बालगीत

खरबूजा जी

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला', व्याख्याता पंचायत, घोटिया (डौण्डी)

ओ खरबूजा जी !
ओ खरबूजा जी !
मैं मित्र आपका तरबूजा जी !

गरमी के मौसम में आते !
बाजारों में हो इतराते !
गाँव, शहर, कस्बों में दिखते,
रायपुर, बालोद और सरगुजा जी !

एक दिन मैं बाजार गया !
खूब छाँटकर मोल लिया !
खाया मैने तुझको छक कर
करी पेट की पूजा जी !

गोल मटोल और धारीदार !
मीठे मस्त बड़े रसदार !
खुशबू तेरी होती बड़ी अच्छी !
पाये स्वाद न दूजा जी !

चूहा और मुर्गा

लेखक – द्रोण साहू

चूहा बोला चूँ-चूँ-चूँ,
बैठा है तू उकडूँ क्यूं

देख ले मेरे भूर बाल,
लंबी मूँछें चि‍कने गाल.

मुर्गा बोला कुकड़ूं कूँ,
तेरे जैसे अकडूँ क्यूं

सर पर मेरे कलंगी लाल,
और मेरी मस्तारनी चाल,

फालतू बातें पकड़ूं क्यू,
बेमतलब में झगडूँ क्यूं

बेटी

लेखक - डोमेन कुमार बढ़ई, मानपुर

बेटी हूं मैं बेटी हूं
देश की प्यारी बेटी हूं

सबसे सुंदर देश हो अपना
रोज देखती मैं यह सपना

बक्त न जाने कैसा आया
मेरा फूल सा मन कुम्हलाया

सौ-सौ दुख हैं मैने झेले
मगर मिला ना मुझको न्याय

कभी निर्भया, कभी असिफा
होता रहा सदा अन्याय

अब न सहूंगी मैं अन्याय
लड़कर लूंगी सच्चा न्याय

बेटी हूं मैं बेटी
देश की प्यारी बेटी हूं

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