कहानी

चार-मित्र

लेखि‍का - अणिमा उपाध्याय

एक समय की बात है एक गांव में चार मित्र रहते थे. उनमें से तीन बहुत पढ़े-लिखे व अपने विषय के विव्दान थे, परन्तु चौथा मित्र अपढ़ व अति साधारण किसान था. एक दिन चारों मित्रों ने सोचा कि क्यों न साथ-साथ जंगल की सैर की जाय. वे बड़े सवेरे ही हर्षपूर्वक अपने घरों से निकल पड़े व हंसते-खिलखिलाते बचपन की बातें करते जंगल की ओर चल पड़े.

रास्ते में उन्हें किसी मृत जानवर की अस्थियां बिखरी हुई दिखीं. कुतूहलवश वे वहीँ रुककर उसकी जांच पड़ताल करने लगे. उनमें से पहला मित्र अस्थि-विशेषज्ञ था. उसने कहा, “मुझे यह अस्थियां किसी मृत सिंह की प्रतीत होती हैं.” अपने ज्ञान को परखने का इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा, यह सोच उसने फटाफट सभी अस्थियां एकत्रित करीं व उन्हें जोड़ कर एक शेर का पिंजर बना कर खड़ा कर दिया. सभी उसकी क्षमता पर बहुत प्रसन्न हुये.

तब दूसरे मित्र ने कहा मैं इसे मांस-मज्जा पहना सकता हूँ. इस पर बाकी दोनों ने सहमति देते हुये उसे प्रोत्साहित किया, किन्तु चौथे अपढ़ मित्र ने उन्हें ऐसा करने से रोका. उसकी बात न सुनते हुए दूसरे मित्र ने उसे मांस-मज्जा पहना कर एक पूर्ण परन्तु मृत सिंह में परिवर्तित कर दिया.

अब तीसरे मित्र को अपने ज्ञान का प्रदर्शन करना था. चौथे मित्र को वे सब मूर्ख व अज्ञानी समझते थे. सो उसका मज़ाक उड़ाते हुए तीसरे मित्र ने कहा – “मित्र तुम तो कुछ कर के दिखा नहीं सकते, परन्तु मैं इसे जीवित शेर बना सकता हूँ”. चौथे मित्र ने उन्हें बिना किसी आत्म-सुरक्षा के न सिर्फ़ ऐसा करने से रोका बल्कि शेर के जीवित होते ही उसके उनपर हमला करने की चेतावनी भी दी, जिसे उन तीनों ने अनसुना कर दिया.

तब चौथे मित्र ने उनसे आग्रह किया कि शेर में प्राण फूंककर पुनः जीवित करने के पहले उसे किसी उंचे वृक्ष पर चढ़ जाने का मौका दे देवें. उसके उपरांत ही वे अपने ज्ञान की परीक्षा लेवें. उसकी बात सुन तीनों मित्र हंसते हुये बोले - तुमसे ऐसी ही बात की हमे अपेक्षा थी, जाओ और किसी उंचे वृक्ष पर चढ़ कर “हमारा करिश्मा देखो.”

भारी मन से चौथा मित्र पास के एक उंचे व मज़बूत पेड़ पर चढ़ गया. जैसे ही वह वृक्ष पर चढ़ा तीसरे मित्र ने उस शेर में प्राण फूंक दिए. जीवित होते ही वह शेर उन तीनों पर झपटा. इसके पहले कि वे अपनी कामयाबी का जश्न मना पाते वह भूखा शेर उन्हें मार कर खा गया. वृक्ष के ऊपर से चौथा मित्र अपने तीनो मित्रों की दुर्दशा पर बहुत दुखी हुआ. इतना विव्दान होने के बावज़ूद उन तीनो का अपने ज्ञान के घमंड व दिखावे की वजह से दुखद अंत हुआ.

