छत्‍तीसगढ़ी बालगीत

महतारी महिमा
(चौपाई छंद)

लेखक - कन्हैया साहू 'अमित'

ईश्वर तोर होय आभास,
महतारी हे जेखर पास।
बनथे बिगड़ी अपने आप,
दाई हरथे दुख संताप।।

दाई धरती मा भगवान,
देव साधना के वरदान।
दान धरम जप-तप धन धान,
दाई तोरे हे पहिचान।।

दाई ममता के अवतार,
दाई कोरा अमरित धार।
महतारी के नाँव तियाग,
दाई अँचरा सोन सुभाग।।

काबा काशी चारों धाम,
दाई देवी देवा नाम।
दाई गीता ग्रंथ कुरान,
मंत्र आरती गीत अजान।।

भाखा बोली हे अनमोल,
दाई मधुरस मिसरी घोल।
महतारी तुलसी सुर छंद,
दाई दया मया आनंद।।

दाई कागज कलम दवात,
महतारी लाँघन के भात।
मेटय सबके भूख पियास,
दाई पढ़थे सकल उदास।।

दाई थपकी लोरी गीत,
घाम जाड़ अउ गरमी सीत।
दाई मया मयारुक मीत,
दाई सुग्घर सुर संगीत।।

दाई आँखी काजर कोर,
गौरेया कस घर भर सोर।
दाई तुलसी चौरा मोर,
दाई बिन जिनगी कमजोर।।

जननी तैं जिनगी के मूल,
बिहना के तैं आरुग फूल।
माफी करथच सबके भूल,
चंदन तोर पाँव के धूल।।

महतारी बिन अमित अनाथ,
काबर छोड़े दाई साथ।
सुन्ना होगे अब संसार,
कोन पुरोही तोर दुलार।।

दाई तोरे जय जयकार,
महतारी तैं प्रान अधार।
अँधियारी मा तैं उजियार,
पायलगी हे बारंबार।।

आगे जेठ बईसाख

लेखक – रघुवंश मिश्रा

जेठ-बईसाख आगे, जेठ-बईसाख आगे न।
तरिया, डबरा, नदी, पोखर के, पानी घलो ह सुखागे ना।
जेठ-बईसाख आगे जहुरिया ..............।।

लक,लक,लक,लक भूईंयां ह तिपै, हवा चले जोर-जोर जी।
होत मझनिया ले रात तक, करै सर-सर-सर-सर शोर जी।
जेखर कहल म लईकन तोका, डोकरा-डोकरी घलो झोलगे न।
जेठ-बईसाख आगे जहुरिया ...............।।

ठंडा-ठंडा माटी के मरकी, खिर्चें सबके धियान जी।
मरे मिलतीस एखर पानी ह संगी, तव होतीस मरे बिहान जी।
पियत-पियत पानी ल सोचैं, अमरीत ह एमा समागे न।
जेठ-बईसाख आगे जहुरिया ...............।।

छाता खुम्ह री काम न देवैं, रुखवा के छांव सुहावै जी।
गरुवा-बछरू, चिरई-चुरगुन, दउड़ ओखर तीर आवैं जी।
कोनौ जीव ल चैन नई हावैं, तड़पत दिन पहागे न।
जेठ-बईसाख आगे जहुरिया ...............।।

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