो मुझ से दो साल बड़ा है गांव के ही स्कूल में पढ़ता था. उसे कुछ दिन पहले स्कूल में बताया गया था कि बाढ़ से पहले क्या क्या तैयारी कर रखनी चाहिए. सब लोग मिलकर जरूरी कागज, दवाई, खाने का सामान आदि पैक करके बचाव दल की नाव के सहारे बाहर सुरक्षित निकाल आये. गांव के कुछ लोग मचान के ऊपर चढ़कर पानी कम होने का इंतजार करते रहे. दो दिन बाद बाढ़ का पानी निकलने के बाद जब गांव वापस गए तो वहां अपने स्कूल बैग, कॉपी -किताब को सुरक्षित देखकर मैं खुश हो गई, जिसे मां ने निकलने स पहले झोपड़ी की सबसे ऊपर वाली खूंटी में लटका दिया था.’’

बाढ़

लेखक - दिलकेश मधुकर

सपना और कल्पना दोनों ही बहुत घनिष्ट मित्र थीं. दोनों पढ़ने के लिए अपने घर से दूर एक होस्टल में रहती थीं. सपना की रुचि समाज सेवा में थी. वह निर्धन तथा बेसहारा बच्चों को खुले मैदान में बैठाकर पढ़ाती थी. कल्पना एक चित्रकार थी. वह एक अमीर पिता की इकलौती बेटी थी और आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाली थी.

उन्हीं दिनों बहुत तेज़ बारिश के कारण बाढ़ के हालात पैदा हो गए. लगातार तीन दिनों तक वर्षा होती रही. बाढ़ पीड़ितों की दशा बिगड़ती जा रही थी. बहुत से गांव बाढ़ के चपेट में थे. लोग बाढ़ से बचने के लिए घरों की छतों पर चढ़ गये. बहुत लोग सुरक्षित जगह की तलाश में नाव से या पैदल अपने बच्चों को कंधे पर उठाकर ज़रुरी सामान के साथ जा रहे थे. सपना बाढ़ पीड़ितों की सहायता में लगी थी. पंद्रह दिन बाद होस्टल लौटने सपना ने कल्पना को बताया कि उसने किस प्रकार बाढ़ पीड़ितों की मदद की थी. कल्पना ने बाढ़ पीड़ित परिवारों का एक चित्र बनाया जिसे देश विदेश में बड़ी ख्याति मिली. कई वर्ष बाद कल्पना से सपना की मुलाकात हुई. सपना के साथ दो बच्चे भी थे. सपना ने उसी तस्वीर पर बने दोनों बच्चों की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये वही दोनों बाढ़ पीडि़त बच्चे हैं जिनके मां बाप बाढ़ में खो गए थे. बाद में सपना ने उन्हें गोद ले लिया था. कल्पना की आँखें विस्मय से फैली रह गयीं.

अगले अंक के लिये कहानी लिखने का चित्र हमें रवि कुमार जी ने बनाकर भेजा है. इस चित्र पर कहानी लिखकर हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दीजिये –

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