मिष्टी

लेखिका - पुष्पा शुक्ला

एक बार की बात है, गर्मियों के दिन थे. मिष्टी अपनी मम्मी के साथ बाजार गई थी. शाम के पाँच बज रहे थे फिर भी धूप बहुत तेज थी और काफी गर्मी थी. मिष्टी गर्मी से परेशान हो गई थी. उसकी सुंदर सी फ़्रॉक पसीने से गीली हो गई थी. उसने मम्मी से जल्दी घर वापस चलने को कहा. मिष्टी रास्ते भर मम्मी से शिकायत करती रही – ‘‘यह गर्मी का मौसम मुझे बिलकुल पसंद नहीं, इससे तो अच्छा बरसात का मौसम है. बरसात में मैं कागज की नाव बनाकर उसे बहाती हूं.’’ घर आकर वह जल्दी से कमरे मे कूलर चालू करके बैठ गई. मम्मी ने मिष्टी को गर्मी से परेशान देखकर ठंडी-ठंडी आइसक्रीम खाने के लिए दी. मिष्टी आइसक्रीम पाकर खुश हो गई.

कुछ दिनों बाद बरसात शुरू हो गई. मिष्टी का स्कूल भी खुल गया. बारिश होने पर वह और उसके दोस्त कागज़ की नाव बनाते और उसे पानी में बहाते. एक दिन सुबह से ही बहुत तेज बारिश हो रही थी. मिष्टी कहीं बाहर खेलने नहीं जा सकी. उसके सारे दोस्त भी बारिश में बाहर नहीं आ सके. मिष्टी उस दिन घर पर बैठे-बैठे बोर हो गई. अगली सुबह वह स्कूल जाने के लिए वह रेनकोट पहनकर निकल तो गई लेकिन सड़कों पर चारों तरफ पानी और कीचड़ था. वह कीचड में फिसलकर गिर पड़ी. उसके कपड़े और बस्ता गीले हो गए. वह घर आकर रोने लगी. उसने कहा - "मम्मी यह बरसात का मौसम कब खत्म होगा. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मैं खेलने भी नहीं जा पाती. कितना गंदा है यह मौसम. इससे तो अच्छा है कि ठंड आ जाए और इस कीचड़ और पानी से छुटकारा मिले.’’ मम्मी ने कहा - "बस एक-दो महीने की बात है बेटा. फिर तो ठंड का ही मौसम आएगा. मिष्टी का मूड ठीक करने के लिए मम्मी ने उसे चटनी के साथ गरमा-गरम पकौड़े खाने के लिए दिए.

देखते ही देखते बरसात का मौसम भी बीत गया. ठंड बढ़ने लगी. मिष्टी को लग रहा था कि उसे इस मौसम मे कोई तकलीफ नहीं होगी. वह आराम से गरम कपड़े पहनकर खेल सकती है. पर दिसम्बर का महीना आते ही कड़ाके की ठंड पड़ने लगी. बाहर निकलते ही ठंड से हाथ पैर सुन्न होने लगते थे. लगता था सिर्फ घर के अंदर रजाई में ही घुसकर बैठे रहो. सुबह-सुबह स्कूल जाने के लिए मिष्टी का उठने का ही मन नहीं करता था. पर स्कूल जाना तो जरूरी था. ठंडे पानी को देखकर ही वह डर जाती. नहाते हुए उसके दाँत कटकटाने लगते. अब मिष्टी सोच रही थी कि इससे तो अच्छा गर्मी और बरसात का ही मौसम था. कम से कम मैं गर्मियों में ठण्डी आइसक्रीम तो खाती थी. बरसात में कागज की नाव चलाने में कितना मजा आता था.

उसने यह बात मम्मी को बतायी तो मम्मी ने कहा - "मिष्टी, हमारे लिए सारे मौसम अच्छे हैं. यदि कोई एक ही मौसम रहे तो पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा. मौसम चक्र के कारण ही खेती हो पाती है. यदि खेती समय पर नहीं होगी तो हमें अनाज कहाँ से मिलेगा?" अब यह बात मिष्टी को भी अच्छी तरह समझ में आ गई फिर उसने दोबारा मौसम को लेकर कोई शिकायत नहीं की.

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