चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिए यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें जो कहानियां मिली हैं उन्हें हम प्रकाशित कर रहे हैं –

चुनमुन और सोने का अंडा

लेखिका - पुष्पा शुक्ला

एक दिन सुबह - सुबह सुखिया और उसकी पत्नी रमिया खेत जा रहे थे. अचानक उन्हें बतख की बच्ची की क्वैक - क्वैक कि तेज आवाज सुनाई दी. उन्होंने देखा कि एक बिल्ली ने बतख की बच्ची को पंजे में दबोच रखा था. बतख की बच्ची जोर-जोर से चीख रही थी. उन्हें देखते ही बिल्ली बतख की बच्ची को छोड़कर भाग गई. बतख की बच्ची बुरी तरह घायल हो गई थी. सुखिया और रमिया को बतख की बच्ची पर दया आ गई. वे उसे घर ले आए, उसके जख्मों पर दवा लगाई और चुगने को दाना दिया.

कुछ दिनों बाद बतख की बच्ची पूरी तरह ठीक हो गई. वह सुखिया और रमिया से बहुत घुल मिल गई. रमिया ने उसका नाम चुनमुन रखा. चुनमुन रमिया के आगे - पीछे घुमती. अब वह उनके घर कि एक सदस्य जैसी हो गई थी. उन्होंने चुनमुन के लिए घर पर ही घासफूस से एक घोंसला बना दिया था. चुनमुन उसमें मजे से रहती थी. एक रात सुखिया और रमिया आपस में बातें कर रहे थे. सुखिया अपनी पत्नी से बड़े उदास मन से कह रहा था – ‘‘बरसात आ गई है. फसल बोने का समय हो रहा है. पिछली बार फसल अच्छी नही हुई. इसके चलते बीज और खाद के लिए भी पैसे नही हैं. समझ नही आ रहा कि क्या करूँ. कहाँ से पैसे लाऊं. क़र्ज़ भी नहीं मिल रहा है.’’ उसकी पत्नी ने उसे धीरज बँधाया और कहा - ‘‘आप खाना खा लो सब ठीक हो जायेगा. घर में कुछ पीतल के बर्तन हैं उन्हें कल बाजार में बेचकर बीज और खाद ले आना.’’ चिंता में दोनों बिना खाना खाए ही सो गए. चुनमुन अपने घोसले से उनकी बातें सुन रही थी. उसे बड़ा दुःख हुआ. उसका जी चाह रहा था कि वह उनके लिए कुछ करे.

अगली सुबह चुनमुन जोर - जोर से क्वैक-क्वैक कि आवाज करने लगी. उसकी आवाज सुनकर रमिया और सुखिया घर के बाहर दौड़े आए. चुनमुन के पास एक सोने का अंडा रखा था. वे समझ गए कि चुनमुन ने वह सोने का अंडा देने के लिए ही उन्हें क्वैक-क्वैक करके बुलाया है. उन्हें खुश देखकर चुनमुन भी बहुत खुश हुई.

धैर्य बड़ी चीज

लेखिका कु. कविता कोरी, गड़रियापारा, लाखासर

एक निर्धन किसान को कहीं से एक मुर्गी मिल गई. वह उस मुर्गी को घर ले आया. उसने यह सोचकर कि आज काफ़ी दिन बाद बढ़िया खाने को मिलेगा, मुर्गी को काटने के लिए बड़ा-सा चाकू उठा लिया. जैसे ही वह उस मुर्गी को काटने ले लिए बढ़ा कि मुर्गी बोली, ‘‘मुझ पर दया करो, मुझे मत मारो.’’ किसान बोला, ‘‘क्यों न मारूँ काफ़ी दिन हो गए मुर्गी खाए, मैं तो तुम्हें ज़रूर काटूँगा.’’ मुर्गी बोली, ‘मुझे काट कर तुम्हें नुकसान ही होगा क्योंकि मैं सोने का एक अंडा रोज़ देती हूँ. मुझे जीवित रखो और रोज़ सोने के एक अंडे के मालिक बन जाओ. इससे तुम्हारी निर्धनता भी दूर हो जाएगी.’’ ‘‘हो सकता है तुम झूठ बोल रही हो,’’ किसान ने कहा. मुर्गी बोली ‘‘सुबह तक आजमा लो, अगर बात झूठ निकली तो मुझे मार डालना.’’ सुबह सचमुच उस मुर्गी ने सोने का अंडा दिया. किसान खुश हो गया. अब तो यह रोज़ का सिलसिला बन गया. कुछ ही दिनों में वह किसान मालामाल हो गया.

एक दिन किसान के मन में लालच ने सिर उठाया. लालच में फँसे इंसान की बुध्दि काम करना बंद कर देती है. किसान ने सोचा कि ‘कौन रोज़-रोज़ एक-एक अंडा इकट्ठा करता फिरे. मुर्गी को मार कर एक ही बार में सारे अंडे निकाल लेता हूँ. लालच में उसने मुर्गी का पेट चीरने की सोची और चाकू लेकर आ गया. तभी किसान की पत्नी ने उसे रोका और कहा – ‘‘तनिक धैर्य रखा करो. कभी सुना है मुर्गी के पेट में एक साथ ढेर सारे अण्डे?’’ तब किसान को अकल आई. वरना लालच में पड़कर किसान रोज़ मिलने वाले सोने के एक अंडे से भी हाथ धो बैठता.

कथा-सार - "धैर्य का फल सदैव अच्छा ही होता है और अधीरता बने-बनाए काम को भी बिगाड़ देती है. यदि किसान की पत्नी धैर्य नहीं रखती तो किसान रोज़ सोने का एक अंडा पाने से हाथ धो बैठता."

सोने का अंडा

लेखिका - कु. स‌ष्टि मधुकर, पोड़ी लाफा, पाली, जिला कोरबा

एक किसान अपने खेत में हल चला रहा था. उसी समय आसमान में उड़ते हुए बाज के पैर से एक छोटी सी मुर्गी का बच्चा नीचे गिरा और चूं चूं की आवाज करने लगा. आवाज सुनकर किसान उसके पास गया और उसे उठाकर अपने घर ले आया. वह और उसकी पत्नी चूजे देखभाल करने लगे. देखते ही देखते वह चूजे से बड़ी होकर एक मुर्गी बन गई और एक दिन उसने एक सोने का अंडा दिया. उसे देखकर किसान और उसकी पत्नी अचंभित हो गए. किसान उस अंडे को बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा. मुर्गी रोज एक अंडा देती थी. अब किसान गरीब नहीं था. उसके पास बहुत से खेत, सुंदर घर और बहुत से जानवर हो गये. वह अमीर बन गया. कुछ दिनों में उसके मन में लालच समा गया. उसने सोचा कि मुर्गी के पेट में बहुत से सोने के अंडे होंगे. सारे अंडे एक साथ निकालकर बहुत अमीर बन जाऊंगा. यह सोच कर किसान और उसकी पत्नी ने मुर्गी को काट डाला. मुर्गी के पेट से कुछ न निकला. देखो किस्मत का खेल - जो रोज एक अंडा मिलता था, वह भी हाथ से गया. दोनों सिर पकड़कर पछताने और रोने लगे.

कहानी से सीख -लालच बुरी बला है.

अगले अंक में कहानी लिखने के लिये हम कुमारी दिलेश्वरी पाल का बनाया चित्र नीचे प्रकाशित कर रहे हैं. इस चित्र पर जल्दी से कहानी लिखकर हमे भेज दो जिसे हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे –

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