बालगीत

वृक्ष हमारे परम सखा

लेखिका – श्रीमती सुनीला फेंकलिन

शुध्द करें पर्यावरण
दूर करें प्रदूषण
रोकें भूमि का क्षरण
सुन्द रता का करें वरण
मिले वृक्षों से प्राणवायु
फूले फले वन्य जीवन

पक्षी करें बसेरा इन पर
हैं यह जल-औषध के स्रोत
पर्वत का यह हैं श्रंगार
प्रकृति का अनुपम उपहार

गरमी आई

लेखक - कन्हैया साहू 'अमित'

आसमान से आग बरसती,
धरती गरम तवे सी जलती।

झड़ते पत्ते पीले होकर,
हाँफें गर्मी से अब पीपल,

गरमी से मुश्किल है जीना,
टप-टप टपके अरे, पसीना।

शरबत, कुल्फी और मलाई,
घर के अंदर ही सब खाईं।

कुदरत की यह 'अमित' कहानी,
सुख-दुख की है यही निशानी।

गर्मी की छुट्टी में

लेखक - विरेन्द्र कुमार चौधरी, प्राथमिक शाला तिलाईदार

गर्मी की छुट्टी में
पढ़ाई-लिखाई पर विराम
खाने को मिलेंगे
पके आम और काले जाम

खेलेंगे हम, सुबह-शाम
दोपहर में, करेंगे आराम
माम के घर जायेंगे
और करेंगे हम आराम

बुरा नहीं ये सौदा मित्रों

लेखिका - देवयानी शुक्ला

बुरा नहीं ये सौदा मित्रों
रोपो कोई पौधा मित्रों
आओ उस बगिया को सींचें
जिसको हमने रौंदा मित्रों

धरती है हम सब की माता
वृक्ष हमारे बंधू भ्राता
अपने इस पावन कुटुम्ब के
हम ही बने पुरोधा मित्रों

हम सब पंछी एक डाल के
हिस्से हैं इस जग विशाल के
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ के
हम ही रचें घरौंदा मित्रों

प्रवेश उत्सव

लेखिका – स्नेहलता 'स्नेह'

नन्हे नन्हे पुष्पों से सब स्कूल सज जाएंगे
बच्चों के स्वागत में हम प्रवेश उत्सव मनाएंगे
तिलक लगाकर मस्तक पर, करतल ध्वनि बजाएंगे
बच्चों के स्वागत में हम, प्रवेश उत्सव मनाएंगे

सूर्य चंद्र से प्यारे बच्चे, भोले बच्चे न्यारे बच्चे
देश का ये ही गौरव हैं, देश का भाग्य संवारे बच्चे
देवतुल्य से बच्चों को, कुसुमहार पहनाएंगे
बच्चों के स्वागत में हम, प्रवेश उत्सव मनाएंगे

शाला की रौनक हैं बच्चे, मन के सच्चे दिल के अच्छे
राष्ट्र की हैं नीव यही, करते नवल सृजन हैं बच्चे
नवनिहाल के सपनों को हम आकार दिलाएंगे
बच्चों के स्वागत में हम, प्रवेश उत्सव मनाएंगे

नयी कोपलों से ये लाल, चहकें शाला में ग्वाल बाल
नवल पुहूप सी प्रियषा बाला ये हैं स्नेह प्रतिमा विशाल
मुस्कानों के मोती बिखेरकर तुम्हें हम गले लगाएंगें
बच्चो के स्वागत में हम, प्रवेश उत्सव मनाएंगे

सूरज दादा

लेखक - द्रोण साहू

सूरज दादा,सूरज दादा,
मुझको बाहर जाने दो,
खेल कूदकर आने दो,
मेरे बाहर जाने में तुम, प्लीज़ न आने देना बाधा ।

इतनी आग नहीं बरसाओ,
थोड़ी हम पर दया दिखाओ,
बादल के पीछे छुप जाओ,
इसके बदले दूँगा तुमको, आइसक्रीम का हिस्सा आधा ।

हर कोई अब झुलस रहा है,
पत्ता-पत्ता सुलग रहा है,
अब तो प्लीज़ मान भी जाओ,
जितनी बची सभी ले जाओ, और नही है इससे ज्यादा।

खिड़की

लेखक - दिलकेश मधुकर

एक दिन मैं खिड़की पर खड़ी ।
दो घंटे से सोच में पड़ी ।।
तीन चोर भाग रहे थे ।
चार बैग पकड़ रखे थे ।।
पांच पुलिस दौड़ाकर पकड़े।
छ: छः डंडे उनको जकड़े ।।
सात बजे तक चली पिटाई ।
आठ घंटे में हुई रिहाई ।।
नौ सौ रुपए जमा कराया ।
दस दिन बाद घर पहुंचाया ।।
सोच रही क्यों मार पड़ी ।
एक दिन मैं खिड़की पर खड़ी।।

प्रतिष्ठा

लेखिका – स्नेहलता 'स्नेह', सरगुजा

मान चाहती हूं, सम्मान चाहती हूं
आज सिर्फ भ्रूण हूं, कल वर्तमान चाहती हूं
जमीं पर ही रह लूंगी मैं, नहीं आसमान चाहती हूं
अधिक नहीं केवल, नौ महीने का मकान चाहती हूं
कोख में भी लड़ना होगा मुझे, हालातो से
मिटाने वाले आघातों से
केवल जीने का अधिकार चाहती हूं

चिड़ियाघर की सैर

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

रंगबिरंगे फूलों वाला
यह देखो उद्यान है
उधर पेड़ पर मजे उड़ाता
यह बन्दर शैतान है
फैले बूटे और लताएँ
झूल रही हैं बेल
आओ बच्चों आज करें हम
चिड़ियाघर की सैर।।

देखो झुंड-झुंड में
हिरनों की मतवाली चाल
ऊंची गर्दन वाला जिराफ़
वनभैंसे का सींग कमाल
कितने पक्षी कलरव करते
कल कल का गीत सुनाते हैं
और ताल में मछली मेढक
मगरमच्छ इठलाते हैं
खुशी मनाना मजे उड़ाना
रखना सबसे मेल
आओ बच्चो आज करे हम
हम चिड़ियाघर की सैर।।

नाव चढ़ेंगे झूला झूलें
और चढ़ें मीनार में
चिप्स, कुरकुरे और समोसे
ले लेंगे बाजार में
ध्यान रहे सब कचरा फेंके
हँसते कूड़ेदान में
और बजेगी सिटी लम्बी
दौड़ेगी बच्चों की रेल
आओ बच्चो करें आज हम
चिड़ियाघर की सैर।।

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