कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने एक अधूरी कहानी प्रकाशित की थी और आपसे उस कहानी को पूरा करने का अनुरोध किया था. वह अधूरी कहानी हम नीचे दे रहे हैं –

अधूरी कहानी - घमंडी हाथी और चींटी

एक समय की बात है चन्दन वन में एक शक्तिशाली हाथी रहता था. उस हाथी को अपने बल पर बहुत घमंड था. वह रास्ते से आते जाते सभी प्राणि‍यों को डराता धमकाता और वन के पेड़-पौधों को बिना वजह नष्ट करता उधम मचाता रहता. एक दिन आकाश में बिजली चमकी और मूसलाधार बारिश होने लगी. तेज़ बारिश से बचने के लिए हाथी दौड़ कर एक बड़ी गुफा में जा छिपा. गुफा के भीतर एक छोटी सी छीटी भी थी. उसे देखते ही हाथी हँसने लगा और बोला – 'तुम कितनी छोटी हो, तुम्हे तो मैं एक फूंक मारूँगा तो चाँद पर पहुँच जाओगी. मुझे देखो मैं चाहूँ तो पूरे पर्वत को हिला दूँ. तुम्हारा जीवन तो व्यर्थ है.'

एक

लेखिका - सतरूपा पाल, गड़रियापारा, लाखासर

हाथी को चींटियों से बड़ी ईर्ष्या होती थी. वो उन्हें जब भी देखता, तो पैरों से कुचल देता. चींटी ने हाथी से विनम्रता से पूछा कि आप दूसरों को क्यों परेशान करते हो? यह आदत अच्छी नहीं है. यह सुनकर हाथी क्रोधित हो गया और उसने चींटी को धमकाया – 'तुम अभी बहुत छोटी हो, अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाकर रखो, मुझे मत सिखाओ कि क्या सही है, क्या ग़लत वरना तुम्हें भी कुचल दूंगा.' यह सुन चींटी निराश हुई, लेकिन उसने मन ही मन हाथी को सब सिखाने की ठानी और मौक़ा देखते ही चुपके से हाथी की सूंड़ में घुस गई. फिर उसने हाथी को काटना शुरु कर दिया. हाथी परेशान हो उठा. उसने सूंड़ को ज़ोर-ज़ोर से हिलाया, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. हाथी दर्द से कराहने और रोने लगा. यह देख चींटी ने कहा – 'हाथी भइया, आप दूसरों को परेशान करते हो, तो बड़ा मज़ा लेते हो. अब ख़ुद क्यों परेशान हो रहे हो?' हाथी को अपनी ग़लती का एहसास हो गया. उसने चींटी से माफ़ी मांगी कि और कहा कि आगे से वो कभी किसी को नहीं सताएगा. चींटी को उस पर दया आ गई. वो बाहर आकर बोली कि कभी किसी को छोटा और कमज़ोर नहीं समझना चाहिए.

सीख: घमंडी का सिर सदा नीचे होता है. कभी किसी को कमज़ोर और छोटा न समझें. दूसरों के दर्द व तकलीफ़ को समझना ही जीने का सही तरीक़ा है.

दो

लेखक - हिमांशु मधुकर, सलोरा

हाथी बोला- 'भगवान ने इतना पतला तुम्हें क्या सोचकर बनाया है!' चींटी बोली - 'कुछ अच्छा ही सोचा होगा, मेरे बारे में भगवान ने. तुम अपने शरीर का घमंड मत करो.' हाथी बोला- 'अभी तुमने मेरी ताकत नहीं देखी है. अगर मैं अपनी एक टांग धरती पर मार दूं तो धरती हिलने लगेगी.' इतना कहकर वह जोर जोर से टांग को धरती पर माने लगा. चींटी ने हाथी को समझाया - 'ऐसा मत करो, नहीं तो गुफा हमारे ऊपर गिर जाएगी.' घमंडी हाथी ने चींटी की बात नहीं मानी और जोर जोर से अपनी टांगो को धरती पर मारता रहा. ज़मीन के हिलने से एक बहुत बड़ा पत्थर गुफा के सामने आ गया और गुफा बंद हो गई. चींटी बोली - 'यह क्या किया तुमने? गुफा बंद कर दी. इस पत्थर को हटाओ.' हाथी ने पत्थर को हटाने का प्रयास किया लेकिन पत्थर को हटा नहीं पाया. परेशान होकर हाथी चींटी से बोला - 'हम तो यहां फंस गए.' चींटी बोली - 'हम नहीं तुम फंस गए. भगवान ने मेरा शरीर इतना छोटा बनाया है कि मैं आसानी से बाहर जा सकती हूं.' हाथी ने रोते हुए मदद की गुहार लगाई तो चींटी बाहर जाकर हाथी के साथियों को बुलाकर लाई. हाथी के साथियों ने पत्थर हटा दिया. हाथी ने बाहर आकर चींटी को शुक्रिया कहा. इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि- 'ताकत से बड़ी बुध्दि है।'

तीन

लेखिका - श्रीमती लक्ष्मी मधुकर, पोड़ी (लाफा), पाली जिला कोरबा

हाथी ने चींटी को फूंक मारने के लिए जैसे ही अपनी सूंड आगे बढ़ाई, चींटी चालाकी से उसकी नाक के अंदर घुस गई और काटने लगी. हाथी व्याकुल हो उठा और चिल्लाने लगा- 'बाहर निकलो - बाहर निकलो.' चींटी बोली - 'देख ली छोटी सी चींटी की ताकत. तुम तो बहुत घमंड करते थे. अब क्या हुआ?' हाथी बोला- 'मुझे माफ कर दो, चींटी बहन. मुझे पता चल गया कि छोटी सी चींटी भी बहुत ताकतवर होती है' चींटी बाहर निकल आई और दोनों में दोस्ती हो गई.

अगले अंक के लिये अधूरी कहानी –

आलसी किसान

बहुत समय पहले की बात है. एक गांव में एक किसान अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. उसकी ज़िंदगी बेहद ख़ुशहाल थी. उसके पास भगवान का दिया सब कुछ था. सुंदर-सुशील पत्नी, होशियार बच्चे, खेत-ज़मीन-पैसे थे. उसकी ज़मीन भी बेहद उपजाऊ थी, जिसमें वो जो चाहे फसल उगा सकता था. लेकिन एक समस्या थी कि वो ख़ुद बहुत ही ज़्यादा आलसी था. कभी काम नहीं करता था. उसकी पत्नी उसे समझा-समझा कर थक गई थी कि अपना काम ख़ुद करो, खेत पर जाकर देखो, लेकिन वो कभी काम नहीं करता था. वो कहता, 'मैं कभी काम नहीं करूंगा.' उसकी पत्नी उसके अलास्य से बेहद परेशान रहती थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी. एक दिन एक साधु किसान के घर आया और किसान ने उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया. ख़ुश होकर सम्मानपूर्वक उसकी सेवा की. साधु किसान की सेवा से बेहद प्रसन्न हुआ और ख़ुश होकर साधु ने कहा कि 'मैं तुम्हारे सम्मान व आदर से बेहद ख़ुश हूं, तुम कोई वरदान मांगो.' किसान को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. उसने कहा, 'बाबा, कोई ऐसा वरदान दो कि मुझे ख़ुद कभी कोई काम न करना पड़े. आप मुझे कोई ऐसा आदमी दे दो, जो मेरे सारे काम कर दिया करे.'

अब इस अधूरी कहानी को पूरा करके हमें भेज दो. हम अगले अंक में आपकी कहानी प्रकाशि‍त करेंगे.

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